सेंगे एच सेरेन्ग
17 अक्तूबर, 2013
तालिबान अल्लाह को खुश करने के लिए दूसरे इंसानों की जान लेते हैं। एक तालिबान अपने बेटे या भाई कि गर्दन पर छुरी रख कर उसे काट देगा अगर अल्लाह ने उसे ऐसा करने का हुक्म दिया।
तालिबान का ये मानना है कि अल्लाह हमारी परहेज़गारी, ईमान, आज्ञाकारिता और वफादारी को जाँचने के लिए हमारी परीक्षा लेता है और दूसरे इंसानों कि जान लेना भी अल्लाह को अपनी आज्ञाकारिता को साबित करने का एक तरीक़ा है।
इससे ये साबित होता है कि एक इंसान अपने साथी इंसानों के मुक़ाबले में अल्लाह से अधिक मोहब्बत करता है। ये उनके विश्वास को पूर्णता देता है कि अल्लाह से अधिक क़ीमती चीज़ कोई नहीं है, यहाँ तक कि उसके बेटे या बेटी भी नहीं।
वो अल्लाह जो सर्वशक्तिमान है जिसने अरबों और खरबों की संख्या में आकाशगंगाओं और ब्रह्मांड को पैदा किया और बिना किसी अंतराल के ये रचनात्मक प्रक्रिया जारी है।
वो शक्ति जो अंतहीन रचनात्मक प्रक्रिया को जारी रखती है, इंसानों की हत्या जैसे नीच हरकत से अपने आपको अपमानित महसूस करेगी। इस तथ्य के बावजुद कि वो जो इस ब्रह्मांड और उससे बढ़कर तमाम चीज़ों को नियंत्रित करता है, क्या हमारा अल्लाह इतना कमज़ोर और असुरक्षित है कि वो एक प्राणि के द्वारा दूसरे के गले पर छुरी चलवा कर अपनी वफादारी और आज्ञाकारिता की परीक्षा लेगा?
क्या वो अल्लाह ऐसा करेगा जिसकी इंसानों के लिए मोहब्बत, अपने बच्चे के लिए माँ की मोहब्बत के मुक़ाबले में 70 गुना अधिक है?
अगर ये सच है तो क्या इसे इंसानों में खुदा के विश्वास और भरोसे जैसे दूसरे गुणों के लिए लागू नहीं किया जाना चाहिए? क्या इंसानों पर उसका विश्वास अपने बच्चों पर उसकी माँ के विश्वास के मुक़ाबले में 70 गुना अधिक गहरा नहीं होना चाहिए? कोई माँ अपनी मोहब्बत को साबित करने के लिए अपने बच्चे को गला काटने के लिए नहीं कहेगी।
अगर इसका कोई मतलब है तो फिर वो महान खुदा ये नहीं चाहेगा कि इंसान अपना महत्व साबित करने या उसकी खुशी हासिल करने के लिए इस सीमा तक बर्बरता पर उतर आए। अल्लाह ये चाहेगा कि वो एक दूसरे की सुरक्षा और देख भाल करें। अल्लाह ये चाहेगा कि वो एक दुसरे पर विश्वास करें और प्यार व मोहब्बत पर आधारित इंसानी संस्कृति के नींव का निर्माण करें।
इतना महान अल्लाह परपीड़क नहीं हो सकता कि उसे आज्ञाकारिता के सुबूत में किसी को हिंसा का निशाना बनते हुए और उसकी हत्या होते हुए देखने में खुशी मिलती हो। दूसरे को तकलीफ में देखकर आनंद पाना एक मानसिक बीमारी है और इसके अलावा अल्लाह किसी भी किस्म की अंधभक्ति से ऊपर है।
अल्लाह को राज़ी करने के लिए एक अमल के तौर पर इंसानी जानों की कुर्बानी पेश करने से आलोचकों को शांति के धर्म के तौर पर इस्लाम की छवि के बारे में सवाल उठाने का भी मौक़ा मिलता है। इससे उन लोगों की असलियत का भी पर्दाफाश होता है जो कुरान का हवाला देते हुए ये विश्वास प्रदर्शित करते हैं कि एक व्यक्ति का क़त्ल दरअसल पूरी इंसानियत का क़त्ल है।
एक मुसलमान को अमन पसंद और दूसरे धर्मों के अनुयायियों के लिए नुकसान न पहुँचाने वाला उसी समय माना जा सकता है जब वो अपने परिवार और दूसरे धार्मिक समुदायों के लोगों के लिए सुरक्षा, मोहब्बत और देख भाल करने की ज़मानत दे और किसी भी जूनून के तहत उनको मारने की अपनी अस्वाभाविक इच्छा पर लगाम लगाए।
इसके अलावा इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि गले पर छुरी चला कर एक इंसान के क़त्ल या क़त्ल की कोशिश को इस्लाम में अल्लाह को खुश करने का एक तरीका बयान किया गया है। अल्लाह नहीं बल्कि वो शैतान ही हो सकता है जो तालिबान और उन के साथियों को ऐसा करने का हुक्म देता है।
या ये तालिबानियों की मानसिक गंदगी या उनका पागलपन ही हो सकता है जो उन्हें अपने साथी इंसानों की गर्दन काटने के लिए उकसा रहा है। दूसरों को मारने के लिए उनका जुनून ईमान की निशानी नहीं बल्कि एक मानसिक पागलपन का प्रतीक है।
भयानक, मानसिक रोगी तालिबान के बारे में बहुत सारी बातें हो गईं, खास तौर पर ऐसे समय में जबकि दुनिया भर में डेढ़ अरब मुसलमान ईद कि खुशी मना रहें है और उनके पास दूसरे इंसानों के सिर कलम होने के बारे में सोचने या बात करने का वक्त नहीं है।
हमारे नबी इब्राहीम अलैहिस्सलाम की महान क़ुर्बानी को याद दिलाने के लिए इस मुबारक दिन दुनिया के सभी मुसलमानों को ईद की मुबारकबाद।
(ऊर्दु से अनुवादः न्यु एज इस्लाम)
सेंगे एच सेरेन्ग, इंस्टीट्यूट आफ गिलगित बलतिस्तान स्टडीज़ के प्रमुख हैं और उनका सम्बंध बलतिस्तान के तिब्बती भाषा बोलने वाले उस क्षेत्र से है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच विवादास्पद क्षेत्र करार दिया है। हिंदुस्तान और पाकिस्तान में लगभग 600,000 बलतिस्तानी लोग रहते हैं जो इस्लाम धर्म मानते हैं और प्राचीन तिब्बती भाषा बोलते हैं।
स्रोत: http://www.sharnoffsglobalviews.com/taliban-human-sacrifice-202/
URL for English article: https://newageislam.com/radical-islamism-jihad/human-sacrifice-taliban/d/14026
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