विशेष संवाददाता,
न्यू एज इस्लाम
१० फरवरी २०२१
सैयद सरवर चिश्ती दरगाह अजमेर शरीफ के
खुद्दाम या मुतवल्ली में से एक हैं। उन्होंने हाल ही में पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इण्डिया
(पि एफ आई) की हिमायत की थी, और
अब वह “सूफी इत्तेहादे मिल्लत
तंजीम” के नाम से एक नया संगठन
बना चुके हैं, जिसका बाकायदा एलान हाल
ही में जमाते इस्लामी के हेड क्वार्टर के करीब स्थित होटल रिव्युव अबुल फज़ल
इनक्लेव, जाम्या नगर,
ओखला,
नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस
में किया गया है।
कांफ्रेंस के बैनर में अल्लामा इकबाल का
एक मशहूर शेर लिखा गया था:
निकल कर खानकाहों से
अदा कर रस्मे शब्बीरी
कि फकरे खानकाही है फकत
अंदोह व दिलगीरी
अपनी तकरीर के शुरू ही में,
सैयद सरवर चिश्ती कहते हैं कि “दरगाहों
और खानकाहों के जो लोग खामोश बैठे हुए हैं,
हम उनके सख्त खिलाफ हैं,
हमारे ही कुछ लोग गवर्नमेंट की गोद में जा
कर बैठ गए हैं”
इस जुमले का इशारा असल में “आल
इण्डिया सूफी सज्जादगान काउंसिल” की
तरफ था जिन्होंने हाल ही में हिन्दुस्तानी कौमी सलामती के मुशीर से मुलाक़ात की और
इंस्दाद शिद्दत पसंदी पर हुकूमत की हिमायत का एलान किया। इस पर तब्सिरा करते हुए
दरगाह अजमेर शरीफ के गद्दी नशीन खादिम सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि “हम
यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि सज्जादा नशीन और सूफी हज़रात हुकूमत के ‘एजेंट’
नहीं हैं और हमारी सफों में कुछ लोग मीर व
जाफर हो सकते हैं लेकिन हम किसी राजनीतिक जमात या हुकूमत के हामी नहीं हैं”।
इन नई सूफी संगठन का दावा है कि देश भर से
२५ के लगभग नुमाया सज्जादा नशीन हज़रात इसके साथ हैं जिन्होंने संगठन के लांचिंग
प्रोग्राम में शिरकत भी की है। लेकिन लांचिंग इवेंट और उसके घटित होने वाले स्थान
और एजेंडे पर गौर किया जाए तो उस नए संगठन को जमाते इस्लामी और पॉपुलर फ्रंट ऑफ़
इण्डिया की हिमायत हासिल है जो खुद तसव्वुफ़ पर विश्वास नहीं रखते। असल में जमाते
इस्लामी के नज़रियाती फ्रेम वर्क से देखा जाए तो सूफी अकीदों और ‘सूफियाना’
तरीके कार या सुफिया की ‘रूहानी
रविश’ पर मौलाना मौदूदी ने
सख्त आलोचना की है, जिसका अध्ययन उनकी
किताब “तसव्वुफ़ का इंकलाबी
तसव्वुर” में किया जा सकता है जो
अब आम तौर पर उपलब्ध नहीं है। इसी तरह जमाते इस्लामी से प्रभावित दुसरे लेखक जैसे
डॉक्टर इलियास आज़मी की तसनीफ “वह्द्तुल
वजूद: एक गैर इस्लामी नज़रिया” और
इस जैसी दूसरी किताबें जो जमाते इस्लामी हिन्द के मरकज़ी मकतबा पब्लिशर्ज़ ने
प्रकाशित की हैं, उनमें इस प्रकार के
इफ्कार व नज़रियात को देखा जा सकता है।
लांचिंग इवेंट में सैयद सरवर चिश्ती और
दुसरे तकरीर करने वालों ने अपने से अलग राय रखने वाले सज्जादगान के खिलाफ जिस तंज़
भरे लहजे का इस्तेमाल किया है उससे कई डर को शक्ति मिलती है। अगर वह यह दावा करने
में हक़ बजानिब हैं कि आज भारतीय समाज के अल्पसंख्यकों,
दलितों,
कबायलियों और कमज़ोर वर्ग को दबाने के लिए
कौम परस्ती की एक जाली दास्ताँ रकम की जा रही है,
लेकिन दूसरी तरफ वह अपने ही साथियों और
समकालीन सूफियों के खिलाफ भी ज़हर उगल रहे हैं जो बिलकुल तसव्वुफ़ की रूह के उलट है।
जो लोग मुल्की मसलों पर अलग विचार रखते हैं या अलग राजनीतिक विचार रखते हैं,
उनका किला कमा करना,
यह कहां का तसव्वुफ़ है?
इस प्रेस कांफ्रेंस के आयोजन और “सूफी
इत्तेहादे मिल्लत” के नाम से इस नई
इस्लामी तंजीम के कयाम में शामिल उन लोगों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या वह
सैयद सरवर चिश्ती की पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया की हिमायत से मुत्तफिक हैं?
नाम निहाद सूफी मुतवल्लियों और ‘हकीकी
तसव्वुफ़’ के दावेदारों के उन दो
युद्धरत गिरोहों की इस पूरी नयी दास्ताँ में एक दिलचस्प बात यह है कि अब
हिन्दुस्तानी तसव्वुफ़ वहाबियत के नरगे में है जिसके तहत वहाबी नजरिये के हामिल कुछ
लोग छुप कर अजमेर शरीफ सहित कई मुमताज़ खानकाहों और भारतीय दरगाहों में गहरी चालें
छेड़ चुके हैं। इस स्थिति ने देश में कौमी सलामती के इस्तेह्काम और अमन के पाएदार
कयाम के लिए नया चैलेंज पैदा कर दिया है। हालांकि इन सूफी नुमा वहाबियों के बहुत
कम अनुयायी हैं, और अभी भी मरकजी धारे
से जुड़े हुए मुसलमान उन मुतवल्लियों की हिमायत में नहीं हैं,
लेकिन सरवर चिश्ती जैसे दरगाही खादिम जिस
तरह से पी एफ आई जैसी शिद्दत पसंद तंजीमों की हिमायत कर रहे हैं और जुनूनी तौर पर
मज़हबी तास्सुब का माहौल तैयार कर रहे हैं,
वह चिंताजनक है। देश की नाज़ुक स्थिति के
पेशे नज़र जिसमें नौजवानों को अतिवादी और बुनियाद परस्त नज़रियात के ज़ेरे असर लाना
आसान सा बन गया है, यह एक परेशान कुन अम्र
और लम्हा-ए फिकरिया है, ख़ास तौर पर
हिन्दुस्तानी तसव्वुफ़ के संदर्भ में जो कि लगातार नीचे गिर रही है।
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