दि सोजोर्नर (अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद-समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
ज़ाकिर नाइक मुम्बई के एक इस्लामी विद्वान हैं। उन्होंने तुलनात्मक धार्मिक अध्ययन की शिक्षा हासिल की है, और वो हिंदुस्तान और विदेशों में मुसलमानों के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि होने के साथ ही साथ मशहूर धर्मशास्त्री हैं। पीस टीवी के नाम से एक निजी चैनल चलाते हैं और कई लोगों की राय के मुताबिक वो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के वक्ता हैं, लेकिन मेरा मानना है कि वो बुराई का प्रचार करने वालों में से हैं।
मेरे बारे में भी ये जानना ज़रूरी है कि मैं क्यों इस्लाम की ओर आकर्षित हुआ। काफी समय से मेरे अंदर इस्लाम को लेकर एक कशिश रही है। संगीत, शायरी, साहित्य, भाषा और इसके अलावा आपसी मामलात में एक दूसरे के आदर की इस्लामी शिक्षाओं ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया। मैं इसकी संस्कृति से हैरान हूँ। इसी दिलचस्पी के कारण मैं अक्सर इण्टरनेट पर ऐसी सामग्री देखता हूँ जो इस्लाम के बारे में बताती है और यहीं पर मैंने दूसरों के अलावा ज़ाकिर नाइक के बारे में पढ़ा।
हाल ही में मैंने यू-ट्यूब पर एक वीडियो देखा। इस वीडियो इंटरव्यु में ज़ाकिर नाइक के विचारों को जानने का मौका मिला। जब उनसे इस्लामी सरकारों की नैतिकता के बारे में सवाल किया गया जो गैरइस्लामी इबादतगाहों के निर्माण की इजाज़त नहीं देती, तो इस पर उनका जवाब बहुत सादा, लेकिन हास्यास्पद था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर एक धर्म के अपनाने की प्रकिया एक स्कूल में टीचर की नियुक्ति के जैसा ही है। दोनों मामलों में सबसे अच्छा चुनाव करना होता है ताकि अपनी जनता (चाहे नागरिक हों या छात्र) को गलत प्रभावों से बचाया जा सके। चूंकि उनके अनुसार पूर्ण धर्म इस्लाम था इसलिए इसका चुनाव प्राकृतिक था। सबसे अहम बात ये है कि अपनी जनता को बुरे (पढ़ेः गैरइस्लामी) प्रभाव से बचाने के लिए ये नैतिक रूप से ज़रूरी था कि किसी दूसरे धर्म पर सार्वजिनक रूप से अमल करने से रोका जाये, उसी तरह जैसे अयोग्य टीचर को स्कूल में नियुक्त न किया जाये। जब ज़ाकिर नाइक से इस्लाम के पूर्ण धर्म के बारे में पूछा गया कि वो किस तरह इस्लाम को एक पूर्ण धर्म बता रहे हैं जबकि दूसरे धर्मों के मानने वाले भी इसी तरह के दावे पेश करते हैं। ज़ाकिर नाइक सवाल को बड़ी आसानी से निरर्थक बना देते हैं और क़ुरान का हवाला (संदर्भ) देकर अपनी बात का आधार पेश करते हैं। वो ये भी कहते हैं कि सेकुलर देश धार्मिक और वैचारिक विश्वास के मामले में अस्पष्ट रहते हैं, और ये इनके अपने विश्वास में कमी ही है जो गैरइस्लामी देश अपने यहाँ सभी मज़हब के मानने वालों को उस पर अमल करने की इजाज़त देते हैं। इस तरह का चुनाव एक इंसान को आवश्यक लोकतांत्रिक अधिकार ही प्रदान करता है और ये सहिष्णुता और बहु-संस्कृति वाले समाज का उत्साहवर्धन करता है। स्पष्ट रूप से ये वहशियाना दुष्प्रचार करने वाले की समझ में नहीं आया होगा।
एक अन्य वीडियो में ज़ाकिर नाइक विकास के सिद्धांत को तर्कहीन औऱ गलत करार देते हैं, क्योंकि ये क़ुरान में बयान किये गये धरती की रचना की वास्तविकता के खिलाफ है। वो किसी आदमी के ऐतिहासिक साहित्य के ज्ञान को चाहे वो विज्ञान के प्रमाणों के खिलाफ ही क्यों न हो, उसके ज्ञान का आधार मानते हैं। उनकी ये बात बताती है कि वो बौद्धिक रूप से कितने कमज़ोर हैं। ऐसे में उनकी दलीलों में कारण तलाश करना बेवकूफी होगी, लेकिन जिस तादाद में उनके मानने वाले हैं वो परेशान करने वाला है। उनकी तकरीर को सुनने के लिए पूरी दुनिया में कहीं भी हज़ारों लोग इकट्ठा होते हैं। उनका चैनल पीस टीवी ब्रिटेन में किसी दूसरे इस्लामी चैनल के मुकाबले ज़्यादा देखा जाता है। हिंदुस्तान में वो सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध वक्ता हैं। कुछ दिनों पहले ब्रिटेन सरकार ने उनके, अपने देश में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी, जिसे हाल ही में उठा लिया गया। इसे वर्तमान सरकार के द्वारा मुस्लिम आबादी को खुश करने के कदम के तौर पर देखा जा सकता है। हाल ही में वो आक्सफोर्ड में अपने पुराने और अपमानजनक खयालात को पश्चिमी दुनिया को बताने के लिए थे। मैंने एक वीडियो देखा जिसमें मशहूर फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने ज़ाकिर नाइक के इंग्लैण्ड में प्रवेश के उनके अधिकार का बचाव किया और पश्चिमी देशों को निशाना बनाया और ये हैरानी की बात नहीं कि उनके भाषण की ही तरह इनका बचाव भी कारण और विवेक से रहित था।
मेरी समझ से ज़ाकिर नाइक ही ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से ओसामा बिन लादेन की निंदा करने से इंकार किया है। आम इंसानों की सादगी और नासमझी ही बड़ी तादाद में इनके मानने वालों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। समाज का वो हिस्सा जो इस तरह के बर्ताव को बर्दाश्त करता या बढ़ावा देता है, वो धार्मिक उग्रवाद को फैलाने में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं और यही बर्ताव सार्वजनिक जीवन में विचार विमर्श में रुकावट डालता है। ये बड़े अफसोस की बात है कि आज के पढ़े लिखे समाज में भी इस तरह के तर्क को एक बड़े समूह का समर्थन प्राप्त है, इसके बहुत ही खतरनाक नतीजे होंगे। जब तक सब लोग ये जानें और इसकी तबाही से वाकिफ हों, तब तक 10 और गैरइस्लामी और भड़काने वाले वक्ता पैदा होकर सभ्य समाज को तबाह करने के मिशन पर निकल पड़ेंगे, और उस वक्त ज़ाकिर नाइक की निंदा करना, ज़ाहिर है तब बहुत देर हो चुकी होगी।
स्रोतः सीकिंग ब्रिलियंस ब्लाग स्पॉट
URL for English article: https://www.newageislam.com/muslims-and-islamophobia/zakir-naik-systematically-spreading-fear-of-islam/d/4871
URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/zakir-naik-spreading-fear-islam/d/5546
URL: https://newageislam.com/hindi-section/zakir-naik-systematically-spreading-fear/d/5570