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Hindi Section ( 9 Sept 2014, NewAgeIslam.Com)

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Kettle and Islam हानडी और इस्लाम

 

(करोड़ों किताबों में एक किताब कुरआन जैसी नहीं है)

शेख राशिद अहमद (कुरआन ट्रस्ट)

अध्ययन से प्राप्त किया हुआ मोती जहाँ तक मुझे याद है सौतुल हक़ के पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है। हम ने मस्जिद के मेंबरों से वह खुतबे (धर्मोपदेश) सुना है कि बस मत पूछिए! एक बार मौलवी साहब ने शुक्रवार को खुतबे (धर्मोपदेश) में मुसलमानों को खबर दार किया झूला झूलना एक गैर इस्लामी बल्कि शैतानी काम है। मौलवी साहब की यह बात सुनकर मस्जिद में लोग बहुत हैरान हुए। यह बात तो सभी अच्छी तरह जानते हैं कि मौलवी हज़रात इस्लाम पर अधिकार रखते, इन से न प्रश्न किया जा सकता है और न ही चर्चा की जा सकती है। मौलवी साहब ने खुद ही झूले की समस्या पर प्रकाश डाला व कहने लगे 'नमरुद ने ही झुला का आविष्कार किया था, किस्सा यूं है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डालने के लिए एक बड़ा आग का अलाव जलाया गया। वह अलाव इतना बड़ा हो गया कि उसके पास जाना मुश्किल हो गया। कोई भी व्यक्ति हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अलाव में धकेलने के लिए तैयार नहीं था, तब नमरुद को यह सूझी उस ने रस्से का झुला पेड़ से बांधा।झूले को आग के अलाव की ओर कर दिया। नमरुद ने कहा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को झूले पर बिठा कर धक्का दो, जब झुला अलाव के ऊपर जाएगा तो रस्सी जल जाएगा और इब्राहीम अलाव में गिर पड़ेंगे। मौलवी साहब ने कहा 'जो झुला लगाते हैं वह नमरुद के अनुयायी हैं, लोगों! खबर दार इस नवाचार में न पड़ो।'

इन ख़ुतबों में इस्लाम के बारे में कितनी सूचना फैलाई जाती है और इस्लाम का चेहरा विकृत कर के पेश किया जाता है कि अल्लाह की पनाह। यह कोई नई बात नहीं, यह सिलसिलह हमेशा से चल रहा है, जब भी कोई नया धर्म आया तो साथ ही द्रव्यों का एकाधिकारी पैदा हो गए, हिन्दु धर्म आया तो ब्राह्मण पैदा हुए, ईसाईयत आई तो रहबानीयत का सिलसिला चल पड़ा और पादरी इतना शक्तिशाली हो गए कि राजाओं से टक्कर लेने से भी परहेज नहीं किया। बौध धर्म एकमात्र धर्म था जो अल्लाह के बारे में स्वीकार किया था न इनकार, जिस ने कोई फिलासफी नहीं दी केवल निर्वाण की बात की थी, एकाधिकारों ने बौध धर्म में रहबानियत की प्रथा चला दी और खुद प्राधिकारी बन बैठे, बौध धर्म के भिक्षु ब्राह्मण बन गए। इस्लाम में पेशेवर मौलवी और रहबानीयत का कोई स्थान है और न ही उनकी कोई गुंजाइश, इस्लाम पूरी तरह से समानता दी है, जिसका उदाहरण इतिहास में कुछ यूं है हज़रत उमर बिन (रजि) फसतात की मस्जिद में मेंम्बर बनवाया जिस पर खड़े होकर लोगों को संबोधित करते थे, अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर (रज़ि) को इसकी सूचना मिली तो उन्हें एक पत्र लिखा जिसमें लिखा कि मुझे पता चला है कि आप एक मेंम्बर बनाया है जिस पर मुसलमानों से ऊँचें होकर बैठते हो, क्या यह सम्मान तुम्हारे लिए काफी नहीं है कि तुम मुसलमानों के अमीर हो, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि तुम ऊंचे होकर बैठो और दूसरे मुसलमान तुम्हारे चरणों में नीचे बैठे हैं मेंम्बर तोड़वा दो और लोगों को खड़े होकर संबोधित करो।

हज़रत उमर बिन आस (रज़ि) मिम्बर तोड़वा दिया यानी हाकिम को रिआया से ऊँचा नहीं बैठना चाहिए, लेकिन अफसोस ख़लीफ़ा राशदीन के बाद इस्लाम में एकाधिकार आ पहुंचें। कहावत है जहां गुड़ होगा वहाँ चयूंटीयाँ पहुँच जाएगा। इस्लाम जैसे सरल और साफ जीवन का अधिकारियों ने अपने हित के लिए अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के रस्म (Ritual) में बदल दिया, अधिकारियों ने सलवात को नमाज़ का नाम देकर केवल एक रस्म (Ritual) बना दिया, अब मुसलमान नमाज़ इसलिए नहीं पढ़ते कि वह अल्लाह का आदेश मान रहे हैं, इसलिए नहीं कि अल्लाह के सामने हाज़री दे रहें हैं या अल्लाह से संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं।धार्मिक अधिकारियों ने मुसलमानों की चिंता और अक़ल पर पहरे बिठा दिए हैं ताकि मुसलमानों की सोच पुण्य और पाप तक सीमित रहे, मुस्लिम नमाज़ पुण्य पाने के लिए पढ़ते हैं, अधिकारियों ने मुसलमानों को ख़ुतबों में यह बात बताई है कि ''नमाज़ स्वर्ग की कुंजी'' है, इनका कहना है कि नमाज़ क़ायम कर लो। बाकी सब बातें खुद ठीक हो जाएंगी, चरित्र संवर जाएंगे, नैतिकता बेहतर हो जाएगा, मामलें ठीक हो जाएंगे, लेनदेन सही हो जाएंगे, मतलब यह कि मस्जिद को केंद्र मान लो तो सब ठीक हो जाएगा, क्योंकि वे खुद देवता समान विराजमान हैं।

इस्लाम की सादगी पर मुझे पढ़ा हुआ एक किस्सा याद आ गया किस्सा कुछ यूं है कि 'मोहम्मद फ़जिल झेलम किसी गांव का रहने वाला एक अनपढ़ मुसलमान था, किस्मत आजमाई के लिए वह किसी तरह यूरोप पहुंच गया।पेरिस में कई साल रहा, दिन भर होटल में बर्तन धोता, बावर्ची खाने (रसोई) में झाड़ु देता, रात को किसी फुटपात पर जा कर सोजाता। कुछ सालों बाद पता चला की मुहम्मद फाजिल पेरिस के सब से बड़े होटल का चीफ शेफ बन गया है। मैं मुहम्मद फाज़िल को जानता था यह खबर सुन कर कि वह पेरिस के एक होटल का चीफ शेफ बन गया है, मुझे विश्वास नहीं हुआ, यह कैसे हो सकता है कि एक झेलम का अनपढ़ जवान कुछ सालों में इतने ऊँचे स्थान पर पहुँच जाए। मैं ने अपने विदेशी कार्यालय के एक दोस्त से पूछा कि यह कैसे संभव है कि एक अनपढ़ व्यक्ति बड़े होटल का चीफ शेफ बन जाए?

मेरे दोस्त ने हंस कर कहा कि यह पाकिस्तानी अजीब लोग हैं, यहां सूस्त होते हैं, भावनात्मक होते हैं, पाखंडी और भ्रष्टाचार से लथपथ होते हैं, लेकिन पश्चिमी देशों में जाकर पता नहीं किया हो जाता है, वे जिन बन जाते हैं। कुछ दिनों के बाद मालूम हुआ कि मुहम्मद फाज़िल छुट्टी पर गाँव आया हुआ है मैं इस से मिलने के लिए उस के गाँव चला गया। वह बड़े तपाक से मिला, बातों के दौराम मैं ने पूछा 'फाज़िल किया वास्तव में होटल चीफ शेफ है? वह हँसा और बोला 'हां शेफ था, चार साल तक शेफ का काम किया, अब मैंने एक होटल खरीद लिया है। मैंने पूछा यह बता कि तू कौन से पकवान बनाना जानता है, बोला सब। अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, चीनी, रूसी, अरबी यानी हर देश के पकवान बनाना जानता हूँ।

मैंने कहा, यह बता सब से उत्कृष्ट पकवान कौनसी है? एक मिनट के लिए रुका और सोचने लगा, फिर बोला। सच्ची बात पुछते हो तो दुनिया की कोई पकवान हमारी हानडी रोटी का मुक़ाबला नहीं कर सकती। मैंने पूछा 'हानडी रोटी' का क्या मतलब है? बोला यही हानडी रोटी कि हम देहाती अपने घरों में खाते हैं। हैरत से मेरा मुंह खुले का खुला रह गया। कहने लगा आप जरा सोंचिए वह कितना बड़ा आदमी था जो हानडी अविष्कार किया। आज सदियों बाद यूरोप वालों को एहसास हुआ कि हमें संतुलित आहार (Balanced Food) खाना चाहिए। हानडी के आविष्कारक ने सदियों पहले यह जान कर हानडी आविष्कार किया था जो संतुलित आहार (Balanced Diet) सबसे अच्छा स्वरूप है। हानडी में शोरबा होता है, मांस होता है, सब्जी होती है, मिर्च होती है, हल्दी होती है, अदरक होता है, प्याज होती है, हमें आज पता चला कि लहसुन दिल के लिए कितना बड़ा टाँनिक है। हानडी के आविष्कारक को यह रहस्य सदियों पहले मालूम हो गया था। फिर मसाले में बड़ी इलायची, छोटी इलायची, दालचीनी, काली मिर्च, अभी तक हमें पता नहीं कि इन बातों के क्या गुण हैं, वे हमारे शरीर के लिए कितना उपयोगी है?

वह रुक गया, फिर बोला भाई जी हानडी केवल संतुलित भोजन ही नहीं इसमें जो स्वाद है, वह चटखारह है इसका जवाब नहीं पश्चिम वाले तो फीकी बे स्वाद, बे मज़ा पकवान खाते हैं, उन्हें खाने का तमीज़ नहीं।

फिर एक और बात है जो हानडी का जवाब नहीं, वह कहकर हंसने लगा। बोला जब मैं शैफ था तो एक दिन होटल के मालिक से कहा 'साहब जी रसोई में खाना पकाने के लिए बर्तन चाहिए' वह हैरान हुआ, बोला, रसोई में पकाने के लिए बर्तन तो सभी नए हैं हर बर्तन के चार चार सेट हैं, किसी बर्तन की कमी नहीं। फिर तुम कौन बर्तन मांग रहे हो? मैंने कहा' साहब जी 'में ऐसे बर्तन मांग रहा हूँ जिन में पकाए हुए भोजन में चार गुना स्वाद बढ़ जाएगा' उस ने मेरी बात समझी नहीं मगर मान ली। क्योंकि यह पश्चिम वाले है, खाने में प्यूरिटी मांगते हैं, नफासत मानते है, उन्हें स्वाद का तमीज़ ही नहीं।जब मैं ने उसे बाताया कि मुझे ऐसे बर्तन चाहिए जो मिट्टी के बने हुए हों तो उस का दिमाग़ फ्युज़ हो गया। मैं मुहम्मद फाज़िल की बात सुन कर हैरान हुआ। मैं ने पुछा फिर किया हुआ? फाज़िल बोला भाई जो स्वाद मिट्टी के बर्तन में होता है, वह किसी बर्तन में नहीं होता। मिट्टी के हानडी में पाए डाल दो, निचे हल्कि आँच जला दो, सारी रात पकने दो, सुबह जो स्वाद पैदा हो जाता है उस का जवाब नहीं, पता नहीं मिट्टी कनटरोलडहीट (Controled Heat) पैदा करती है या कुछ और , बस खाने में स्वाद ही स्वाद हो जाता है सिर्फ मांस ही नहीं पूरा मांस पकालो, हलिम पकालो, चने पकालो। मैंने पूछा वहाँ 'मिट्टी के बर्तनों की वजह से किया अंतर पड़ा?' वह कहने लगा मैं ने लोगों को स्वाद का आदत डाल दी। वह हानडी पकाएं के गोरों के मुंह से लार टपक पड़ी।बस मैं ने वहाँ एक बात सीखी है 'भोजन में हानडी और धर्मों में इस्लाम दोनों का जवाब नहीं.' 'अरे!' आश्चर्य से चलाया 'हानडी और इस्लाम क्या जोड़ है? 'भाई साहब हानडी बैलेन्सडफ़ुड (Balanced Food) और इस्लाम बैलेंसड धर्म (Balanced Religion) है इस्लाम में हानडी की सभी गुण मौजूद हैं। दुनिया भी है, अल्लाह भी है, इस की जीव भी है, सेवा है, मख़दूमी है, प्यार है, जिहाद है, बदला है, दया है, क्षमा है, सजा है।क्या Balanced Religion (संतुलित धर्म) है! भाई जी! दुनिया से भी संबंध बना रहे, अल्लाह से भी सम्बन्ध बना रहे, कमाओ खूब कमाओ और धन का ढेर लगा दो। मगर फिर बांटकर खाओ, अपने लिए बंगला बनाओ तो किसी गरीब के लिए एक झोपड़ी बना दो। अपने लिए रेशमी सूट बनाओ तो किसी जरूरतमंद के लिए खदड़ का कपड़ा बनवा दो। अपने बेटे की फीस दो तो किसी गरीब छात्र की भी फीस अदा कर दो। फाज़िल भावनात्मक हो गया 'इस्लाम भी क्या धर्म! वास्तव में धन की रेल पेल हो लेकिन धन एक जगह ढेर न हो बल्कि चलती फिरती रहे।बांटना सीख लो तो पूंजीवाद स्थापित नहीं होता। 'फ़ाज़िल से मिलकर वापस आ रहा था तो मेरे मन में हल चल हो रही थी, मैं सोच रहा था कि मन में 'इस्लाम' की छवि कितनी सरल थी, लेकिन एकाधिकार ने ख्वामख्वाह जटिलताएं पैदा कर रखी हैं।मुझे यहां हज़रत उमर (रज़ि) का वह बात याद आ गया जो अक्सर वह कहा करते थे 'अल्लाह के नज़दीक सबसे अच्छा खाना वह है जिसे सब मिलकर खाएं।'

घर पहुंचा तो मेरे दोस्त डॉक्टर बेला मेरा इंतजार कर रहे थे। वे मुझे देखते ही चिल्लाए 'क्यों क्या हुआ मैंने कहा' कुछ नहीं 'उन्होंने कहा, तुम झूठ बोल रहे हो, तुम्हारे अंदर खिचड़ी पक रही है, गदर मचा हुआ है और तुम कहते हो कुछ नहीं। मैं ने कहा पेरिस के एक बावर्ची की बातें सुन कर आया हूँ, कहता है दुनिया में दो चीज़ें ला जवाब है 'भोजन में हानडी और धर्मों में इस्लाम। डॉक्टर हंसा और हैरान होकर पूछने लगा 'हानडी क्या मतलब'। मैंने कहा हमारी हानडी मिट्टी जिसमें हम आलू गोश्त पकाते हैं, कद्दू गोश्त पकाते हैं, हाँ वह हानडी'।डाक्टर बेला कहा' बात समझ में नहीं आई, फिर मैंने विस्तार से यह बात बताई। कहने लगा यार! जब हम मेडिकल कॉलेज में थे तो वहां एक प्रोफेसर थे डॉक्टर जदों! वह भी हानडी के बड़े कायल थे, उनके घर में खाना मिट्टी के हानडी में पकता था और वह कच्चे घड़े से पानी पीते थे। प्रोफेसर साहब कहते थे मिट्टी का घड़ा पानी के सभी नापाकी (Impurities) को चूस लेता है, अजीब विचार थे उनके।बहुत पढ़े लिखे थे, यूरोप और अमेरिका में पंद्रह साल गुजार कर आए थे, हम उन्हें जदो के बजाय प्रोफेसर जुनून कहा करते थे, वह अजीब बातें बताया करते थे, यह कहकर डॉक्टर बेला हंसते हुए बोले 'इन दिनों हम उन्हें कट्टर समझते थे वो कहते थे अगर एक अल्लाह पर सच्चे दिल से ईमान ले आओ तो पचास प्रतिशत बीमारियों से Immune (मुक्त) हो जाते हैं।यानी आप पचास प्रतिशत बीमारियों से सुरक्षित हो जाते हैं। वे कहते थे अगर तुम अल्लाह से संबंध बना लो तो तुम इतनी मदाफित (Resistance) और मुक़ाबला करने की शक्ति पैदा होती है कि बीमारी हमला करे तो भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।मैंने कहा 'यह आश्चर्यजनक' है। डॉक्टर बेला ने कहा उस समय मेरे लिए भी आश्चर्यजनक था अब नहीं प्रोफेशन में आने के बाद बड़े रहस्य खुल जाते हैं, वह हँसने लगे फिर बोले।

प्रोफेसर जनून कभी मूड में होते तो खुल कर बातें करते थे, कहते 'लड़कों! हम बड़े मूर्ख हैं जो अभी तक यह समझते हैं कि शरीर बीमारी खुद पैदा (Generate) करता है, यह गलत है, शरीर नहीं मन बीमारी पैदा (Generate) करता है, हम केवल उपस्थिति अंग को महत्व देते हैं दिल, जिगर, फीफड़े, गुर्दे, यह अंग जो मानसिक विचारों और भावनाओं से चलते या Activate होते हैं वह ढके छिपे होते हैं जैसे ग्रंथियों हैं, झिल्लियाँ हैं, नसें हैं, उन्हें विचित्र प्रकार एंजाइमें निकलती हैं जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता हैं।प्रोफेसर कहा करते थे 'आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब यह बात तय है कि मानवीय भावनाओं में सबसे ज्यादा असर करने वाला मुख्य जुनून' डर', तो डर के बच्चो नगड़े हैं, जिस तरह' शैतान के शतो नगड़े ''होते हैं जैसे संघर्ष है, भ्रम, चिंता, असमंजस हैं। यह सब भावनाओं मानव आमाशय को प्रभावित करते हैं।तीज़ाब बनाते है, अल्सर बनाते हैं, अगर एक अल्लाह पर विश्वास हो, अगर मन में यह विश्वास हो कि डर नहीं और नहीं कोई शक्ति सिवाए अल्लाह के, तो व्यक्ति अपने विसंगत डर (Irrational fears) और बे आक़ली से मुक्ति पा जाता है।

प्रोफेसर जदोन कहा करते थे 'अल्लाह एक सिरहाना (तकिया) है जिस पर सिर रख दो तो तुम सभी परेशानियों से मुक्त हो जाते हैं और इस्लाम क्या? इस्लाम मनुष्य नकारात्मक विचारों से सुरक्षित रखता है, बुराई से बचाता है, घृणा, क्रोध, दुश्मनी, बदला, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावनाओं से सुरक्षित रखता है। नकारात्मक भावनाओं स्वस्थ नर्मी पैदा करते हैं। अपने दोस्त डॉक्टर बेला बातें सुनकर ज्यादा विचार में पड़ गया। पता नहीं यह एकाधिकार हमारे रहबर हम में भय की भावना क्यों पैदा करते हैं, क्योंकि नकारात्मक बातों पर जोर देते रहते हैं, वे कभी बेहद हुस्न की बात नहीं जो दुनिया में हमारे आसपास चारों ओर फैला हुआ है, यह इस खैर की भावना की बात नहीं है कि मनुष्य के मन में जा गुज़रें हैं।इस के दया कृपा और खुशी की बात नहीं है कि अल्लाह ने हमें अता कर रखी है। इस श्रेय की बात नहीं जो बारी तआला आदमी को प्रदान कर रखा है। दोस्तो! कुरान के बारे में साहब नजर कहते हैं कि यह किताब गुलाब के तरह है, ऊपर पत्ती उठाई तो नीचे एक और पत्ती निकल आती है, निचली पत्तियों को उठाया तो उसके नीचे एक और पत्ती निकल आती है, पत्ती के नीचे पत्ती, पत्ती के निचे पत्ती, पत्ती के नीचे पत्ती, ऐसे ही कुरान हकीम में अर्थ दर अर्थ हैं, जितना विचार करो इतना गहरा अर्थ लेकिन धर्म भक्त ऊपर के अर्थ समझते हैं और उसका डंका बजाते रहते हैं। कुरान में अल्लाह जगह जगह फरमाते हैं कि हमारे ब्रह्मांड को देखो, सरसरी तौर पर नहीं ध्यान से देखो, खाली देखो नहीं चिंता करो, समझो। फिर देखो और सोचो, फिर देखो और सोचो। कुरान पढ़ो, सरसरी तौर पर नहीं, विचार से पढ़ो और समझो। फिर पढ़ो और समझो। फिर वह क्षण आएगा कि तुम कुरान के संकेत के बारे में ब्रह्मांड के रहस्य पालोगे।

अफसोस धार्मिक एकाधिकार में ब्रह्मांड पर विचार करने और ब्रह्मांड के रहस्य पाने की इच्छा नहीं, उन्हें कुरान समझने की इच्छा नहीं है, यह तो कुरान की तिलावत करने के इच्छुक हैं, सिर्फ इसलिए कि पुण्य कमाएँ, स्वर्ग के हक़दार बन जाएं दूध की ​​नदियों के बह रही हो फलदार पेड़ों की टहनियाँ इशारे पर नीचे हो जाए और फिर सुंदर हूरें। मुसलमानों! कुरान एक अद्भुत किताब है, ऐसी पुस्तक जिसकी कोई मिसाल नहीं मिलती। आज दुनिया भर में पुस्तकालय किताबों से भरी हुई हैं, ज्ञान के हर क्षेत्र में हजार लाखों किताबें मौजूद हैं। इन लाखों, करोड़ों पुस्तकों में एक किताब कुरआन जैसी नहीं है। कुरान का रवैया अनोखा है, विषय अनूठे हैं, इसके संकेत अनूठे हैं। मुसलमान मानते हैं कि कुरान मुसलमानों की किताब है, कुरान में अल्लाह मुसलमानों से संबोधित करते है।नहीं ऐसा नहीं है, यह पुस्तक मनुष्य के लिए और मानव जाति से संबोधित है। मुसलमान मानते हैं कि कुरान धार्मिक पुस्तक है, यह मुसलमानों की ग़लत फ़हमी है, कुरान तो ब्रह्मांडीय किताब है, इसमें ब्रह्मांड के 'इसरा व रमोज़' पर संकेत हैं।साइंसी अनुसंधान पर संकेत हैं, कुरान के संकेत ब्रह्मांडीय भेदों का रास्ता खोजने पर इंसान के उकसाते हैं, रास्ता दिखाते हैं। कुरान इतिहास की किताब है, वह घटनाएं दर्ज हैं जो इतिहास रिकॉर्ड करने के समय से पहले वकूह पज़िर हुए थे। कुरान नैतिकता की किताब है जो मानव व्यवहार और नैतिकता के सिद्धांत 'न्याय, समानता, शांति, दया, दियानतदारी, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों के साथ मेहरबानी, वादे, प्रतिबंध, विनम्रता, दूसरों के विश्वासों का सम्मान, दूसरों के अधिकारों का सम्मान और सहनशीलता का पाठ दर्ज हैं। यह सिद्धांत हैं जिनके बिना समाज समाज नहीं बन सकता और न ही विकास कर सकता है।यहाँ एक सच्ची और कड़वी बात कहता चलूं, वह यह है कि हम में से किसी ने कुरान की महानता को नहीं समझता। हम समझते हैं कि कुरान एक धार्मिक मोशगाफियाँ पैदा करने, अपने विचारों को मजबूत करने के लिए और लोगों को अल्लाह के क्रोध से डराने के लिए, जिन्हें कुरान याद है, वे सिर्फ शब्द से परिचित हैं, योग्य केरात केवल हसन क़ेरात का विचार रखते हैं।जबकि कुरान इंसान को विचार करने के लिए आमंत्रित करता है, पूरी बात नहीं बताता, संकेत देता है, रीस्ता समझाता है, इंसान को हक़ की तलाश पर इच्छुक करता है, कुरान कहता है लोगो! जरा गौर से देखो, समझो, देखो तो सही हम क्या निर्माण किया है, जान लो कि ब्रह्मांड हम ने इस लिए और इस तरह बनाया है कि आप इसे तलाश कर सको।

यह हमारा दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम कुरान के इन भागों को कभी महत्व नहीं दिया जो बुद्धि और ज्ञान और वैज्ञानिक ज्ञान के बारे में हैं। धार्मिक एकाधिकार ने अपने ख़ुतबों में कभी कुरान के उन भागों का उल्लेख नहीं किया और न ही कभी उन पर विचार किया। यह बेचारे भी मजबूर हैं क्योंकि वे खुद ज्ञान की जानकारी नहीं रखते, यह बेचारे यह समझते हैं कि जीवन जीने और स्वर्ग तक जाने के लिए पारंपरिक ज्ञान काफी  हैं। लेकिन बुद्धिजीवी कहते 'दीन' तो कुरान में जो मानव जाति के लिए एक आचार जीवन है जिस का अमल से संबंध है, ईमान से संबंध है, यह पारंपरिक किस्से कहानियां न ज्ञान है न दीन हैं।चूंकि कुरान ने ज्ञान को सदाचार का स्थान दिया है इसलिए इस्लाम पर एकाधिकार स्थापित करने वालों में मशहूर कर रखा है कि ज्ञान से कुरान का मतलब 'ज्ञान परंपरा न्यायशास्त्र' है, परंपराओं में ही सच्चा ज्ञान है, शेष अध्ययन तो इंसान को नास्तिकता का पाठ देते हैं, व्यक्तिगत महत्व को स्थापित करने के लिए आदमी को क्या हीले बहाने करने पड़ते हैं। तथ्य यह है कि कुरान की महानता का एहसास केवल उन लोगों को है जो वैज्ञानिक अध्ययन से परिचित हैं। बात कहने की नहीं लेकिन यहाँ कहे बिना चारा भी नहीं, कड़वी बात है लेकिन बहुत सच, इतनी कड़वी सच्चाई है कि मानने को जी नहीं चाहता, वह यह कि कुछ लोग ही ऐसे होंगे जो कुरान पढ़ते है, वह उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। बाक़ी सब कुरान पढ़ते नहीं इस्तमाल करते हैं।ज्यादातर लोग तो पुण्य कमाने के लिये तिलावत करते हैं, कुछ अपने रिस्तेदारों को पुण्य पहूँचाने के लिए कुरान का उपयोग करते हैं, कुछ लोग कुरान की आयतों को धन कमाने के लिए तावीज़ के रूप में इस्तेमाल करते हैं। कुछ व्यक्तिगत इच्छाओं को पूरा करने के विर्द के रूप में इस्तेमाल करते हैं। धार्मिक एकाधिकार अपने विचारों की शक्ति के लिए, जनता को मरउब करने के लिए 'शौकते नफ्स' के लिए कुरान का इस्तेमाल करते हैं। फिर अगर कोई व्यक्ति कुरान को समझने और जानने के लिये कुरान नहीं पढ़ता, बल्कि अपने उद्देश्य में इस्तेमाल करता है। जबकि कुरान पुकार पुकार कर कहता है लोगो! मुझे पढ़ो, समझो, विचार करो, फिर तुम ऐसी ऐसी बुद्धि और ज्ञान की बातें मिलेंगी कि तुम चकित हो जाओगे, बुद्धि पर पड़े पर्दे उठ जाएंगे, बड़े बड़े रहस्य खुलेंगे जो तुम्हें ब्रह्मांड में मदद करेगा। कुरान पूरी तरह से सुरक्षित किताब है अल्लाह ने स्वंय कहा है कि इंसान के लिए काफि है।

क्या उनके लिए यह पर्याप्त नहीं कि हमने तुमपर किताब अवतरित की, जो उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है? निस्संदेह उसमें उन लोगों के लिए दयालुता है और अनुस्मृति है जो ईमान लाएँ। (29-51) हज़रत उमर (रज़ि) ने अगर 'हसबना किताब अल्लाह' कहा था तो वह कुरान के इस सवाल का सकारात्मक जवाब था। यानी अल्लाह ने कहा था कि उनके लिए यह पुस्तक काफी नहीं, तो हज़रत उमर (रज़ि) उसका जवाब देते हुए कहा था कि 'हसबना किताब अल्लाह' हाँ! हम कबूल करते हैं और घोषणा करते हैं कि हमारे लिए अल्लाह की किताब काफी है।हज़रत उम्र (रज़ि) अपने पहले ख़ुतबा खिलाफत में अपने लिए दुआ मांगी थी कि 'या अल्लाह!, मुझे कुरान अता फरमाया कि मैं जो कुछ भी कुरान में पढ़ूँ यह अच्छी तरह समझ सको और कलाकृतियों पर विचार कर सकूँ 'और लोगों से कहा था' कुरान पढ़ा करो, उसी से तुम्हारी कद्र और इज्जत होगी और उसी का पालन करो तो तुम कुरान के साथ हो जाओगे, यही उनकी राज्य का संविधान और घोषणापत्र था, वह हमेशा कुरान की आयात और ज्ञान खोजने की कोशिश में जुटे रहते थे। कुरान का महत्व और महानता आप (रज़ि) के रग रग में जमा हुआ था कि जब आप (रज़ि) को ज़ख्म लागा है जिस से आप (रज़ि) कि शहदत हुई तो हालत यह थी के आप (रज़ि) की अंतरीयाँ कट कर बाहर आचुकी थीं, दर्द बहुत हो रहा था, इस हालत में सहाबा किराम (रज़ि) आप (रज़ि) के चोरों ओर जमा हो गए और आप (रज़ि) से कहा कि आप (रज़ि) अपनी वसीयत करें, तो आप (रज़ि) ने उन से कहा 'मैं तुम्हें वसीयत करता हूं कि अल्लाह की किताब को थामे रहना क्योंकि जब तक आप इसे थामे रहोगे गुमराह नहीं होगे।'

कुरान एक क्रांतिकारी किताब है, तब भी क्रांतिकारी थे जब चौदह सौ साल पहले नाज़िल हुई थी, चौदह सौ साल बीत जाने के बाद आज भी क्रांतिकारी है। कुरान क्रांति का एक तूफान ला दिया, विध्वंसक नहीं, रचनात्मक तूफान। मन में विचार का तूफान, दिल में भावनाओं का तूफान। जब कुरान प्रगट हुआ, तब पूरे यूरोप वाले भी रहना सहना सीख रहे थे, उन्हों ने अभी सोच समझ कर दुनिया में क़दम नहीं रखा था, यूरो में सिर्फ एक देश 'यूनान'की थी जहाँ सोच विचार करने वाले थे। वहाँ बड़े बड़े विचार करने वाले पैदा हुए थे, अरस्तू, अफलातून था, लेकिन यूनान के विचारक सभी दार्शनिक थे, विचार के पुजारी थे, सपने देखने के मतवाले, अपने अपने सपनों में मगन अपने अपने विचारों के दिवाने। उनके विचारों के प्रभाव दूर दूर तक फैले हुए थे। कुरान ने आकर कहा, बस मियां बस, बहुत सपना देख लिए, विचारों के झुनझुने बहुत झुनझुना लिए सोचों की आवारगी छोड़ों। और अब सपने मत देखो, आंखें खोलो तथ्यों को देखो (खोल आंख जमीन देख फलक देख फज़ा देख), हम अपने आसपास चारों ओर तथ्यों की भीड़ लगा रखी है कि तुम देखो, सोचो, समझो लेकिन एक बात का ध्यान रखना और यह भूलना नहीं कि हर बात पर हमारी मुहर लगी है, हर हरे पत्ते के पीछे हम छुपे बैठे हैं हर ज़र्रे पर बूँदें हमारी हिकमत, किसी चीज़ को हमारे हवाले के बग़ैर न देखना। हमारे हवाले से देखोंगे तो रास्ता मिल जाएगा, मंजिल पर पहुंच जाओगे, हमारे हवाले से नहीं, देखोगे तो भटक जाओगे रास्ता नहीं मिलेगा। कुरान ने बंद आंखें खोलने की दावत दी, देखने के लिए आमंत्रित किया, विचार को आवारगी से निकाल कर एक दिशा दी, एक उद्देश्य जीवन प्रदान किया है, ठहराव से निकाला, हरकत दी। कुरान इंसान के मन पर ऐसा असर किया जैसे एक चुटकी नमक सोडे की बोतल से करती है, बुलबुले ही बुलबुले, हरकत ही हरकत उद्देश्यपूर्ण हरकत, कुरान दो नए कल्पना कर मानवीय भावनाओं में तहलका मचा दिया, एक एकता का दूसरा समीकरण। कुरान का आगमन इंसानी मन के लिए एक विस्फोट था जैसा ब्रह्मांड के जन्म पर हुआ था और जिसके प्रभाव आज तक जारी हैं। कुरान के नज़ुल का यह धमाका इंसानी दिमाग़ में ऐसा प्रभाव हुआ, उस के प्रभाव जारी हैं।

कुरान का नुज़ुल एक बहुत महत्वपूर्ण घटना था, कुरान से पहले किसी धार्मिक किताब ने अक़्ल और ज्ञान और अनुसंधान का इतना बुलंद मर्ताबा नहीं दिया था, बल्कि आमतौर पर यह माना जाता है कि धर्म और अक़्ल दो परस्पर विरोधी बातें हैं। कुरान का रवैया आश्चर्यजनक था। वह ज्ञान और बुद्धि का खज़ाना ही नहीं था बल्कि वैज्ञानिक ज्ञान का स्रोत था। कुरान ने ज्ञान और सूक्ष्म ज्ञान और शोध फिज़ा पैदा कर दी। जगह जगह शिक्षण संस्थान बन गई। विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गई युवाओं में ज्ञान प्राप्त करने का शौक पैदा हुआ। वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए प्रयोगशालाएं बन गईं। जगह जगह पुस्तकालय बन गए। ज्ञान के विकास के साथ लोगों में अध्ययन का शौक पैदा हुआ, किताबें एकत्र करना फैशन बन गया। हर बड़े और छोटे शहर में पुस्तकालय बना दिए गए। केवल शहर बगदाद में छह हजार पुस्तकालय थे, कॉर्डोबा के पुस्तकालय में चार लाख दुर्लभ किताबें मौजूद थीं, जो सूची 44 खंडों में पूरा हुआ था, कहते हैं बगदाद की एक गली में किताबों की 100 दुकानें थीं। ज्ञान के इस शौक के कारण 200 साल में अरब विद्वानों ने कई किताबें लिख डालीं।इन किताबों ने चारों ओर ज्ञान प्रकाश फैला दिया। जब अरबों ने स्पेन जीत लिया तो ज्ञान वहाँ भी फैल गया। अरबों की किताबें स्पेन, फ्रांस, इटली और इंग्लैंड में पहुंच गईं। पुस्तकों को विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया।बहुत देर बाद यूरोप में विश्वविद्यालय स्थापित हुई तो उन्हीं अरब मफिकरों की किताबें पढ़ाई जाने लगी, वैसे मुस्लिम मफिकरों की लिखी हुई विज्ञान और खगोल विज्ञान की पुस्तकों यूरोपीय दरसगाहों में चार सौ साल तक पढ़ाई जाती रहीं, अठारहवें शताब्दी तक यही किताबें शिक्षा प्रामाणिक स्रोत थी।

कुरान के संदेश के असर से रेगिस्तानी अरबों का जीवन ही बदल गई थी, कुरान के मार्गदर्शन से अरब हर क्षेत्र में आगे बढ़ने लगे और आधी सदी के अन्दर ही अन्दर इल्म और अमल के इन मतवालों ने आधी से अधिक दुनिया जीत ली। उन्हों ने क़सीरह कसरा जैसी सम्राज्यों को हटा डाला और सारी दुनिया में ज्ञान और चिंता का माहौल पैदा कर दिया। इस सोच विचार के माहौल में सैंकड़ों विचारक पैदा हो गए, उन्हों ने विभिन्न विज्ञान में अनुसंधान का काम शुरु कर दिया।नतीजा यह हुआ कि कई अविष्कारें की गईं, जाहिर है जहां अविष्कारें होंगी वहां उत्पादन भी होगा, कारखाने भी अस्तित्व में आएंगे, इन दिनों बगदाद में धड़ा धड़क कारखाने बने, यानी कुरान ने ज्ञान प्राप्त करने का शौक पैदा किया, अनुसंधान की ओर आकर्षित किया, वैज्ञानिक स्पर्ट पैदा की और औद्योगिक क्रांति (Revolution) की शुरुआत की। कुरान जो मानसिक क्रांति बरपा किया उस के नतीजे में ज्ञान और अनुसंधान को बड़ा बढ़ावा मिला, कायनाती ज्ञान पर विज्ञान अनुसंधान का सिलसिला चल पड़ा। नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों मुसलमान विज्ञानिक मैदान में आ गए। उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान का बुनियादी दृष्टिकोण स्थापित किया।तमाम ज्ञान के बुनियादी तथ्यों पर अनुसंधान कर के सिद्धांत क़ायम किए जिस पर चल कर आज के वैज्ञानिक ने आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान की बुनियाद डाली जैसे फ्लिप के हटी लिखते है के अरबों ने गणित से शुन्य को विकास देकर उस स्थान पर पहूँचाया के आज के गणित दान इससे लाभांवित हो रहे हैं। चिकिस्ता का ज्ञान पाने के लिए शिक्षण प्रयोगशाला बनाए, अरबों वह सब कुछ आविष्कार किया जिसे हम आज अपनी आविष्कार समझते हैं।जैसे रसदगाहें बनाएं, सितारों के नक्शे बनाए, ज्यामिति के नियम बनाए, ज्ञान रसायन के नियम बनाए, ग्रहण और चाँद ग्रहण के समय निर्धारित किए। पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी किताब Glimpses of world history लिखते हैं कि अरबों से पहले हिंदुस्तान, चीन, मिस्र किसी जगह कोई साइंटिफिक ज्ञान नहीं था, अरबों ने साइंटिफिक ज्ञान की नींव डाली और 'फादर ऑफ मॉडर्न विज्ञान' कहलाने के हकदार हैं। तथ्य यह है कि अल्लाह की तरफ से रुशद व निर्देश का उद्देश्य इंसान तक सही शिक्षा पहुँचा देना ही नहीं था, इसका उद्देश्य यह था कि मानव जीवन के व्यक्तिगत और सामूहिक हर कोने में सुखद परिवर्तन पैदा कर के मानवता को सही रास्ते पर पहुँचा दिया जाए ताकि इस तरह जीवन धीरे धीरे अपने गंतव्य तक पहुंच जाएगा।

अगस्त, 2014 स्रोतःमाहनामा सौतुल हक़, कराचीं

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