शबनम महमूद
3 जून 2015
ब्रिटेन के शहर ब्रैडफ़ोर्ड की मस्जिद में अजान की आवाज़ सुनाई दे रही है. ब्रिटेन की तमाम दूसरी मस्जिदों की तरह यहाँ भी नमाज़ पढ़ने के लिए आने वाले मर्द ही हैं.
महिलाओं के लिए नमाज़ पढ़ने की सुविधा न होने के कारण यहां के संगठन ने महिलाओं के लिए विशेष मस्जिद बनाने की घोषणा की है. बाना गोरा मुस्लिम वूमैन काउंसिल की प्रमुख हैं.
बाना गोरा कहती हैं, "ब्रैडफोर्ड में पिछले एक साल से हम मस्जिदों के प्रावधानों की विस्तृत समीक्षा कर रहे हैं. हमने पाया कि मस्जिदें काफ़ी हद तक पुरुष प्रधान मॉडल का पालन करती हैं. मस्जिदों तक महिलाओं की पहुँच मुश्किल है. इनकी कमेटियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कमोबेश नहीं के बराबर है."
अमरीका से मिली प्रेरणा
यहाँ की महिला काउंसिल को ये प्रेरणा अमरीका में महिलाओं के लिए विशेष मस्जिद शुरू होने के बाद मिली. इसमें महिलाएँ इमाम के रूप में नमाज का नेतृत्व करती हैं. लेकिन परंपरागत मुस्लिम इससे सहमत नहीं हैं.
शेफ़ील्ड स्थित गुलज़ार-ए-हबीब मस्जिद के क़ारी सज्जाद अली शामी कहते हैं कि इससे मुस्लिम समाज एक होने के बजाय विभाजित होगा.
इमाम क़ारी सज्जाद कहते हैं, "जेंडर के आधार पर मस्जिदें बनाने से मुस्लिम समुदाय में और विभाजन होगा. महिलाओं को मस्जिद जाने का अधिकार है लेकिन उन्हें सलात(नमाज) के लिए जेंडर के आधार पर विशेष मस्जिद और इमाम बनाने का अधिकार नहीं है. इस मुद्दे पर बात करने की ज़रूरत है."
600 मस्जिदों और इस्लामिक संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले मॉस्क एंड इमाम्स नैशनल एडवाइजरी बोर्ड(एमआईएनएबी) भी कमोबेश यही राय रखता है.
इतिहास के ख़िलाफ़
अल्लामा बेग क़ादरी एमआईएनएबी के वरिष्ठ मौलवी हैं.
अल्लामा बेग क़ादरी कहते हैं, "इस्लाम के 1400 सालों से अधिक लंबे इतिहास में हमें महिलाओं के लिए अलग मस्जिद या नमाज का नेतृत्व करने की बात नहीं मिलती. ऐसा कदम उठाना मुस्लिम रवायत के अनुकूल नहीं है. इससे मुस्लिम समुदाय में विवाद हो सकता है क्योंकि ये इतिहास के ख़िलाफ़ है."
हालांकि कुछ मुस्लिम महिलाएं महिलाओं के लिए विशेष मस्जिद बनाने की पहल का समर्थन कर रही हैं. सबीना यास्मीन ऐसी महिलाओं में से एक हैं.
सबीना यास्मीन कहती हैं, "ये अच्छा है कि ऐसी मस्जिद हो जहाँ महिलाएं जाकर नमाज पढ़ सकती हैं और उसे महिलाएं चलाती हैं. हम सब जानते हैं कि महिलाएँ ऐसा करने की काबिलियत रखती हैं."
सबीना यास्मीन आम तौर पर घर पर ही नमाज पढ़ती हैं. वो ये भी मानती हैं कि मौजूदा मस्जिदों में महिलाओं के लिए पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए.
मर्दों की जगह
सबीना कहती हैं, "असल में होना ये चाहिए कि महिलाओं को इन मस्जिदों में रोजगार देना चाहिए. उन्हें मर्दों के साथ बैठने की ज़रूरत नहीं...जो इसे लेकर संवेदनशील हैं वो टेलीफ़ोन या इंटरनेट की मदद से सलाह ले सकती हैं."
हालांकि बहुत से मुसलमान ये भी मानते हैं कि मस्जिद मर्दों की जगह है.
महिलाओं के लिए विशेष मस्जिद बनाने की योजना अभी अपने शुरुआती चरण में है.
मुस्लिम वूमेन काउंसिल अभी इसके लिए संभावित स्थान और आर्थिक मदद की संभावनाएँ तलाश रही हैं. लेकिन हमने जैसी बातें सुनीं उससे साफ़ है कि उन्हें इस राह में काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ेगा.
Source:http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2015/06/150602_bradford_female_only_mosqu_rns