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Hindi Section ( 21 Dec 2018, NewAgeIslam.Com)

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Anti-Muslim Sentiment an Obstacle in Building the Temple मंदिर बनने में बाधा है मुस्लिम विरोधी भावना

 

शीतला सिंह

December 17, 2018

वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह राममंदिर विवाद को हल करने के प्रयासों से लंबे जुड़ाव के लिए भी जाने जाते रहे हैं। हाल ही में आई उनकी पुस्तक अयोध्याः रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का सचखासी चर्चित हो रही है। मंदिर के लिए नया कानून लाने की मांग से गरमाते माहौल के बीच शीतला सिंह से कृष्ण प्रताप सिंह ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं अशः

इतना लंबा अर्सा बीत जाने के बाद भी राम जन्मभूमि विवाद का कोई सर्वमान्य हल नहीं निकाला जा सका न अदालत के अंदर न ही बाहर। क्यों?

अब तक सारे समाधान इसे दो धर्मों का विवाद मानकर ढूंढ़े जाते रहे हैं, जबकि राजनीति ने इसे धार्मिक भावनाओं का दोहन कर सत्ता अर्जित करने की शातिर कोशिशों से पैदा किया। इस राजनीति का अक्स आप 22-23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने में भी देख सकते हैं, एक फरवरी 1986 को उसमें बंद ताले खोले जाने में भी, 10 नवंबर 1989 को किए गए शिलान्यास में भी, 6 दिसंबर, 1992 को किए ध्वंस में भी और उसके बाद अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण कराने के वायदों में भी।

एक वक्त तो आप भी इसके समाधान की कोशिशों से जुड़े थे?

मैं ही क्यों, 1986 में बाबरी मस्जिद के ताले खोले जाने के बाद जैसे ही यह विवाद नासूर बनता दिखा, अयोध्या-फैजाबाद के कई लोग इसके शांतिपूर्ण समाधान के लिए सक्रिय हो गए थे। अदालत के बाहर समाधान के लिए तब अयोध्या विकास ट्रस्ट बना, जिसके अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास थे, मैं सचिव था। महंत नृत्यगोपाल दास अब विहिप प्रायोजित रामजन्मभूमि मंदिर न्यास के अध्यक्ष हैं, लेकिन तब उन्हीं की अध्यक्षता में विवाद के प्रतिवादी परमहंस रामचंद्रदास के दिगंबर अखाड़े में हुई दोनों पक्षों की बैठक में समाधान का सर्वस्वीकार्य फार्मूला बना था।

क्या था वह फार्मूला?

यह कि विवादित ढांचे को ऊंची दीवारों से घेरकर उससे सटे राम चबूतरे पर मंदिर बने। मुस्लिम पक्ष ने कह दिया था कि वह यह भी नहीं पूछने वाला कि जिन दीवारों से ढांचे को घेरा जा रहा है, उसमें दरवाजा किधर है। शर्त बस ये थी कि ऐसा दावा नहीं किया जाएगा कि हिंदुओं की विजय हो गई है या मुसलमान हार गए हैं। उत्तर प्रदेश के आज के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरक्षापीठ के तत्कालीन अधीश्वर महंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्रदास के साथ वीएचपी के जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल, दाऊदयाल खन्ना और नारायणाचारी जैसे नेता तो इससे सहमत थे ही, मुस्लिम पक्ष के सय्यद शहाबुद्दीन, सलाउद्दीन ओवैसी और सी एच मुहम्मद कोया वगैरह भी थे। सभी ने इसका स्वागत किया था।

फिर बात बिगड़ कैसे गई?

बाद में वीएचपी नेता विष्णुहरि डालमिया ने इच्छा जताई कि वे भी अयोध्यावासियों के उक्त ट्रस्ट के ट्रस्टी बनना चाहते हैं। उन्हें बताया गया कि चूंकि वे अयोध्या/फैजाबाद के नहीं हैं इसलिए इसकी पात्रता नहीं रखते। बाद में, कहते हैं कि दिल्ली के झंडेवालान स्थित केशवकुंज में हुई संघ की बैठक में बालासाहब देवरस ने समाधान का स्वागत करने के लिए अशोक सिंघल को फटकारा। कहा कि राम मंदिर तो देश में बहुत हैं, इसलिए हमें उसकी चिंता छोड़कर, उसके आंदोलन के जरिए हिंदुओं में आ रही चेतना का लाभ उठाना है।

फिर तो बात बिगड़नी ही थी!

हां, इसके बाद वीएचपी ने यह कहकर फार्मूले को पलीता लगा दिया कि उसमें यही तय नहीं है कि मंदिर का गर्भगृह कहां बनेगा। फिर तो इसे आस्थाओं के विकट टकरावों का विवाद बनाकर वही लोग जो इसको अदालत में ले गए थे, कहने लगे कि अदालतें इसका फैसला नहीं कर सकतीं।

आपको विवाद के समाधान की कोई सूरत नजर आती है या नहीं?

अटलबिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में सुझाव दिया था कि विवादित भूमि पर कुछ भी न बने। मैं कहता हूं कि स्कंदपुराणमें दी गई रामजन्मभूमि की अवस्थिति के अनुसार पैमाइश कराकर वहां राम मंदिर बना लीजिए, कोई एतराज नहीं करने वाला। यूं समझ लीजिए कि जिस दिन राम मंदिर निर्माण को मुस्लिम विरोधी भावनाओं से जोड़कर देखना बंद कर दिया जाएगा, विवाद का समाधान हो जाएगा।

Source:blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/interview-with-sheetla-singh-on-ram-mandir/

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/anti-muslim-sentiment-obstacle-building/d/117227

 

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