सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
21 जनवरी 2022
कुरआन समाज के सभी वर्गों के अधिकारों को स्पष्ट करता है और प्रत्येक वर्ग के कर्तव्यों को भी परिभाषित करता है। कुरआन ने उन विषयों और मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जो कुरआन के नाज़िल होने के दौर में अरब विशेषतः मक्का में महत्वपूर्ण और नुमाया थे। इन्हीं मुद्दे और विषय में अनाथों की भी देखभाल और उनके अधिकारों का रक्षा भी था।
इस्लाम से पहले, अरब समाज कई सामाजिक और नैतिक बुराइयों से ग्रस्त था। उस समय का जीवन आदिवासी था और मक्का में कोई स्थिर राजनीतिक सरकार नहीं थी। कबीले आपस में युद्ध कर रहे थे और लूटपाट और रक्तपात उनके जीवन का हिस्सा थे। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग आपस में लड़ते थे। इन लड़ाइयों के परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हो जाते और उनके पालन-पोषण और उनकी संपत्ति की सुरक्षा के लिए कोई सामूहिक व्यवस्था नहीं थी। बेईमान लोग अनाथों की संपत्ति का उपभोग करते थे और उनके माल को अन्यायपूर्ण तरीके से खा जाते थे।
इस्लाम ने अनाथों के अधिकारों को स्पष्ट किया और उनकी देखभाल और पालन-पोषण और उनकी संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की। मुसलमानों से उनके साथ अच्छा व्यवहार करने को कहा गया और उनके साथ अन्याय और उत्पीड़न को बड़ा गुनाह बताया गया। क़यामत के दिन मुसलमानों से अनाथों के बारे में पूछा जाएगा। जब मुसलमानों ने पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अनाथों के संबंध में इस्लाम के नियमों के बारे में पूछा, तो निम्नलिखित आयत उतरी:
" ताकि तुम दुनिया और आख़िरत (के मामलात) में ग़ौर करो और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं तुम (उन से) कह दो कि उनकी (इसलाह दुरुस्ती) बेहतर है और अगर तुम उन से मिलजुल कर रहो तो (कुछ हर्ज) नहीं आख़िर वह तुम्हारें भाई ही तो हैं और ख़ुदा फ़सादी को ख़ैर ख्वाह से (अलग ख़ूब) जानता है और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है”(अल-बकरह: 220)
इस आयत में कुरआन अनाथों के साथ मेहरबानी करने और उनका पालन-पोषण करने और उनके साथ अपने भाइयों जैसा व्यवहार करने का निर्देश दे रहा है।
कुरआन मुसलमानों को अनाथों की संपत्ति में खयानत करने और हड़पने से रोकता है और ऐसा करने को बड़ी आपदा करार देता है।
" और यतीमों को उनके माल दे दो और बुरी चीज़ (माले हराम) को भली चीज़ (माले हलाल) के बदले में न लो और उनके माल अपने मालों में मिलाकर न चख जाओ क्योंकि ये बहुत बड़ा गुनाह है" (अन निसा:2)
कुरआन मुसलमानों को बताता है कि यदि कोई अनाथ नाबालिग है, तो उसके युवावस्था तक पहुँचने तक, उसे शिक्षित किया जाए और उसकी देखभाल की जाए, और जब वह शादी की उम्र तक पहुंच जाए, तो उन्हें उनकी संपत्ति सौंप दी जाए। इस बीच, उनके संपत्ति से पालन-पोषण पर उचित राशि खर्च कर सकते हैं।
“और यतीमों को कारोबार में लगाए रहो यहॉ तक के ब्याहने के क़ाबिल हों फिर उस वक्त तुम उन्हे (एक महीने का ख़र्च) उनके हाथ से कराके अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो और (ख़बरदार) ऐसा न करना कि इस ख़ौफ़ से कि कहीं ये बड़े हो जाएंगे फ़ुज़ूल ख़र्ची करके झटपट उनका माल चट कर जाओ और जो (जो वली या सरपरस्त) दौलतमन्द हो तो वह (माले यतीम अपने ख़र्च में लाने से) बचता रहे और (हॉ) जो मोहताज हो वह अलबत्ता (वाजिबी) दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है पस जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उनका गवाह बना लो और (यूं तो) हिसाब लेने को ख़ुदा काफ़ी ही है।“ (अन निसा:6)
"लेकिन इस तरीके पर कि (उसके हक़ में) बेहतर हो यहाँ तक कि वह अपनी जवानी की हद को पहुंच जाए और इन्साफ के साथ नाप और तौल पूरी किया करो हम किसी शख्स को उसकी ताक़त से बढ़कर तकलीफ नहीं देते और (चाहे कुछ हो मगर) जब बात कहो तो इन्साफ़ से अगरचे वह (जिसके तुम ख़िलाफ न हो) तुम्हारा अज़ीज़ ही (क्यों न) हो और ख़ुदा के एहद व पैग़ाम को पूरा करो यह वह बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुम्हे हुक्म दिया है कि तुम इबरत हासिल करो और ये भी (समझ लो) कि यही मेरा सीधा रास्ता है ।" (अल-अनआम:152)
सूरह अन-निसा में ही खुदा उन लोगों को जहन्नम की बशारत देता है जो अनाथों की संपत्ति में खयानत करते हैं और जो उनकी संपत्ति को अन्याय से खाते हैं।
"जो यतीमों के माल नाहक़ चट कर जाया करते हैं वह अपने पेट में बस अंगारे भरते हैं और अनक़रीब जहन्नुम वासिल होंगे।" (अन-निस: 10)
कुरआन के कई अन्य सूरतों में खुदा उन लोगों को चेतावनी देते हैं जो अनाथों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं और उनकी मदद नहीं करते हैं।
"हरगिज़ नहीं बल्कि तुम लोग न यतीम की ख़ातिरदारी करते हो।" (अल-फज्र:17)
“सो जो यतीम हो उसको मत दबा।“ (अल जुहा:9)
"तो यह वही है जो अनाथ को धक्के देता है।" (अल-माउन: 2)
उपरोक्त आयतों से स्पष्ट होता है कि कुरआन में अनाथों के अधिकारों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है जिससे मुसलमानों के मन में अनाथों के साथ अच्छे सुलूक का महत्व स्पष्ट हो जाए। कुछ लोग तो उन्हें अपने घरों में रखते भी हैं तो उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करते हैं और उन पर अत्याचार करते हैं। कुरआन इन लोगों को भी तलकीन करता है कि यदि वे अनाथों को पालते हैं तो उनके साथ अच्छा व्यवहार करें और उनके साथ सौतेले व्यवहार न करें।
अनाथों के अधिकार आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने सातवीं शताब्दी के अरब समाज में थे। आज भी लाखों बच्चे युद्धों, गृहयुद्धों, दंगों, बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप अनाथ हो जाते हैं। इसलिए कुरआन में पहले से ही अनाथों के साथ अच्छे व्यवहार और उनके पालन-पोषण, शिक्षा और तरबियत के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं। मुस्लिम समाज में आज यतीम खाने स्थापित किये जाते हैं जहां समाज के इन बेसहारा बच्चों और बच्चियों की सुरक्षा, तालीम व तरबियत और युवावस्था तक पहुँचने पर उनकी शादी का प्रबंध किया जाता है।
Urdu Article: Rights of Orphans in Islam اسلام میں یتیموں کے حقوق
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