डॉक्टर सैयद फरहत हुसैन
२६ फरवरी, २०२१
निजात का शाब्दिक अर्थ छुटकारा पाना या बच जाने के हैं
अर्थात किसी दुःख, तकलीफ या नुक्सान
और खसारे से बच जाएं या उससे निजात मिल जाए। धार्मिक इस्तिलाह में निजात का अर्थ
उस रूहानी कैफियत से है जिसमें परेशानी, तकलीफ और अज़ाब से
छुटकारा मिल जाए। कुरआन में निजात के अर्थ तकलीफ, परेशानी, खौफ, मलाल, अज़ाब और खसारे से
बच जाने के हैं। इस्लाम में निजात और फलाह व कामयाबी का बहुत विस्तृत अवधारणा है।
असलन तो आख़िरत की ज़िन्दगी अज़ाब, तकलीफ, जहन्नम की आग से बच जाने और जन्नत मिल जाने का तसव्वुर है
मगर साथ ही दुनिया की ज़िनदगी को भी शांतिपूर्ण, पुरसुकून, मुतमईन और खुशहाल
बनाने का मफहूम शामिल है जो कि असल हदफ़ निजाते उखरवी ही है। कुरआन में निजात और कामयाबी
व कामरानी को बहुत स्पष्ट और दिलनशी अंदाज़ में पेश किया गया है। कहीं इसको ‘दर्दनाक
अज़ाब’ से निजात या घाटे से बच जाना कहा गया है। कहीं फौज़ व फलाह, जन्नत का हुसूल
और अल्लाह की खुशनूदी के हुसूल की हैसियत से पेश किया गया है। खौफ और रंज से आफियत
भी तसव्वुर ए निजात में शामिल है। इन शीर्षकों के तहत अहम आयात पेश की जा रही हैं:
(१) निजात
दर्दनाक अज़ाब से छुटकारे के संदर्भ में सुरह अल सफ की आयात
१०/से १२/ बहुत अहम हैं:
“ऐ ईमानदारों क्या
मैं नहीं ऐसी तिजारत बता दूँ जो तुमको (आख़ेरत के) दर्दनाक अज़ाब से निजात दे (10)
(वह ये है कि) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और अपने माल व जान से ख़ुदा की राह
में जेहाद करो अगर तुम समझो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (11) (ऐसा करोगे) तो
वह भी इसके ऐवज़ में तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और तुम्हें उन बाग़ों में दाख़िल करेगा
जिनके नीचे नहरें जारी हैं और पाकीजा मकानात में (जगह देगा) जो जावेदानी बेहिश्त
में हैं यही तो बड़ी कामयाबी है।“ (अल सफ: १०-१२)
अर्थात अल्लाह और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर
पूरा ईमान और अल्लाह के रास्ते में माल व जान का सरमाया लगा कर जो तिजारत की जाएगी
उससे ना केवल यह है कि अज़ाबे अलीम (दर्दनाक अज़ाब) से छुटकारा मिल जाएगा बल्कि एक
बड़ी कामयाबी यह होगी कि जन्नत में हमेशा का कयाम हासिल हो जाएगा। इससे अगली आयत
(१३) में दुनिया में अल्लाह की मदद और फतह की बशारत भी सुनाई गई है। यही वह नुक्ता
है जो इस्लाम के कामयाबी के तसव्वुर को दुसरे दिनों से मुमताज़ करता है कि वरीयता
तो उखरवी निजात और फलाह को हासिल है मगर दुनिया की कामयाबी को भी फरामोश नहीं किया
गया है।
(२) घाटे से बचाव
निजात का तसव्वुर और नुक्सान से बचाव के लिए सुरह अल अस्र
की शिक्षा बहुत व्यापक हैं:
(अनुवाद) “नमाज़े अस्र की
क़सम (1) बेशक इन्सान घाटे में है (2) मगर जो लोग ईमान लाए, और अच्छे काम
करते रहे और आपस में हक़ का हुक्म और सब्र की वसीयत करते रहे (3)” (अल अस्र: १-३)
अर्थात ज़माना गवाह है कि मानव जाति सरासर नुक्सान और घाटे
में है। इस घाटे से केवल वही लोग बच सकते हैं और दुनिया और आखिरत में निजात और
कामयाबी हासिल कर सकते हैं जो ईमान, अमले सालेह (नेक
और अच्छे आमाल) और हक़ व सब्र की तलकीन पर अमल करने लग जाएँ।
सुरह अल ज़ुम्र आयत १५/ में गैरुल्लाह की बंदगी को खुला घाटा
कहा गया है:
(अनुवाद) “तुम उसके सिवा
जिसकी बंदगी इख्तियार करना चाहो करते रहो फरमा दीजिये: बेशक नुक्सान उठाने वाले
वही लोग हैं जिन्होंने कयामत के दिल अपनी जानों को और अपने घर वालों को खासारे में
डाला। याद रखो यही खुला नुक्सान है।“
ज़ाहिर है अल्लाह की बंदगी के जरिये ही इस दिवालिये पन से
निजात मिल सकती है।
निजात के उपर के मदारिजे फलाह, फौज़, रज़ा ए इलाही,खौफ व गम से आफियत हैं। उनका तज़किरा अलग लग आ रहा है।
(३) फलाह
कामयाबी और निजात के लिए कुरआन में कई जगहों पर शब्द फलाह
आया है जिसका इतलाक आख़िरत में पायदार और मुस्तकिल कामयाबी और दुनिया में आसूदगी और
मुतमईन ज़िन्दगी से होता है। कुरआन के मुताले से मालुम होता है कि ईमान, तकवा, हिदायते इलाही की
पैरवी, तजकिया ए नफ्स और दीने हक़ के गलबे के लिए इज्तिमाई संघर्ष
करने वाले फलाह पाएंगे।
ख़ास ख़ास आयात पेश हैं:
मुत्तकीन और मोमिनीन कामयाब हैं:
सुरह बकरा के शुरू में मुत्तकीन की सिफात बयान करने के बाद
फरमाया गया:
“ऐसे लोग अपने रब
की तरफ से राहे रास्त पर हैं और वही फलाह पाने वाले हैं।“ (अल बकरा-५) यही मज़मून सुरह लुकमान की आयत नम्बर ५/ में भी
है। सुरह अल मोमिनून के पहली आयत में है: “यक़ीनन फलाह पाई
है मोमिनीन ने। “इसके बाद मोमिनीन
की सिफात बयान फर्मी गई हैं और फिर फरमाया गया है:
“(आदमी की औलाद
में) यही लोग सच्चे वारिस है (10) जो बेहश्त बरी का हिस्सा लेंगे (और) यही लोग
इसमें हमेशा (जिन्दा) रहेंगे (11)” (अल मोमिनून:
१०-११)
सूद, जुआ और शराब से
बचने वाले:
“ऐ ईमानदारों सूद
दनादन खाते न चले जाओ और ख़ुदा से डरो कि तुम छुटकारा पाओ।“ (आले इमरान: १३०)
“ऐ ईमानदारों शराब, जुआ और बुत और
पाँसे तो बस नापाक (बुरे) शैतानी काम हैं तो तुम लोग इससे बचे रहो ताकि तुम फलाह
पाओ।“ (अल मायदा:९०)
तजकिया नफ्स करने वाले:
“फलाह पा गया वह
जिसने पाकीज़गी इख्तियार की। (अल आला:१४)
“बेशक वह शख्स
फलाह पा गया जिसने उस (नफ्स) को (रजाएल से) पाक कर लिया।“ (अल शम्स:९)
अल्लाह की जमात वाले:
“जो लोग ख़ुदा और
रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं तुम उनको ख़ुदा और उसके रसूल के दुश्मनों से दोस्ती
करते हुए न देखोगे अगरचे वह उनके बाप या बेटे या भाई या ख़ानदान ही के लोग (क्यों न
हों) यही वह लोग हैं जिनके दिलों में ख़ुदा ने ईमान को साबित कर दिया है और ख़ास
अपने नूर से उनकी ताईद की है और उनको (बेहिश्त में) उन (हरे भरे) बाग़ों में दाखिल
करेगा जिनके नीचे नहरे जारी है (और वह) हमेश उसमें रहेंगे ख़ुदा उनसे राज़ी और वह
ख़ुदा से ख़ुश यही ख़ुदा का गिरोह है सुन रखो कि ख़ुदा के गिरोग के लोग दिली मुरादें
पाएँगे (22)” (अल मुजादिला: २२)
नबी उम्मी की पैरवी करने वाले:
“(यानि) जो लोग
हमारे बनी उल उम्मी पैग़म्बर के क़दम बा क़दम चलते हैं जिस (की बशारत) को अपने हॉ
तौरैत और इन्जील में लिखा हुआ पाते है (वह नबी) जो अच्छे काम का हुक्म देता है और
बुरे काम से रोकता है और जो पाक व पाकीज़ा चीजे तो उन पर हलाल और नापाक गन्दी चीजे
उन पर हराम कर देता है और (सख्त एहकाम का) बोझ जो उनकी गर्दन पर था और वह फन्दे जो
उन पर (पड़े हुए) थे उनसे हटा देता है पस (याद रखो कि) जो लोग (नबी मोहम्मद) पर
ईमान लाए और उसकी इज्ज़त की और उसकी मदद की और उस नूर (क़ुरान) की पैरवी की जो उसके
साथ नाज़िल हुआ है तो यही लोग अपनी दिली मुरादे पाएंगें।“ (अल आराफ़: १५७)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की समअ व ताअत:
“ईमानदारों का क़ौल
तो बस ये है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी
झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही
लोग (आख़िरत में) कामयाब होने वाले हैं।“ (अल नूर:५१)
फलाह पाने के लिए अम्र बिल मारुफ़ और नहीं अनिल मुनकर
“और तुम में से
ऐसे लोगों की एक जमात जरुर होनी चाहिए जो लोगों को नेकी की तरफ बुलाएं और भलाई का
हुक्म दें और बुराई से रोकें, और वही लोग बा
मुराद हैं।“
रब की बंदगी में फलाह:
“और तमाम उमूर की
रूजू खुदा ही की तरफ होती है ऐ ईमानवालों रूकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार
की इबादत करो और नेकी करो।“ (अल हज:७७)
अल्लाह की राह में संघर्ष:
“ऐ ईमानदारों ख़ुदा
से डरते रहो और उसके (तक़र्रब (क़रीब होने) के) ज़रिये की जुस्तजू में रहो और उसकी
राह में जेहाद करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।“ (अल मायदा: ३५)
२६ फरवरी. २०२१, बशुक्रिया, नई दिल्ली
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