Sultan Shahin, Editor, New Age Islam
NEW AGE ISLAM के संस्थापक एवं संपादक सुल्तान शाहीन ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सितंबर सत्र में अल-हिकमा फाउंडेशन और हिमालयन रिसर्च द्वारा आयोजित एक सेमिनार में 28 सितंबर, 2010 को भाषण दिया। 28 सितंबर 2010 को अहिंसा का विश्व दिवस।
आदरणीय अध्यक्ष महोदय एवं उपस्थित श्रोतागण
मैं अपनी भाषण का आरम्भ हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उस कलाम से
करना पसंद करूँगा जिसको आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी दुआ में हमेशा कहा करते
थे।
ऐ अल्लाह, तू ही अमन और शांति का असल स्रोत है, तेरे ही वजह से अमन कायम है और हर तरह का अमन तुझ से ही है। ऐ अल्लाह अमन नसीब फरमा और जन्नत में दाखिल फरमा दे, वही अमन का घर है, ऐ मेरे परवरदिगार सारी महानता और सम्मान तेरे ही लिए है। इतिहास गवाह है कि धर्म ही के कारण अमन और हिंसा दोनों स्थापित रहा है, विभिन्न धर्मों के अनुयायियों ने सहीह और गलत दोनों रास्तों को अपनाया है, यह एक हकीकत है कि धार्मिक शिक्षाओं की गलत व्याख्या करके हिंसा भड़काया गया है। सारे धर्म ने आपसी भाईचारगी और प्यार मुहब्बत पर बहुत अधिक ज़ोर दिया है, और हर धर्म का बुनियादी उद्देश्य ही है कि इंसानी समाज अमन का गहवारा बन जाए, जहां अमन व आश्ती की बात हो ना कि अत्याचार व हिंसा की। जब दलाई लामा से इस्लाम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने फरमाया: हर धर्म के अनुयायी अवश्य हिंसात्मक होते हैं, यहाँ तक कि बौद्धिज्म के अनुयायी भी। अत्याचार व हिंसा को बढाने में इसके Emptiness सिद्धांत की भी गलत व्याख्या की गई है।
पड़ोसी देश पाकिस्तान में जमाते इस्लामी के पुराने रहनुमा, सैयद अली गिलानी कश्मीर की घाटी में आतंकवाद को जायज़ ठहराते हुए कुरआन और भगवत गीता दोनों का हवाला देते हैं, तथापि सभी विद्वानों का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि हर धर्म में अमन का कार्य करने वालों के लिए महंगेसंसाधन उपलब्ध हैं, औरअनेकों अमन के दाइयों ने इनसंसाधनों के माध्यम से अमन व शांति स्थापित भी किया।
उद्देश्य यह है कि हर धर्म में प्यार मुहब्बत को आम करना, एक दुसरे की गलतियों को मुआफ करना, हर जानदार का सम्मान करना अच्छे अख़लाक़ हैं, इसलिए यह शिक्षा हर धर्म में बर्बर रूप से पाई जाती है, इसलिए थियोलॉजियन Mark Juergensmeyer ने तीन पहलुओं को एक सा बताया है।
(१) हर जानदार की बराबर इज्जत व सम्मान करना, और उसे कभी भी हानि और कष्ट ना पहुंचाना
(२) समाज में मूल जुल कर रहने वालों को प्रोत्साहित करना
(३) हर जरूरत मंद व्यक्ति की जरूरत को पूरा करना
उपरोक्त तीनों पहलु उन अखलाकी फ़राइज़ में से हैं जिन पर हर धर्म ज़ोर देता है, बड़े विद्वान और अमन के कारकुन Davin Cortright ने इन पहलुओं को स्पष्ट अंदाज़ में बताने की कोशिश की है। वह कहते हैं कि हर धर्म अपने अनुयायियों को अत्याचार से बचने की दावत देता है। बुद्धिज़्म में कत्ल की मनाही उसके पांच हदों में से एक है, हिन्दुइज़म के अनुसार इंसानों का कत्ल जन्नत में दाखिल होने नहीं देगा, जैन मत किसी भी जानदार को कत्ल करने से सख्ती से मना करता है। अगर कोई किसी जानदार का कत्ल करता है तो उसके गुनाह का पलड़ा भारी हो जाता है।
कुरआन का कहना है, उस जान को मत मारो जिसे अल्लाह ने पवित्र और सम्मानित बनाया है: बाइबिल में कहा है, तुम कभी भी किसी को कत्ल मत करो। वह और स्पष्ट करते हुए कहता है कि सामाजिक सह-अस्तित्व और आपस में अमन से रहने वाले लोग ही मिसाली हैं। कुरआन और बाइबिल में इस पर बहुत ज़ोर दिया गया है। आगे कहता है कि गुनाह का कफ्फारा अदा करने वाले और दूसरों को तकलीफ देने वालों की खातिर कुर्बानी देने और कष्ट उठाने से भी ना हिचकें। यह इब्राहीमी रिवायत में से है। सारे मज़हबी रिवायतों में विशेषतः जरुरतमंदों का खयाल रखने का आदेश है। David Cortright कहते हैं, कि बुद्धिज़्म और हिन्दुइज्म के आधारभूत सिद्धांत तकलीफ में रहने वाले व्यक्ति से हमदर्दी और उससे मोहब्बत करना है। इस्लाम का ज़हूर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात से हुई, जिसमें उन्होंने समाज में अमन और शांति को आम करने और कमज़ोर व्यक्ति के साथ सहानुभूति करने की दावत दी। बाइबिल में मूसा के औसाफ को बताते हुए कहा गया वह जरूरत मंदों का खयाल रखने वाले और उनकी हिमायत करने वाले थे। हर धर्म में गैरों का सम्मान करना अखलाकी फर्ज़ है। कौम में झड़प को रोकने के विशेष ज़रिया यही है कि उनके अखलाकी हदों को विस्तृत किया जाए।
इसके अलावा David Cortrigt दुसरे संसाधनों को भी स्पष्ट करते हैं। वह लिखते हैं कि रचनात्मक अमन कारकुनों के लिए विभिन्न धार्मिक उसूलों में विभिन्न चीजें अपनाने के काबिल हैं, बुद्धिज़्म, हिन्दुइज्म और जैनिज्म में अहिंसा के मूल्य आम हैं। इमानदारी और आत्मविश्वास अमन कारकुनों के लिए बहुत आवश्यक है। यह इंसान के अंदर से बदले की भावना को समाप्त कर देता है।
धार्मिक शिक्षाओं से रौशन समाज के लोगों का न्यायप्रिय और शांतिप्रिय होना आवश्यक है, Taoism, बुद्धिज़्म, जैनिज़्म, हिन्दुइज्म, Judaism, इसाइयत और इस्लाम में शांतिप्रिय और अहिंसा की राह चलने वालों के लिए असंख्य संसाधन हैं। इस कम समय में उन सबका इहाता संभव नहीं, हाँ इस विषय पर विभिन्न लेख और किताबें छप चुकी हैं जिससे आप मदद ले सकते हैं।
अध्यक्ष महोदय:
इस कीमती मौके पर मैं यह बता देना उचित समझता हूँ कि इस्लाम अमन का मुतलाशी है। और अमन कारकुनों के लिए इस्लामी संसाधनों का प्रयोग भी अत्यंत लाभदायक और न्याय पर आधारित है। बदकिस्मती से हमारे इस अहद में लोगों की बड़ी संख्या इस्लाम की तरफ खौफ व हरास की नज़र से देखती है कि इस्लाम हिंसात्मक मज़हब है, जब कि यह बिलकुल गलत है। इसमें केवल उन लोगों का यह दोष नहीं है बल्कि दुनिया के भिन्न क्षेत्रों में मुसलमान जंग और आतंकवादी कार्यों में लिप्त हैं। और लगातार विद्वान इन नापाक सरगर्मियों को रोकने में ना संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं ना ही उनकी निंदा करते नज़र आ रहे हैं। हालांकि ऐसे लोगों का इस्लाम से कोई संबंध ही नहीं है। हम पर वाजिब है कि हम अमन के दाई बनें, कुरआन ने अमन के इस तरीके को सहीह तरीका कहा है।
शब्द इस्लाम सलम से लिया गया है, “अमन”। अर्थात इस्लाम की रूह अमन की रूह है। कुरआन की पहली आयत से भी यह पता चलता है कि वह अमन का दाई है। इसलिए अल्लाह ने फरमाया कि “शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है” और यही आयत लगभग ११३ बार कुरआन में है। इससे पता चलता है कि इस्लाम रहम व करम पर बहुत ज़ोर देता है। कुरआन के मुताबिक़ अल्लाह का एक नाम सलाम है, तथापि कुरआन कहता है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इंसानों के लिए रहमत बना कर भेजे गए थे। कुरआन के अनुसार मिसाली समाजवह समाज है जो दारुस्सलाम अर्थात अमन का गहवारा हो, जिसमें इंसान अमन से रह सके।
कुरआन दुनिया के सामने अमन और हम आहंगी का ऐसा नमूना पेश करता है जो पूरी दुनिया के लिए इत्तेबा के काबिल है। जब अल्लाह ने ज़मीन व आसमान को पैदा किया तो उसने इसके हर हिस्से को इस बात का हुक दिया कि वह बिना किसी से टकराए शांतिपूर्ण तरीके से अपना काम अंजाम देता रहा, इसलिए यह अपने काम में मशगूल है।
इस्लाम में जारेहाना जंग की सख्त मनाही है, हालात से परे मुसलमानों को केवल बचाव की जंग की अनुमति है ना कि जंग में पहल की, यही मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीका था। कुरआन में है “हम ने तुम (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इंसानों के लिए रहमत बना कर भेजा है”।
इस्लाम एक निर्दोष इंसान के कत्ल को पूरी इंसानियत का कत्ल करार देता है, और एक जान की हिफाज़त को पूरी इंसानियत की हिफाज़त बताया है। इस्लाम इंसाफ पर बहुत ज़ोर देता है, लेकिन कुछ लोग समझते हैं कि इस्लाम में इंसाफ हासिल करने के लिए हिंसा की राह विकल्प करने की भी अनुमति है हालांकि यह गलत है।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी की दो मिसालें इसके समर्थन में काफी होंगी, पहला हुदैबिया का समझौता, जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह समझौता एक निश्चित समय के लिए किया था। ज़ाहिरी तौर पर यह समझौता मुसलामानों के खिलाफ था। इससे सहाबा को बड़ी अपमानता का अनुभव हुआ, क्योंकि वह उस समय तक एक ताकतवर कौम की शकल इख्तियार कर चुके थे और उनकी ताकत और कुवत का डंका पुरे अरब में बज रहा था, लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अमन की सुलह को तरजीह दिया। दुसरा वाकिया मक्का की फतह का है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस मौके पर आम मुआफी का एलान फरमाया, हालांकि न्याय के अनुसार अपराधी सज़ा के हकदार थे, लेकिन इस क्षमा ने अत्याचार व हिंसा की राह को बिलकुल बंद कर दिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहाँ अमन की राह में न्याय को लाज़मी करार नहीं दिया बल्कि अमन को पसंद फरमाया।
इसी तरह पिछली सदी के अज़ीम रहनुमा बादशाह खान ने अपनाया। बादशाह खान पाकिस्तान के महात्मा गांधी के नाम से जाने जाते हैं। उनकी रणनीति यह थी कि अमन को इंसाफ से संगत कर दिया जाए। बादशाह खान महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे, और उनके हामियों में थे। उन्होंने उनसे मुलाक़ात से पहले अहिंसक काम करने के तरीके से अपनी बेमिसाल तहरीक का आरम्भ भी कर दिया था। वह कटे थे कि मैं ने यह तरीका कुरआन और हदीस से सिखा है।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लगातार सब्र और तहम्मुल पर ज़ोर दिया है।ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी अहिंसक बचाव एक बे मिसाल तहरीक थी, उन्होंने एक लाख ताकतवर और अहिंसक फ़ौज को खुदाई खिदमतगार का नाम दिया और उनके मुखाताब हो कर फरमाया “मैं तुम्हें एक ऐसा हथियार दे रहा हूँ जिसके सामने पुलिस और फ़ौज भी अपने घुटने टेक देंगे, यह पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हथियार है, लेकिन तुम इससे वाकिफ नहीं हो, यह हथियार पाकीज़गी, नेकी और सब्र का हथियार है। भारत की कोई ताकत उसका मुकाबला नहीं कर सकती है, अपने भाइयों को बटा दो कि खुदा की फ़ौज और उसका हथियार सब्र है”।
विभिन्न विद्वान और अमन कारकुन जिन्होंने खुदाई खिदमत गार तहरीक का विस्तार से अध्ययन किया है, वह जानते हैं कि यह अन्याय के खिलाफ एक शांतिपूर्ण इस्लामी जंग के तरीके पर थी। मुझे उम्मीद है मुसलमान पुरी दुनिया में इसको अपने लिए नमूना बनाएगे। क्योंकि इसके पीछे सच्ची और नेकी की ताकत कार फरमा है। महात्मा गांधी का सत्याग्रह भी एक मोजज़ाती और करिश्माती कार्य था। महात्मा गांधी विभिन्न तरीकों से संघर्ष के शांतिपूर्ण काम के तरीके को अपनाने में सफल हुए थे।लेकिन अफ़सोस साद अफ़सोस आज बादशाह खान का वही पाकिस्तान जंग में डूबा हुआ है। और यह जंग वह मुसलमान लड़ रहे हैं जो अपनी कम इल्मी की वजह से हिंसात्मक तरीके को इस्लामी तरीका समझते हैं। यह पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए एक पेचीदा मसला बन चूका है।
उन्हें चाहिए कि बादशाह खान की तरह इस्लाम की सहीह व्याख्या करें और नए सिरे से
खुदाई खिदमतगार तहरीक का आगाज़ बेहतर अंदाज़ में करें।
Full Text in original English
available at: http://www.newageislam.com/interfaith-dialogue/role-of-religions-in-promoting-non-violence--islam’s-valuable-resources-for-peace-making;-sultan-shahin-s-address-to-a-parallel-conference-at-unhrc,-geneva/d/3606
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