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Hindi Section ( 6 March 2014, NewAgeIslam.Com)

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What is Sharia? And What Are Its Objectives? (Part 1) शरीयत क्या है? और इसके मकसद क्या हैं?

 

 

 

 

ऐमन रियाज़, न्यु एज इस्लाम

27 जनवरी, 2014

'शरीयत' शब्द विशुद्ध रूप से भाषाई दृष्टि से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक तरीका' है। इस्लाम में शरीयत का अर्थ एक जीवन पद्धति है जिसे अल्लाह ने चुना है और इंसानों के लिए निर्धारित किया है। जब शरियत को उच्च स्तर पर लिया जाता है तो ये सिर्फ धर्म के एक तरीके के रूप में नहीं बल्कि जीवन के सम्पूर्ण तरीके के रूप में इस्लाम की प्रकृति को सामने रखता है। कैसे नमाज़ पढ़ना है, शरीयत में इसका उल्लेख है, साथ ही कैसे ज़कात दी जाए, कैसे रोज़ा रखा जाए, सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक मामलों और लड़ाई के मैदान में कैसे व्यवहार किया जाए। सभी मामलों में उचित आचार संहिता है।

उपरोक्त सभी बातें 'खुदा की शरीयत' के अंतर्गत आती हैं, लेकिन इंसानों की बनाई शरीयत में सिर्फ आपराधिक अदालत की प्रणाली शामिल है। वास्तव में आपराधिक अदालत खुदा की शरीयत का केवल एक पहलू है। शरीयत के बारे में एक गलत धारणा है जिसका मतलब हाथ और पैर काटना है।

कई लोगों का खयाल है कि शरीयत एक पुराना तरीका है इसलिए ये अप्रचलित है। ये कई सवालों को जन्म देता हैः पहला, अगर कोई चीज़ पुरानी है तो क्या उसे अप्रचलित होना है? दूसरा, अगर कोई चीज़ नई है तो क्या इसका मतलब ये है कि वो बेहतर है? पानी की ही मिसाल लें, पानी बहुत पुरानी चीज़ है। क्या लोगों ने इसका इस्तेमाल छोड़ दिया है? नई चीज़ों के बारे में क्या ख़याल हैवायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण, ये सभी हमारे आधुनिक औद्योगिक दौर  के उत्पाद हैं। क्या ये हमारे लिए वास्तव में अच्छे हैं? जब हम किसी चीज़ का मूल्यांकन करते हैं तो हमें एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमे इसे सिर्फ समय की कसौटी पर नहीं देखना चाहिए। चीज़ों को उनके गुण दोषों के आधार पर परखा जाना चाहिए।

शरीयत के बारे में एक और बात जो लोग सोचते हैं वो ये कि इसे आधुनिक या बदलने की ज़रूरत है। ये शरीयत के आन्तरिक पहलुओं के बारे में लोगों की ज़बरदस्त ग़लतफ़हमी को बताता है। मैं फिर याद दिला दूं कि शरीयत बुनियादी तौर जीवन पद्धति है। इसलिए जब हालात में परिवर्तन होता है तो स्पष्ट रूप से जीवन के तरीके में भी बदलाव आता है।

इंसान जब कोई क़ानून बनाता है तो वो अपने ज्ञान, समय, अनुभव और विशेषज्ञता पर ध्यान दिये बिना ये दावा नहीं कर सकते कि उनका बनाया हुआ कानून परिपूर्ण है। हर इंसान के अंदर किसी न किसी प्रकार का पूर्वाग्रह होता और ये उनके फैसले को प्रभावित करता है। इंसान जब भी कोई काम करता है तो वो उससे प्रभावित ज़रूर होता है। जैसे ये लेख भी पाठकों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है और साथ ही साथ लेखक अपने विचारों की चेतना या यूँ कहें कि अपनी 'चेतना की लहर' से प्रभावित होता है। 1

शरीयत की आंतरिक संरचना ऐसी है कि आवश्यकतानुसार ये बदलती परिस्थिति के मुताबिक समायोजन कर लेती है। और ये बात फिक़्हा की श्रेणी में आयेगी जिसका शाब्दिक अर्थ 'समझ' है। इससे ये बात स्पष्ट होती है कि कैसे एक विशेष शरई कानून को एक विशेष समय में अच्छी तरह से समझा जा सकता है।  

शरीयत का एक और व्यापक रूप से गलत समझा जाने वाला पहलू ये है कि ये आधुनिक गरिमा और मानवाधिकारों के साथ असंगत है। दरअसल सच्चाई इसके विपरीत है। जब किसी मानवाधिकार आयोग या संयुक्त राष्ट्र संघ की कोई कल्पना भी नहीं थी उससे बहुत पहले कुरान ने सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति को सम्मानित किया। क़ुरान कहता हैः

''हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता प्रदान की और उन्हें थल और जल में सवारी दी और अच्छी- पाक चीज़ों की उन्हें रोज़ी दी और अपने पैदा किए हुए बहुत- से प्राणियों की अपेक्षा उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की'' (17: 70)

ये इस्लामी शरीयत ही है जिसने मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में लोगों के अधिकारों और साथ ही साथ दायित्वों को व्यवस्थित किया है। इस्लामी शरीयत के पांच मुख्य उद्देश्य हैं: विश्वास, जीवन, बुद्धि और ज्ञान, सम्मान और धन की रक्षा करना। मानवाधिकार के सम्बंध में कोई इंसान जो कुछ भी सोच सकता है वो सब कुछ इन उद्देश्यों में से किसी एक के तहत आयेगा।

लोग सिर्फ अधिकारों की बात करते हैं लेकिन अधिकार का दूसरा पहलू दायित्व है। इस्लामी शरीयत में ये गुण हैं कि ये इन दोनों पहलुओं को ध्यान में रखती है। अगर मैं अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर रहा हूँ तो मैं किसी के अधिकारों को भी पूरा कर रहा हूँ। मिसाल के लिए अगर मैं एक बेटे के रूप में अपने दायित्वों को पूरा कर रहा हूँ तो इसका मतलब ये है कि मैं अपनी माँ के अधिकारों को भी पूरा कर रहा हूँ और इसका विपरीत भी सच है। इसलिए इस्लामी शरीयत में ऐसी पारस्परिकता है।

लेकिन हमें यहां ये सवाल उठाना चाहिएः ''उन अधिकारों और दायित्वों का क्या महत्व है अगर इनमें प्रवर्तन की कमी हो, या ये अधिकार संरक्षित हैं, इनको सुनिश्चित करने की कोई सुरक्षा व्यवस्था ही न हो। ये इस्लामी शरीयत के बारे में अनोखी खूबी को पेश करता है। ये आपको सिर्फ क्या करना है की लम्बी सूची नहीं देता है बल्कि इस्लमी शरीयत में ऊपर बताये गये पाँचों उद्देश्यों में से प्रत्येक के साथ इनको पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए एक संलग्न तंत्र भी है। और ये दो श्रेणियों में विभाजित हैः पहला, वो चीज़े जिन्हें किया जाना चाहिए और दूसरा वो है जिन्हें नहीं किया जाना चाहिए यानि पहले के सकारात्मक निहितार्थ हैं और दूसरे के नकारात्मक निहितार्थ हैं।

इस्लामी शरीयत के सबसे पहले उद्देश्य की बात करते हैं: सकारात्मक और नकारात्मक अर्थों में विश्वास का संरक्षण करना। सकारात्मक अर्थों में इसका मतलब है विश्वास की आज़ादी, जिसे क़ुरान में स्पष्ट रूप से बयान किया गया है- ''धर्म में कोई बाध्यता नहीं है'', ''तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन'', ''ऐ मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) क्या आप लोगों को ईमान लाने के लिए मजबूर करेंगे।'' इसमें अपने धर्म के पालन और अपने धर्म के अनुसार पूजा करने की स्वतंत्रता शामिल है। हालांकि इसमें अपने विश्वास की रक्षा करने का अधिकार भी शामिल है।

इसका अर्थ ईशनिंदा के खिलाफ खड़े होना भी है जो कि किसी भी धर्म का अनादर करता है। पाकिस्तान में हिन्दुओं और ईसाइयों (विशेष रूप से जब वो मृत्यु शैय्या पर हों) का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन, और मंदिरों, चर्चों और मज़ारों को तोड़ना पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ है। इसी तरह हिन्दू धर्म या ईसाई या किसी और धर्म में ज़बरदस्ती परिवर्तन शरीयत के खिलाफ है।

''ये वो लोग हैं जो अपने घरों से नाहक़ निकाले गए, केवल इसलिए कि वो कहते है कि "हमारा रब अल्लाह है।" यदि अल्लाह लोगों को एक- दूसरे के द्वारा हटाता न रहता तो मठ और गिरजा और यहूदी प्रार्थना भवन और मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का अधिक नाम लिया जाता है, सब ढा दी जातीं। अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उसकी सहायता करेगा- निश्चय ही अल्लाह बड़ा बलवान, प्रभुत्वशाली है'' (22: 40)

किसी भी धर्म के खिलाफ अपमानजनक शब्द बोलना शरीयत के खिलाफ है। डेनमार्क का कार्टून, 'Innocence of Muslims जैसी फिल्में और ज़ाकिर नाइक और उनके जैसे लोग जब ये कहते हैं ''अगर देवीजी होंगी तभी तो दावत देंगे'', ''बाइबल में अश्लीलता है'', - ये सभी स्पष्ट रूप से शरीयत के खिलाफ है। 2

1. David Mc Raney, You are Not so Smart

2. ज़ाकिर नाइक के लेक्चरः 'क्या कुरान को समझ कर पढ़ना ज़रूरी है?' और 'मीडिया और इस्लामः युद्ध या शांति'

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