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Hindi Section ( 11 Oct 2017, NewAgeIslam.Com)

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Reflections on Qur'anic Message - Part-8 कुरआन में तक़वा का आफ़ाक़ी अवधारणा (भाग-8)

 

 

 

मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम

14 सितंबर 2017

(संयुक्त लेखक (अशफाकुल्लाह सैयद), इस्लाम का असल पैग़ाम, आमना पब्लिकेशंज़, अमेरिका, 2009)

पिछले लेख में इंसान के नफ्स के प्रतिरोध और उसकी तुच्छ इच्छाओं और लालच व वासना पर एक पहरेदार के रूप में तक़वा के कुरआनी अवधारण को पेश करने के लिए कुरआन की प्रारम्भिक आयतों (91:1-10) को पेश किया गया थाl

जैसा कि कुरआन अमली तौर पर इंसान की नफसानी इच्छाओं के विरुद्ध वास्तव में एक जंग का एलान है, इसकी प्रारम्भिक आयतें (अल बकरा: 2-5) में तक़वा की अवधारणा पेश की गई है जो कि कुरआन में एक छोटी सूरत के बाद स्थित है:

“”(ये) वह किताब है। जिस (के किताबे खुदा होने) में कुछ भी शक नहीं (ये) परहेज़गारों की रहनुमा है (2) जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं और (पाबन्दी से) नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उनको दिया है उसमें से (राहे खुदा में) ख़र्च करते हैं (3) और जो कुछ तुम पर (ऐ रसूल) और तुम से पहले नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाते हैं और वही आख़िरत का यक़ीन भी रखते हैं (4) यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर (आमिल) हैं और यही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे” (5)”(अल बकरा: 2-5)  

शुरूआती आयत 2:2 में साफ़ तौर पर इस बात को उजागर किया गया है कि केवल वही लोग जो मुत्तक़ी (अल्लाह से डरने वाले) और अपनी नफसानी इच्छाओं के गुलाम नहीं हैं, अल्लाह की हिदायत प्राप्त करेंगेl.

और इसके बाद की आयतों (2:3-4) में अल्लाह के वहि और कयामत के दिन पर ईमान के अलावा (2:4) मुत्त्कीन की अनेक नेकियों का उल्लेख है, जैसे, वह नमाज़ अदा करते हैं और खुदा की राह में खर्च करते हैं (2:3)l

विडंबना यह है कि अधिकतर मुसलमानों का यह मानना है कि जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं और सदके में खर्च करते हैं (2:3) वह मुत्तकी हैं और वही कुरआन से हिदायत प्राप्त करेंगे(2:2)l इस प्रकार की व्याख्या तक़वा से ध्यान हटा कर नमाज़ और सदका व खैरात पर ध्यान केन्द्रित कर देती है और इस्लाम धर्म जिसका कि उद्देश्य तक़वा को बढ़ावा देना है उसे केवल नमाज़ और सदका व खैरात के दीन में परिवर्तित कर देती है (2:4) इस सूरत की आयत (2:5) में कुरआन ने तक़वा के आधार पर बुनियादी किरदार की व्याख्य की है : “मुत्तकीन अल्लाह की तरफ से वास्तविक हिदायत पर हैं”, कुरआन अनेक स्थान पर बार बार यह एलान करता है: कि यह “मुत्तकीन के लिए हिदायत और भलाई है” (3:138); यह “मुत्तकीन के लिए भलाई है”(24:34)l

पुरी मानवता के लिए रूहानियत में एक बीच के रास्ते के तौर पर तक़वा

जैसा कि पिछले लेख में इस बात का खुलासा किया गया है कि तक़वा पुरी मानवता के नफ्स का एक अभिन्न अंग है, इसलिए किसी भी मज़हब के लोग मुत्तकी बन सकते हैंl इसी प्रकार वहि के बराबर में कुरआन अहले किताब (ईसाईयों और यहूदियों) में से भी कुछ लोगों को मुत्तक़ी तस्लीम करता हैl

“और ये लोग भी सबके सब यकसॉ नहीं हैं (बल्कि) अहले किताब से कुछ लोग तो ऐसे हैं कि (ख़ुदा के दीन पर) इस तरह साबित क़दम हैं कि रातों को ख़ुदा की आयतें पढ़ा करते हैं और वह बराबर सजदे किया करते हैं (113) खुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं और अच्छे काम का तो हुक्म करते हैं और बुरे कामों से रोकते हैं और नेक कामों में दौड़ पड़ते हैं और यही लोग तो नेक बन्दों से हैं (114) और वह जो कुछ नेकी करेंगे उसकी हरगिज़ नाक़द्री न की जाएगी और ख़ुदा परहेज़गारों से खूब वाक़िफ़ है (115)”(3:113-115)

कुरआन हज और रोज़े के मरासिम पर भी तक़वा को वरियता देता है और एलान करता हैl

“खुदा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खून मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खुदा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो”(22:37)

“हज के महीने तो (अब सब को) मालूम हैं (शव्वाल, ज़ीक़ादा, जिलहज) पस जो शख्स उन महीनों में अपने ऊपर हज लाज़िम करे तो (एहराम से आख़िर हज तक) न औरत के पास जाए न कोई और गुनाह करे और न झगडे और नेकी का कोई सा काम भी करों तो ख़ुदा उस को खूब जानता है और (रास्ते के लिए) ज़ाद राह मुहिय्या करो और सब मे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है और ऐ अक्लमन्दों मुझ से डरते रहो”(2:197)

“ऐ ईमानदारों रोज़ा रखना जिस तरह तुम से पहले के लोगों पर फर्ज था उसी तरफ तुम पर भी फर्ज़ किया गया ताकि तुम उस की वजह से बहुत से गुनाहों से बचोl” (2:183)

जैसा कि परहेज़गारी अच्छे और भले कामों का अग्रणी है (पिछले लेख का अंतिम बयान), इसलिए कुरआन ने रूहानी लाभ प्राप्त करने और खाने और पीने में कोताही के हालत में भी अल्लाह की रज़ा प्राप्त करने के लिए परहेज़गारी की तुलना नेक काम के साथ किया हैl

जो लोग ईमान लाए और नेक काम किये उन पर इसका कुछ गुनाह नहीं जो कुछ खाएं (या नोश करें) जब तक वह तक़वा अपनाए रहें और ईमान रखे और नेकियाँ करें फिर अल्लाह से डरें और ईमान रखें फिर तक़वा अखत्यार करें और नेक रहें, और अल्लाह नेकों को दोस्त रखता हैl” (“Essential Message of Islam” बाब 26.2 – के अनुसार अनुवाद)

उपरोक्त वार्ता लाप से यह पता चलता है कि नेक काम की हि तरह (लेख 6) तक़वा भी सभी मोमिनों के लिए रूहानियत का एक बीच का रास्ता हैl इसलिए , कुरआन कहता है:

“लोगों हमने तो तुम सबको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और हम ही ने तुम्हारे कबीले और बिरादरियाँ बनायीं ताकि एक दूसरे की शिनाख्त करे इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सबमें बड़ा इज्ज़तदार वही है जो बड़ा परहेज़गार हो बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार ख़बरदार है” (49:13)

अल्लाह उन गैर मोमिनों (मुल्हिदों और मुशरिकों) के नेक कामों का फैसला किस प्रकार करेगा जो नफसानी ख्वाहिशात को मारते हैं और नेक काम करते हैंl वल्लाहु आलम बिस्सवाब

अंतिम में, मज़हबी फिकर में किसी भी गलत फहमी से बचने के लिए नफ्स, तक़वा और महान रूहानी फ़रीज़ा नमाज़ के बीच एक अंतर करने वाली रेखा खींचना आवश्यक हैl इस पर हम अगले लेख में गुफ्तगू करेंगेl

मोहम्मद यूनुस ने आईआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल की है और कार्पोरेट एग्ज़िक्युटिव के पद से रिटायर हो चुके हैं और 90 के दशक से क़ुरआन के गहन अध्ययन और उसके वास्तविक संदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी किताब 'इस्लाम का मूल संदेश को 2002 में अल अज़हर अल शरीफ, काहिरा की मंज़ूरी प्राप्त हो गयी थी और यूसीएलए के डॉ० खालिद अबुल फ़ज़ल का समर्थन भी हासिल है। मोहम्मद यूनुस की किताब 'इस्लाम का असल पैग़ाम' आमिना पब्लिकेशंज़ मैरीलैंड, अमेरिका ने 2009 में प्रकाशित किया।

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