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Hindi Section ( 1 Aug 2017, NewAgeIslam.Com)

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Shared Values among Religions and the Call for Interfaith Dialogue संयुक्त धार्मिक मूल्य और अंतर्धार्मिक संवाद

 

  

गुलाम गौस, न्यु एज इस्लाम

15 मई 2013

इस्लाम सभी धर्मों के बीच शांतिपूर्ण अस्तित्व को बढ़ावा देता है। सभी प्रमुख धर्मों की शिक्षाएं अमन व शान्ति पर ज़ोर देती है। लेकिन धर्मों की गलत व्याख्या मतभेद और विवाद को हवा देती है। हम अक्सर देखते हैं कि धर्म के नाम निहाद नेता उत्तेजना, उग्रवाद, आक्रामकता और नफरत की आग भड़काते हैं और यही नहीं, वह हिंसा और खूनी संघर्ष को वैधता प्रदान करते हैं।प्रायः जबरन राजनीति के सपने को लागू करने के लिए धर्म का दुरुपयोग किया जाता है। अतीत से लेकर आज तक लगातार हम इस बात का निरीक्षण कर सकते हैं कि प्रायः हिंसक गतिविधियां धर्म के नाम पर अंजाम दी जाती हैं।

हमनें विज्ञान में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं लेकिन कमज़ोर राष्ट्रों के रक्षा करने में हम बुरी तरह विफल हो चुके हैं। ऐसे हथियारों और गोलेबारुद बनाए जा रहे हैं जिनसे न सिर्फ एक कमजोर देश को नष्ट किया जा सकता है बल्कि इससे पूरी मानवता का भी सफाया संभव है। इसलिए हम इस्लाम में आंतरिक और वाहय स्तर पर लड़ाई के समाधान में नाकाम हैं। नतीजतन धार्मिक असहिष्णुता के कारण बड़े पैमाने पर विनाश और मनुष्यों की हत्या,मारधाड़ की घटनाएं सामने आ रही हैं। खासकर इराक,अफगानिस्तान,सीरिया,फिलिस्तीन और पाकिस्तान जैसे देश इस मामले में शीर्ष पर हैं जहां आतंकवाद,धार्मिक कट्टरता,शियों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के नरसंहार और साथ ही साथ इस्लामी सांस्कृतिक विरासत का विध्वंस और उनकी विनाश भी अपने चरम पर है।

इस चर्चा से धर्मों के घातक तत्वों को मात देते हुए अत्यंत चेतना के साथ पेश आने की जरूरत है। धर्मों के बीच शांति लाने वाले तत्वों को बढ़ावा देना चाहिए। दूसरे शब्दों में धार्मिक प्रतिनिधियों को शांति के निर्माण में अपनी नैतिक भूमिका निभानी चाहिए। और बाकी सभी लोगों को शांति के प्रतिनिधित्व में धार्मिक नेताओं का सहयोग करने के लिए धार्मिक कारकों की पहचान करना चाहिए।

पूरी दुनिया में धार्मिक विविधता हम से एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता और सम्मान की मांग करती है। कुरान और हदीस का गहरा अध्ययन इस मांग को पूरा करता है।

कुरान का फरमान '' यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक समुदाय बना देता। परन्तु जो कुछ उसने तुम्हें दिया है, उसमें वह तुम्हारी परीक्षा करना चाहता है। अतः भलाई के कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ो। तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौटना है। फिर वह तुम्हें बता देगा,जिसमें तुम विभेद करते रहे हो '' (5:48)

बहुत से लोग यह सोचते हैं कि हम कैसे सहिष्णुता और शांति को बढ़ावा दे सकते हैं जब कि विभिन्न धर्मों के बीच मान्यताओं के मामले में कई मतभेद हैं।

अल्लाह पाक का फरमान है '' आप कह दीजिये: ए काफिरों! मैं उन (मूर्तियों) की पूजा नहीं करता, जिन्हें तुम पूजते हो, और न तुम उस (अल्लाह) की पूजा करने वाले हो जिसकी मैं इबादत करता हूँ, और न (ही) मैं (आगामी कभी) उनकी पूजा करने वाला हूँ जिन (मूर्तियों) की तुम पूजा करते हो,और न (ही)तुम उसकी पूजा करने वाले हो जिस  (रब) की मैं पूजा करता हूँ, (सो) तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए और मेरा धर्म मेरे लिए है, '' निश्चित रूप से यह दुनिया की सबसे धर्मनिरपेक्ष विचारधारा है।

जहां तक मुस्लिम दुनिया का संबंध है उन्हें हमेशा कुरान की यह आयत याद रखनी चाहिए:

'' धर्म (के विषय) में कोई ज़बरदस्ती नहीं। '' (2: 256)

मुसलमान सभी नबियों पर ईमान रखते हैं और उन्हें किसी भी नबी और धर्म के प्रति जरा सी भी बेअदबी और गुस्ताख़ी की अनुमति नहीं है। यह आयत मुसलमानों को उत्पीड़न और ज़बरदस्ती से रोकती है। इसका मतलब यह है कि मुसलमानों को उत्पीड़न और हिंसा के साथ इस धरती पर इस्लाम स्थापित करने की अनुमति नहीं है। और कुरान का यही सिद्धांत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दिनचर्या में प्रमुख था। ये महान आयत सभी धार्मिक समुदायों को पूजा के स्वतंत्रता की गारंटी देती है। इससे उस कुरानी आयत का समर्थन होता है जिसमें अल्लाह का फरमान है कि उसनें लोगों को जातियों और जनजातियों में अलग कर दिया ताकि वे एक दूसरे को जान सकें और ध्यान और उदारता के एक ही स्वभाव के साथ आपस में मामलों को अंजाम दे सकें।

यही कारण है कि मुख्यधारा में मुसलमान दूसरे धर्मों को खुले दिल से स्वीकार करते हैं। चाहे इस्लामी दृष्टिकोण से उनका धर्म उन्हें कितना ही गलत क्यों न लगे।

हम उस घटना से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं कि जब दूसरे धर्म के मानने वालों का एक प्रतिनिधिमंडल मदीना के मस्जिदे नबवी में आया, पैगंबर इस्लाम से मुलाकात करने से पहले उन्होंने मस्जिदे नबवी में ही अपनी पूजा करने की इच्छा व्यक्त की जबकि नमाज़ का समय समाप्त हो रहा था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उन्हें पहले अपनी इबादत अदा कर लेनी चाहिए,नमाज़ का इंतजार किया जा सकता है। इसी तरह एक और मौके पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक गैर मुस्लिम के अंतिम संस्कार के सम्मान में खड़े हो गए।

भगवद गीता में ऐसे बहुत सारे स्थान हैं जहां कृष्ण ने अर्जुन को दुश्मनों से लड़ने का आदेश दिया हालांकि वह उनके रिश्तेदार ही क्यों न हों। इसमें धर्म के लिए लड़ाई को बढ़ावा दिया गया। और कुरान पाक की भाषा में दुश्मनों से बचाओ की खातिर लड़ने को जिहाद कहा जाता है, लेकिन आज के संबंध में भ्रम पाई जाती है और उसकी गलत व्याख्या की गई है। विभिन्न धर्मों में बुनियादी मूल्य अलग नहीं होते। जो लोग अल्लाह पर ईमान रखते हैं वह अन्याय की इच्छा नहीं कर सकते क्योंकि निर्माता उन्हें दूसरों के साथ कृपा का मामला करने का आदेश देता है।

इस्लाम सभी मुसलमानों पर दूसरे धर्मों के सम्मान को अनिवार्य करार देता है। खुद मुसलमानों को भी यह लगता है कि दूसरे लोग भी इस्लाम को समझें और उसका सम्मान करें। मनुष्य को बनाने का मुख्य उद्देश्य यही है जिसकी व्याख्या कुरान (11.7) में स्वयं अल्लाह नें की है। अल्लाह का फरमान है कि पृथ्वी और आकाश को बनाया ताकि इंसानों को परखा जा सके कि किसका आचरण अच्छा है। अच्छे कर्म में मनुष्य के आपसी कंपीटेशन को बढ़ावा देना अल्लाह का उद्देश्य है ताकि इंसान इस दुनिया को शांति का केंद्र बना सके।

जब क्षेत्र में एक विशेष समूह के प्रति गरीबी , हिंसा, भेदभाव और अनुचित रवैया अपनाया जाता है तो उनमें धार्मिक हिंसा की प्रवृत्ति तेजी के साथ जन्म लेती है। ऐसे समय में दूसरे धर्मों के बारे में ज्ञान और उनके मूल्य महत्वपूर्ण पहलू होते हैं और उन पर सभी लोगों के द्वारा प्रकाश डाले जाने की आवश्यकता है। सभी धर्मों की शिक्षाएं समानता की और न्याय की शिक्षा देती हैं। ताकि वे एक साथ सभी प्रकार के उत्पीड़न और हिंसा का मुकाबला कर सकें चाहे वो आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक क्यों न हो।

आज अक्सर लोग दूसरों के बारे में फैसला अपने ज्ञान के द्वारा नहीं बल्कि केवल अनुमान से करते हैं। दूसरे धर्मों के बारे में हमारी समझ बुझ तथ्यों और सच्चाई से कोसों दूर है। यहां तक कि बहुत सारे लोग खुद अपने धर्म के मूल सिद्धांत से अनभिज्ञ हैं। नतीजतन गलतफहमियां बुरे कामों का कारण बनती हैं। इसलिए अंतर्धार्मिक संवाद हमारे अंदर और दूसरों के अंदर भी अन्य धर्मों के प्रति सही समझ पैदा करते हैं।

इसलिए आज विश्व स्तर पर इन ज्वलंत समस्याओं का समाधान करने की सख्त जरूरत है। शांति के सिद्धांत को बढ़ावा देने के लिए अंतर्धार्मिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। सभी धार्मिक लोगों के लिए यह आवश्यक है कि वे एक दूसरे को धार्मिक प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि दोस्तों के रूप में स्वीकार करें।

अब हम सभी धर्मों के अंतर्धार्मिक पहलुओं पर ध्यान करते हैं। अल्लाह सभी इंसानों को 'कलिमतिन सवाईम बैनना व बैनकुम' 'यानी सत्य और संयुक्त मामलों की खोज में एक दूसरे के हाथों में हाथ देने और कंधे से कंधा मिलाने का आदेश देता है। हर इंसान खुदा की रचना है। उसके धर्म का संबंध खुदा और उस व्यक्ति से है। अब वह समय आ गया है कि हम सब आपस में सहमति और एकता और सार्थक बातचीत और बहस के जरिए एक दूसरे के बारे में जानने की कोशिश करें। अगर हम ऐसा करेंगे तभी जाकर हम हर प्रकार की हैवानियत का विरोध करने में सक्षम होंगे और शांति,न्याय और भाईचारे और प्रेम स्थापित करने के लिए संघर्ष शुरू कर सकेंगे।

 प्रत्येक संवेदनशील इंसान को संघर्ष से बचना चाहिए बल्की उन्हें सांस्कृतिक और अंतर्धार्मिक स्तर पर शांति कायम करते हुए बातचीत की दावत देनी चाहिए। वह मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच साझा मूल्यों को बढ़ावा दे सकते हैं क्योंकि हर इंसान खुश रहना चाहता है। सभी राष्ट्रों के बीच तब तक शांति नहीं हो सकता जब तक धर्मों के बीच शांति स्थापित न हो जाए। इसी तरह विभिन्न धर्मों के बीच शांति तब तक क़ायम नहीं हो सकती जब तक विश्वसनीय और प्रामाणिक अंतर्धार्मिक संवाद का आयोजन न किया जाए।

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