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Hindi Section ( 20 Jan 2012, NewAgeIslam.Com)

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Indian Student's Open Letter to Sarkozy about Hijab हिजाब के संबंध में भारतीय छात्रा का फ्रांस के राष्ट्रपति सर्कोज़ी के नाम पत्र


सैयद अली (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

11 सितंबर के संडे टाइम्स ऑफ इंडिया (दिल्ली) में एक 16 वर्षीय छात्रा का एक जुर्रत मंदाना खत प्रकाशित हुआ है जो पूरी दुनिया में मशहूर हो गया। यह पत्र नोएडा के पाथवेज़ स्कूल की ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा ने लिखा है जिसे ऐतिहासिक पत्र कहा जा सकता है। जिस विषय पर और एक बड़े देश के प्रमुख को यह पत्र लिखा गया है उसने हिंदुस्तान और यूरोप के उदार लोगों को चौंका दिया है और इस विषय पर उनके आधुनिक मगर पुराने विचार और उनके ज़मीर को झकझोर दिया है। यह पत्र नहीं एक पैगाम है पश्चिमी दुनिया के नाम, और लोकतंत्र के नाम लेने वालों के लिए विचार करने का एक निमंत्रण  है। इसलिए इस पत्र को खासी अहमियत दी गई है। किस्सा यूं है कि आम तरीकों के अनुसार नोएडा के के पाथवेज़ स्कूल में छात्रों और छात्राओं के लिखित मुकाबले होते रहते हैं। इस बार स्कूल के छात्रों से कहा गया कि वह किसी वैश्विक नेता के नाम औपचारिक पत्र लिखे जिसमें विश्वव्यापी समस्या पर चर्चा की गई हो। आज के छात्रों ऐसे विषय पर अपना राय देने का निमंत्रण देना जो न सिर्फ अपने देश की  समस्याओं से संबंध रखता हो बल्कि विश्व समस्याओं से भी संबंध रखता हो और वह विश्व नेता के नाम ये पत्र लिखा गया हो। ये स्कूल के जागरूक शिक्षकों की विचारों के विस्तार को बताता है। एक पढ़ने में तेज़ छात्रा ने जिस विषय को चुना और विश्व के जिस बड़े देश के प्रमुख को चुना और जिस जुर्रतमंदी से उन्हें संबोधित किया वो न सिर्फ उसके विचारों की परिपक्वता को बतात है बल्कि इसमें एक टीचर और सुधारक की शान दिखती है। छात्रा ने फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सर्कोज़ी के नाम पत्र लिखा, यहां तक ​​तो कोई खास बात नहीं थी।

विशेष बात ये है कि पत्र का विषय बड़ा आश्चर्यजनक था। यूं तो विश्व की समस्याओं का अंबार है जिन में से ज़्यादा तर से नई नस्ल वाकिफ है और इस संबंध में डिस्कशन (चर्चा) में भाग भी लेती रहती है। आज विश्व समस्याओं में विश्व आर्थिक संकट, ग्लोबल वार्मिंग, मानवाधिकारों का उल्लंघन, छात्र और अशांति, सामाजिक असमानता, रंग-जाति का भेद, परमाणु हथियारों का फैलाव, साम्राज्यवादी विचारधारा और सबसे प्रिय विषय आतंकवाद को बनाया जा सकता था, लेकिन इस छात्रा ने  एक 'दकियानूसी' विषय को चुना और सरकोज़ी के अलोकतांत्रिक कदम पर उन्हें लताड़ा। इस छात्रा ने सरकोज़ी के नाम पत्र में लिखा कि, 'फ्रांस में इस्लामी बुर्के पर प्रतिबंध का कानून सरासर गलत और अलोकतांत्रिक है, यह लिबास के मामले में महिलाओं की पसंद और नापसंद पर प्रतिबंध है। आपकी सरकार की ये पहल यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया को हवा देने का कारण बनेगा और विश्व स्तर पर इसके नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। मैं फ्रांस की नागरिक नहीं हूँ, लेकिन आप यह पत्र इसलिए लिख रही हूँ कि आपके देश का कानून दुनिया भर के नागरिकों के लिए ज़बरदस्त चिंता का कारण बन गया है। भारत जैस बहुसांस्कृतिक देश में पैदा होने और पलने बढ़ने के आधार पर इस समस्या की जटिलताओं को बखूबी समझ सकती हूँ।

पर्दे जैसे समस्या को विश्व समस्याओं की श्रेणी में लाकर सरकोज़ी सरकार से नाराजगी का इज़हार  सच बोलने और जुर्रत व बेबाकी की बेहतरीन दलील है। कुछ पंक्तियों में समेट कर पर्दे के महत्व, महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन, इस्लामोफ़ोबिया को लेकर अलोकतांत्रिक कदम की निंदा किसी युवा छात्रा की रचनात्मक और सकारात्मक सोच ही का नतीजा हो सकता है। अब मैं बताऊँ कि वो छात्रा कौन है, उसका नाम क्या है और उसके पत्र का असर क्या हुआ। सरकोज़ी को लिखी चिट्ठी में उठाये गये सवालों से यक़ीनन ये खयाल पैदा होता है कि यह पत्र किसी हिजाब (पर्दा) करने वाली और धार्मिक मुस्लिम छात्रा का होगा जिसके अंदर धार्मिक  व सामाजिक समझ और चेतना है और वो सुधारवादी  दृष्टिकोण को रखने वाली है। लेकिन ये जानकर लोगों को हैरत होगी कि वो लड़की एक गैर मुस्लिम है, उसका नाम आकांक्षा है। आकांक्षा ने पत्र सीधे फ्रांस के राष्ट्रपति को भेज दिया था। सरकोज़ी इस भारतीय छात्रा के पत्र से इस कदर प्रभावित हुए कि आकांक्षा को फ्रांस आने का निमंत्रण भेज दिया ताकि इस मुद्दे पर उसके साथ विस्तार से बातचीत कर सकें। आकांक्षा ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और अब वह इस मुलाकात की तैयारी कर रही है।

पर्दा जैसे विषय पर आज के फैशन के इस दौर में एक गैर मुस्लिम छात्रा की इतनी शानदार वकालत न केवल फ्रांस और यूरोप के लिए आंखें खोलने वाली हैं बल्कि एक चुनौती भी है और इसमें भारतीयों के  लिए भी सीख है। आज के तथाकथित विकसित दौर में उसकी अपेक्षा नहीं की जाती कि कोई आधुनिक गैर मुस्लिम छात्रा जो आधुनिक स्कूल में पढ़ती हो वह हिजाब और बुर्क़ा को चर्चा का विषय बनाए और लिबास, इंसानियत व शराफत पर पाबंदी लगाने के लिए कानून बनाने का विरोध करे। जी हाँ, यह फ्रांस ही है जिसने कानून द्वारा धार्मिक सहिष्णुता, लोकतांत्रिक परंपराओं और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है। ग़ौरतलब है कि फ्रांस ने भेदभाव की इंतेहा कर दी और उसने हिजाब अखितियार करने वाली महिलाओं के खिलाफ दो वर्ष की कैद और 30 हजार यूरो तक का जुर्माना तय कर दिया है। ग़ौरतलब है कि ये वही फ्रांस है जिसने फ्रांस का क्रांति के द्वारा व्यक्ति की स्वतंत्रता का परचम लहराया था और स्वतंत्रता, समानता और भाई चारा का नारा दिया था और यह वही फ्रांस है जिसने क्रांति के द्वारा महिलाओं की स्वतंत्रता का बिगुल फूंका था।

इसी विचारधारा के आधार पर नई पश्चिमी समाज की बुनियाद रखी गई और दुनिया को तीन सिद्धांत दिये गये (1) महिलाओं और पुरुषों की समानता, (2) महिलाओं का आर्थिक उन्नयन और (3) दोनों महिलाओं और पुरुषों को स्वतंत्र रूप से मिलना जुलना। इन सिद्धांतों पर आधारित समाज ने महिलाओं का आज़ादी के नाम पर महिलाओं को सरेबाज़ार ले आया। उनको तेजारती सामान बना दिया और लिबास से आज़ाद कर के बिकनी पहनने तक पहुँचा दिया। और वास्तव में पत्थर के उश दौर में पहुँचा दिया जब लोग सभ्यता और संस्कृति से अंजान थे। जंगली जानवरों की तरह नंगे रहते थे और जिस समाज में शर्म  व हया और इज़्ज़त की कोई कल्पना नहीं थी। यूरोपीय देशों में पर्दे के खिलाफ एक आक्रामक आंदोलन चलाया जा रहा है। बेल्जियम, स्पेन, इटली, नीदरलैंड, जर्मनी, आस्ट्रेलिया और अन्य देशों में हिजाब एक मुख्य एजेंडा बना हुआ है लेकिन फ्रांस के सरकोज़ी की ये विशेषज्ञता है कि सभी धार्मिक सहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों का मज़ाक उड़ाते हुए हिजाब पर कानूनी पाबंदी लगा के खुले सांस्कृतिक अतिक्रमण और आतंकवाद का परिचय दिया है। क्या दुनिया के किसी धर्म और सहिष्णुता जनता या सरकार को इसका अधिकार है कि किसी देश का नागरिक क्या खाए, क्या पहने और किस धर्म और विचारधारा का पालन करे? यह दरअसल इस्लामोफोबिया का नतीजा है और इस्लाम के खिलाफ अंधी दुश्मनी है।

आकांक्षा तारीफ के काबिल है। उसने फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोज़ी को उनकी अलोकतांत्रिक और सरासर गलत कानून बनाने पर टोका है और कहा है कि यह लिबास की आज़ादी में गैरज़रूरी हस्तक्षेप है और किसी भी बहुसांस्कृतिक समाज में ऐसा जबरन प्रतिबंध गलत है और ये कदम इस्लामोफ़ोबिया को हवा देने वाला है। सरकोज़ी ने आकांक्षा को फ्रांस आने और इस विषय पर विचार करने की दावत दी है।

यक़ीनन आकांक्षा ने बहुत सोच समझ कर सरकोज़ी को इस नाजुक विषय पर पत्र लिखा होगा, उसने पर्दा के संबंध में इस्लाम और मुसलमानों के विचारों की भी मांग की होगी और वह पूरी तैयारी के साथ अपने मिशन पर जा रही है। वह एक गैर मुस्लिम छात्रा के रूप में ही नहीं बल्कि देश की राजदूत, मुसलमानों की प्रतिनिधि और पर्दा की वकील के रूप में जा रही है। अल्लाह उसे कामयाब करे। पता नहीं कितने मुसलमानों को इस छात्रा के पत्र के बारे में जानकारी है। आवश्यकता तो थी कि दिल्ली के मुस्लिम विद्वान इससे मुलाकात करते,  उसके प्रोत्साहित करते और पर्दे के संबंध में सभी विवरण बताते। बुर्क़ा केवल लिबास ही नहीं महिलाओं की सुरक्षा, पवित्रता और तक़दीस का लिबास है। इसके विपरीत बिकनी पहने महिलाएं व्यवहारिक रूप से नग्न होती हैं। टीवी पर लाखों लोगों के सामने अपने शरीर के अंग अंग का प्रदर्शन करती हैं। अमली तौर पर वो एक ऐसी सार्वजनिक संपत्ति हैं जो किसी की नहीं लेकिन सबकी हैं।

पश्चिम में स्त्री का सांस्कृतिक पैमाना उसका यौन आकर्षण है। कनाडा के प्रसिद्ध पर्यवेक्षक हेनरी मकाओ जो ईसाई धर्म के मानने वाले हैं, लिखते हैं कि मैंने अपने कमरे में दो अलग अलग महिलाओं की फोटो  एक साथ लगा रखी हैं। एक तस्वीर एक बुर्क़ा पहने महिला की है जो सिर से पैर तक इस तरह ढकी हुई है कि कुछ हिस्सा नहीं देख सकता। दूसरी तस्वीर में एक महिला के शरीर पर केवल बिकनी है और हर कोई उसका सब कुछ देख सकता है। यह दोनों तस्वीरें तहज़ीबी कशमकश की मज़हर हैं। किसी भी संस्कृति में औरत की भूमिका केंद्रीय हैसियत रखती है। मेरे अनुसार बुर्क़ा औरत की पवित्रता और उसकी  तक़दीस का प्रदर्शन करता है। मुस्लिम महिलाओं के ध्यान का सबसे बड़ा केन्द्र उसका घर है जिसे वह बनाती हैं और चलाती हैं, बच्चों की परवरिश और बड़ों की मदद करती हैं।. इसके विपरीत बिकनी पहने महिलाएं व्यवहारिक रूप से नग्न होती हैं और आकर्षण के खत्म होते ही वह दृश्य से गायब होकर कई मुसीबतों में घिर जाती हैं। वह लगातार सरे बाज़ार खुद को बेचती रहती हैं।'

स्रोतः अखबारे मशरिक

URL for Urdu article:  https://newageislam.com/urdu-section/indian-student-open-letter-sarkozy/d/6401

URL for this article:  https://newageislam.com/hindi-section/indian-student-open-letter-sarkozy/d/6419


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