कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम
17 अगस्त 2022
· विरोधी हमेशा ऐसी बात कहता है जिसे सुन कर बर्दाश्त नहीं होता।
· विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं कि उनकी बात से किसी
की इज्ज़त ए नफ्स मजरुह होती है, दिल आज़ारी होती है, बदनामी होती है, अमन व सलामती को नुक्सान पहुँच सकता है, राष्ट्रीय या पारिवारिक रिश्तों
में दरार हो सकता है।
· लेकिन अगर आप इसके जवाब में वैसी बातें करने लग जाएं तो विरोधी
इसे न केवल बर्दाश्त नहीं करते बल्कि इसके जरिये आपके दीन इस्लाम पर तान करना शुरू
कर देते हैं।
· इसी लिए ऐसी फिज़ा में सफलता का सबसे बेहतरीन रास्ता हमेशा सब्र,
माफ़ी और आला अख़लाक़ के
अंदर से गुज़रता है।
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इस्लाम के शुरूआती दौर, विशेषतः कुरआन मजीद का अध्ययन करने वाले यह बात बखूबी जानते हैं कि मुशरिकीन ए मक्का की इस्लाम और मुस्लिम विरोधी गतिविधियाँ तमाम हदें पार कर चुकी थीं। कुराबत और मुरव्वत की पासदारी एक अफ़साना बन चुकी थी। कुरैश जो हमेशा खूनी रिश्तों और हमसायगी के संबंधों को बड़ी कद्र की निगाह से देखते थे, लेकिन जब उनके कुछ रिश्तेदारों ने इस्लाम को कुबूल किया तो इनमें नफरतों का सैलाब आ गया। दूसरी तरफ अहले किताब भी कुछ मौकों पर कुरैश के शाना बशाना खड़े हो जाते और मुसलमानों के खिलाफ जंगी महाज़ में सहायक बन जाया करते थे। सुरह बनी इस्राइल की आयत नंबर 47 से मालुम होता है कि जालिमों की जुबानें पुरी तरह बेरोक टोक हो चुकी थीं और तंज़ व तारीज़ के नश्तर मुकम्मल बेरहमी के साथ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खिलाफ अपने तमाम जौहरों को दिखाने में मसरूफ थे।
ऐसे पुर आशोब माहौल में दो बातों का इमकान बढ़ जाता है। एक बात तो यह कि मुसलमान जब अपने आपको लगातार मुसीबतों का लक्ष्य बनता देखें तो उनके अंदर नफ्सियाती अवारिज़ पैदा होने लगें जिसके नतीजे में वह बजाए यक्सुई के साथ विरोधों का सामना करने के एक दुसरे से बदगुमान भी करती है। मुसलमानों के सरों पर अल्लाह पाक की रहमत थी और एक अज़ीम कयादत की रफाकत उन्हें मयस्सर थी, फिर भी किसी न किसी नफ्सियाती आरजे का शिकार होना नामुमकिन न था। इसलिए एक तो इस तरफ ध्यान दिलाना जरूरी था और दूसरी यह बात कि मुखालिफ्तों के रद्दे अमल में इस बात का भी इमकान था कि सब्र का दामन कभी कभी मुसलमानों के हाथ से छुटने लगे। जब अहले मक्का इस्लाम कुबूल करने वाले मक्का के बाशिंदों से तौहीन आमेज़ सुलूक करने लगे जिनका कुसूर केवल इसके सिवा कुछ न था कि वह अल्लाह के दीन पर ईमान लाए, और इससे बढ़ कर यह जब वह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में बेहूदा बातें करने लगे, तो ऐसी स्थिति में उनकी तंज़ व तारीज़ के जवाब में यह संभव था कि मुसलमान भी उनके अंदाज़ में उनका जवाब देना शुरू कर दें। इसलिए इससे पहले कि मुसलमान जालिमों के नाज़ेबा कलमात के जवाब में सब्र व तहम्मुल का दामन छोड़ दें, अल्लाह पाक ने कुरआन मजीद के जरिये अपने प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हुक्म दिया कि आप मेरे बन्दों को इस बात का पाबंद बनाएं कि विरोधी चाहे कुछ भी कहें और वह कैसी भी गलत और नाज़ेबा बातें करें, उनके जवाब में मुसलमान बेहतर, जायज़ और मुसतहसन बात के सिवा कुछ न कहें।
चुनाचः अल्लाह पाक का इरशाद है:
وَ قُلْ لِّعِبَادِیْ یَقُوْلُوا الَّتِیْ هِیَ اَحْسَنُ-اِنَّ الشَّیْطٰنَ یَنْزَغُ بَیْنَهُمْ-اِنَّ الشَّیْطٰنَ كَانَ لِلْاِنْسَانِ عَدُوًّا مُّبِیْنًا(۱۷:۵۳
अनुवाद: और मेरे बन्दों से फरमाओ वह बात कहें जो सबसे अच्छी हो बेशक शैतान उनके आपस में फसाद डाल देता है बेशक शैतान आदमी का खुला दुश्मन है।“ (सुरह बनी इस्राइल: 17:53)
विरोधी हमेशा ऐसी बातें कहता है जिसे सुन कर बर्दाश्त करना आसान नहीं होता। विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं कि उनकी बात से किसी की इज्ज़ते नफ्स मजरुह होती है, दिल अजारी होती है, बदनामी होती है, अमन व सलामती को नुक्सान पहुँच सकता है, या राष्ट्रीय या पारिवारिक रिश्तों में दरार हो सकता है। लेकिन अगर आप उसके जवाब में ऐसी ही बातें करने लग जाए तो विरोधी इसे न केवल बर्दाश्त नहीं करते बल्कि इसके जरिये आपके दीन इस्लाम पर मज़ीद तअन करना शुरू कर देते हैं। इसलिए ऐसी फिज़ा में कामयाबी का सबे बेहतरीन रास्ता हमेशा सब्र, अफ्व, और आला अख़लाक़ के अंदर से गुज़रता है।
आयत में शैतान को इंसान का खुला दुश्मन कहा गया है। शैतान की यह दुश्मनी आपके दीन की वजह से है। शैतान की ज़िन्दगी का मकसद ही लोगों को अल्लाह पाक के दीन से दूर रखना है। जब लोग दीन की किसी बड़ी शख्सियत की तौहीन करते हैं तो शैतान दिलों में वस्वसा डालना शुरू कर देता है और प्रतिक्रिया के लिए भड़काना शुरू कर देता है और हर तरह की ज़्यादती पर सब्र करने को कमजोरी करार देता है। इसलिए इसी सूरते हाल की तरफ ध्यान दिलाने के लिए फरमाया कि शैतान तुम्हारे दिलों में वस्वसा अंदाजी करेगा वह कभी तुम्हें तुम्हारे दुश्मनों से लड़ाएगा और कभी तुम्हारे अपने अंदर मतभेद को पैदा करेगा ताकि तुम्हारी हम आहंगी और यक्सुई को नुक्सान पहुंचे और फिर दुश्मनों को तुम्हारे प्रतिक्रिया का बहाना बना कर इस्लाम पर मज़ीद तनकीद का मौक़ा मिले इसलिए तुम्हें यह बात हरगिज़ दिमाग से नहीं निकालनी चाहिए कि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है। वह हर तरह से कोशिश करेगा कि तुम्हें तुम्हारे रास्ते से हटाए और तुम्हारे अंदर फसाद पैदा करे इसलिए तुम्हारे लिए आवश्यक है कि तुम पुरी तरह होशियार रहो और ऐसे फितने भरे माहौल में सब्र व तहम्मुल का दामन मजबूती से थामे रहो।
उपर्युक्त आयत का शाने नुज़ूल भी मुलाहेज़ा फरमाएं ताकि लेख का असल संदेश स्पष्ट हो जाए। इस आयत का शाने नुज़ूल यह है कि मुशरिकीन मुसलमानों के साथ बद्कलामियाँ करते और उन्हें तकलीफ देते थे। मुसलमानों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इसकी शिकायत की। इस पर यह आयत नाज़िल हुई और मुसलमानों को बताया गया कि वह कुफ्फार की जाहिलाना बातों का वैसा ही जवाब न दें बल्कि सब्र करें और उन्हें केवल दुआ दे दिया करें यह्दीकुमुल्लाह (अल्लाह तुम्हें हिदायत दे)
एक कौल यह है कि यह आयत हज़रत उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु के हक़ में नाज़िल हुई। एक काफिर ने उनकी शान में बेहूदा कलमा जुबान से निकाला था, अल्लाह पाक ने उन्हें सब्र करने और माफ़ फरमाने का हुक्म दिया। (खाज़िन, अल इसरा, तहतुल आयह: 177/3,53, खजाइनुल इरफ़ान, बनी इस्राइल, तहतुल आयह: 53, मुत्लकन)
बहर हाल आयत में फरमाया गया कि ऐ नबी मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप मोमिनों से फरमा दें कि वह काफिरों से वह बात किया करें जो नर्म हो पाकीज़ा हो, अदब और तहज़ीब की हो, इरशाद व हिदायत की हो यहाँ तक कि अगर बेहूदगी करें तो उनका जवाब उन्हीं के अंदाज़ में न दिया जाए।
इन्फरादी तौर पर तो कुफ्फार की बद अखलाकी का जवाब अख़लाक़ से देना अब भी सुन्नत है। हमें हु है कि दलील तो कवी दो मगर बेहूदा बात मुंह से न निकालो। इस जमाने में इस हुक्म पर अमल करने की सख्त हाजत है क्योंकि हमारे हाँ दलील से पहले गोलू और गाली का रुझान बढ़ता जा रहा है। आयत के आखरी हिस्से में बता दिया कि बद तहज़ीबी और बद तमीजी शैतान के हथियार हैं और उनके जरिये वह तुम्हें गुस्सा दिलवाता और भड़काता है कि जिससे लड़ाई फसाद की नौबत आ जाए। यह शैतान की इंसान से दुश्मनी है और शैतान इंसान का खुला दुश्मन है। (माखूज़ अज सिरातुल जनान फी तफ्सीरुल कुरआन)—
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कनीज़ फातमा न्यू एज इस्लाम की नियमित कालम निगार और आलिमा व फाज़िला हैं।
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English Article: In The Face Of Opposition from Multiple Sources,
Islam Exhorts Muslims to Be Patient
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