सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
18 अप्रैल, 2022
आसमानी सहीफा कुरआन इस्लाम के पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर 23 सालों में थोड़ा थोड़ा कर के नाजिल हुआ। इसमें इस्लाम के पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमानों के लिए जंग और अमन के हालात में तर्ज़े अमल निर्धारित कर दिया गया। कुरआन में जंग के हालात के अलावा जितनी भी आयतें हैं उनमें मुसलमानों को सुलह व आश्ती के साथ मुस्लिमों और गैर मुस्लिमों के साथ जीवन गुज़ारने की शिक्षा दी गई है। कुरआन इस्लाम के पैगम्बर पर तमाम दुनिया की हिदायत के लिए नाजिल हुआ और इसके लिए खुदा ने मुसलमानो के लिए तर्ज़े अमल निर्धारित कर दिया। कुरआन में मुसलमानों को बेहतरीन उम्मत इस लिए खा गया है कि वह केवल खुदाए वाहिद पर ईमान रखते हैं बल्कि उसके साथ साथ दूसरों को भी खुदा की वहदानियत पर ईमान लाने की तरगीब देते हैं। इसके साथ ही साथ वह एक इंसाफ, रवादारी, मसावात, मोहब्बत, अमन और रौशन ख्याली पर आधारित समाज की तशकील के लिए कोशां रहते हैं। कुरआन में मुसलमानों को बार बार यह हिदायत दी गई है कि वह समाजी इस्लाह और तौहीद के पैगाम को पुरअमन तरीके से अवाम तक पहुंचा दें। इसलिए कुरआन बार बार शब्द अल बलाग का इस्तेमाल करता है। इससे मुराद पैगाम को सिर्फ दूसरों तक पहुंचाना है। इस पर अमल दरामद कराने के लिए ताकत का इस्तेमाल करना नहीं है। कुरआन एक दो नहीं पचासों जगहों पर मुसलमानों को सिर्फ पैगाम पहुंचाने की हिदायत देता है और उस पर अमल करने और न करने का मामला अवाम पर छोड़ देने का हुक्म देता है।
खुदा कुरआन में कहता है कि हिदायत देना केवल उसके हाथ में है इसलिए इंसान केवल खुदा की राह में संघर्ष करे। नतीजे की चिंता न करें।
और अगर अल्लाह चाहता तो सब लोगों को एक ही फिरका कर देता। ल्व्किन वह दाखिल करता है जिसको चाहे अपनी रहमत में और गुनाहगार जो हैं नहीं उनका कोई रफीक और मददगार (अशशूरा: 8)
खुदा कहता है दुनिया में कई धर्मों और कई अकीदों में उसकी मसलेहत पोशीदा है। वह चाहता है कि बन्दा केवल उसकी राह में उसके दीन के पैगाम दूसरों तक पहुंचाने में मेहनत करता रहे क्योंकि सिर्फ वह जानता है कि कौन ईमान लाएगा और कौन नहीं। वह ईमान की दौलत केवल उन लोगों को अता करता है जिनको ईमान की तलब होती है क्योंकि ईमान खुदा की कीमती नेमत है इसलिए वह ना कद्रों को यह दौलत व नेमत अता नहीं करता। बल्कि जो लोग ईमान की ना कदरी करते हैं खुदा उनके कल्ब पर ताला लगा देता है फिर वह ज़िन्दगी भर इस दौलत से महरूम रह जाता है।
इस तरह मुहर लगा देते हैं दिलों पर हद से निकल जाने वालों के” (युनुस: 74)
दुनिया में इंसानों के आमाल की बुनियाद पर ही आखिरत में उसका फैसला होगा। उसकी बद आमालियों के लिए किसी दुसरे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। हर शख्स को उसके अच्छे और बुरे कामों का बदला मिलेगा।
दीन की इशाअत के मामले में कुरआन ने अपना रवय्या पुर्री तरह स्पष्ट कर दिया है कि इंसानों को सहीह और गलत की शिक्षा दे दी जाए और फिर उस पर अमल करने की पूरी जिम्मेदारी उसकी है। कुरआन कहीं पर भी दीन की इशाअत के मामले में ताकत के इस्तेमाल के हक़ में नहीं। जो लोग दीन को फैलाने के लिए ताकत के इस्तेमाल की वकालत करते हैं या हिंसा और क़त्ल व गारत गरी का रास्ता इख्तियार करते हैं वह लोग कुरआन की असल रूह से वाकिफ नहीं हैं। दाई का काम केवल समझाना है उन पर जबदस्ती करना दीन के खिलाफ बात है।
तू समझाए जा तेरा काम तो यही समझा देना है। तू नहीं उन पर दारोगा (अल गाशिया: 21-22)
मौजूदा जमाने में और कुछ क्लासिकी उलमा ने भी कुरआन की तालीमात की हिंसात्मक तावील की और गैर मुस्लिमों के साथ दीन के मामले में हिंसा को उचित करार दिया। इन तावीलात की बुनियाद पर इन्तेहा पसंद तंजीमें वजूद में आईं जो ज़ुल्म और हिंसा के बल पर दीन की इशाअत और इस्लामी हुकुमत के कयाम की वकालत करती थीं। यह तर्ज़े अमल कुरआनी तालीमात के विपरीत है। कुरआन दुसरे धर्मों के अनुयायिओं के साथ अमन के जमाने में अमन के साथ मुकालमा और बहस व तम्हीस या मुजादला की वकालत करता है ताकि बकाए बाहम का राता दूंढा जाए। आतंकवाद, मज़हबी अतिवाद, तंग ज़हनी और मज़हबी तास्सुब से कौमों के बीच मुकाल्मा कायम नहीं होता और एक सालेह समाज की तशकील में रुकावट आता है। इसलिए कुरआन मुसलमानों को अल बलाग पालिसी अपनाने की तलकीन करता है।
Urdu Article: Al Balagh is the Prescribed policy for Muslims مسلمانوں کے لئے قرآنی طرز عمل
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