लश्करे तैयबा एक ऐसा संगठन है जो पाकिस्तानी सरकार और उसकी सेना
के उद्देश्यों को पूरा करता है
प्रमुख बिंदु:
· सर्वेक्षण से पता चलता है कि लश्करे तैयबा अहले हदीस से प्रभावित
है
· सर्वेक्षण से पता चलता है कि किसी भी पाकिस्तानी ने लश्करे तैयबा
की निंदा नहीं की
· पाकिस्तान लश्करे तैयबा की भारत विरोधी बयानबाजी के कारण उसका
समर्थन करता है।
· पाकिस्तान में भारत के खिलाफ बोलने वाले को देशभक्त माना जाता
है।
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
25 जनवरी 2022
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File
photo of Lashkar-e-Taiba founder Hafiz Muhammad Saeed | Youtube
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क्रिस्टीन फेयर और उनके सहयोगी कार्ल काल्टेंथेलर ने लगभग 7,000 पाकिस्तानियों पर एक सर्वेक्षण किया और उनसे पूछा कि वह लश्करे तैयबा की हिमायत क्यों करते हैं। कुछ हज़ार पाकिस्तानियों के बीच किये गए इस सर्वेक्षण से लश्करे तैयबा नामक आतंकवादी संगठन के एक महत्वपूर्ण पहलु का पता चलता है। इससे शायद पहली बार यह पता चलता है कि इसे न केवल देवबंदी तकफीरियत बल्कि अहले हदीस कहलाने वाले फिरके से भी तहरीक मिलती है। लेकिन एक पहलु जिसे शोधकर्ताओं ने अनदेखा किया है वह यह है कि लश्करे तैयबा पाकिस्तान में अपनी वैचारिक व्याख्या या अहले हदीसी नजरिये के आधार पर हुकूमत के कयाम के लिए काम करने वाली कोई तंजीम नहीं है। इसने खुल कर कभी अपने नजरियाती मैलान का इज़हार नहीं किया है।
असल में लश्करे तैयबा और जन्मदाता संगठन जमातुद दावा, पाकिस्तान सरकार का केवल एक सैन्य विंग है इसलिए कि क्योंकि पाकिस्तान सरकार मुरीदके में अपने हेड क्वार्टर में निर्माण और संशोधन कार्य के लिए टेंडर निकालने वाली है। यह भी एक हकीकत है कि मुंबई आतकवादी हमलों में लश्करे तैयबा का हाथ साबित हो चुका है। पाकिस्तान का उर्दू अखबार लश्करे तैयबा से अपनी वाबस्तगी नहीं छिपाता। इसलिए पाकिस्तान में लश्करे तैयबा को एक ऐसी तंजीम के तौर पर जाना जाता है जो आवश्यकता पड़ने पर पाकिस्तानी सरकार और सेना के मकसद को पूरा करती है। इसलिए वह पाकिस्तान के अंदर सांप्रदायिक और वैचारिक बुनियादों पर किसी किस्म का तशद्दुद नहीं करता।
असल में पाकिस्तान में राजनितिक शक्ति की प्राप्ति का सबसे ताकतवर हथियार धर्म है। इसलिए धार्मिक और अतिवादी संगठन का मालिक होने पर किसी दुसरे देश के विपरीत, इसके सरबराह को कोई ख़तरा लाहिक नहीं है। हाफ़िज़ सईद की भारत के खिलाफ गाहे बगाहे तंज़ व मज़ाह की बुनियाद पर उन्हें पाकिस्तान की अवाम और हुकूमत दोनों की नजर में उमूमी हमदर्दी हासिल है। चूँकि पाकिस्तान की हुकूमत उइगूर के मसले को उठा कर चीन का विरोध नहीं करना चाहती है, इसलिए सईद ने उइगुरों पर अत्याचार के मामले पर चीन के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं कहा।
इससे कोई बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता पाकिस्तान की कोई तंजीम देवबंदी नज़रिया या आईएसआईएस की आइडियालोजी से जुड़ी है या किसी अहले अदीसी या बरेलवी मसलक से उसका संबंध है, क्योंकि आखिर कार यह सब के सब देश के अंदर या देश से बाहर हिंसा की ही बातें करते हैं। हो सकता है कुछ संगठन कम हिंसक हों और कुछ अधिक, लेकिन पाकिस्तान में कोई भी संगठन यह नहीं कहता कि हिंसा समस्या का हल नहीं है। इस्लाम के अंदर अल्पसंख्यक या फिरके हमेशा बहुसंख्यक वर्ग के अत्याचार का शिकार होते रहते हैं।
यह सर्वेक्षण पाकिस्तानी मानसिकता को भी ज़ाहिर करता है जो कि पाकिस्तान के अंदर अल्पसंख्यकों और दुसरे फिरकों से संबंध रखने वाले लोगों के खिलाफ एक बीमार मानसिकता का हामिल है। इससे यह भी पता चलता है कि लगभग तमाम पाकिस्तानी किसी न किसी वजह से लश्करे तैयबा की हिमायत करते हैं। किसी पाकिस्तानी ने यह नहीं कहा कि वह लश्करे तैयबा की हिमायत नहीं करता वह लश्करे तैयबा के आतंकवादी नजरिये या फिरके वाराना नजरिये की निंदा करता है। पाकिस्तान में हालात ऐसे बन चुके हैं कि वहाँ की मीडिया उलमा और आम लोगों में भी अपने देश की आतंकवादी और सैन्य संगठनों के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं है।
हमने पूछा कि पाकिस्तानी लश्करे तैयबा की हिमायत क्यों करते
हैं, परिणाम आपको हैरान कर देंगे
क्रिस्टीन फेयर
24 जनवरी 2022
जैश ए मोहम्मद और लश्करे तैयबा पाकिस्तान की सबसे खतरनाक जमात हैं। यह भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और संभवतः दुनिया के अन्य हिस्सों में सक्रिय सबसे प्रभावी और क्रूर आतंकवादी समूहों में से एक है। इस नापाक संगठन का समर्थन कौन करता है यह समझना एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और नीतिगत विश्लेषणात्मक प्रश्न है। जिस आधार पर पाकिस्तानी इस समूह का समर्थन करते हैं, उस पर प्रकाश डालने के लिए, मेरे सहयोगी कार्ल काल्टेंथेलर और मैंने पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के चार प्रांतों में 7,656 पाकिस्तानियों का कौमी सर्वेक्षण किया। परिणाम आपको चौंका सकते हैं।
सैद्धांतिक मामले
लश्करे तैयबा (और ऐसे दुसरे विभिन्न उनवान जो उन्होंने इस्तेमाल किये हैं और इस्तेमाल करते हैं) क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से इस्लाम पसंद आतंकवादी समूहों से अलग है जो देवबंदी फिरके से संबंध रखते हैं, जिसमें लश्करे तैयबा अहले हदीस से संबंध रखती है। दरहकीकत, इस संगठन का देवबंदी समूहों के साथ काफी विवाद है क्योंकि अधिकतर देवबंदी तक्फीरी या पाकिस्तानियों को गैर मुस्लिम करार देने वाले होते हैं, जिससे वह जान लेवा हिंसा का शिकार हो जाते हैं। और पाकिस्तानियों में इस्लामिक स्टेट देवबंदी उग्रवादी संगठनों से संबंध रखती है क्योंकि देवबंदी जिन मदरसों और आतंकवादी संगठनों की हिमायत करते हैं वह सख्त सांप्रदायिक हैं जिनका पिछले दशकों में गैर मुस्लिमों, शिया, अहमदी और बरेलवी को निशाना बनाने का एक भरपूर इतिहास है।
सबसे बड़ी बात है कि पाकिस्तानी सरकार लश्करे तैयबा की कद्र करती है क्योंकि यह देश के अंदर हिंसा की बात करती है। यह संगठन अहमदियों के लिए मौत की खुले आम वकालत भी नहीं करती, जिसकी वजह से यह संगठन पाकिस्तान के देवबंदियों और यहाँ तक कि बरेलवियों से भी बिलकुल मुमताज़ नजर आती है, जो अहमदियों को कुफ्र (इर्तेदाद) का बद तरीन मुर्तकिब मानते हैं। मजीद यह कि लश्कर का ख्याल है कि वह पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट का एक वाहिद नज़रियाती हरीफ है।
संगठन के अहले हदीस होने के दावे के बावजूद, पाकिस्तान के अधिकतर अहले हदीस उलमा और इदारे लश्कर के इस बुनियादी दावे को अस्वीकार करते हैं कि सैन्य जिहाद मुसलमानों का एक अहम फ़रीज़ा है और इसे केवल गैर राजनितिक तत्व ही अंजाम दे सकते हैं। इसके बजाए अधिकतर अहले हदीस उलमा का ख्याल है कि केवल इस्लामी रियासत ही जिहाद कर सकती है। हालांकि लश्करे तैयबा हर उस शख्स के खिलाफ अहिंसा की तबलीग करती है जो अल्लाह की हाकमियत को स्वीकार करता है, इसके पाकिस्तान में लगभग दुसरे मुस्लिम फिरकों के साथ हकीकी सैद्धांतिक मतभेद हैं। इसका बरेलवियों (संभवतः पाकिस्तान के सबसे बड़े फिरके) पर आरोप है कि वह बुतपरस्ती का प्रतिबद्ध करते हैं क्योंकि वह इस्लाम के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इबादत करते हैं, जो कि इस्लाम के अनुसार केवल एक इंसान थे। बरेलवी न केवल नबी के लिए ऐसी सिफात बयान करते हैं जो केवल अल्लाह के लिए विशेष हैं, बल्कि वह तावीज़ पहनते हैं, पीरों से अकीदत व इस्तिम्दाद, और उनकी कब्रों पर इमारत निर्माण भी करते हैं, जिनको लश्कर इर्तेदाद मानता है।
लश्कर का देवबंदी उग्रवादी समूहों की तरह शियों के साथ विवाद है क्योंकि वह पैगंबर की जांनशीनी को अस्वीकार करते हैं। देवबंदियों के विपरीत, जो यह समझते हैं कि शिया वाजिबुल क़त्ल हैं, मारे जाने के लायक हैं, लश्कर का ख्याल है कि उन्हें शिक्षित करना और मुसलमान बनाना चाहिए।
पकिस्तान में मुख्य धारा के अहले हदीस इदारों के साथ नुमाया नजरियाती मतभेद के बावजूद, हमारे अध्ययन के अनुसार, लश्करे तैयबा को अब भी अहले हदीस के पैरुकारों की हिमायत हासिल है। ख़ास तौर पर, हम देखते हैं कि बरेलवी, शिया, और देवबंदी इस संगठन का विरोध करते हैं, जो लश्करे तैयबा की तबलीगी कोशिशों (दावह व तबलीग) से मुताबिकत रखती है ताकि ऐसे लोगों को लश्कर की अहले हदीसी समझ का कायल किया जाए।
लेकिन नस्लीय भेदभाव अधिक महत्वपूर्ण है
लश्कर लम्बे समय से कश्मीरी संगठन होने का दावा करती रही है, जो कि कश्मीरियों के लिए लड़ने वाले और कश्मीर में मरने वाले कश्मीरियों पर आधारित है। लेकिन यह लम्बे समय से संदेहास्पद रहा है और हालिया आंकड़े किसी हद तक यह ज़ाहिर करते हैं कि केवल अंत में उल्लेख किया गया दावा सहीह है (चित्र 1 देखें)। लगभग 90 प्रतिशत भारत में मरते हैं, और उसके 90 प्रतिशत से अधिक लोग पाकिस्तान के पंजाब के केवल 10 जिलों से आते हैं। केवल एक प्रतिशत पाकिस्तानी मकबूज़ा कश्मीर से आते हैं। लश्करे तैयबा “कश्मीरी” संगठन होने के दावे से परे, यह हर तरह से एक पंजाबी संगठन है।
इससे एक दिलचस्प सवाल पैदा होता है: क्या पाकिस्तानी इस संगठन की धार्मिक या नस्लीय बुनियादों पर हिमायत करते हैं? पता यह चलता है कि हालांकि नज़रिया महत्व रखता है लेकिन नस्लीय पहचान हिमायत की सबसे मजबूत वजह है। यह नज़रिया से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ बलोच में लश्करे तैयबा के विरोध का इमकान दूसरों के मुकाबले में नुमाया तौर पर अधिक है जबकि सिंधियों का रद्दे अमल कमज़ोर है। ज़मीनी तथ्यों से पता चलता है: पाकिस्तानी सरकार ने बलोचिस्तान में लश्कर को कई कारणों से इस्तेमाल किया है।
सबसे पहले यह आशा की जाती है कि लश्कर बलोचों को अपनी नस्ल परस्ताना इच्छाओं को छोड़ने और लश्कर की तरफ से पेश किये गए इस्लाम के रियासती हिमायत शुदा अवधारणा को अपनाने पर आमादा कर सकता है। इस एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए, जब कुदरती आफ़ात बलोचिस्तान में आती हैं तो पाकिस्तान केवल उन “इंसान दोस्त” संगठनों को ही इमदादी काम करने देता है जिनका संबंध लश्कर से है। यह भी अहम बात है कि लश्कर स्पष्ट तौर पर चीन का हामी है और चीन पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर (CPEC) की हिमायत करता है। यह देखते हुए कि पाकिस्तान संसाधनों से माला माल राज्य को चीनी शोषण के लिए सुरक्षित बनाने के लिए आखरी बलोच तक से लड़ेगा, बलोच बजा तौर पर लश्कर को पंजाबी तसल्लुत वाली फ़ौज के साथ मिल कर काम करने वाले पंजाबी तसल्लुत का ही एक और रूप समझते हैं, जिसके बारे में बहुत से बलोचों का अपने ही सूबे में बुरा हाल कर रखा है।
पाकिस्तान में सैन्य नेतृत्व वाली स्थिति के लिए समर्थन
एक तरफ तो लश्कर बैरून मुल्क एक अहम और हिंसक खलल अंदाज़ है, जबकि यह पाकिस्तान में देश के अंदर, यह सपष्ट रूप से जमूद की ताकत है। एक तरफ तो लश्करे तैयबा भारत में काफिरों को क़त्ल करने की वकाल करती है जबकि यही संगठन पाकिस्तान के अंदर, समाज सेवा, इंसानी इमदाद और मुत्तकी मुसलमानों की जिंदा मिसालों के जरिये उन्हें मुसलमान बनाने पर इसरार करती है। लश्करे तैयबा की सांप्रदायिक हिंसा की सख्त मुखालफत इसे इस्लामिक स्टेट और बहुत से दुसरे देवबंदी उग्रवादी ग्रुपों से अलग बनाती है, जैसे शिया विरोधी लश्करे झिंग्वी (एल इ जे, जो सिपाहे सहाबा पाकिस्तान के नामों से भी काम करती है और अहले सुन्नत व जमाअत या तहरीके तालिबान या पाकिस्तानी तालिबान), जो अपने बहुत से कमांडर और कैडर को लश्करे झिंग्वी से हासिल करते हैं।
और लश्कर रियासत के किसी भी किस्म के एहतिजाज के खिलाफ आवाज़ बुलंद करता है। चाहे उसकी कयादत कोई भी हो और पाकिस्तान के मौजूदा मुल्की, सियासी और इक्तिसादी निज़ाम का सख्त हामी है, जिसमें चीन के साथ पाकिस्तान की ना काबिले बर्दाश्त दोस्ती भी शामिल है। शायद हैरत की बात न हो कि लश्कर की हिमायत का तीसरा सबसे मजबूत कारक जमूद से इत्मीनान है। हमारे नताइज ऐसी किसी भी सोच को ख़त्म कर देते हैं कि लश्कर एक इंकलाबी संगठन है।
हैवानियत की माएं
जबकि सपष्ट करने के लिए बहुत कम काम किया गया है कि क्या महिलाएं इस्लाम पसंद आतंकवाद की हिमायत करती हैं या नहीं, लेकिन अधिक संभावना इस बात की है कि पाकिस्तान में लश्कर की हिमायत मर्दों के मुकाबले औरतें अधिक करती हों। यह संगठन महिलाओं को संगठन में भर्ती करने के लिए काफी वसाइल वक्फ करती है ताकि इस बात को निश्चित किया जा सके कि वह अपने बेटों और खानदान के दुसरे लोगों को उग्रवादियों के तौर पर या सहायक के तौर पर लश्कर में शामिल होने की तरगीब दे कर लश्करे तैयबा की हिमायत करें।
लश्करे तैयबा महिलाओं को संगठन के मसलक को बढ़ावा देने का इख्तियार देता है, जो उन्हें सशक्त बनाता है और उन्हें बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ने के लिए आज़ादी फराहम करता है। इस बात को यकीनी बनाने के लिए कि माएं संगठन से मायूस न हों, लश्करे तैयबा को हर उस मिशन के लिए मां जैसी नेमत की जरूरत होती है जिसमें उसका बेटा तथाकथित शहादत हासिल कर सके। यह संगठन अपने बेटों की मौत से मां बाप को सूचित करने के लिए बड़े अधिकारियों को रवाना करता है और लाश की गैर मौजूदगी में ग़ायब जनाज़ा या नमाज़े जनाज़ा की निगरानी करता है।
इसमें से कोई भी अच्छी खबर नहीं
तो इन मालूमात का क्या लाभ है? यह परिणाम यह ज़ाहिर करते हैं कि लश्करे तैयबा से निमटने के लिए इस बात का बहुत इमकान है कि कोई काबिले अमल गैर मुतहर्रिक रणनीति मौजूद है। बड़े पैमाने पर संगठन के लिए सरकार की हिमायत और पाकिस्तान की सेना और इंटेलीजेंस एजेंसियों की मुल्क में मजबूत पकड़ के पेशे नज़र, ऐसी मालूमाती कार्यवाहियां करने की बहुत कम गुंजाइश है जो हमें मिलने वाले मदद के किसी भी माध्यम को हानि पहुंचा सकती है।
लश्करे तैयबा को रोकने का केवल एक रास्ता- खुले आम सैन्य कार्यवाहियों के जरिये फैसलाकुन अंदाज़ में पाकिस्तान पर हिन्दुस्तान की मर्जी मुसल्लत करने की सलाहियतों की मौजूदगी न होना। ख़ुफ़िया और मुतहर्रिक हैं। जैसा कि मैंने कहीं और दिखाया है, पाकिस्तान में अहरामी और खुली कयादत का ढांचा इसे कयादत के खात्मे का खतरा बनाता है। हालांकि रास्ता चुनौती पूर्ण है और इसे अमल में लाना कठिन है, लेकिन दुसरे रास्ते हास्यास्पद लगते हैं।
English Article: Lashkar-e-Taiba
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