डॉ. यामीन अंसारी
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
फरवरी 12,
2023
कुछ समय के लिए दूसरे देश में रहना मानव स्वभाव है, लेकिन कोई अपने घर और मातृभूमि को नहीं भूल सकता। हालाँकि, किसी व्यक्ति के लिए अपनी मातृभूमि को छोड़ना जीवन के सबसे कठिन चरणों में से एक है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। हालाँकि अपना घर छोड़ने वालों में अधिकांश ऐसे लोग हैं जो दूसरे देशों में बेहतर अवसरों की तलाश में हैं। वे समृद्ध और विकसित देशों में बेहतर जीवन का सपना देखते हैं और अपना देश छोड़ने का फैसला करते हैं। लेकिन साथ ही राजनीतिक, सामाजिक और कई अन्य कारक भी काम कर रहे हैं। इनमें असुरक्षा, अन्याय और असहिष्णुता की उपेक्षा नहीं की जा सकती। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश में इन मुद्दों पर काफी विवाद और चर्चा हुई है। मौजूदा हालात में जब भारतीयों के नागरिकता छोड़ने के आंकड़े सामने आते हैं तो सबसे अहम सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है? भारतीयों के दूसरे देशों में जाने के क्या कारण हैं? जैसा कि हम इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश करते हैं, हमें इसके हर पहलू पर ईमानदारी से विचार करना चाहिए।
एक ओर दावा किया जाता है कि हम विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं, हम 'विशगुरु' बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। दूसरी ओर, साल-दर-साल अपनी मातृभूमि छोड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसके साथ ही जहां भारत जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, वहीं ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें भारत के अलावा दूसरे देशों में ज्यादा संभावनाएं दिखती हैं। जबकि यह दावा किया जाता है कि जो लोग पूर्व में देश छोड़कर चले गए उन्हें भारत लौट जाना चाहिए था, लेकिन हो रहा है इसका उल्टा। दरअसल, पिछले साल 225,000 से ज्यादा नागरिक भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेश में बस गए थे। हैरानी की बात यह है कि एक साल में भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की यह सबसे बड़ी संख्या है। इन आंकड़ों को खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में पेश किया। उन्होंने कहा कि पिछले 12 साल में 16 लाख लोग भारत छोड़कर विदेश चले गए हैं। सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2011 के बाद से 1.6 मिलियन से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी है। इनमें से ज्यादातर 225 हजार 620 भारतीय ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले साल भारतीय नागरिकता छोड़ी है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि पिछले 12 वर्षों में अपनी नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या में 60% की वृद्धि हुई है। भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की कुल संख्या 2011 से 16 लाख 63 हजार 440 है। 2011 में, 122 हजार 819 भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्यागी, जबकि 2022 में यह संख्या 60% बढ़कर 225 हजार 620 हो जाएगी। 2011 से हर साल नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों के आंकड़ों पर गौर करें तो 2012 में 120 हजार 923 और 131 हजार 405, 2013 में/ एक लाख 29 हजार 328 / 2014 में / एक लाख 31 हजार 498 / 2015 में / एक लाख 41 हजार 603 / 2016 में / एक लाख 33 हजार 49 / 2017 में / एक लाख 34 हजार 561 / 2018 में 2019 में 1 लाख 44, 17 हजार 85 हजार 256 भारतीयों ने 2020 में अपनी नागरिकता छोड़ी। इन भारतीय नागरिकों ने दुनिया के 135 अलग-अलग देशों की नागरिकता हासिल कर ली है।
आंकड़े अपनी जगह हैं, लेकिन हमें यह देखना होगा कि भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या क्यों बढ़ी है। इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों द्वारा अपनी नागरिकता त्यागने से यह पूछना स्वाभाविक है कि ये लोग अपनी नागरिकता का त्याग क्यों कर रहे हैं और कौन लोग हैं जो अपनी नागरिकता त्याग रहे हैं? क्या सभी लोग नागरिकता त्याग कर बेहतर अवसरों या रोजगार के लिए दूसरे देशों में जा रहे हैं? या फिर कुछ अमीर लोग भारत को अलविदा कह रहे हैं? या फिर देश में बढ़ती नफरत, असुरक्षा और असहिष्णुता की भावना इसका मुख्य कारण हो सकती है? पहली नजर में ऐसा लगता है कि लोग बेहतर शिक्षा और रोजगार के लिए विदेश चले जाते हैं, लेकिन सबसे हैरान करने वाला पहलू यह है कि देश छोड़ने वालों की संख्या कम नहीं है। एक ब्रिटिश इंवेस्टमेंट माइग्रेशन कंसल्टेंसी कंपनी हेनले एंड पार्टनर्स की पिछले साल की रिपोर्ट कहती है कि एक साल में 8 अरब भारतीय देश छोड़कर जा चुके हैं। इन आंकड़ों के साथ भारत अब अमीरों के प्रवासन के मामले में शीर्ष तीन देशों में शामिल हो गया है। उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्ति वे हैं जिनके पास 8.25 करोड़ रुपये ($10 लाख) या उससे अधिक की संपत्ति है। भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों में अगर इतने 'करोड़पति' हैं तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 'करोड़पतियों' की संख्या कहीं ज्यादा होगी। हालांकि, ऐसे 'करोड़पति' लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है।दरअसल, जब हम इन अमीर लोगों के अपने देश छोड़ने की वजह पर विचार करते हैं, तो इसका मुख्य कारण खुद को आर्थिक रूप से मजबूत करना होता है। ऐसा लगता है कि ये लोग देश की आर्थिक स्थिति और असुरक्षा की भावना को मुख्य समस्या मानकर देश छोड़कर जा रहे हैं। दूसरे देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा और बेहतर जीवनशैली जैसी मजबूत बुनियादी सुविधाएं भी इसका एक बड़ा कारण हो सकती हैं। इसके अलावा अपराध दर में कमी के कारण भी लोग इन देशों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह आम चलन है कि विकासशील देशों में पैसा बनाने के बाद असीर लोग अवसर मिलते ही विकसित देशों में जाकर बस जाते हैं। इसके साथ ही मध्यमवर्गीय परिवारों के युवा विकसित देशों में शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर तलाश रहे हैं। जब युवा शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं तो उनमें से अधिकांश को अपनी पुश्तैनी जमीन बेचनी पड़ती है या बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है, इसमें लाखों रुपये खर्च होते हैं। उसके बाद जब उन्हें वहां रोजगार मिल जाता है तो वे वहीं बस जाते हैं। इसके अलावा कुछ लोग देश में असहिष्णुता के बढ़ते चलन को भी इसकी बड़ी वजह मान रहे हैं। पिछले साल जुलाई में संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने कहा था कि विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारतीय नागरिकों ने निजी कारणों से अपनी नागरिकता छोड़ी है, ये व्यक्तिगत कारण क्या है? आपको याद होगा कि कुछ साल पहले देश के विभिन्न क्षेत्रों की कई प्रमुख हस्तियों ने देश में असहिष्णुता के माहौल पर टिप्पणी की थी। उसके बाद काफी विवाद हुआ था। इन लोगों को शासक वर्ग ने ही दूसरे देशों में जाने की सलाह दी थी। एक-दो जानी-मानी फिल्मी हस्तियों ने भी कहा था कि अब 'देश में डर है'। उसके बाद इन लोगों को इस कदर निशाना बनाया गया कि अब कोई और इस तरह की बात नहीं करता। शायद इसी असहिष्णुता का जिक्र इन शख्सियतों ने किया था। अब फिर से देश छोड़कर नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या बढ़ी है तो इसके कुछ कारण जरूर होंगे। जिनके बारे में सरकार को पता होना चाहिए।
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