गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
17 सितंबर 2022
इंसान व जिन्नात को बनाने का मकसद और अल्लाह की इबादत व इताअत
की कल्पना का दायरा
प्रमुख बिंदु:
1. मौत बरहक है और इस छोटी सी जिंदगी का असल मकसद अल्लाह
पाक की बंदगी व इबादत है।
2. यह समझना आवश्यक है कि इबादत क्या चीज होती है?
इबादत का मफहूम क्या
है? क्या इबादत केवल अल्लाह
के लिए सजदा करने, और नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात की अदायगी का नाम है? या इबादत का मफहूम इन फ़राइज़ के अलावा पर भी लागू होता
है?
3. इबादत का दायरा बहुत व्यापक है और इसका मफहूम अल्लाह
और उसके रसूल की इताअत करना भी है।
4. अल्लाह की मखलूक के हुकूक अदा करना इस नियत के साथ कि
उनके हुकूक अदा करने में अल्लाह की इताअत होगी तो यह अमल भी असल में अल्लाह पाक की
इबादत है क्योंकि अल्लाह की इताअत भी अल्लाह की इबादत है।
5. अल्लाह पाक की इबादत का तसव्वुर हमारे ज़हन में इखलास
का बीज बोता है कि जो काम भी हम दुनिया में करें वह इखलास के साथ करें, अल्लाह की रज़ा के लिए करें।
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इंसानी जिंदगी कुछ दिनों की मेहमान है। मौत बरहक है जिसका इनकार अपना क्या गैर को भी नहीं। एक मुसलमान की हैसियत से हमारी जिंदगी का मकसद क्या होना चाहिए? इस बात की वजाहत कुरआन मजीद ने रौशन दलील की हैसियत से कर दी है। इरशाद बारी ताला है: (वमा खलक्तुल जिन्ना वल इंसा इल्ला लियाबुदून)। इस आयत के मानी व मफहूम पर गौर कीजिये। अल्लाह पाक के फरमान का मतलब है कि “मैंने इंसान और जिन्नात को केवल इबादत ही के लिए पैदा किया।“ यह मुकद्दस फरमान हसर के साथ नाज़िल हुआ है। भाषा विशेषज्ञ जानते हैं कि अरबी में कोई वाक्य कभी हर्फे नफी के साथ शुरू हो और फिर बीच के किसी मकाम पर हर्फे इस्तिसना आ जाए तो ऐसी सूरत में उस वाक्य के अन्दर के कभी ताकीद और कभी हसर का अर्थ पैदा होता है। उपर्युक्त आयत को आप अरबी भाषा के ग्रामर के लिहाज़ से देखिये तो आयत का मानी इस तरह शुरू होता है कि “ मैंने नहीं पैदा किया जिन्नात और इंसान को मगर केवल इसलिए कि वह इबादत करें, या यूँ अनुवाद कीजिये कि मगर केवल इस वजह से कि वह इबादत करें”। यहाँ नफी और इस्तिसना के जरिये कलाम में इस बात पर ताकीद पैदा हो गई है कि इंसान व जिन्नात की पैदाइश का मकसद केवल अल्लाह की इबादत है। मालुम यह हुआ कि अल्लाह पाक ने न केवल इंसान व जिन्नात को पैदा किया बल्कि उनकी पैदाइश के साथ साथ उनके सामने उनकी पैदाइश का असली मकसद भी बयान कर दिया।
मालुम यह हुआ कि इस छोटी सी जिंदगी का असल मकसद अल्लाह पाक की बंदगी व इबादत करना है। यह बात इंसान पर लाज़िम है। जब फरमान रब का हो तो यकीनन उस पर अमल करना फर्ज़ है। इसलिए यह समझना आवश्यक है कि इबादत क्या चीज होती है।? इबादत का क्या मफहूम है? क्या इबादत केवल नमाज़ रोज़ा और हज और ज़कात की अदायगी का नाम है? या इबादत का मफहूम उन फ़राइज़ के अलावा पर भी है। इस मफहूम का दायरा इतना व्यापक है कि हुकुकुल्लाह और हुकुकुल इबाद से संबंधित तमाम उमूर व मसाइल और नवाही व इज्तिनाब पर अपना असर ज़ाहिर करता है।
इबादत का एक आम मफहूम यह है कि एक खुदा की इबादत की जाए। केवल उसी को सजदा किया जाए। उसके अलावा किसी को माबूद न माना जाए। उसके बताए गए तमाम फ़राइज़ व वाजिबात पर अमल किया जाए और जिन बातों से उसने मना फरमाया है उनसे दूर रहा जाए। इसी तरह इबादत का मफहूम यह भी है कि जिन बातों से अल्लाह राज़ी है उनसे राज़ी हो लिया जाए और जिन बातों को अल्लाह रहमान पसंद नहीं करता उन बातों को पसंद न किया जाए।
मज़ीद वजाहत की जाए तो इसका दायरा और व्यापक हो जाता है और बात खुल कर सामने आएगी कि अल्लाह की इताअत करना भी अल्लाह की इबादत है। अल्लाह की इताअत में उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत भी शामिल है, जैसा कि अल्लाह पाक का इरशाद है: (مَّن يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّ) अर्थात जिसने रसूल की इताअत की उसने गोया अल्लाह की इताअत की। इसलिए मालुम हुआ कि अल्लाह और उसके प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत भी असल में अल्लाह की इबादत व बंदगी है। उसके रसूल की इताअत इसलिए की जाए कि यह उसी का फरमान है।
जब बात यह स्पष्ट हो चुकी कि इबादत का दायरा व्यापक है और उसका एक मफहूम अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करना भी है। तो अब सवाल मन में उठता है कि वह क्या बातें हैं जिनको करने का अल्लाह और उसके रसूल ने आदेश दिया है। इसी तरह अल्लाह कीअताअत में बुरी बातों से बचना भी शामिल है। तो फिर ज़हन इस सवाल की तरफ आकर्षित होगा कि वह क्या बातें हैं जिनसे बचने का अल्लाह और उसके रसूल ने हुक्म दिया है। अवामिर व नवाही में अल्लाह की इबादत व इताअत कैसे की जाए? वह अवामिर व नवाही क्या हैं जिनमें अल्लाह की इबादत व इताअत की जाए? इन बातों का इल्म तो हमें कुरआन व सुन्नत से होता है और उनकी अच्छी समझ तो मुखलिस व मुत्तकी और सालेह मोमिन को ही नसीब होती है। और अलहमदुलिल्लाह, उनका इस बात पर ईमान है कि अल्लाह और उसके रसूल की इताअत में इंसानी जिंदगी की खैरख्वाही ही निहित है। यह भलाई और खैर ख्वाही दुनिया व आखिरत दोनों में अल्लाह की रहमत से ही मिलती है। जिसे इस बात का विश्वास हो जाता है वही पुरसुकून व मुतमइन दिल का एहसास पाता है। वही हकीकत में दुनिया व आखिरत में सफल है। उसी का कैरियर हकीकत में कामयाब है।
आज हमें अपने गिरेबान में झांकना होगा कि आखिर हम क्या अल्लाह पाक की इबादत व बंदगी करते हैं या नहीं? अगर उसकी बंदगी करते हैं तो कितनी करते हैं? क्या हम उस पर ईमान रखते हैं? जवाब यकीनन हाँ होगा। लेकिन इस ईमान का तकाज़ा एक मोमिन से क्या होता है? एक मोमिन से ईमान का तकाज़ा होता है कि वह अल्लाह की इबादत करे, तमाम फ़राइज़ व वाजिबात, नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात व सदकात को अदा करें, मां बाप के हुकूक, औलाद के हुकूक, बीवी और शौहर के हुकूक, पड़ोसियों के हुकूक, आम इंसानों के हुकूक, जानवरों के हुकूक, चरिंद व परिंद के हुकूक, बैअ व तिजारत जे हुकूक, एक वतन में बसने वाले तमाम शहरियों के हुकूक, अद्ल व इंसाफ कायम रहने वाली अदलिया निज़ाम के हुकूक, सच्चाई और इमानदारी से काम लेने वाले अधिकारियों के हुकूक, यहाँ तक कि अल्लाह की मखलूक के हुकूक अदा करना इस नियत के साथ कि उनके हुकूक अदा करने में अल्लाह पाक की इताअत होगी तो अमल भी असल में अल्लाह पाक की इबादत होगी क्योंकि इताअत भी अल्लाह की इबादत है।
अल्लाह पाक की इबादत का तसव्वुर हमारे ज़हन में इखलास का बीज बोता है कि जो काम भी हम दुनिया में करें वह इखलास के साथ करें अल्लाह की रज़ा के लिए करें। इखलास हर अमल में होना इस्लामी तालीमात का महत्वपूर्ण अंग है। जैसे अगर हम किसी इंसान की भलाई करना चाहें तो हमें इखलास के साथ ऐसा करना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम उनके साथ भलाई लोगों को दिखाने के लिए या रियाकारी के लिए करें। कभी किसी को किसी इंसान की भलाई इस नियत के साथ करने की इजाज़त नहीं है कि वह बाद में उस भलाई पर एहसान जताए बल्कि उसके अहर अमल का मकसद केवल अल्लाह की रज़ा जुई होना चाहिए। किसी अच्छे अमल में रियाकार हरगिज़ नहीं होना चाहिए वरना अमल का अज्र जो अल्लाह की रज़ा से मिलने का वादा है वह नहीं मिलेगा।
गर्ज़ कि इंसानी जिंदगी का मकसद अल्लाह पाक की इबादत व बंदगी है जिसमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हम तमाम इंसानों की भलाई और खैरख्वाही का ख्याल रखें उनके तमाम हुकूक को इखलास के साथ अदा करें और नियत में केवल अल्लाह पाक की रज़ा का हुसूल हो और हम और आप में इस अमल को करने की तौफीक की दुआ मकबूल हो।
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गुलाम गौस सिद्दीकी न्यू एज इस्लाम के नियमित स्तंभकार हैं।
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English Article: The Real Purpose of Human Life and the True Meaning
of Worshipping and Obeying Allah Almighty
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