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Hindi Section ( 2 Jun 2014, NewAgeIslam.Com)

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Rising Hopes for an End to Extremism चरमपंथ के ख़ात्मे की बढ़ती उम्मीदें

 

 

 

 

मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम

31 मई 2014

क़बायली इलाक़ों में सुरक्षा अधिकारियों पर हमलों में तीव्रता आ रही है और आशंका यही है कि आने वाले दिनों में इस प्रकार के हमले बढ़ जायेंगे क्योंकि तालिबानी गुटों में जारी खींचतान और गिरोहों में बंटे हुए चरमपंथियों के पहचान की समस्या पैदा होने लगी है। सीधे तौर पर देखें तो दुश्मन में इस तरह की फूट फायदेमंद मानी जाती है लेकिन तालिबान चरमपंथियों के मामले में इस तरह की फूट पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के लिए ज्यादा जटिलताओं वाली रही है। दूसरी तरफ अभी तक जो तथ्य हमारे सामने आए हैं उसके अनुसार तहरीके तालिबान पाकिस्तान से अलग होने वाले कई गिरोह, जिनके बारे में ये माना जाता था कि वो पाकिस्तान के बारे में नरम रवैय्या रखते हैं, धीरे धीरे अपना महत्व और ताकत खो बैठे और या तो इन्हें फिर तहीरके तालिबान के केंद्र की तरफ पलटना पड़ा या फिर इनकी संगठनात्मक क्षमता खत्म हो गई और इसका कार्यबल फिर वापस उस केंद्र के साथ जाकर मिल गया जिससे वो अलग हुए थे।

इस स्थिति का मुख्य कारण तहरीके तालिबान पाकिस्तान पर विदेशी चरमपंथियों का प्रभुत्व का होना है जो आम चरमपंथियों से बिल्कुल अलग सोच रखते हैं और पाकिस्तान के बारे में उनके मन में कोई प्यार नहीं है। इनमें से अधिकांश अफगान युद्ध के दौर से सक्रिय और अलक़ायदा के साथ इनके सम्पर्क बहुत गहरे हैं। स्थानीय स्तर पर भी इनकी रिश्तेदारियाँ मौजूद हैं लेकिन इनकी असल ताक़त अपने अपने देशों में अमीर और दान पुण्य करने वाले लोग और संगठन हैं, जो इन्हें जिहाद के लिए फण्ड उपलब्ध कराते हैं और इनका स्थानीय तौर पर सम्मान बरकरार रहता है। चूंकि ऐसे विदेशी चरमपंथी अपने गिरोह के लिए वित्तीय सहायता की व्यवस्था करते हैं इसलिए इन्हें समूह के अंदर एक विशेष स्थान हासिल हो जाता है।

मिसाल के तौर पर नवीनतम सूचना के अनुसार हाफ़िज़ गुल बहादुर ग्रुप ने सरकार के साथ शांति समझौता खत्म कर के स्थानीय लोगों को उत्तरी वजीरिस्तान से पलायन कर जाने का सुझाव दिया है और गुल बहादुर गुट की तरफ से क्षेत्र में वितरित किए गए पर्चे में दावा किया गया है कि सरकार दस जून से उत्तरी वजीरिस्तान में एक बड़े आपरेशन को शुरू कर रही है, इसलिए स्थानीय लोग ऐसे इलाक़ों की ओर पलायन करें जहाँ से अफगानिस्तान में पलायन करना आसान हो। गुल बहादुर गुट में विदेशी खासकर उज़्बेक लड़ाकों की बड़ी संख्या शामिल है और समूह को आशंका है कि संभावित ऑपरेशन में इसको अधिक नुकसान पहुंचेगा। गुल बहादुर गुट के बारे में सामान्यतयः ये राय पाई जाती है कि वो महसूद समूहों की तुलना में अधिक लचीला है और इसके साथ मामलात करना दूसरे समूहों की तुलना में आसान है। अब गुल बहादुर गुट की तरफ से इस प्रकार की घोषणा के बाद ये अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तरी वज़ीरिस्तान में हालात किस दिशा में जा रहे हैं। अगर सरकार ये फैसला कर चुकी है कि वो वज़ीरिस्तान में निर्णायक कार्रवाई करेगी तो उसके बाद जो हालात जन्म लेंगे वो पहले की तुलना में अधिक कठिन और मुश्किल होंगे क्योंकि वजीरिस्तान और दूसरे कबायली इलाकों में सुरक्षा एजेंसियों के बारे में नकारात्मक प्रचार पूरी ताकत के साथ जारी है।

दूसरी ओर ऐसी सूचनाएं भी आम हैं कि कुछ सांप्रदायिक समूह भी सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं और पंजाब सरकार के साथ बहुत पहले से चला आ रहा अलिखित समझौता भी खत्म हो चुका है क्योंकि साम्प्रदायिक समूहों का मानना ​​है कि संघीय सरकार और पंजाब सरकार उनके हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं और उन्हें हाशिये की तरफ ले जाया जा रहा है। सांप्रदायिक गुटों का क़बायली चेहरा पंजाबी तालिबान पहले ही सरकार के साथ वार्ता के समर्थन के बाद तालिबानी समूहों में अपनी अहमियत खो चुका है और इसको क़बायली इलाकों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अगर मौजूदा तनाव जारी रहता है तो पंजाबी तालिबान भी सरकार विरोधी गुटों की तरफ दोबारा पलट सकते हैं, जिसके कारण वज़ीरिस्तान में संभावित ऑपरेशन में सरकार विरोधी गुटों की ताकत बढ़ जाएगी। इस स्थिति में पंजाब को विशेष रूप से नुकसान की आशंका है क्योंकि पंजाबी तालिबान की सांप्रदायिक आक्रमकता की क्षमता पंजाब में विरोधी समुदायों के खिलाफ इस्तेमाल होगी।

इस सारे मामले में सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की स्थिति पहले से कहीं अधिक स्थिर नज़र आती है क्योंकि सरकार की तरफ से बातचीत की कोशिशों और चरमपंथियों की हठधर्मी को स्पष्ट रूप से देखा गया है। कुछ ऐसे भी मौक़े आए जब सरकार को हद से ज़्यादा लचीलापन और सुविधाएं देने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा लेकिन सरकार द्वारा इस सम्बंध में दृढ़ता दिखाना एक सराहा जाने वाला क़दम है, जिससे चरमपंथ के आम समर्थन में खासी कमी आई है। इसके साथ ही आतंकवादियों के बीच फूट पड़ने वाली लड़ाई ने भी उनकी ताकत को नुकसान पहुँचाया है, जो राज्य के लिए फायदेमंद है।

आम लोग ये समझ रहे थे कि ड्रोन हमलों की प्रतिक्रिया में चरमपंथियों की गतिविधियों का कुछ औचित्य है, ड्रोन हमलों के बंद होने के बाद ये दृष्टिकोण भी पीछे चला गया है और इस दौरान जब सरकार बातचीत के लिए कोशिशें कर रही थी चरमपंथियों के सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हमले ने भी आम पाकिस्तानी की अवधारणा को बदला है। इस दौरान सुरक्षा बलों द्वारा हवाई हमलों ने भी प्रभावी भूमिका निभाई है और न केवल चरमपंथियों को एक सख्त संदेश दिया है बल्कि राज्य की सर्वोच्चता की अवधारणा को बल प्रदान किया है।

उपरोक्त स्थिति के संदर्भ में ये कहा जा सकता है कि चरमपंथी देश के शहरों और संवेदनशील स्थानों को निशाना बनाने की कोशिश करेंगे। कराची, क्वेटा, पेशावर, इस्लामाबाद और लाहौर खासकर इस संदर्भ में संवेदनशील स्थानों की हैसियत रखते हैं और यहाँ पर चरमपंथी हमले करने की कोशिश करेंगे, जिनके प्रतिकार के लिए कहीं अधिक सख्त सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत है। पंजाब में सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित करने के लिए अधिक प्रयास की गुंजाइश मौजूद है। नवीनतम सूचना के अनुसार मुस्लिम लीग नवाज़ के एक विधानसभा सदस्य राणा जमील हसन को अज्ञात लोगों ने अपहरण कर लिया है और उनकी रिहाई के लिए फिरौती की मांग भी पेश किया है। इस तरह की घटनाओं में इज़ाफा हो सकता है और सम्भावना यही है कि विधायकों और कानून प्रवर्तन करने वाले संस्थानों के लोगों को निशाना बनाने की कोशिशें की जाएंगी। इस तरह की घटनाओं का उद्देश्य सरकार को वजीरिस्तान में अभियान शुरू करने से रोकना है और आशंका है कि कि पंजाब में फिर बम धमाकों का सिलसिला शुरू हो जाए। ऐसी ही स्थिति कराची और देश के दूसरे शहरों में भी हो सकती है लेकिन ये एक ऐसा मौक़ा है जिसे किसी भी स्थिति में बर्बाद नहीं होना चाहिए। क्योंकि चरमपंथी न केवल आपस में बंटे हुए हैं बल्कि उनके समर्थन में भी स्पष्ट रूप से कमी आ चुकी है। अगर सरकार और सुरक्षा एजेंसी इस अवसर को बेहतर तरीके से उपयोग करते हैं तो देश को आतंकवाद के नासूर से छुटकारा हासिल हो सकता है पाकिस्तान शांति के सपने को साकार कर सकता है।

मुजाहिद हुसैन ब्रसेल्स (Brussels) में न्यु एज इस्लाम के ब्युरो चीफ हैं। वो हाल ही में लिखी "पंजाबी तालिबान" सहित नौ पुस्तकों के लेखक हैं। वो लगभग दो दशकों से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के तौर पर मशहूर अखबारों में लिख रहे हैं। उनके लेख पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक अस्तित्व, और इसके अपने गठन के फौरन बाद से ही मुश्किल दौर से गुजरने से सम्बंधित क्षेत्रों को व्यापक रुप से शामिल करते हैं। हाल के वर्षों में स्थानीय,क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे इनके अध्ययन के विशेष क्षेत्र रहे है। मुजाहिद हुसैन के पाकिस्तान और विदेशों के संजीदा हल्कों में काफी पाठक हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग की सोच में विश्वास रखने वाले लेखक मुजाहिद हुसैन, बड़े पैमाने पर तब्कों, देशों और इंसानियत को पेश चुनौतियों का ईमानदाराना तौर पर विश्लेषण पेश करते हैं।

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