ताबिश सिद्दीकी
18, दिसंबर, 2014
पाकिस्तान के पेशावर शहर में तालिबानियों ने बच्चों को मारने से पहले बच्चों से कालिमा पढने को बोला. ये कालिमा वो होता है जो मुसलमान को मुसलमान बनाता है. वह कालिमा जो आतंकियों ने बच्चों के सिर में गोली मारने से पहले पढ़वाया उस कालिमे का अनुवाद है, "नहीं है कोई परमेश्वर सिवाए अल्लाह के, और मुहम्मद उसके पैगम्बर हैं" यही कालिमा इस्लाम की शुरुवात है. यही कालिमा आइसिस के काले झंडे पर लिखा हुआ है. यही कालिमा जानवर को काटने से पहले कसाई भी पढता है तभी उस जानवर का मांस मुसलमानों के लिए हलाल होता है. आइसिस भी किसी का गला काटने से पहले ये कालिमा पढता है, और आतंकवादियों ने भी बच्चों पर गोलियां दागने से पहले यही कलिमा पढ़वाया. तो फिर भला वे जो आतंकवादी पेशावर में बच्चों का कत्ल करके चले गये क्या वे मुसलमान नहीं थे? बोलते रहो कि तालिबान और आइसिस मुस्लमान नहीं है, कौन सुनेगा ये दलील?
इस्लामिक मुल्क पकिस्तान में इस्लामिक आतंकवादियों ने 132 स्कूली बच्चे मार डाले जो उन्हीं की तरह मुसलमान थे. कत्लेआम का एक चाश्मीद गवाह बच्चा बोला "आतंकवादियों ने बच्चों को लाइन लगाने को कहा ताकि गोली मार सकें। बच्चों ने समझा कि अंकल कोई गेम खेलने वाले हैं" इन मासूमों को ये नहीं पता कि इस्लाम के कठमुल्लों को बस दो ही गेम पता हैं..एक बिस्तर पर दूसरा जंग के मैदान में. इन्होंने न कोई और गेम सीखा है और न इनको इनके मदरसे कुछ सिखाते हैं. ये भूखे नंगे वहशी अरब की बर्बर मानसिकता वाले लोग. जब तक ये पूरी तरह से नेस्तोनाबूद नहीं किये जायेंगे तब तक इनका ये वाला गेम रुकने वाला नहीं है.
मारे गये बच्चों में से एक के पिता अजीज कहते हैं, "मेरा बेटा सुबह यूनिफॉर्म में था, अब ताबूत में है। मेरा बेटा मेरा ख्वाब था। मेरा ख्वाब मारा गया।'' लेकिन ये क्या जाने ख्वाब, जन्नत की हूरों के लिए लार टपकाने वाले घिनौने कठमुल्ले, इनसे किस ख्वाब की उम्मीद करते हो तुम लोग? इन्होने सामूहिक आत्महत्या की पूरी प्लानिंग कर रखी है. फिर भी तुम सब लोग (मुसलमान) चुप हो. तुम सब लोग जो दिल ही दिल में शरीया को सपोर्ट करते हो. तुम सब लोग जो सब कुछ जान कर कचुप रहते हो. तुम सब देशद्रोही ही नहीं इंसानियत और पूरी पृथ्वी के लिए खतरा हो. अभी भी वक़्त है सब लोग होश में औ और इकठ्ठे हो जाओ इनके खिलाफ डूब मरो.
जिस दिन से इस्लाम आया है वजूद में यही हो रहा है. कहते हैं ओसामा मुस्लिम नहीं है, तालिबान मुसलमान नहीं है, आइसिस वाले मुसलमान नहीं हैं, बोको हरम मुसलमान नहीं हैं. ये सब भटके हुए हैं इनको देख कर इस्लाम धर्म को परिभाषित नहीं किया जा सकता है, ठीक है! मगर फिर बताओ पैगम्बर के बाद से जो लोग चले आ रहे हैं उनको क्या बोला जाएगा? जिन लोगों ने खलीफाओं को मारा मुसलमान थे.. जिन लोगों ने पैगम्बर के पूरे खानदान का खात्मा कर दिया मुसलमान थे.. जिन लोगों ने सारे सूफियों को मारा मुसलमान ही तो थे.. और क्या थे वो लोग? उन लोगों को भी मुसलमान न बोला जाए? और फिर आप बोलते हो की ओसामा और आइसिस अब आये हैं दुनिया में? जाके इस्लामिक इतिहास पढो आँख खुल जायेगी. चैन से बैठने नहीं दिया इस धर्म ने किसी को. ऐसा जूनून अल्लाह को एक मनवाने का कि वो पागलपन की हद तक पहुँच गया इस्लाम के शुरुवाती दिनों से ही.
एक दिन एक पाकिस्तानी प्रोग्राम को यू ट्यूब पर देख रहा था जिसमे हसन नासिर कहते हैं की इस्लाम की शिक्षा में मूलभूत गड़बड़ी है. इसको जब तक समझोगे नहीं कुछ नहीं होगा. वहां उस प्रोग्राम में लोगों ने उनको चुप करा दिया. मगर ये बहुत कटु सत्य है. पहले आपका धर्म सबसे सच्चा, फिर इस्लाम शुरू ही होता है “ए इमानवालों” जैसे शब्दों से जो अन्य धर्मो और लोगों को बे-ईमान बना देता है. फिर भेद आता है काफिर, मुशरिक, मुनकिर, मुर्दत का. यहाँ से हमारे बच्चों की शिक्षा शुरू होती है और आप बोलोगे की भाईचारा और अमन का सन्देश दे रहे हो?
कुरान में अल्लाह कहता है कि जब अब्राहा अल-अशराम की सेना हाथियों के साथ काबा पर हमला करने के लिए आई तो अल्लाह ने अबाबील (चिड़िया) की फ़ौज भेजी, हर चिड़ियों के पंजों में पत्थर के टुकड़े थे, और एक एक पत्थर बम की तरह पड़े उन हाथियों पर और सारी सेना तबाह हो गयी. अल्लाह के इस चमत्कार को जब मौलवी मस्जिद में सुनाता है तो सारे झूम उठते हैं और रो रो कर अपने पापों का प्रायश्चित करने लगते हैं.. क्यूंकि जहाँ भी कभी भी किसी कौम ने ज़ुल्म किया अल्लाह ने उस कौम को तबाह कर दिया. पर जाने क्यूँ हजारों साल होने को है और अल्लाह चुप है. मुसलमान तबाह हो रहे हैं और अल्लाह चुप है. तो क्या ये माना जाए की जो कौम “ज़ुल्म” करती है अल्लाह उसे ही तबाह करता है तो क्या इस वक़्त भी वो वही कर रहा है? अबाबील तो नहीं हाँ अमेरिकन ड्रोन ही सही. मगर अल्लाह कहीं न कहीं से कुछ भेज तो रहा ही है.
या फिर अल्लाह प्रगतिशील मुसलमानों की तरह चुप है क्यूंकि अब गेंद उसके पाले में है? उसके अपने धर्म के लोग लगे हैं खून खराबे में शायद इसलिए वो कुछ बोल नहीं पा रहा है जैसे समझदार और बुद्धजिवी मुसलमान चुप रहते हैं? और दोनों तरफ से अल्लाह ही पकड़ा जा रहा है. अगर वो चुप है तो मतलब वो तालिबान और आइसिस का समर्थन करता है और अगर वो अमेरिका को हमले के लिए उकसा रहा है तो इसका मतलब वो अबाबील ही भेज रहा है मगर ये समझ नहीं पा रहे. या अल्लाह. बता अब तू किसकी तरफ है? या फिर अबाबील (चिड़िया) ही भेज तभी ये समझ पाएंगे क्यूंकि अमेरिकन ड्रोन को तो ये इस्लाम के खिलाफ साजिश बता के अपनी करतूत पर तेरी मोहर लगवा लेते हैं.
मुसलमानों ने खुद दुनिया दो हिस्सों में बाँट रखी है. एक मुस्लिम समाज और दूसरा गैर मुस्लिम समाज. परेशानी यहीं से शुरू होती है. भाई भाई बोलने की सारी बातें बेईमानी है अगर दुनिया ही दो हिस्सों में बटी है इस्लामिक नज़रिए से. लेकिन इस्लाम की शिक्षा अब सब लोग समझ चुके हैं. काफिर, मुशरिक, मुनकिर. अब लोगों को समझ आ गया है. अब बच्चा बच्चा जानता है कि काफिर किसको कहते हैं और फिर आप बोलते हो कि लोग नफरत क्यूँ कर रहे हैं? काफिर शब्द गाली की तरह इस्तेमाल करोगे फिर लोगों को समझोगे की काफिर मतलब सिर्फ वो जो अल्लाह को न माने और शब्द के पीछे जो घृणा छिपी है उसको कैसे छिपाओगे? लोग अब पढ़ रहे हैं और उनको पता है की कट्टर लोगों का दिल पूरे दुनिया में शरीया लागू करने में लगा है. लोग फेसबुक पर उसकी पैरवी करते हैं और बोलते हो लोग नफरत करते हैं आपसे? जिन जिन लोगों ने हिन्दुओं और सिखों पर ज़ुल्म ढाए आप उनकी वकालत करते हो फिर बोलते हो लोग आपसे नफरत क्यों करते हैं? मुसलमानों को पूरी दुनिया में सिर्फ मुसलमानों की फ़िक्र रहती है. जितना आक्रोश आपको इस्राईल पर आता है उतना आपको अपने देश में हुए किसी और हादसे पर क्यों नहीं आता है?
अगर दिल में कुछ और हो और ज़बान पर कुछ और तो छोटे बच्चे भी आपकी नियत भांप जाते हैं. बाकी दुनिया तो बड़ी और समझदार है. कैसे उम्मीद करते हो कि आप औरंगजेब और गौरी की तारीफ करो और लोग ये न समझ पाए की आपके दिल में क्या है? लोग कैसे मान जाएँ की आप औरंगजेब की तारीफ़ करके उसकी शिक्षाओं को नहीं अपनाओगे भविष्य में? मैं इस्लाम को इंसानियत का मज़हब उस दिन मानूंगा जिस दिन सऊदी अरब में मंदिर और गुरूद्वारे बनाने की इजाज़त मिलेगी और लोग खुले आम पूजा कर सकेंगे. इस बात की कोई दलील ही नहीं दी जा सकती है की वो इस्लामिक देश है. किसका इस्लामिक देश? कैसा देश? अगर हम वहां दूसरे धर्मो को जगह नहीं दिलवा सकते हैं तो कम से कम वकालत तो न करें इस बात की. भारत में बैठके बोलोगे की सऊदी की पाक ज़मीन पर मंदिर नहीं बन सकता और फिर यहाँ लोग आपको गले लगायेंगे?
यह सही है कि देश दुनिया का हर मुसलमान इसके लिए दोषी नहीं है, न ही सब के सब आतंकवादी हैं, अगर ऐसा हुआ तो उन करोड़ों लोगों में मेरा भी नाम शामिल हो जाएगा. लेकिन ऐसी आतंकवादी घटनाओं पर कोई "मुसलमानों" को दोष देता है तो बात उन मुसलमानों की होती है जो ऐसी घटना में रहते हैं या उनको सपोर्ट करते हैं. दुनिया इतनी पागल नहीं है की सारे मुसलमानों को एक तराजू में तौले. सबको पता है कि अगर बीस करोड़ में बस कुछ गिने चुने लोग आइसिस को सपोर्ट करते हैं तो इसका मतलब ये साफ़ है कि यहाँ के बहुसंख्यक मुसलमानों की विचारधारा सऊदी वाले इस्लाम की नहीं है. संभल जाओ ऐ मुसलमानों अभी सवेरा है..पूरी दुनिया नफरत करने लगी है और लोग अब किसी भी रूप में इस्लाम को देखने के लिए भी नहीं तैयार हैं. होश में आ जाओ तो अच्छा है नहीं तो मिट जाओगे.
Source: http://visfot.com/index.php/current-affairs/11698-sambhal-jao-e-musalmano.html
URL: https://newageislam.com/hindi-section/o-muslims,-come-senses-/d/100733