प्रखर, न्यू एज इस्लाम
3 अगस्त, 2023
मैं आपसे कहता हूँ कि आपके पास सारे जहान की ताक़त है, आपके पीछे दस लाख सिपाहियों की फ़ौज खड़ी है, जाइए, रोक कर दिखाइए ये नरसंहार, तो आप क्या कहेंगे? सोचिए और बहुत देर में इसका जवाब दीजियेगा, क्योंकि अगर दस लाख में से कोई ऐसा आदमी निकला, जिस दिमाग़ी संतुलन ठीक नहीं है या जिसकी 3 रातों से नींद नहीं हुई है, तो आपको भी उतना ही ख़तरा है जितना ख़तरा मुझे है। फ़ौज आपकी है, इसलिए मुझे ख़तरा है अपनी बात बोलने में, फ़ौज आपकी है, लेकिन आपको ख़तरा इस बात का है कि आप आदमी के दिमाग़ पर क़ाबू नहीं पा सकते। देखा जाए तो मुझे भी ख़तरा इसी बात का है, बस मसअला ये है कि मैं अपने दिमाग़ पर क़ाबू पाना चाहता हूँ और आप किसी ओर आदमी के दिमाग़ पर।
किसी हसीन इत्तेफाक़ से अगर आप मुसलमान हुए, तो आपकी फ़ौज ही नहीं होगी और यदि किसी दूसरे हसीन इत्तेफाक़ से वो आदमी मुसलमान हुआ, तो वो फ़ौज में नहीं होगा। अगर ये बात एकदम सही है, तो इसका मतलब तो यह हुआ, कि आप मुसलमान नहीं है, और आपको किसी मुसलमान से ख़तरा नहीं है। मेरे यह बात लिखते ही मुझे भी मुसलमान का तमग़ा पहना दिया जाएगा, लेकिन ख़ैर, मेरा ईमान अभी मुसल्लम है, तो मैं आगे भी लिखूँगा। आज के हिंदुस्तान में कुल बात इतनी है कि या तो आप मुसलमान हैं, या फिर हिंदू, मतलब मोदी जी के समर्थक। यहाँ ये भी कहा जा सकता है कि जिस तरह एक मुसलमान पर अपना धर्म त्यागने की बंदिशें होती हैं, उसी तरह की बंदिशें आज के हिंदू पर भी हैं, बल्कि उससे भी अजीब बंदिशें हैं ये। चूँकि आप हिंदू हैं, आप मोदी जी के साथ हैं, और अगर आप हिंदू नहीं हैं, तो आप मुसलमान हैं, और अन्तर्तः मोदी जी के ख़िलाफ़। बस इतनी सी उपलब्धि चाहिए आपको देशद्रोही होने के लिए। जिस तरह इस्लाम को त्यागने वालों को इस्लामी मुल्क़ों ने देशद्रोही घोषित करके गोली मार दी थी, उसी तरह इस धर्मनिरपेक्ष भारत में हिंदू धर्म को त्यागने वालों को गोली मार दी जाएगी, मतलब मार दी गई, क्योंकि उन्होंने मोदी जी के ख़िलाफ़ बोला।
दस लाख की फ़ौज लेकर खड़े हुए आदमी आप हैं, हिंदू हैं, और आपकी फ़ौज में दस लाख हिंदू हैं, तो क्या मैं इस बात पर आपकी सहमति पा सकता हूँ, कि आपको हिंदू से ही ख़तरा है? हाँ, हिंदू ख़तरे में है, लेकिन ख़तरा किससे हैं? ख़ुद से नहीं है तो किससे है? देखिए, इतनी सी बात पर आप फिर मुझे मुसलमान का तमग़ा पहना रहे हैं। अभी तक तो मैंने अख़बार का एक पन्ना भी नहीं पलटा है, जिसमें दस और मौतें हैं, और सब उसी कथित फ़ौज के हाथों हुई हैं।
अगर मानव विकास के इतिहास में संज्ञानात्मक या ज्ञान-संबंधी विकास सिर्फ़ इसलिए हुआ कि हम आज इस मोड़ पर आ कर खड़े हो जाएँ तो सत्तर से चालीस हज़ार साल का यह सफ़र हमने आगे की तरफ़ नहीं बल्कि पीछे की तरफ़ किया है। इसे विकास कहना उतना ही ग़लत है जितना मनुष्य को बंदर कहना। धर्म इसी संज्ञानात्मक विकास की देन है। मानव सभ्यता भी इसी विकास की देन है। सभ्यता शब्द में ‘सभ्य’ होने का अर्थ निकलता है। पिछले एक हफ़्ते में देश में जो कुछ हुआ है, उसमें कौनसी ऐसी घटना है जो मनुष्य के सभ्य होने का प्रमाण देती है, या दे सकती ही है? आज का मनुष्य अपने आसपास जिस कंक्रीट जंगल का निर्माण कर रहा है, वह उसमें पलटी हुई सभ्यता का हिस्सा तो नहीं है, वो तो उसमें जानवरों की भाँति इधर-उधर धक्के खाता, ख़ुद को जीवित मात्र रखने की कोशिश करता, एक प्राणी है। क्या सिर्फ़ सड़कें, इमारतें, गाड़ियाँ ही विकास को परिभाषित करती हैं? नहीं।
मैं नहीं जानता कि ऐसा क्या लिख दूँ, क्या कह दूँ, कि बस एक हत्या होने से बच जाए। आप कुछ ऐसा कह सकते हैं, लिख सकते हैं, जिससे एक हत्या होने से बच जाए? अगर आपके कुछ कहने या लिखने या चुप रहने से मौतें हो रही हैं, तो आप भी किसी मुग़ल काल के तानाशाह से कम तो नहीं हुए। आपके बाद भी कोई आएगा जो इतिहास से आपका नाम का मिटा देगा, उम्मीद है अपने अच्छे कर्मों के द्वारा।
कुर्सी है तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है,
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते?
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