सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
28 अक्टूबर, 2022
इस्लाम मज़हब और तमाम इल्हामी मजहबों की बुनियादी शिक्षा शिर्क की विरोधी और तौहीद पर ईमान है। खालिके कायनात केवल एक ज़ात है और तमाम ज़ाहिरी और बातिनी कायनात को कंट्रोल करने और उनकी तकदीर निर्धारित करने वाली जात केवल एक ज़ात आला है। तमाम मौजुदात के ज़ाहिर व बातिन में वही है और उनके ज़ाहिर व बातिन का इल्म केवल वही रखता है। हजरत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक तमाम अंबिया और रुसुल ने तौहीद की शिक्षा दी और शिर्क से बराअत का इज़हार किया।
वेदों सहित तमाम आसमानी किताबों में सारे कायनात का खालिक एक ही ज़ात आला को माना गया है। उपनिषदों में कहा गया है कि ज़ाते आला तमाम मख्लुकात के ज़ाहिर और बातिन में मौजूद है। और उसी ज़ाते आला का इरफ़ान हासिल करना ही इंसान का मुख्य उद्देश्य करार दिया गया है। इसी दवाई के मिटने के एहसास को अद्वेत वाद या वह्दतुल वजूद कहा गया है।
इस तरह ज़बूर, वेद उपनिषद, इंजील और कुरआन तमाम आसमानी सहीफों ने एक अजली और अब्दी खुदा की परश्तिश की शिक्षा दी और उसके सिवा दूसरी ताकतों की परस्तिश को कुफ्रिया अधर्म करार दिया दिया।
लेकिन धीरे धीरे इंसानों ने खुदा की तखलीक की हुई कुदरती ताकतों को ही अपने अज्ञानता और अनभिज्ञता की वजह से खुदा के बराबर का दर्जा देना शुरू किया। उन्होंने चाँद सूरज, सांप, आंधी, बर्क व रअद, पेड़ों आदि को खुदा मानना और उन्हें पूजना शुरू किया। इसके बाद इंसानों ने उन खुदाओं की मूर्ति बना कर उन्हें खुदा से सिफारिश करने वाला बना कर पूजना शुरू कर दिया। इस तरह इंसान शिर्क का प्रतिबद्ध करने और खुदा से दूर होने लगा। इंसानों को जेहल की इस तारीकी से निकालने और हकीकत की रौशनी में लाने के लिए खुदा ने नबी भेजे और जब इंसान ने लिखना पढ़ना सीख लिया तो उसकी हिदायत के लिए खुदा ने रसूलों के जरिये से मज़हबी सहीफे और किताबें नाजिल कीं। उन सभी अंबिया और रसूलों और आसमानी सहीफों की बुनियादी शिक्षा यही थी कि इंसान को शिर्क से बचना चाहिए और एक खुदा पर ईमान लाना चाहिए। इबादत केवल उसी की करनी चाहिए। लेकिन शिर्क अर्थात मद्दी ताकतों पर उसका ईमान इतना पुख्ता हो चुका था कि वह शिर्क की बदली हुई शक्लें इख्तियार कर लेता था। वह खालिक हकीकी पर ईमान तो रखता था मगर दुसरे खुदाओं को भी उसका शरीक बना कर उनकी भी इबादत करता था।
कुरआन और हदीस में इंसानों को शिर्क से बचने और शिर्क की पहचान भी बता दी गई है। कुरआन में सैंकड़ों बार इंसान को शिर्क से बचने और शिर्क के अज़ाब का बयान है। कुरआन और हदीसों में शिर्क को सबसे बड़ा गुनाह करार दिया गया है। कयामत के दिन खुदा इंसान के बड़े से बड़े गुनाह को माफ़ कर देगा मगर शिर्क को माफ़ नहीं करेगा। कुरआन में शिर्क के गुनाह की संगीनी और उस पर अज़ाब की शिद्दत का ज़िक्र बार बार किया गया है।
-“और जिसने शरीक ठहराया अल्लाह का वह बहक कर दूर जा पड़ा__” (116)
“और यह कि सीधा कर मुंह अपना दीन पर हनीफ हो कर और मत हो शिर्क वालों में और मत पुकार अल्लाह के सिवा ऐसे को कि न भला करे तेरा और न बुरा और फिर अगर तू ऐसा करे तो तू भी उस वक्त हो जालिमों में।“ (यूनुस:106)
“ बेशक अल्लाह नहीं बख्शता उसको जो उसका शरीक करे और बख्शता है उससे नीचे के गुनाह जिसके चाहे और जिसने शरीक ठहराया अल्लाह का उसने बड़ा तूफ़ान बंधा” (अल निसा: 48)
“और मत ठहराओ अल्लाह के साथ किसी और को माबूद मैं तुमको उसकी तरफ से तम्बीह करता हूँ खोल कर।“ (अल ज़ारियात: 51)
इंसान ने अपने जहल और कम फहमी की वजह से बुत बनाए और उन्हें विभिन्न देवी देवताओं का नाम दे दिया फिर उनको खुदा का नुमाइंदा समझ कर पूजने लगे। इस बद अकीदगी पर कुरआन में कहा गया।
“(मगर) तुम लोग तो ख़ुदा को छोड़कर सिर्फ बुतों की परसतिश करते हैं और झूठी बातें (अपने दिल से) गढ़ते हो इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा को छोड़कर जिन लोगों की तुम परसतिश करते हो वह तुम्हारी रोज़ी का एख्तेयार नही रखते-बस ख़ुदा ही से रोज़ी भी माँगों और उसकी इबादत भी करो उसका शुक्र करो (क्योंकि) तुम लोग (एक दिन) उसी की तरफ लौटाए जाओगे” (अनकबूत:17)
अरब के मुशरिकीन जिन्नात को भी मदद के लिए पुकारते थे और उनको भी पूजते थे। उनका अकीदा था कि जिन्नात में बहुत ताकत होती है। उनका यह भी अकीदा था कि जिन्नात में इतनी ताकत इस लिए होती है कि वह खुदा के बेटे और बेटियाँ हैं। इसलिए कुरआन में अहले अरब की इस बद अकीदगी का भी रद किया गया।
“और उन (कम्बख्तों) ने जिन्नात को ख़ुदा का शरीक बनाया हालॉकि जिन्नात को भी ख़ुदा ही ने पैदा किया उस पर भी उन लोगों ने बे समझे बूझे ख़ुदा के लिए बेटे बेटियाँ गढ़ डालीं जो बातों में लोग (उसकी शान में) बयान करते हैं उससे वह पाक व पाकीज़ा और बरतर है” (अल अनआम: 100)
अरब के अलावा दुसरे क्षेत्रों में भी लोग चाँद सूरज की भी इबादत करते थे। कुरआन में ही मुल्के सबा का ज़िक्र है। वहाँ की मलका का नाम बिलकीस था। वह और उसकी कौम सूरज को खुदा मानती थी और “उसकी इबादत करती थी। कुरआन ने उसके इस अमल को शिर्क कहा और उन्हें इस अमल से रोका।
“और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और अगर तुम ख़ुदा ही की इबादत करनी मंज़ूर रहे तो बस उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है” (हा मीम सजदा: 37)
अहले किताब जिन्हें अल्लाह ने किताब अता की जैसे इंजील और तौरेत। उनके अकीदे में भी कुछ मुशरिकाना अकाएद शामिल हो गए। ईसाईयों ने तौहीद के अकीदे को छोड़ कर तसलीस का अकीदा इख्तियार किया और रूह, खुदा हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की तसलीस की इशाअत की। वह हजरत इसा अलैहिस्सलाम को खुदा का बेटा कहने लगे। कुरआन ने उनके अकीदे तसलीस को कुफ्र से ताबीर किया।
“जो लोग इसके क़ायल हैं कि ख़ुदा तीन में का (तीसरा) है वह यक़ीनन काफ़िर हो गए (याद रखो कि) ख़ुदाए यकता के सिवा कोई माबूद नहीं और (ख़ुदा के बारे में) ये लोग जो कुछ बका करते हैं अगर उससे बाज़ न आए तो (समझ रखो कि) जो लोग उसमें से (काफ़िर के) काफ़िर रह गए उन पर ज़रूर दर्दनाक अज़ाब नाज़िल होगा (73) तो ये लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा क्यों नहीं करते और अपने (क़सूरों की) माफ़ी क्यों नहीं मॉगते हालॉकि ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (74)” (अल मायदा: 73-74)
अहले किताब ने अपने आलिमों और सेंट को भी खुदा का दर्जा दे दिया और उनसे मदद मांगने लगे। उनके इस अकीदे को भी कुरआन ने शिर्क से ताबीर दिया और उन्हें इससे बाज़ रहने की तलकीन की है।
“उन लोगों ने तो अपने ख़ुदा को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालॉकि उन्होनें सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़ुदाए यक़ता (सिर्फ़ ख़ुदा) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं)(अल तौबा: 31)
ऐसे लोगों को जो लोग अल्लाह के साथ दूसरों को शरीक करते हैं। दोज़खी कहा गया है।
“जिसने ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद बना रखे थे तो अब तुम दोनों इसको सख्त अज़ाब में डाल ही दो” (क़ाफ़: 26)
“अब डालेंगे हम काफिरों के दिल में हैबत इस वास्ते कि उन्होंने शरीक ठहराया अल्लाह का जिसकी उसने कोई सैंड नहीं उतारी और उनका ठिकाना दोज़ख है और वह बुरा ठिकाना है जालिमों का।“ आले इमरान:51)
संक्षिप्त यह कि कुरआन ने शिर्क के विषय पर विस्तार से बहस की
है और शिर्क की तमाम किस्मों का ब्यान कर दिया है। शिर्क को कुरआन में कुफ्र की ही
एक शक्ल कहा गया है और कुफ्र का मफहूम खुदा का इनकार है। और खुदा के इनकार का बदला
जहन्नम है। इसलिए, खुदा की वहदानियत में यकीन रखने वालों को शिर्क से बचते रहना चाहिए।
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Urdu Article: Shirk and Tauheed in Divine Books توحید اور شرک آسمانی صحیفوں
میں
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