मुसर्रत जबीं (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
कहते हैं कि पैसा सबसे बड़ा शिक्षक होता है, या यूँ कहिए कि आर्थिक सूझ बूझ या रोज़ी रोटी की फिक्र दूसरी हर चीज़ पर हावी होती है। एक समय था कि यूरोप और अमेरिका जाने वाले मुसलमान हलाल और हराम की फिक्र में खुद को सिर्फ फिश और चिप्स तक सीमित रखने पर मजबूर थे। इसमें भी मन में एक शंका बनी रहती थी कि पता नहीं तलने के लिए कैसा घी, कौन सा तेल या चर्बी इस्तेमाल की गयी? फिर जैसे जैसे इनकी संख्या में वृद्धि होती गयी इन्होंने अपने लिए सहूलियतें पैदा कर लीं। यानि आत्म-निर्भर हो गये। लेकिन होटलों और रेस्टोरेंटों में खाना खाते समय ये चिंता फिर भी लगी रहती थी। क्योंकि केवल एशियाई क्षेत्र छोड़कर कम ही ऐसी जगहें थीं, जहाँ हलाल औऱ हराम का भेद किया जाता था। लेकिन खुदा भला करे कारोबार की समझ रखने वालों का जिन्होंने मुसलमानों के बढ़ते हुए बाज़ार को देखकर उससे जुड़ी कारोबारी तरक्की को सोचकर हलाल और हराम के भेद को स्पष्ट करना शुरु कर दिया। अभी पिछले दिनों पेरिस के करीब में एक फास्ट फूड चेन ने खुद के पूरी तरह हलाल होने का ऐलान किया है। इससे पहले एक बड़ी मशहूर बर्गर चेन ने भी हलाल बर्गर सप्लाई करने का ऐलान कर रखा है। यही नहीं बल्कि ये सर्टीफिकेट भी इन चेन स्टोर्स की दीवारों पर चिपका होता है कि ‘यहाँ हलाल तरीके से ज़बह की गयी गायों के बीफ का इस्तेमाल किया जाता है।’ दिलचस्प बात ये है कि ये सब उस देश में हो रहा है, जिसकी पार्लियमेंट हिजाब के खिलाफ कानून पास कर चुकी है। यही नहीं चिकन की दुनिया में प्रसिद्ध एक अमेरिकी चेन ने भी दावा किया है कि वो पिछले कई सालों से हलाल चिकन की ही सप्लाई कर रहे हैं। लेकिन यहाँ बात बर्गर और बीफ की हो रही है। और ये कदम सिर्फ इसलिए किया गया है कि फ्रांस की छः करोड़ तीस लाख की आबादी में मुसलमानों की तादाद पचास लाख के करीब है। और हलाल खाने वालों की संख्या हर साल 15 फीसदी बढ़ रही है। ज़ाहिर है जिस चीज़ की मांग होगी या जिस पर कारोबार निर्भर करेगा, तो कारोबारी उसका खयाल तो करेंगें ही।
इससे एक और बात भी स्पष्ट हो जाती है कि हम लोग जो समझते हैं कि ईसाईयों, यहूदियों और दूसरे धर्म के मानने वालों को मुसलमानों से खास दुश्मनी है औऱ वो उनके अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहते हैं, इसमें ज़रा भी सच्चाई नहीं है, यहाँ मसला सिर्फ अपने अपने हितों और अस्तित्व का है। जैसा कि कुछ दिनों पहले एक यूरोपी पादरी ने शंका ज़ाहिर की थी कि यूरोप और अमेरिका में मुसलमानों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और एक दिन ऐसा होगा जब वो बहुसंख्यक होंगे और स्थानीय नागरिक अल्पसंख्यक के दर्जे पर आ जायेंगे। उनकी ये सोच और शंका इस लिहाज़ से उचित है कि बाकी सारी कौमें तो तरक्की की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए आबादी को नियंत्रित करने पर ज़ोर दे रही हैं, लेकिन मुसलमान अपनी संख्या को अपनी ताकत समझ कर बच्चे पैदा किये जाते हैं। इस बार बाढ़ की तबाहियों के दौरान आपने देखा होगा कि जहाँ चार बड़े लोग होते थे, वहाँ कम से कम 15 बच्चे उनके साथ होते थे। यही तरीका यूरोप, अमेरिका और दूसरे देशों में जारी रहता होगा। लेकिन जहाँ आर्थिक और कारोबारी फायदे की बात आये, वहाँ धर्म औऱ देश दूसरे दर्जे की हैसियत पर आ जाते हैं। ये बात सिर्फ प्रगतिशील देश ही समझ सकते हैं। यही कारण है कि वो अपने फायदे में इन दोनों पहलुओं को शामिल होने की इजाज़त नहीं देते हैं। हिजाब पर पाबंदी में उनका कोई आर्थिक पहलू इसकी ज़द में नहीं आता है। लेकिन जहाँ कारोबार और पैसा आ जाए वहाँ तो हर चीज़ जायज़ और कुबूल है। यहाँ तो बात सिर्फ हलाल गोश्त की थी, जो यूँ भी सेहत के ऐतबार से और हर लिहाज़ से बेहतर है।
स्रोतः जंग, कराची
URL for Urdu article:https://newageislam.com/urdu-section/distinction-between-permissible-(halal)-forbidden/d/3724
URL: https://newageislam.com/hindi-section/difference-between-halal-haram-europe/d/5953