सच्चे सूफियों और ईसाई राहिबों को उनके अच्छे इरादों के लिए
खुदा द्वारा पुरस्कृत किया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
1. कुरआन मुसलमानों को सूफियों की आलोचना करने से रोकता
है।
2. कुरआन कहता है कि ईसाई राहिबों का एक समूह भी सही रास्ते
पर था।
3. खुदा अपने बंदों का न्याय केवल उनके कर्मों के आधार
पर ही करता है।
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
4 दिसंबर, 2021
Christian
monasticism
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इस्लामी उलमा का एक बड़ा वर्ग मानता है कि तसव्वुफ़ का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह समाज से अलगाव और एकांत को बढ़ावा देता है और लोगों को समाज के कल्याण के बिना और वंचितों की मदद किए बिना अलगाव में इबादत करने के लिए प्रोत्साहित करता है। उनका कहना है कि कुरआन एक अच्छे समाज का विचार प्रस्तुत करता है जहां प्रत्येक व्यक्ति नैतिक और कानूनी रूप से दूसरों के कल्याण से जुड़ा हो। प्रत्येक व्यक्ति की दूसरों के प्रति नैतिक और सामूहिक जिम्मेदारी होती है और हमें जरूरतमंदों और गरीबों की सेवा करनी चाहिए। जो लोग समाज से केवल खुदा की इबादत करने और उनकी निकटता और खुशनूदी प्राप्त करने के लिए समाज से किनारा कशी विकल्प करते हैं, वे कुरआन की नजर में अच्छे मुसलमान नहीं हैं।
हालाँकि, कुरआन की कुछ अन्य आयतों में उन मुसलमानों का भी उल्लेख है जो सुबह और शाम अल्लाह का नाम लेते हैं और दिन और रात का अधिकांश समय अल्लाह की याद और दुआ में बिताते हैं। उनका लक्ष्य आध्यात्मिकता और खुदा को प्रसन्न करना है। वे भौतिक धन और जीवन के सुखों का पीछा नहीं करते हैं और जो कुछ खुदा ने उन्हें दिया है उससे संतुष्ट रहते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उन आयतों का पालन करते हैं जो मुसलमानों को उनके पास जो कुछ भी है उससे संतुष्ट रहने और वासना, हवस, ईर्ष्या न करने की आज्ञा देते हैं जिसे कुरआन में हृदय रोग माना जाता है।
इसलिए कुरआन मुसलमानों से कहता है कि इन लोगों के बारे में बुरा मत बोलो और उन्हें परेशान मत करो क्योंकि वे मुसलमानों से कुछ भी नहीं मांगते हैं और खुदा की याद में खुश होते हैं:
“और (ऐ रसूल) जो लोग सुबह व शाम अपने परवरदिगार से उसकी ख़ुशनूदी की तमन्ना में दुऑए मॉगा करते हैं- उनको अपने पास से न धुत्कारो-न उनके (हिसाब किताब की) जवाब देही कुछ उनके ज़िम्मे है ताकि तुम उन्हें (इस ख्याल से) धुत्कार बताओ तो तुम ज़ालिम (के शुमार) में हो जाओगे” (6:52)
Islamic
Sufism
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इस्लामिक उलमा का एक वर्ग सूफियों की तुलना ईसाई राहिबों से करता है और अकेलेपन और अलगाव का जीवन जीने के लिए तसव्वुफ़ की निंदा करता है। उनका कहना है कि तसव्वुफ़ भी ईसाई राहिबों द्वारा आविष्कार किए गए रह्बानियत का एक रूप है। लेकिन जब हम कुरआन का अध्ययन करते हैं और देखते हैं कि कुरआन रह्बानियत (ईसाई रह्बानियत) के बारे में क्या कहता है, तो हमें एक आयत दिखाई देती है जो कहती है कि अल्लाह केवल उन राहिबों की निंदा करता है जिन्हें जिन्होंने सांसारिक लाभ और राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए रह्बानियत अपनाया और लालच का गुलाम बन गए। जो लोग केवल खुदा की स्वीकृति (खुशनूदी) और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करने के लिए राहिब बन गए, उन्हें खुदा द्वारा पुरस्कृत किया गया। आयत इस प्रकार है:
"फिर उनके पीछे ही उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इन्जील अता की और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की उनके दिलों में यफ़क्क़त और मेहरबानी डाल दी और रहबानियत (लज्ज़ात से किनाराकशी) उन लोगों ने ख़ुद एक नयी बात निकाली थी हमने उनको उसका हुक्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (ख़ुद ईजाद किया) तो उसको भी जैसा बनाना चाहिए था न बना सके तो जो लोग उनमें से ईमान लाए उनको हमने उनका अज्र दिया उनमें के बहुतेरे तो बदकार ही हैं"। (अल-हदीद: 27)
आयत का खुलासा है कि यद्यपि खुदा ने ईसाइयों के लिए पूर्ण एकांत और रह्बानियत का जीवन निर्धारित नहीं किया था, उनमें से कुछ ने ऐसा जीवन केवल खुदा से निकटता प्राप्त करने और खुदा को प्रसन्न करने के लिए चुना था। उन्होंने सांसारिक और भौतिक लाभ का पीछा नहीं किया, इसलिए उन्हें पुरस्कृत किया गया क्योंकि वे शुद्ध हृदय के थे और उनकी रह्बानियत केवल अध्यात्म की प्राप्ति के लिए थी। हां, उनकी निंदा की गई है जिन्होंने भौतिक लाभ और राजनीतिक शक्ति के लिए और आध्यात्मिकता की आड़ में यौन संतुष्टि के लिए रह्बानियत का उपयोग किया।
ये दोनों आयतें तसव्वुफ़ और रह्बानियत पर कुरआन की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। खुदा अपने बंदों का न्याय इस आधार पर नहीं करता कि बंदों का काम किस नाम से जाना जाता है इस आधार पर किया जाता है कि किसी धार्मिक कार्य को करते समय बंदे की नियत क्या होती है। तसव्वुफ़ और रह्बानियत ऐसे शब्द हैं जो मुत्तकी (अल्लाह से डरने वाले) मुसलमानों और ईसाइयों के एक समूह पर लागू होते हैं जो अपना जीवन खुदा की इबादत और याद में बिताते हैं। खुदा सूफियों और राहिबों के कार्यों का न्याय उस समूह या विचारधारा के आधार पर नहीं करेंगे जिससे वे संबंधित हैं, बल्कि उनके कार्यों और उनके इरादों के आधार पर किया जाएगा।
English
Article: Quran’s Stand On Islamic Sufism And Christian
Monasticism
Urdu Article: Quran’s Stand On Islamic Sufism And Christian
Monasticism اسلامی
تصوف اور عیسائی رہبانیت پر قرآن کا موقف
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