सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
रोज़ा एक दिनी फरीज़ा और अफज़ल इबादत है जिसके लिए बड़े सवाब का वादा अल्लाह ने किया हैl कुरआन में रोज़े की ताकीद की गई और हदीसों में भी रोज़े की बहोत ताकीद की गई हैl कुरआन में रोजों के सम्बन्ध में कहा गया है कि पिछली सभी उम्मतों पर रोज़ा फर्ज़ किया गयाl मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत के लिए तीस रोज़े फर्ज़ किये गए जो रमजान के महीने में रखे जाते हैंl
“ऐ ईमान वालों! फर्ज़ किया गया तुम पर रोज़ा जैसे फर्ज़ किया गया था तुम से अगलों पर ताकि तुम परहेजगार हो जाओl” (अल बकरा: १८५)
कुरआन में दोसरे पैगम्बरों को भी रोज़ा रखने की तलकीन की गई जिससे पता चलता है कि उनकी उम्मतों के लिए भी रोज़े फर्ज़ किये गएl निम्न में हम उन पैगम्बरों का उल्लेख करेंगे जिनके रोज़ों का उल्लेख कुरआन में हैl
हज़रात ज़करिया अलैहिस्सलाम का मौन व्रत (बात का रोज़ा)
हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम को १२० वर्ष की आयु तक औलाद नहीं हुई तो उन्होंने आजिज़ी के साथ खुदा से औलाद के लिए दुआ फरमाईl खुदा ने उन्हें एक औलाद (यहया अलैहिस्सलाम) की बशारत दी और इसके लिए उन्हें तीन रात तक किसी से बात करने से मना फरमायाl भारत के हिन्दुओं में मौन व्रत होता है जिस के बीच वह किसी से बात नहीं करतेl
हज़रात मरियम अलैहिस्सलाम का मौन व्रत:
जब हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम को फ़रिश्ते ने आकर एक बेटे की बशारत दी और वह हामला हो गईं और गोशा नशीनी विकल्प कर ली तो उन्हें यह डर था कि लोग उनसे भिन्न भिन्न प्रकार के प्रश्न कर के परेशान करेंगे और वह जवाब नहीं दे पाएंगी तो उनकी इस परेशानी का हल खुदा ने इस तरह पेश किया कि उन्हें हिदायत दी कि वह लोगों से कह दें कि उन्होंने रहमान का रोज़ा रखा है इसलिए वह इस बीच वह किसी से बात नहीं करेंगीl इससे यह स्पष्ट होता है कि हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम के ज़माने में भी इस तरह के रोज़े का रिवाज थाl यहाँ यह स्पष्ट हो कि हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम की सरपरस्ती में पली बढ़ी थीं और हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम के खानदान से सम्बन्ध रखती थींl इसलिए, वह हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम की उम्मत से थींl इससे यह प्रदर्शित होता है कि हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम के दौर में भी रोज़ा प्रचलित थाl उनकी उम्मत में मौन व्रत भी प्रचलित था जैसा कि हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम के सिलसिले में कुरआन कहता हैl
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का रोज़ा
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के रोज़ों का उल्लेख कुरआन में नहीं मगर इंजील में आप के चालीस रोज़ों का उल्लेख हैl
हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम का रोज़ा:
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से कोहे तूर पर गए जहां वही मिलीl इस वही से पहले उन्हें अल्लाह ने हुक्म दिया कि वह चालीस रोज़े रखेंl उन्होंने चालीस रोज़े रखे और उन्हें वही मिली और वह उन अहकाम के साथ जो अलवाह पर नक्श थे वापस अपनी कौम में वापिस आएl इससे यह प्रदर्शित होता है कि अल्लाह ने हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम की उम्मत के लिए भी रोज़ा मुकर्रर किया थाl
उम्मत ए मुहम्मदी का रोज़ा
हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत पर तीस रोज़े फर्ज़ हुए जो रमज़ान के महीने में हर साल रखे जाते हैंl इसकी ताकीद में कुरआन की आयतें नाजिल हुईं और अल्लाह के रसूल की हदीसें भी हैंl रोज़े की रिवायत की रिवायत बहुत पुरानी है और खुदा ने अपने बन्दों की नैतिक और आध्यात्मिक तरबियत के लिए उन पर रोज़े फर्ज़ कियेl
हज़रत जकारिया अलैहिस्सलाम और हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम से मौन व्रत साबित है और यह रिवायत हिन्दुओं में भी पाई जाती हैl उनके यहाँ मौन व्रत रखा जाता है जो साधारणतः १५ दिनों का होता हैl इस बीच वह किसी से भी बात नहीं करते सिवाए भगवान के श्लोकों के पाठ केl यह बात दिलचस्प है कि हिन्दुओं के मौन व्रत की रिवायत पैगम्बर जकरिया अलैहिस्सलाम के दौर से जा कर मिल जाता हैl जैन धर्म के पैरुकार भी मौन व्रत रखते हैंl इस व्रत का उद्देश्य जुबान पर काबू पाना है जो कि एक बहुत ताकतवर हथियार हैl इस हथियार से जनता को लाभ भी पहुंचाया जा सकता है और हानि भीl इसलिए दुनिया के लगभग सभी धर्मों में मुराकबे और खामोशी विकल्प करने को बहोत महत्व दिया गया हैl
इस संक्षिप्त अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि जिस्मानी रोज़ा और मौन व्रत दुनिया के सभी धर्मों में मौजूद है और मौन व्रत की अवधारणा हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम और हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम के ज़माने से ही दुनिया में प्रचलित हैl
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