सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
1 जून 2022
सब्र व तहम्मुल एक आला इंसानी सिफत है। यह हैवानों में नहीं जाती। मुसीबतों, परेशानियों और दुखों पर सब्र करना अल्लाह को बहुत पसंद है। सब्र अंबिया की सिफत है। नबियों ने दुखों और रंज व गम पर हमेशा सब्र किया। कुरआन में जगह जगह अल्लाह सब्र की तलकीन करता है। और सब्र पर अपने करम और मदद की खुश खबरी सुनाता है।
इंसान पर जो भी तकलीफें और परेशानियां आती हैं वह इंसान की अपनी ही गलतियों और बुरे कामों का नतीजा होती हैं। अल्लाह किसी पर ज़ुल्म व ज़्यादती नहीं करता। इसलिए इंसान दुखों पर अपने कामों पर एह्तेसाबी नज़र करता है और अल्लाह से तौबा इस्तिग्फार करता है ताकि उसके कामों की नहूसत से उस पर जो परेशानियां आ गई हैं उन्हें अल्लाह दूर कर दे।
इंसानों पर तकलीफों और परेशानियों की दूसरी वजह यह है कि अल्लाह के जो बंदे अपने तकवा और अल्लाह की मोहब्बत की वजह से अल्लाह के महबूब हो जाते हैं उन्हें अल्लाह तरह तरह से आज़माता है। जो लोग अपने सब्र व तहम्मुल का मुज़ाहेरा कर के इस आज़माइश के दौर में कामयाब हो जाते हैं उन्हें अल्लाह दुनिया व आखिरत में सुर्खरुई अता करता है। जो इंसान खुदा को जितना ज़्यादा महबूब होता है उसकी आज़माइश भी उतनी ही सख्त होती है। इसलिए जब सूफिया पर तकलीफें आती थीं तो वह यह सोच कर खुश होते थे अल्लाह उनकी तरफ ज़्यादा आकर्षित है अंबिया चूँकि अल्लाह के बहुत महबूब बंदे होते थे इस लिए उन पर तकलीफें और आजमाइशें भी बहुत सख्त होती थीं। और अंबिया भी इन तकलीफों पर सब्र कर के अपनी उम्मत के सामने मिसाल पेश करते थे। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम का सब्र तो दुनिया में एक मिसाल बन गया है।
दुसरे नबियों की भी हयात व सीरत का अध्ययन करें तो हमें उनकी ज़िन्दगी में भी सब्र व तहम्मुल की नज़ीर मिलेगी। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत नूह अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम, हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम, हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम और दुसरे नबियों की ज़िन्दगी में भी हमें सब्र व तहम्मुल की आला मिसालें मिल जाएंगी। खुद रसूले पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयाते मुबारका में सब्र व तहम्मुल की सैंकड़ों मिसालें मिल जाएंगी। आप सल्लाल्लाग्य अलैहि वसल्लम ने दुखों और मुसीबतों पर हमेशा सब्र किया और उम्मत को भी सब्र करने की तलकीन की।
कुरआन में दर्जनों मकाम पर अल्लाह अपने बंदों को सब्र की फजीलत बयान करता है और सब्र करने पर बड़े एज़ाज़ व इकराम की बशारत देता है। निम्न में कुछ आयतें पेश हैं।
सुरह बकरा की आयत नंबर 153 देखें-
“ऐ मुसलमानों मदद लो सब्र और नमाज़ से। बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।“
सुरह बकरा की ही आयत नंबर 155 देखें-
“और हम तुम्हें कुछ खौफ़ और भूख से और मालों और जानों और फलों की कमी से ज़रुर आज़माएगें और (ऐ रसूल) ऐसे सब्र करने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो (155) कि जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो वह (बेसाख्ता) बोल उठे हम तो ख़ुदा ही के हैं और हम उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं (156)”
अल्लाह कहता है कि सब्र करना कमजोरी या बुजदिली की अलामत नहीं है बल्कि यह तो हिम्मत वालों और आली जर्फ़ लोगों की सिफत है। अपने नफ्स पर काबू रखना और नुक्सान या तकलीफ पर सब्र करना दिल गुर्दे का काम है। सुरह आले इमरान की आयत नंबर 186 देखें।
“और अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी तो यह हिम्मत के काम हैं।“
सुरह अल नहल की आयत नंबर 96 में सब्र की फजीलत यूँ बयान की गई है।
“और हम बदला देंगे सब्र करने वालों को उनका हक़ अच्छे कामों पर जो वह करते थे।“...
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने भी अपनी कौम को मुसीबतों पर सब्र करने की तलकीन की। सुरह अल आराफ की आयत नंबर 128 देखें-
-“मूसा ने कहा अपनी कौम से मदद मांगों अल्लाह से और सब्र करो बेशक ज़मीन है अल्लाह की इसका वारिस कर दे जिसे वह चाहे अपने बंदों में और आखिर में भलाई है डरने वालों के लिए।“
उपर्युक्त कुछ आयतों से कुरआन में सब्र की फजीलत और अहमियत स्पष्ट होती है। सब्र खुदा का कुर्ब हासिल करने का ज़रिया है। सब्र इंसानों की रूहानी तरबियत की एक सूरत है। अंबिया के नक़्शे कदम पर चलते हुए औलिया सूफियों और तमाम नेक बंदों ने सब्र को अपना वतीरा बनाया और दुनिया और आखिरत दोनों जगहों पर कामयाब व सुर्खरू हुए।
Urdu Article: Rewards of Patience and Endurance in Islam اسلام میں صبر وتحمل کی فضیلت
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