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Hindi Section ( 25 March 2014, NewAgeIslam.Com)

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Eradicating a Distorted 'Jihadi' Ideology विकृत 'जिहादी' विचारधारा का उन्मूलन

 

 

 

 

समर फ़तानी

7 फरवरी, 2014

किंग अब्दुल्ला की लोकप्रियता चरमपंथियों और विकृत ''जिहादी'' उग्रवादी विचारधारा के खिलाफ सख्त रुख को अपनाने के साथ बढ़ रही है, जिनके बारे में उनका कहना है कि- ये हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता दोनों के लिए एक बड़ा खतरा हैं। हाल ही में जारी किए गए शाही फरमान के अनुसार किंग अब्दुल्ला ने चेतावनी दी है कि कोई भी नागरिक जो किसी बाहरी विवाद में लड़ेगा उसे 3 से 20 साल तक की सज़ी दी जायेगी।

इस शाही फरमान में ये भी चेतावनी दी गई है कि ''सऊदी अरब का कोई भी नागरिक जो उसके द्वारा वर्गीकृत किसी आतंकवादी या चरमपंथी संगठनों में शामिल होगा, उसका समर्थन करेगा या उन्हें नैतिक या भौतिक सहायता प्रदान करेगा, चाहे वो देश के अंदर हों या बाहर उसे 5 से 30 बरसों की सज़ा दी जायेगी।'' आशा की जा सकती है कि इस चेतावनी से वो लोग जो सीरिया या कहीं और हमारे नौजवानों को 'जिहाद' में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना बंद करेंगे।

हाल ही में आतंकवाद विरोधी कानून में आतंकवादी अपराधों को ऐसी गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जो ''सार्वजनिक व्यवस्था में रुकावट डाले, समाज की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाए, या राष्ट्रीय एकता को खतरे में डालती हो, या प्राथमिक शासन व्यवस्था को बाधित करती हो या राज्य की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती हो।''

गृह मंत्रालय के प्रवक्ता मेजर जनरल मंसूर अल-तुर्की ने रिपोर्टरों को बताया कि अब तक 200 से 300 सऊदी नागरिक सीरिया से वापस आ चुके हैं जिन्हें जिहादी विचारधारा से मुकाबला करने के लिए बनाये गये पुनर्वास कार्यक्रम में शामिल किया जायेगा।

इस बीच उदारवादी इस्लामी विद्वान उन सऊदी नागरिकों के खिलाफ लगातार अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं जो सीरिया के गृहयुद्ध में शामिल हो रहे हैं। हालांकि गृह मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक लगभग 1200 सऊदी नागरिक सीरिया जा चुके हैं और इनमें से कई इस क्रूर और अन्यापूर्ण युद्ध में अपनी जान गवाँ बैठे हैं।

पिछले दशकों में सऊदी अरब ने अलकायदा से जुड़े होने के इल्ज़ाम में सौकड़ों लोगों को जेल में डाला है। इस आतंकवादी संगठन ने सऊदी अरब में 2003 से 2006 के बीच कई आतंकवादी हमले किए हैं जिनमें कई निर्दोष लोग मारे गए हैं।

ये विकृत विचारधारा जो आज मुस्लिम देशों के लिए बहुत बड़ा खतरा बनी हुई है उसके प्रभाव से मुकाबला करने के लिए पूरे देश में राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया जा रहा है। बहरहाल आतंकवाद इस देश में आज सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनी हुई है। इस खतरे से मुकाबला करने के लिए सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर और बड़े पैमाने पर व आक्रामक तरीके से मुहिम चलाने की ज़रूरत है ताकि सऊदी नागरिकों के बीच उदारता और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा सके। उग्रवाद के खतरों को उजागर करने में अभी बहुत कुछ किये जाने की ज़रूरत है। युवाओं को उग्रवाद के लिए प्रेरित करने वालों और समाज में असहिष्णुता फैलान वालों से सुरक्षित करने के लिए जनता को बेहद सतर्क रहना चाहिए और इस अभियान में शामिल होना चाहिए। देश भर में सऊदी नागरिकों को इस खतरे से निपटने के गृह मंत्रालय के उद्देश्य का समर्थन करना चाहिए। जबकि दूसरी तरफ उग्रवादी विचारधारा के समर्थकों के खिलाफ उदारवादी धार्मिक विद्वानों को अपने भाषणों में अधिक गंभीर होना चाहिए।

सामाजिक संस्थाओं पर भी इस खतरे से निपटने और साथ ही अतिवादी विचारधारा पर अंकुश लगाने के लिए रणनीति तैयार करने की ज़िम्मेदारी है। शोधकर्ताओं को इस विचारधारा से निपटने के तरीकों पर चर्चा करनी चाहिए और इस विकृत विचारधारा के खिलाफ जागरूकता पैदा करनी चाहिए जो विशेष रूप से सऊदी नागरिकों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।

इस्लाम में जिहाद की अवधारणा की विकृत व्याख्या ने कई युवाओं को गुमराह कर दिया है और ये आतंकी कार्रवाई में शामिल होने के जुर्म में सलाखों के पीछे हैं और ऐसे लोग खुद के लिए और समाज के लिए खतरा बन गए हैं। धार्मिक कट्टरपंथियों ने इस्लाम के नाम पर नौजवानों को अपने संगठनों में भर्ती करने और अपनी आतंकवादी गतिविधियों को वैधता प्रदान करने के लिए इस अवधारणा का दुरुपयोग किया है। वास्तव में ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इस दृष्टिकोण का समर्थन करने वालों ने मासूम युवाओं को गुमराह करने में कामयाबी हासिल कर ली है और इसके बाद इन लोगों ने ऐसी आतंकवादी गतिविधियों की साज़िशें की हैं जो बड़े पैमाने पर मुस्लिम देशों के लिए खतरा बनी हुई हैं।

उग्रवाद और उग्रवादी विचारधारा का मुकाबला करने के लिए सरकार की मुहिम को इस खतरनाक प्रवृत्ति से निपटने में अधिक प्रभावी होने की ज़रूरत है। मुस्लिम देशों में बड़े पैमाने पर फैली अराजकता और अस्थिरता पर रोक के लिए इस प्रवृत्ति को खत्म किया जाना चाहिए। जो लोग उग्रवादियों की "जिहादी" विचाराधारा का समर्थन करते हैं उन्होंने खुद को समाज से अलग कर लिया है और ऐसे मुसलमानों के साथ लगातार टकराव की स्थिति में रहने को चुना है, जो उनकी अतिवादी विचारधारा और सिद्धांतों को खारिज करते हैं।

ये राज्य और शैक्षणिक समुदाय दोनों की ज़िम्मेदारी है कि वो लोगों के बीच मौजूद खतरे के बारे में जनता को सूचित और शिक्षित करें और सभी नागरिकों के लिए शांतिपूर्ण और उदारवादी वातावरण को प्रोत्साहित करें। इस प्रक्रिया में शिक्षकों की भूमिका पर बहुत ज़ोर नहीं दिया जा सकता है। शिक्षा युवाओं को स्वार्थी एजेंडे के साथ ही ऐसे सभी तत्वों से सुरक्षित कर सकती है जो उनके सद्भाव और शांतिपूर्ण जीवन के लिए खतरा है।

आतंकवादी और उनके हमदर्द बहुत सक्रिय रहे हैं जबकि मस्जिदों के इमाम, माँ बाप और सरकारी एजेंसियां ​​हमारे शांतिपूर्ण समाज के लिए खतरों को पहचानने में काफी हद तर नाकाम रही हैं।

सामाजिक वैज्ञानिकों ने युवा लोगों की कट्टरता के पीछे के मूल कारणों की पहचान के लिए बहुत शोध किया है। कुछ धार्मिक नेताओं और इमामों के नकारात्मक प्रभाव, अनुपयुक्त मानकों वाली शिक्षा जो उन्हें कार्य बल बनाने में नाकाम है, अशिक्षित अभिभावकों की लापरवाही और कई परिवारों की पारम्परिक परवरिश जो चर्चा और संवाद को खारिज करते हैं, ये ऐसे कुछ कारक हैं जिनकी वजह से युवाओं को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता।

अधिक प्रभावी जागरूकता अभियान एक महत्तवपूर्ण कदम है जिससे सभी लोग इस बात को जान सकेंगे कि उग्रवादी विचारधारा ने शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण और अस्वस्थ माहौल को बनाया है। हमें उदार रवैये को अधिकतम समर्थन देने की ज़रूरत है ताकि हमारे युवा अधिक सतर्क और समाज व देश के लिए योगदान देने वाले नागरिक बन सकें।

किंग अब्दुल्ला के हाल ही में दिये गये शाही फरमान से उम्मीद की जा सकती है कि ये हमारे नौजवानों की मानसिकता को बदल सकता है जिन्हें आतंकवादी संगठन लगातार गुमराह कर रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं। और अब तक जिसके नतीजे में बहुत से लोगों की जानें जा चुकी हैं।

समर फ़तानी एक रेडियो ब्रॉडकास्टर और लेखिका हैं।

स्रोत: http://www.saudigazette.com.sa/index.cfm?method=home.regcon&contentid=20140208195035

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