सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
25 मई 2022
रूहानियत का संबंध रूह और आंतरिक चेतना से है। रूहानियत आपके निर्माता के प्रति आपके हार्दिक लगाव का नाम है। तो, पृथ्वी पर एक मुसलमान को पत्थर की दीवारों वाली एक पारंपरिक संरचना की आवश्यकता क्यों है जिसे मस्जिद या मंदिर कहा जाता है?
प्रमुख बिंदु:
1. उस ईश्वर की पूजा करो जिसका निवास तुम्हारे भीतर है और वह बाहर नहीं है
2. मनुष्य को रूहानी रूप से उन्नत होने की आवश्यकता है
3. बस उन जगहों को छोड़ दें जो हर तरह के विवादों से घिरी हुई हैं
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बुत भी रखे हैं, नमाज़ें भी अदा होती हैं
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
बशीर बद्र का उल्लेखित शेअर कौमी एकता की बेहतरीन मिसाल है और सांप्रदायिक विरोध के इस अत्यनत हंगामा खेज़ दौर में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के लिए अलामत परस्ती पर आधारित शार्मिक ढांचों की खिलाफ वर्जी है। जब हर दुसरे दिन कोई न कोई बेदिमाग व्यक्ति मस्जिद के नीचे मंदिर तलाश करने का दावा करता है और सांप्रदायिक घृणा तुरंत बढ़ जाती है तो क्या यह उचित नहीं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अपनी अपनी इबादतगाहों पर जाना छोड़ दें और अपने घरों पर अपनी इबादतें अदा करें?
क्या आपने रूमी का फ़ारसी में यह मशहूर कथन नहीं सूना कि ‘दिल देरो हरम अस्त’ (दिल मंदिर और मस्जिद दोनों है) या पश्तो में सनाई का कौल नहीं सूना “तर्के अफआर, खुदा ज़कार (तमाम इबादत गाहों को छोड़ दो, फिर भी खुदा को पा लोगे)। अफआर अफार का बहुवचन है जिसका अर्थ है (कोई इबादतगाह) और कलासिकी पश्तो में ज़कार मारफत के अर्थ में उपयोग होता है। एक बहुत ही समझदार मशवरा, जिसे मुझे ज़रूर आपके सामने रखना चाहिए। मैं लोगों को अपने धर्मों और खुदाओं को छोड़ने की तरगीब नहीं देता। ज़मीन पर अधितर इंसानों के लिए यह बिलकुल असंभव है। लेकिन कम से कम, वह अपनी इबादतगाहों को अलविदा कह सकते हैं। ख़ास तौर पर एक ऐसे दौर में जब वहाँ (दुसरे धर्म की) इबादतगाह की अफवाह भी तबाही मचा सकती है।
और यह कि तमाम इबादतगाहें रूहानियत की ढांचा जाती अलामत हैं। जब हम रूहानियत के बारे में बात करते हैं तो यह कदीम और लुग्वी मज़हबियत से बहुत आगे की बात होती है। रूहानियत का संबंध रूह और बातनी शउर से हैं। यह आपके खालिक के साथ आपके कलबी ताल्लुक का नाम है। तो फिर उन्हें ज़मीन पर मुसलमान पर एक मुसलमान को पत्थर की दीवारों वाले रिवायती ढाँचे की मस्जिद और हिन्दू को मंदिर की जरूरत क्यों है? कदीम इतिहासकार युस्बियस ऑफ़ सीजरिया, कहा करता था, ‘लिस्ट एमी फ्लेमा अयोता’ (मैं अपनी इबादतगाह खुद लेकर चलता हूँ)। हाँ, आप अपनी इबादत गाह खुद लेकर चलते हैं।
आपको इबादतगाह के लिए किसी जगह की आवश्यकता नहीं है। और यही सदियों से तमाम सूफिया और उर्फा का नस्बुल ऐन रहा है। अज़ीम सूफी कबीर ने बजा तौर पर कहा, ‘कंकर पत्थर जोरी के मस्जिद लियो बनाय/ता चढ़ी मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाए?
(कंकरियों और पत्थरों की मस्जिद बनाने के बाद, मोअज्ज़िन छत से पुकारता है/क्या अल्लाह सुनने से कासिर है?)
इतनी सदियाँ बीत चुकी हैं, फिर भी मुल्ला नहीं बदला और अब वह लाउड स्पीकर का सहारा ले कर इबादत गुज़ारों को मस्जिद में बुलाता है! हिंदु हों या मुसलमान, सब लकीर के फकीर हैं। अब जब इबादत गाहें झगड़े की जड़ बन चुकी हैं तो क्या उन्हें छोड़ नहीं देना चाहिए? आप अपना मज़हब, खुदा, किताबें आदि यह सब मत छोड़ें। बस ऐसी जगहों को छोड़ देने जो हर तरह के विवाद में घिरी हुई हैं। इंसानों को रूहानी तौर पर तरक्की हासिल करने की जरूरत है। मुसलमान मेरी इस बात से इत्तेफाक करेंगे कि पुरी अल फुरकान को याद करने और हाफ़िज़े कुरआन बनने के पीछे यह वजह थी कि अगर किताब के तमाम तबई नुस्खे खत्म कर दिए जाएं तब भी ऐसे लोग हों जिन्हें कुरआन की तमाम आयतें हिफ्ज़ हों, लेकिन मुसलमान और ख़ास तौर पर नौजवान अब भी तोते की तरह कुरआन मजीद हिफ्ज़ करते हैं और अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं जो कि बिलकुल बेफायदा है। अब मैं अपनी बात शार्ट करता हूँ, तकद्दुस आपके दिल में है और उलुहियत बाहरी है। आपका दिल अपने आप में खुद एक पाक जगह है: बैठ के फर्शे दिल पर पढ़ ली नमाज़ मैंने। आप को कहीं जाने की जरूरत नहीं है। बल्कि आज कल तमाम इबादतगाहें खूबसूरती, शान व शौकत और जाह व जलाल की अलामतें हैं। निदा फाज़ली ने अपने एक देहे में बजा तौर पर कहा
बोला बच्चा देख के मस्जिद आली शान/अल्लाह तेरे रहने को इतना बड़ा मकान!
यह एक मासूमाना सवाल, लेकिन इसमें गहराई काफी है। इस पर गौर करें और उस खुदा की इबादत करें जिसका निवास आपका बातिन है और वह बाहर में नहीं है। आपका माबूद या अल्लाह, अगर मौजूद है तो आपकी तरह बदमिजाज़, नकचढ़ा और नज़ाकत पसंद तो नहीं होगा कि अगर आप उसकी इबादत के लिए किसी इबादत गाह को न जाएं तो वह नाराज़ हो जाए।
English Article: A Prudent Recipe for Qaumi ITTIHAAD
Urdu Article: A Prudent Recipe for Qaumi ITTIHAAD قومی اتحاد کا ایک شاندار نسخہ
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