नास्तिक दुर्रानी, न्यु एज इस्लाम
31 दिसम्बर, 2013
आजकल मुअज़्ज़िन की आवाज़ मस्जिद या जामा में बनाए गए मीनार से बुलंद होती है जहां लाउड स्पीकर लगाए गए होते हैं लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के ज़माने में मस्जिदों के मीनार नहीं होते थे। इस्लाम के सबसे पहले मुअज़्ज़िन हज़रत बिलाल रज़ियल्लाही अन्हा मदीना में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मस्जिद के पास सबसे ऊंचे मकान पर चढ़ जाते थे और वहां से अज़ान देते थे 1
हिजरत के आठवें साल जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने मक्का पर जीत हासिल की तो आप ने हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहू अन्हा को हुक्म दिया कि वो काबा से अज़ान दें और लोगों को नमाज़ के लिए बुलाएं तो उन्होंने काबा में से अज़ान दी। एक रवायत में ज़िक्र है कि हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहू अन्हा काबा की छत पर चढ़ गए और वहां से अज़ान दी 2, काबा और मुसलमानों की दूसरी मस्जिदें बिना मीनार के ही रहीं क्योंकि ये अभी ईजाद नहीं हुआ था।
खबरों में आया है कि हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहू अन्हा के दौर में जब लोगों की तादाद बढ़ गई तो उन्होंने जुमा की नमाज़ में दूसरी अज़ान का इज़ाफा किया जो अलज़ोरा से दी जाती थी। ये मदीना में मस्जिद के पास सबसे ऊंचा घर था 3 ताकि जुमा की नमाज़ के लिए बुलाने वाले मुअज़्ज़िन की आवाज़ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे।
संदर्भ:
1- सीरत इब्ने हिशाम 349 प्रकाशन वेस्टनफील्ड - Shorter Ency of Islam, P., 340
2- अलज़रक़ी, अखबार मक्का 193 / 1, इब्ने हिशाम 822, वेस्टनफील्ड
3- तफ्सीर इब्ने कसीर 366 / 4
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