नसीर अहमद, न्यू एज इस्लाम
६ जून २०१९
अल्लाह पाक ने पवित्र कुरआन की कई आयतों में यह फरमाया है कि हमें अल्लाह क्ले साथ किसी को भी शरीक नहीं करना चाहिए और केवल अल्लाह ही हमारी इबादत का हकदार हैl “शिर्क” का शाब्दिक अर्थ किसी और को अल्लाह की रुबुबियत में शामिल करना हैl
फिर अगर इससे भी मुंह फेरें तो (कुछ) परवाह (नहीं) ख़ुदा फ़सादी लोगों को खूब जानता है (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो कि ऐ अहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान यकसॉ है कि खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाएं और ख़ुदा के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुंह मोडें तो तुम गवाह रहना हम (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार हैंl (3:64)
शब्द रब का शाब्दिक अर्थ बाकी रहने वाला, मालिक या परवरिश करने वाला है, और इस अर्थ में एक मर्द अपने घर का “रब” हैl क्रिया युरब्बी का अर्थ है “परवरिश”, जिसे किसी की परवरिश के अर्थ में इस्तेमाल किया जा सकता हैl अगर शब्द रब दोसरे संदर्भ में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जब सभी पहलुओं को शामिल सार्वजनिक तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है उसे मुतलक ताकत के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है तो इससे मुराद केवल अल्लाह पाक की ज़ात होती है उसके सिवा और कोई नहींl
अल्लाह ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को शिफा याबी की ताकत अता की थीl इसलिए, अगर कोई बीमार शख्स उनके पास शिफा याबी के लिए आया तो क्या यह “शिर्क” हुआ? बेशक नहीं\, ख़ास तौर पर जब आने वाले को इस बात का शउर है कि शिफा की ताकत हज़रात ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने अता की हैl
“(वह वक्त याद करो) जब ख़ुदा फरमाएगा कि ये मरियम के बेटे ईसा हमने जो एहसानात तुम पर और तुम्हारी माँ पर किये उन्हे याद करो जब हमने रूहुलक़ुदूस (जिबरील) से तुम्हारी ताईद की कि तुम झूले में (पड़े पड़े) और अधेड़ होकर (शक़ सा बातें) करने लगे और जब हमने तुम्हें लिखना और अक़ल व दानाई की बातें और (तौरेत व इन्जील (ये सब चीजे) सिखायी और जब तुम मेरे हुक्म से मिट्टी से चिड़िया की मूरत बनाते फिर उस पर कुछ दम कर देते तो वह मेरे हुक्म से (सचमुच) चिड़िया बन जाती थी और मेरे हुक्म से मादरज़ाद (पैदायशी) अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देते थे और जब तुम मेरे हुक्म से मुर्दों को ज़िन्दा (करके क़ब्रों से) निकाल खड़ा करते थे और जिस वक्त तुम बनी इसराईल के पास मौजिज़े लेकर आए और उस वक्त मैने उनको तुम (पर दस्त दराज़ी करने) से रोका तो उनमें से बाज़ कुफ्फ़ार कहने लगे ये तो बस खुला हुआ जादू हैl” (५:११०)
अल्लाह ने कुछ केमिकल, जड़ी बूटियों और खाने पीने की चीजों में दवाओं की विशेषताएं (१६:६९) रखी है ताकि उनसे शिफा याबी हो और उनकी शिफायाबी की ताकत पर यकीन करना “शिर्क” नहीं हैl खुराक गिज़ाईयत प्रदान करती है और खुराक की गिज़ाई ताकत को मानना “शिर्क” नहीं है जब तक कि कोई यह मानता रहे कि यह अल्लाह की ही तख्लीकात हैं या उसकी ही मखलूक में से हैंl
कुरआन मजीद की शिफायाबी और दोसरी ताकतों पर ईमान लाने के बारे में क्या खयाल है? अल्लाह ने कुरआनी आयतों के बारे में ऐसी ताकत का उल्लेख खुद ही कर दिया हैl जैसा कि उसकी शिफायाबी की ताकत का उल्लेख कुरआन की १७:८२, ४१:४४, १०:५७ आयतों में हैl जब मुसीबत पड़े तो अल्लाह हमें अपना ज़िक्र करने और कसरत के साथ उसकी हम्द व सना बयान करने की शिक्षा देता हैl इसलिए, कुरआन करीम की आयतों और सूरतों की उन खूबियों पर विश्वास करना “शिर्क” नहीं हो सकताl अल्लाह ने अपने ज़िक्र, नमाज़, कसरत से हम्द व सना और अपने कलाम की तिलावत में यह ताकत रखी हैl
परिणाम बरामद करने के लिए अपनी कोशिशों पर यकीन करना “शिर्क” नहीं हैl अल्लाह हमें खुद परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक संघर्ष की शिक्षा देता हैl जैसा कि आयत ८:६० देखेंl आवश्यक कोशिशों और संघर्ष के बिना अच्छे परिणाम के प्राप्ति के लिए अल्लाह पाक पर आँख बंद कर के भरोसा करना और किसी करिश्मे पर विश्वास रखना बेवकूफी हैl
हुक्मरानों की हाकिमियत और सत्ताधारी लोगों के बारे में क्या राय है? अल्लाह पाक जिसे चाहता है उसे खुद सत्ता अता फरमाता है इसलिए किसी इंसान की हुक्मरानी को स्वीकार करना “शिर्क” नहीं है’ जब तक कि वह उन बातों का आदेश ना दे जिन्हें अल्लाह ने हराम करार दिया हैl
अल्लाह ने ऐसे नियम बनाए हैं जो हम फ़िज़िक्स में पढ़ते हैं और अल्लाह के उन नियमों को फ़िज़िक्स के नियम करार देते हैं जो कि बुनियादी तौर पर जिस्मानी दुनिया के लिए अल्लाह के बनाए नियम हैंl इन नियमों को मानना, इन पर भरोसा करना, अपने मंसूबों में उनका इस्तेमाल करना उनकी कसम उठाना “शिर्क” नहीं हैl अल्लाह पाक ने खुद अपनी तखलीक के शानदार माद्दी मनाज़िर और उनकी विशेषता की कसम उठाई हैl जैसे कि जब फ़िज़िक्स का यह सवाल किया जाए कि अगर ३२५ मीटर ऊँची १०० मंजिला इमारत से कोई चीज गिराई जाए तो उसे ज़मीं तक पहुँचने में कितना समय लगे गा? तो इसके जवाब में ८.१४ सेकेण्ड बताते वक्त इंशाअल्लाह कहना आवश्यक नहीं हैl इंशाअल्लाह ना कहने का मतलब यह नहीं है कि हम अल्लाह पाक को कादिर नहीं मानते, बल्कि इसका मतलब यह है कि हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि अल्लाह ने कहा है कि वह एक बार जब कोई कानून बना देता है तो फिर उसमें कोई परिवर्तन नहीं करता, और अल्लाह खुद अपने नियमों की कसम खाता है, इसलिए उसके नियमों के हवाले से इंशाअल्लाह कहना अल्लाह को मतलून मिजाज़ी से मंसूब करना है जो कि निंदनीय हैl इसलिए हम अवश्य खुद अल्लाह पाक पर भरोसा करते हुए यह कह रहे हैं कि उसके नियम हमेशा अनुमानित अंदाज़ ही में कार्य करेंगेl
नबियों के बारे में क्या राय है? क्या वह अपने नबवी मिशन में अल्लाह के शरीक नहीं थे? जी हाँ, वह अल्लाह के शरीक और मददगार थे लेकिन उसकी खुदाई में नहींl यह अंतर दिमाग में रखना आवश्यक हैl कुरआन पाक की कई आयतों में हम यह पाते हैं कि नबियों ने अपने लोगों और उनके गुनाहों की बख्शीश के लिए दुआएं की हैं (मिसाल के तौर पर ६:५ देखें)l फ़रिश्ते भी लोगों की बख्शिश के लिए दुआएं करते हैं (४:५)l वाली अल्लाह भी अल्लाह के ही बंदे हैं जो इबादत के जरिये अल्लाह का कुर्ब हासिल कर लेते हैं और वह निश्चित रूप से अल्लाह के दीन के मामले में अल्लाह के मददगार हैं मगर उसकी खुदाई में नहींl इसलिए, उनसे दुआओं की दरख्वास्त करना “शिर्क” नहीं हैl हमें यह भी ख़याल रखना चाहिए कि अम्बिया और फरिश्तों को भी अल्लाह से हमारी जानिब से कोई चीज हासिल करने की ताकत नहीं है (६०:४) बल्कि वह केवल हमारे लिए दुआ कर सकते हैंl यहाँ तक कि अम्बिया भी हमें कुछ अता नहीं कर सकते बल्कि केवल हमारे लिए दुआ कर सकते हैं, इसलिए, फौत हो चुके औलिया के कुछ अता करने का सवाल ही नहीं पैदा होता और उनसे ऐसी किसी अता को स्वीकार करना उनसे ऐसे इख्तियार और ताकत को मंसूब करना है जो केवल अल्लाह के पास है और यह “शिर्क” हैl सूफी कव्वाली “भर दो झोली मेरी या मोहम्मद सल्लाल्लाहुआ अलैहि वसल्लम, मैं ना जाऊँगा खाली......” नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुतलक रब के मंसब पर बिराजमान करना है जो कि “शिर्क” है, इसलिए कि कुरआन में ऐसा कोई सबूत नहीं है कि अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऐसी ताकतें अता फरमाई हैंl इस वजह से पुश्त पनाह औलिया की अवधारणा “शिर्क” है जिसके अनुसार यह माना जाता है कि वह हमेशा हिफाज़त करते हैं और नफ़ा पहुंचाते हैंl
जैसा कि इसका संबंध शफाअत से है’ अल्लाह शफाअत का इनकार नहीं करता बल्कि केवल यह कहता है कि अल्लाह पाक की अनुमति के बिना कोई भी शफाअत नहीं कर सकता, लेकिन उसकी अनुमति के साथ कोई भी शफाअत कर सकता हैl इसका अर्थ यह है कि हम अपने पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफाअत को भी निश्चित रूप से नहीं ले सकतेl यहाँ तक कि बिना पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी केवल उन्हीं लोगों की शफाअत कर सकते हैं जिन्हें अल्लाह शफाअत देने का फैसला करेगाl
उपर्युक्त बहस और हमारा अकीदा उन लोगों के बारे में है जिन पर हमारा कंट्रोल है लेकिन उन दोसरे लोगों के बारे में क्या खयाल है जो हमारी राय में “शिर्क” करते हैं? तो यहाँ से लोगों और अल्लाह के बीच का मामला है और इसमें उन लोगों की रहनुमाई के सिवा हम कुछ नहीं कर सकते जो हमारी बात सुनने के लिए तैयार हैंl और जो लोग हमारी इन बातों को अस्वीकार करते हैं उनके लिए हमारा जवाब केवल यह १०९:६ है, अर्थात “तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और हमारे लिए हमारा दीन”l
तथापि यही याद दिलाना आवश्यक है कि “शिर्क” एक नाकाबिल ए माफ़ी गुनाह है, और नाकाबिले माफ़ी केवल वह “शिर्क” है जिसका प्रतिबद्ध जान बुझ कर किया गया हो, ना कि वह “शिर्क” जो अनजाने में हो गया होl मिसाल के तौर पर अगर बहोत सारे ईसाई हज़रात ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रात मरियम की इबादत करते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वह ऐसा अल्लाह की तौहीन में करते हों, बल्कि यह भी हो सकता है वह ऐसा एक नबी और उनकी पवित्र मां की हद से ज्यादा मोहब्बत की वजह से करते हों, इसलिए, इस तरह के ईसाई खुदा से बख्शिश की उम्मीद रख सकते हैंl मेरा लेख देखें: क्या कुरआन विरोधाभास की किताब है? इसी तरह वह मुशरिकीन जिनका शिर्क अज्ञानता के आधार पर और अल्लाह की तौहीन से खाली हो, और जो नेक काम करते हैं और सच्चे और इंसाफ पसंद हैं अल्लाह उन्हें माफ़ कर सकता हैl
इसलिए दोसरों के बारे में फैसला करना या उन पर अपने अकीदे थोपना हमारा काम नही है, जबकि हमें वह जरुर बयान करना चाहिए जिसे हम सच मानते हैंl
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