विशेषप्रतिनिधि, न्यू एज इस्लाम
७ अगस्त, २०१४
आदरणीय पोप फ्रांसिस ने मुसलमानों और ईसाईयों को “कयामे अमन और ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में मुसलमानों और ईसाईयों के बीच आपसी मुफाहेमत व मसालेहत की दावत दी जहां यह दोनों बिरादरियां जंग की हौलनाकी का शिकार हैं।“
Mr Sultan
Shahin, Editor, New Age Islam receiving the Letter of His Holiness Pope Francis
from Padam Shri Father Thomas V Kunnankal S.J.
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अंतर्धार्मिकमुकालमे को बढ़ावा देने के पेशे नज़र ईसाईयों की एक संगठन ‘इस्लामिक
स्टडीज़ एसोशिएशन ‘ने न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन के मदद से ६ अगस्त को न्यू एज इस्लाम
फाउंडेशन के ऑफिस के चारदीवारी में
अंतर्धार्मिक मुकालमे की तकरीब का एहतिमाम किया। इस्लामिकस्टडीज़ एसोशीएशन के सदर
पदम् श्री थामस वी कनिन्कल एस जे ने पोंटीफिकल काउंसिल फॉर इंटर रिलीजियस डाइलाग
वेटिकन सिटी. रूम (the Pontifical Council for Interreligious Dialogue, Vatican City, Rome) की ओर से आदरणीय पोप फ्रांसिस का तहनियत नामा
जनाब सुलतान शाहीन एडिटर, न्यू एज इस्लाम को पेश किया। इस्लामिक स्टडीज़ एसोशीएशन
के सदर, सी बी एस ई के पूर्व चेयरमैन और नेशनलइंस्टीटयूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग के संस्थापक
व सदर फादर टॉम किनिन्कल ने कहा कि: “हर साल इस तरह के ख़त ख़ास तौर पर मुस्लिम
कम्युनिटी के रहनुमाओं, उलेमा, बुद्धिजीवियों, और अंतर्धार्मिक सद्भाव के कयाम में
सरगर्म कार्यकर्ताओं को पेश किये जाते हैं। इसलिए चूँकि जनाब सुलतान शाहीन और उनकी
वेबसाईट (newageislam.com) वेटिकन की नज़रों में अंतर्धार्मिक मुकालमे को बढ़ावा
देने, धार्मिक असहिष्णुता, धार्मिक अतिवाद और नौजवानों को बुनियाद परस्त बनाने के
खिलाफ संघर्ष में नुमाया मुकाम रखती है इसी लिए उन्हें यह ख़त अपनी तमाम तर नेक
ख्वाहिशात और मुबारक बादियों के साथ पेश कर रहे हैं।“
इस्लामिक स्टडीज़ एसोशिएशन (ISA) अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय
एक ईसाई संगठन है जिसका उद्देश्य भारतीय ईसाईयों को अपने मुस्लिम भाइयों के साथ
मेल जोल पैदा करने और उनके साथ मदद करने के लिए तैयार करना है। इस्लामियात, ईसाई
मुस्लिम संबंधों और अंतर्धार्मिक मुकालमे के माहिर फादर विक्टर एडविन एस जे (जो कि
फिलहाल विद्या ज्योति कॉलेज आफ थियोलोजी, दिल्ली के साथ जुड़े हैं) एक कैथोलिक ईसाई
पादरी और इस्लामिक स्टडीज़ एसोसिएशन (ISA) के एक सक्रिय और सरगर्म सदस्य हैं
जिन्होंने इस वर्कशाप को आयोजित करने में न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन के साथ मदद किया।
इस तकरीब का अगाज़ा मुस्लिम और ईसाई उलेमा मेहमान और सम्मिलित होने वालों के संक्षिप्त परिचय के साथ हुआ जिसके बाद दोनों धार्मिक ग्रुप के उलेमा, बुद्धिजीवी और मुफक्केरीन के बीच एक फ़िक्र अंगेज़ गुफ्तगू और मुकालमा शुरू हुआ। जनाब सुलतान शाहीन साहब ने मेहमानों का पुर तपाक स्वागत किया और अंतर्धार्मिक मुकालमे से संबंधित अहम मसलों और डर पर गुफ्तगू शुरू की। उन्होंने भारत में तसव्वुफ़ की पुर अमन शिक्षाओं पर रौशनी डाली और कहा कि भारतीय सूफियों ने हमेशा विभिन्न धार्मिक रिवायतों से सबंध रखने वाले लोगों के साथ बेहतर संबंध बनाने के मकसद से अंतर्धार्मिक मुकालमे की हिमायत की है। उन्होंने कहा कि “इस्लाम भारत के तूल व अर्ज़ में सूफियों की कोशिशों के नतीजे में ही जिन्होंने मजहबे इस्लाम की बहुलतावादी, उदार और व्यापक परम्पराओं को दुनिया के सामने पेश किया।“
Mr Sultan
Shahin, Editor, New Age Islam addressing the Muslim and Christian Scholars
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आदरणीय पोप फ्रांसिस के ख़त का अरबी नुस्खा जनाब गुलाम रसूल देहलवी ने हाज़रीन के सामने पढ़ा। इसके बाद फादर विक्टर एडविन एस जे ने ख़त के अंग्रेजी नुस्खे को हाज़रीन के सामने पेश किया। विषय पर गुफ्तगू करते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमानों के नाम तकद्दुस मआबपोप फ्रांसिस के ख़त में उल्लेखित दिली मुबारकबाद को पेश करना उनके लिए और मजलिस में मौजूद तमाम मसीही बिरादरान के लिए वाकई मुसर्रत बख्श और शानदार तजुर्बा था। इसके बाद इस्लामिक स्टडीज़ एसोसीएशन के सदर, सी बी एस ई के पूर्व चेयर मैन और नेशनल इंस्टीटयूट के ऑफ़ ओपन स्कूलिंग के संस्थापक व सदर पदम् श्री फादर टॉम किनिन्कल ने आदरणीय पोप फ्रांसिस का तहनियत नामा जनाब सुलतान शाहीन, सदर न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन को पेश किया।
Mr Ghulam Rasool Dehlvi reads out the Arabic
version of the Letter of Pope
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मुस्लिम रहनुमाओं के नाम आदरणीय पोप फ्रांसिस के ख़त के प्रारम्भिक कलेमात इस तरह थे: “पिछले साल आदरणीय पोप फ्रांसिस ने आपको पेश किये गए इस पैगाम नामे पर खुद ईदुल फ़ित्र के मौके पर दस्तखत किये हैं। एक और मौके पर उन्होंने आपको “अपने भाइयों और बहनों” में शुमार किया है (एंजिल्स ११ अगस्त २०१३)। हम इन शब्दों की अहमियत को पूर्ण रूप से स्वीकार कर सकते हैं। असल में, ईसाई और मुसलमान एक ही इंसानी खानदान से संबंध रखने वाले एक ही खुदा के पैदा किये हुए भाई और बहन हैं।“
His Holiness Pope Francis
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ख़त में पेश किये गए इन खुबसूरत संदेश से सेंट जॉन पाल द्वितीय की बातें ताज़ा
हो गईं जो उन्होंने १४ फरवरी १९८२ को कडोना, नाइजीरिया में बयान की थीं कि: “हम
सब, ईसाई और मुसलमान एक रहमान व रहीम खुदा के बनाए हुए सूरज के नीचे रहते हैं, हम
दोनों का उस एक खुदा पर ईमान है जो तमाम इंसानों का ख़ालिक है। हम खुदा की हाकिमियत
का इकरार करते हैं और खुदा के बंदे होने के नाते इंसानों के वकार का दीफाअ करते
हैं। हम खुदा की परस्तिश करते हैं औरउसकी मुकम्मल इताअत का इकरार करते हैं। इसलिए,
हकीकी मानों में हम सब एक खुदा पर ईमान रखने में एक दुसरे को भाई कह सकते हैं।
“मुसलमानों और ईसाईयों को मुखातिब करते हुए मुस्लिम रहनुमाओं के नाम पोप के इस ख़त
में आफाकियत और साझा मूल्यों के नजरिये की ताईद की गई है: “हमारेसाझा मूल्यों से
हमारी हौसला अफजाई होती है और हकीकी बिरादरी के हमारे जज्बों से हमें ताकत मिलती
है। हमें हर शख्स के अधिकार और वकार की हिफाजत के लिए मिल जुल कर काम करने का
हुक्म दिया गया है, ख़ास तौर पर उनके लिए जो अधिक जरूरतमंद हैं जैसे गरीब, बीमार,
यतीम, अपना देश छोड़ने वाले, स्मंगलिंग के प्रभावितों और वह जो किसी किस्म के नशे
का शिकार हों”। इस पैगाम ने मुसलमानों और ईसाईयों दोनों को “कयामे अमन और ख़ास तौर
पर उन इलाकों में मुसलमानों और ईसाईयों के बीच आपसी समझौते की दावत दी जो जंग की
हौलनाकियों का शिकार हैं।“
उस ख़त में मौजूदा वैश्विक संकट पर गहरी चिंता व्यक्तकी गई है: “जैसा कि हम सब
यह जानते हैं कि मौजूदा दुनिया को ऐसे गंभीर चैलेंजों का सामना है जो तमाम शुभ
चिंतक लोगों की ओर से एकता का मुतालबा करता है इस तरह के हालात खतरे के एहसास और
भविष्य के लिए निराशा को जन्म देते हैं। हमें ऐसे बहुत सारे खानदानों केसामने पेश
मुश्किलात को नहीं भूलना चाहिए जो अपने हितैषियों और छोटे बच्चों से दूर हो चुके
हैं।
दुनिया भर में जारी संकट का हल ख़त में इन शब्दों में पेश किया गया है: “अब
हमें शांति की स्थापना और ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में मुसलमानों और ईसाईयों और
मुसलमानों के बीच आपसी समझौते को बढ़ावा देना अपरिहार्य हो चुका है जहां मुस्लिम और
ईसाई दोनों जंग की हौलनाकियों का शिकार हैं। हो सकता है कि हमारी दोस्ती हिकमत और
होशमंदी के साथ इस किस्म के अनेकों चुनौतियों का सामना करने में सहायता करने के
लिए हमेशा हमारी हौसला अफजाई करे। इस तरह हमें संकीर्णता और विवादों को कम करने
में मदद मिलेगी और हम आम फलाह व बहबूद के कामों में अधिक तेज़ी के साथ कदम बढ़ा
सकेंगे। हम इस बात का भी प्रदर्शन करेंगे कि धर्म भी संपूर्ण रूप से सामाजिक हितों
के लिए सद्भाव का एक माध्यम हो सकते हैं।“
इस ख़त का अंत इन सुंदर दुआइया कलेमात के साथ हुआ: “हम दुआ करते हैं कि पूरी
इंसानियत की कामयाबी के लिए आपसी सुलह, न्याय, अमन और सार्वजनिक हित हमारी पहली
वरीयता में शामिल रहें।“
इस अंतर्धार्मिक प्रोग्राम और न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन के बारे में विचार व्यक्त करते हुए फादर विक्टर एडविन एस जे ने कहा: “न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन के ऑफिस में हमारी हाजरी एक ख़ुशी का मौक़ा है। हमेंन्यू एज इस्लाम के संस्थापक और इन इस्लामी उलेमा से मिल कर बड़ी ख़ुशी हुई जिन्होंने हाल ही में इस्लामी मदरसों से फ़रागत हासिल की है। हम मुस्लिम उलेमा और फुजला के साथ भाईचारे को कायम रखते हैं। हमारा यह मानना है कि किसी भी धर्म के बारे में घृणा और बदगुमानी को दूर करने का सबसे बेहतरीन तरीका बात चीत, मुकालमा और एक दोस्ताना माहौल में इज्तिमा के माध्यम से उस धर्म का सहीह इल्म और उसकी सहीह समझ हासिल करना है। और इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम सबके लिए यह उत्सव भी ऐसा ही एक मौक़ा है। “उन्होंने कहा कि “हम जहां कहीं भी गए और जब कभी भी हम ने अपने मुसलमान भाइयों के साथ किसी बात चीत या मुकालमे का आयोजन किया तो उन्होंने बड़ी खुश मिजाज़ी के साथ हमारा स्वागत किया है। मेहमान नवाज़ी का उनका यह अंदाज़ देख कर हमें बड़ी राहत महसूस हुई।“
Father
Victor Edwin S.J. reads out the English version of the Letter of His Holiness Pope
Francis
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इस मौके पर न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन के सदर और न्यू एज इस्लाम वेबसाईट के
एडिटर जनाब सुलतान शाहीन ने मौजूदा दौर में इस्लाम और इंसानियत को दरपेश चुनौतियों
का उल्लेख किया और कहा कि आज कुरआन व सुन्नत की केवल अपनी व्याख्या की हक्कानियत
का इसरार करने वाले वहाबी और दुसरे तमाम अतिवादी जमातों की ओर से दरपेश तमाम खतरों
का जवाब केवल सूफी इस्लाम ही है। उन्होंने कहा कि सुफिया के मज़ार अंतर्धार्मिक
मुकालमे के केंद्र हैं इसलिए कि वहाँ तमाम धार्मिक बिरादरी के अमन पसंद लोग हाज़िर
होते हैं और यही वह पवित्र जगह हैं जहां लोगों को अमन और सुकून हासिल होता है।
फादर विक्टर एडविन ने मसीही बिरादरी के खद्शात (डर) का इज़हार किया और जनाब
सुलतान शाहीन से यह पूछा कि क्या सूफी इस्लाम वहाबियत के बढ़ते हमलों का सामना कर
सकता है। इस पर जनाब सुलतान शाहीन ने कहा कि हालांकि सऊदी अरब भारत में पेट्रो
डॉलर की दर आम्दात प्रदान कर रहा है और बुनियाद परस्त वहाबियाई इस्लाम को बढ़ावा दे
रहा है लेकिन तसव्वुफ़ की जड़ें भारतीय संस्कृति में गहरी हैं इसलिए यह हरहाल में
वहाबियत के हमलों का सामना करेगी। और साथ ही साथ उन्होंने भारत में मुस्लिम ज़हनियत
पर वहाबियत के बढ़ते हुए प्रभावों पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है।
जनाब सुलतान शाहीन ने कहा कि जहां तक अंतर्धार्मिक मुकालमे का संबंध है, धर्म
के लिए मुसलमानों के तफव्वुक पसंद दृष्टिकोण की वजह से इस सिलसिले में किसी इखलास
का मुजाहेरा नहीं हुआ। इसकी मिसाल पेश करते हुए उन्होंने अंतर्धार्मिक मुकालमे में
बहुत सक्रीय न्यूयॉर्क की सबसे बड़ी मस्जिद के इमाम का हवाला पेश किया जिन्होंने
कहा कि केवल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही एक ऐसे नबी हैं जिनका पैगाम
पूरी दुनिया के लिए है और बाकी दुसरे अंबिया क्षेत्रीय थे और उनके धर्मों को भी उन
क्षेत्रों तक ही सीमित रहना चाहिए। जनाब सुलतान शाहीन ने कहा कि “अगर मुसलमान इन
मामलों में ऐसा तफव्वुक पसंद रवय्या इख्तियार करेंगे तो अंतर्धार्मिक मुकालमे का
कोई लाभ नहीं होगा।“ उन्होंने ने इस हकीकत पर अफ़सोस का इज़हार किया कि भारत में
मुसलमानों के बीच कोई ऐसी तंजीम नहीं है कि जो विभिन्न धार्मिक बिरादरियों के बीच
सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए अंतर्धार्मिक प्रोग्रामों का आयोजन करे। ‘जहां तक
न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन का संबंध है तो हम अपने सीमित साधनों के साथ अतिवाद और
धार्मिक असहिष्णुता का मुकाबला करने और अंतर्धार्मिक सद्भाव की फिजा कायम करने के
लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह एक बहुत बड़ा काम है और इसमें उम्मत के एक बड़े
वर्ग की शिरकत जरुरी है।‘
मुसलमानों के बीच तफव्वुक परस्ती के जज़्बे की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि
तफव्वुक परस्ती की यह कल्पना अंतर्धार्मिक सद्भाव की राह में एक रुकावट है। जनाब
सुलतान शाहीन ने इस बात पर भी अफ़सोस का इज़हार किया कि समानता के हक़ की हमारी
संघर्ष में जब भी आवश्यकता होती है हमारे ईसाई भाई बहन हमारी हिफाज़त और मदद करने
के लिए अपने कदम आगे बढाते हैं जबकि आम तौर पर मुसलमान भारत में या दुसरी जगहों पर
ईसाई अल्पसंख्यकों की मदद करने के लिए आगे नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि: “ऐसा
लगता है कि हम मुसलमान यह सोचते हैं कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकोंको समान
अधिकार प्राप्त हों जबकि अगर दुसरे अल्पसंख्यकों या कमज़ोर वर्गों के साथ बुरा
सुलूक किया जाए तो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हम पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे
इस्लामी देशों या दुसरे मुस्लिम देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिमायत में कभी
बाहर नहीं आते।
“तथापि, हमारे लिए इस बात का इदराक करना अत्यंत जरूरी है कि इंसानी अधिकार
अविभाज्य हैं। दुनिया के किसी भी भाग में अगर किसी अल्पसंख्यक या कमज़ोर वर्ग पर
कोई मुसीबत टूटती है तो इससे हम सब पर असर पड़ता है। इसलिए हम मुसलमानों को सभी
अल्पसंख्यकों और कमज़ोर वर्गों के मानवाधिकार के लिए लड़ना चाहिए ख़ास तौर पर मुस्लिम
देशों में और उन देशों में अल्पसंख्यकों और कमज़ोर वर्गों के इंसानी अधिकारों की बाज़याबी
के लिए हमें आवाज़ बुलंद करनी चाहिए जो खुद को इस्लामिक कहते हैं। अगर किसी भी
इस्लामी देश में इंसानी अधिकारों की खिलाफवर्जी होती है तो हमारे सर शर्म से झुक
जाने चाहिए।
“अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो हमारी तरफ से केवल शर्म, नफरत और नापसंदीदगी का
इज़हार भी विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव की फिजा पैदा कर देगा और यही अंतर्धार्मिक
मुकालमे की एक बेहतरीन सूरत भी होगी। इससे हम सब एक ही सफ में शामिल हो जाएंगे।
सेमीनार हाल में केवल मुकालों को पढ़ने और किसी वर्कशाप में कुछ घंटे खुश मिज़ाजी के
साथ गुज़ार लेने से कोई फायदा नहीं होगा। अगर हम कुछ लोगों को अपने भाइयों और बहनों
में शुमार करते हैं जैसा कि हम इस सेमीनार रूम में दावा कर रहे हैं तो हमें हर उस
जगह उनकी मदद के लिए खड़ा होना चाहिए जहां उन्हें हमारी जरूरत हो।“
ईसाई उलेमा के साथ बात चीत में शामिल इस्लामी स्कॉलर और न्यू एज इस्लाम के
नियमित स्तंभकार जनाब गुलाम गौस ने कहा कि “लोगों को विभिन्न धर्मों के बीच
मतभेदों का सम्मान करना चाहिए। किसी को भी किसी दुसरे धर्म के संबंध में कोई
अनुचित और गंदे शब्द के प्रयोग से बचना चाहिए क्योंकि इससे और समस्याएं पैदा होंगी
और अंतर्धार्मिक मुकालमे की तमाम तर कोशिशें बेकार जाएंगी।“
अंतर्धार्मिक मुकालमे की इस तकरीब के अंत में गुलाम रसूल देहलवी ने इस्लामी
मदरसों के नए फारेगीन और मजलिस में शरीक उलेमा और फुजला को मुख़्तसर ख़िताब किया।
उन्होंने अंतर्धार्मिक मुकालमे की अहमियत और मौजूदा दौर में इसकी इफादियत के बारे
में उन्हें बताया। अंतर्धार्मिक मुकालमे का हुक्म देने वाली इस कुरआनी आयत “अपने
रब की राह की तरफ लोगों को हिकमत और बेहतरीन नसीहत के साथ बुलाइए और उनसे बेहतरीन
तरीके से गुफ्तगू कीजिये”(16:125) का हवाला देते हुए जनाब गुलाम रसूल देहलवी ने
कहा कि एक राजनीतिक नजरिये के बजाए एक रूहानी, पुर अमन और बहुलता वादी धर्म के तौर
पर इस्लाम को पेश करने का सबसे बेहतरीन तरीका अंतर्धार्मिक मुकालमे का आयोजन है।
अंतर्धार्मिक मुकालमे के इस प्रोग्राम में विभिन्न मुस्लिम और ईसाई उलेमा और
विद्वान शरीक हुए। उनमें विशेष रूप से मसीहियत में एम ए कर रहे जनाब जाबी, मौलाना
अहमद रज़ा जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जे एन यू), मौलाना ज्याउल मुस्तफा, जामिया
मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली), मौलाना गुलाम अहमद रज़ा (उड़ीसा) उल्लेखनीय हैं।
इसके अलावा जनाब अरमान न्याजी, जनाब मिसबाहुल हुदा, जनाब अंजुम, जनाब हुज़ैफा हारून,
मिस्टर असीत सिंह और न्यू एज इस्लाम फाउंडेशन के दुसरे रजाकार की भी एक खासी
संख्या में मौजूद थे।
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