सिकंदर हयात
29 दिसंबर 2014
लेख '' रश्दी तस्लीमा का रास्ता गलत इसलिए हे'' पाठको हिंदी नेट के बड़े ही विद्वान लेखक और पत्रकार संजय तिवारी जी ने एक बहस में हमसे सवाल किया हे की तस्लीमा और रुश्दी का रास्ता गलत कैसे है? हम अपना जवाब यहाँ दाखिल कर रहे हे-देखिये जितना हम जानते हे तस्लीमा रश्दी गैर पारिवारिक अराजक जीवन जीने वाले शराबी कवाबी लोग हे ठीक हे अब इन्हे इस्लाम पसंद नहीं हे तो फिर में कोई जाकिर नाइक साहब नहीं हु जो इस्लाम छोड़ने की सजा मौत बताऊ नहीं तुम्हारी मर्जी क्योकि जितना हमने समझा हे की इस्लाम में सब कुछ नीयत पर हे की आपकी नीयत क्या हे ? नीयत सही तो बस सही अगर आप एक एक एक सिर्फ एक निराकार अल्लाह -ईश्वर को मानते हे तो ठीक हे नहीं मानते तो बस बात खत्म अगर तस्लीमा रश्दी को इस्लाम पसंद नहीं था तो फिर इस्लाम त्याग कर ये कोई और धर्म - विचार अपनाते एक आदर्श या ठीक ठाक पारिवारिक जीवन जीते ( क्योकि बात आम आदमी को ही समझानी हे आम आदमी यानी एक सामान्य बीवी बच्चो परिवार वाला आदमी ) फिर अपनी कलम से बिना किसी की दिलाजारी के ये बताते की इस्लाम में हमें ये ये ये बात सही नहीं लगी थी और तब तो हमारा जीवन ऐसा ऐसा ऐसा था और अब देखो हम कितना बेहतर इंसानियत वाला जीवन जी रहे हे ?
ऐसा करते तब भी एक बात थी लेकिन नहीं जाहिर हे की आप भी जानते होंगे की ये गैर पारिवारिक अराजक लोग हे यानी लब्बो लुआब ये हुआ की न धर्म फेथ को ही मानते हे न कोई ज़रा भी आदर्श पारिवारिक सामाजिक जीवन जीते हे तो हम इन्हे इनके रास्ते को आम लोगो को कैसे कोई आदर्श या कुछ सही ही बता दे? बता ही नहीं सकते हे भई.और फ़र्ज़ करे किसी के लिए ये आदर्श हो भी तो खास लोगो या अमीर लोगो के या गैर पारिवारिक लोगो के हो भी सकते हे ? उनकी बात उनका जीवन अलग होता ही हे मगर हमारे लिए आम बिलकुल आम आदमी ही महत्वपूर्ण हे हम तो उसे ही अपनी बात समझाना चाहते हे उसी की समस्याएं उसी की बेहतरी के लिए सुलझाना चाहते हे इसलिए तो हम कहते हे की तसलीमा हो रश्दी हो या अब हमारे ये ताबिश भाई हो ये थोड़े ही न कटटरपन्तियो को कोई कमजोर कर पाएंगे नहीं बल्कि इनसे तो उल्टा कटटरपन्ति मज़बूत ही होंगे क्यों ?
देखिये पुराना जमाना अलग था मगर अब आधुनिक जीवन में काफी सालो से ये हो रहा हे की बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण होती हे फंडिंग फंडिंग पैसा पैसा कितना किसे कहा से किसलिए कब कितना आ रहा हे आज हर सांस जीने को पैसा लगता हे अब देखे की उपमहादीप में सारा तालिबान कटट्रपंथ उलजुलूल धर्मप्रचारकों भारत में बाबाओ की फ़ौज़ पाकिस्तान कश्मीर पंजाब में आतंकवाद पैदा होने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका पेसो की रही हे ऐसे ही अगर अरब देशो में तेल न निकला होता तो ना इज़राइल बनाया जाता न कभी बेमतलब इराक पर हमला होता न तालिबान ना मुस्लिम कटटरपन्तियो की फ़ौज़ पैदा होती (इसीलिए मेने ये बात भी रखी की बहुत जरुरत होते हुए भी एक शुद्ध सेकुलर भारतीय मुस्लिम वर्ग सबसे कमजोर रहा हे क्योकि उसे कही से भी फंडिंग या सपोर्ट के कोई आसार ही नहीं दीखते आये हे) अब तस्लीमा रश्दी और ताबिश साहब के लेखन से क्या होगा?
ऐसे लेखो को तो दिखा दिखा कर पेट्रो डॉलर के ढेर (ढेर- भविष्य में भी अभी कई साल ) पर बैठे अरब शेखो से और ज़्यादा फंड लिया जा सकता हे ये कहकर की ''देखो देखो इस्लाम पर कैसे हमले हो रहे हे कैसे ताबिश साहब जैसे मुस्लिम नौजवानो का ईमान डांवाडोल हो रहा हे हमें इनसे टक्कर लेनी हे इस्लाम खतरे में हे लाओ लाओ हमें और फंड दो हम अपनी गतिविधिया और तेज़ करेंगे '' पैसे के बाद चाहिए होती हे मेंन पावर (लोग)उसमे भी सोने पर सुहागा की अगर तमाम मुश्किलें झेल रहे लोग हो तो . आबादी जिसकी की इस एशिया और दक्षिण एशिया में जरा भी कमी हे भी नहीं हे ना फ़िलहाल भविष्य में ही दिख रही हे और बात ये हे की तस्लीमा रश्दी हो या कोई और ये नास्तिक लोग हे ईश्वर को नहीं मानते ठीक हे मत मानो हमें भी इनपर समय नहीं खराब करना हे लेकिन हम इनके रास्ते को सही भला कैसे बता सकते हे ?
अगर ये इस्लाम को नहीं मानते ईश्वर को नहीं मानते तो ईश्वर नहीं हे तो बस तो फिर तो यही दुनिया सब कुछ हे सब कुछ यही हे जब सब कुछ यही हे तो फिर बस यही हे की बस भोगो और भागो क्योकि बस यही दुनिया हे फिर सब खत्म हे भोग सको तो भोग अब जब ऐश आराम विलास भोगना ही हे तो केसा परिवार ? केसा समाज ? कैसी जिम्मेदारिया ? कैसे बुजुर्ग क्यों भला उनकी सेवा में समय खराब? कैसे पुरखे कैसे उनकी यादे उनकी कब्र उनकी बात उनकी याद उनका श्राद्ध सब बेमतलब सब बेमानी तो मतलब फिर तो अराजकता हे भोगो भागो यही जीवन तो हुआ फिर। तो हम भला कैसे इस रास्ते को सही और आदर्श बता सकते हे कभी भी नहीं बता सकते हे इसलिए हम तो अल्लाह ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हे कठमुल्लशाही कटरपंथ साम्प्रदायिकता जंग लड़ाई दंगे पंगे के हम भी सख्त खिलाफ हे मगर कठमुल्लशाही कटरपंथ साम्प्रदायिकता की खरपतवार को काटते काटते हम ये नहीं करेंगे की आस्था के सुन्दर शीतल छाया देने वाले वर्क्ष पर या उसकी जड़ो पर ही कुल्हाड़ी चलाना शुरू कर दे नहीं हम ये नहीं होने देंगे पेड़ का भी पूरा ध्यान रखेंगे और खरपतवार भी काटेंगे हो सकता हे की आप कहे की जैसा मेने ही ऊपर कहा हे की वेस्ट या श्वेत समाज में हर जगह फेथ की जड़े कुछ हिला सी दी गयी हे फिर भी वहा तो अराजकता नहीं हे सही हे लेकिन पहली बात तो फेथ की जड़े हिलने से वहा भी परिवार और समाज की जड़े हिली ही हे व्यक्तिवाद बेहद बढ़ा हे टूटे बिखरे परिवार शराबखोरी आदि की समस्या का कोई समाधान क़िसी को नहीं सूझ रहा हे लेकिन वहा इतना बुरा हाल इसलिए नहीं हे की एक तो पैसा बहुत हे फिर वहा आबादी कम हे तो इस कारण उनका तो काम चल रहा हे आबादी कम होने से उन्हें फायदा हे वो लोगो का काफी ध्यान रख सकते हे आबादी कई देशो की जमुना पार की दिल्ली से भी कम हे तो उनका तो ये हे लेकिन अगर वही हमने किया तो तो यहाँ तो पैसा भी कम हे आबादी बहुत ज़्यादा हे यहाँ तो अराजकता आ जायेगी कम्युनिसम का प्रयोग भी इसीलिए असफल हुआ की इस्लामिक कटटरपन्तियो की हिंसा से कई गुना अधिक हिंसा के बाद जब दुनिया में कम्युनिस्ट समाज तो अस्तित्व में आया जिसमे कुछ बराबरी भी थी शोषण भी कम था मगर ये प्रयोग फेल हो गया क्यों की ना तो जनता को आर्थिक विकास का भोग मिला ना ही आध्यात्मिक विकास पूजा पद्धति की शांति और आनद मिला नतीजा कम्युनिसम भी उखड गया तो इन्ही सब बातो को देखते हुए हम मुस्लिम समाज के लिए रश्दी तस्लीमा के विचारो को ख़ारिज करते हे एक ऐसा समाज बनाने की चाहत रखते हे जिसमे फेथ भी हो लॉजिक भी हो विकास भी हो जितनी बिना हिंसा के अधिकतम हो सके बराबरी भी हो ईश्वर पर आस्था भी हो भोग विलास के लिए पागलपन भी ना हो यानी आद्यात्मिक विकास भी हो जीवन का आनंद भी आख़िरत की तैयारी भी हो यही चाहते हे आमीन।
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