सादिया देहलवी
30 जून, 2014
नए चाँद के नज़र आने के साथ ही रमज़ान का महीना शुरू हो जाता है। मुसलमान इस महीने का स्वागत और क़दरदानी एक मेहमान की तरह करते हैं क्योंकि ये अल्लाह की रहमत की बारिश को ले आता है।
"रमज़ान" इस्लाम से पूर्व अरबी परंपरा का नौवें महीने का नाम है, ये अरबी शब्द ''रम्ज़'' से शुरु होता है जिसका अर्थ तीव्र गरर्मी या तपती हुई ज़मीन है। मुसलमानों का मानना है कि रमज़ान में रोज़ा रखने से अल्लाह की रहमत हासिल होती है और सारे गुनाह खाक हो जाते हैं।
रोज़ा रखना एक कालातीत ज्ञान के साथ नबियों और सूफियों की परंपरा रही है। रूमी लिखते हैं कि "भूख खुदा की नेमत है जिससे वो नेकी करने वालों के शरीर को स्वास्थ्य और ऊर्जा प्रदान करता है। 9वीं सदी के आरिफ शक़ीक़ बलख़ी ने कहा है कि, 40 दिनों के लगातार रोज़ों से दिल का अंधेरा प्रकाश से बदल सकता है। प्रारम्भिक इस्लाम के एक सूफी सहल तस्तरी ने इस कदर निरंतरता के साथ रोज़ा रखा कि उनका नाम ही ''शेखुल आरिफ़ीन'' हो गया। उन्होंने कहा, "भूख धरती पर खुदा का रहस्य है।" एक अफ़्रीकी सूफी अबु मदयान लिखते हैं कि "भूखा व्यक्ति विनम्र हो जाता है, और जो विनम्र होता है वो विनय करता है और जो विनय करता है वो खुदा को पा लेता है। इसलिए भाईयों रोज़ा रखो और इस पर लगातार अमल करते रहो क्योंकि इसके द्वारा आप अपनी इच्छाओं को प्राप्त करोगे और अपनी उम्मीदों को पूरा करोगे।"
रोज़ा मुसलमानों के लिए एक धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि कुरान कहता है, ''(रोज़ो का महीना) रमज़ान का महीना (है) जिसमें क़ुरान नाज़िल हुआ जो लोगों का रहनुमा है और (जिसमें) हिदायत की खुली निशानियाँ हैं। एक और आयत में अल्लाह का फरमान है: ''मोमिनों! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं। जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फर्ज़ किए गए थे, ताकि तुम परहेज़गार बनो।'
नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कसम खाकर ये कहा कि रोज़ेदार के मुंह की गंध अल्लाह के अनुसार मुश्क की खुशबू से भी बेहतर है। आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि रोज़दार को दो नेमतें हासिल होती हैं एक जब वो रोज़ा खोलता है और दूसरा जब वो अपने रब से मिलता है।
रमज़ान सखावत, इबादत और ध्यान का एक हसीन मौक़ा है जिसके नतीजे में मन की आंतरिक हासिल होती है। रोज़ा रखना मेहनत का काम है क्योंकि रोज़े की हालत में खाना, पानी पीना, धूम्रपान करना और यौन सम्बंध स्थापित करना सख़्ती से मना है। रमज़ान का महीना अच्छे कर्म के सिद्धांतों और नियमों पर सख्ती से ध्यान देने का मौक़ा है। जो लोग रमज़ान की क़दर करते हैं उनके लिए ज़रूरी है कि वो कपट, क्रोध और सभी इच्छाओं से बचते हुए स्वयं पर नियंत्रण का भी विशेष ध्यान रखें।
8वीं शताब्दी के सूफी आलिमे दीन और पैगम्बर सल्लल्लाहू अलाहि वसल्लम के खानदान के प्रतिनिधि हज़रत इमाम जाफर सादिक़ ने कहा है कि, ''तुम्हारे रोज़े के दिन आम दिनों की तरह नहीं होने चाहिए, जब आप रोज़े से हों तो इस बात का ध्यान रहे कि तुम्हारे सभी होश, आंख, कान, जीभ, हाथ और पैर भी तुम्हारे साथ रोज़ेदार हों।
नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने व्याख्या की कि, पांच चीज़े ऐसी हैं जो मोमिन का रोज़ा तोड़ने वाली हैं, झूठ बोलना, बुराई करना, आरोप लगाना, झूठी शपथ और वासना। नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि रमज़ान में सबसे बेहतरीन सदक़ा दो लोगों के बीच सुलह कराना है जो आपस में दुश्मनी रखते हों। इस्लामी किताबें और इसके स्रोतों का इस मामले में पक्ष बड़ा स्पष्ट है कि जो लोग अपने प्रिय लोगों से सम्बंध विच्छेद कर लेते हैं वो तब तक जन्नत में नहीं जाएंगे जब तक कि वो आपस में सुलह न कर लें।
गलती करने वालों को माफ करना, सदका देना और ज़रूरतमंदों में भोजन, कपड़े और जीवन की अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने वाले सामान बाँटना रमज़ान की महत्वपूर्ण दिनचर्या है। रोज़ा रखने से एक हद तक इंसान गरीब लोगों की भूख को महसूस करता है। ये पवित्र महीना मुसलमानों को हर क्षण खुदा के ज़िक्र में लगे रहने की दावत देता है। हमें ये संकल्प करना चाहिए कि हमारी ये दिनचर्या रमज़ान के अलावा भी हर दिन हमारे जीवन में इसी तरह जारी रहेंगी।
सादिया देहलवी दिल्ली की एक स्तंभकार हैं और Sufism: The Heart of Islam की लेखिका हैं।
स्रोत: http://www.asianage.com/mystic-mantra/ramzan-time-generosity-317
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http://www.newageislam.com/islam-and-spiritualism/sadia-dehlvi/ramzan--time-for-generosity/d/97872
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