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Mughals and Mangoes मुगल शहंशाह और आम

सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम

11 अप्रैल 2022

किसी गिरोह या वर्ग की कुल मिलाकर गुणवत्ता और हसब व नसब का निर्धारण उसके खाने पीने और फलों के शौक से किया जा सकता है।

प्रोफ़ेसर सर एडवर्ड गबन, ‘द राइज़ एंड फाल ऑफ़ रोमन अम्पायर

कह मकरी 13 वीं सदी के सूफी शायर अमीर खुसरो के कलाम का एक इक्तेबास:

बरसा-बरस वह देस में आवेमुँह से मुँह लाग रस प्यावे।

वा खातिर मैं खरचे दामऐ सखि साजन न सखि! आम।।

बशुक्रिया: इंडो इस्लामिक कल्चर/ ट्विटर

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उपरोक्त प्रसिद्ध उद्धवरण मुगलों पर लागू होता है, जो आधे अधूरे इल्म वाले नौ हिन्दुओं के मुताबिक़ असभ्य और वहशियाना लूट मार करने वालेहैं और जो विभिन्न सामाजिक प्लेटफार्म पर मुसलमानों और मुगलों के खिलाफ ज़हर उगलते रहते हैं। वैसे भी यह आमों का मौसम है, जो पके हुए फलों के महक से सरशार है। हर खाने वाले की तरह मुगलों को भी आम बहुत पसंद थे। यहाँ तक कि फ़ारसी शायर उर्फी शीराज़ ने अकबर के दरबार में इसे सरताजे समर (फलों का बादशाह, समर: उर्दू में फल) कहा और फ़ारसी में लिखा, उसकी मत मारी गई है और उसका जायका खराब हो चुका है जिसे आम पसंद नहीं मुगलों को न केवल आम बहुत पसंद थे बल्कि उन्होंने कंधार और आज के कोहाट (उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत जो कि अमरुद और उर्दू के अजीम शायर अहमद फराज़ के लिए भी मशहूर है) तक आम के बागात के मालिक हुए उस फल की सरपरस्ती थी। जब बाबर ने आम को नापसंद कर दिया (क्योंकि उसे मध्य एशिया का खरबूज पसंद था), तो जहांगीर ने उसकी तारीफ़ करते हुए एलान किया कि काबुल के फलों में मिठास के बावजूद, उनमें से एक भी मेरे जायके के मुताबिक़ आम का जायका नहीं रखता।स्पष्ट है कि मुगलों के दौरे हुकुमत में फलों को दरबारी सभ्यता के साथ साथ दरबार के दस्तरख्वान पर भी ख़ास मुकाम हासिल था। फल न केवल खाने की चीजें थीं बल्कि इससे यह भी मालुम होता है कि मुग़ल कौन थे और वह अपनी हिन्दुस्तानी प्रजा के साथ अपने संबंध को किस नजर से देखते हैं। फल तहजीब का एक खूर्दनी पैमाना था, जिसकी काश्त और कदरदानी सभ्य संस्कृति का एक अहम् पैमाना था (बशुक्रिया, नेशनल म्यूजियम ऑफ़ एशियन आर्ट, 12 अक्टूबर, 2012)

जहांगीर के पिता शहंशाह अकबर को मलीहाबाद के इलाके (लखनऊ के करीब) के आम इस कदर पसंद थे कि उन्होंने आमों के टुकड़ों को शहद में महफूज़ करने का हुक्म दिया था ताकि जब आप का मौसम जाए तो उसका मज़ा लिया जा सके। मैं बताता चलूँ कि शहद एक बेहतरीन रक्षक है। दिलचस्प बात यह है कि जब अकबर जवान था तो उसे आमों से एलर्जी थी और रस दार फल खाने के बाद उसकी जिल्द पर दाने पद जाते थे। लेकिन उसे इसका ज़ायका पसंद था। खुशकिस्मती से, फैजी (अबुल फज़ल के बड़े भाई और दरबारे अकबरी के नौ रत्नों में से एक) उनकी मदद के लिए आए क्योंकि फैजी एक हकीम भी थे। उन्होंने अकबर को चुटकी भर हींग के साथ आप का पन्ना पीने का मशवरा दिया। अकबर ने मुकम्मल तौर पर उनकी हिदायत पर अमल किया जिससे आम से उनकी एलर्जी दूर हो गई। अकबर के दरबारी शायरों ने फ़ारसी, उत्बी और नजीरी में आमों पर तसनीफात लिखे। अत्बी ने अकबर के आम के शौक पर एक तवील नज़म लिखी और उसने आम की शहवत अंगेज़ सिफात ब्यान कीं। अकबर अजदवाजी कुर्बत से एक घंटा पहले एक पका हुआ आम (शायद चौसा आम) खाने की सिफारिश की। राजा तोडर मल ने शहंशाह के इस टिब्बीमशवरे से फायदा उठाया।

मिर्ज़ा ग़ालिब की आमों से मोहब्बत हमारी अवामी हिकायात का हिस्सा है

बशुक्रिया: इंडो इस्लामिक कल्चर/ट्विटर

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शाहजहाँ विभिन्न प्रकार के आमों का मज़ा लिया करता था और उसे अमरस (बिना दूध के) बहुत पसंद था। उसे आमों का इतना शौक था कि जब उसके बेटे औरंगजेब ने उसे कैद किया तो उसने शाहजहाँ को गर्मियों में कम से कम आम से लुत्फ़ अन्दोज़ होने की छूट दे रखी थी। आम तौर पर सख्त मिजाज़ औरंगजेब को भी आम बहुत पसंद थे और जब वह दकन (औरंगाबाद और अहमद नगर) में थे तो उन्होंने कई किस्म के नए आमों का भी जायका आजमाया और उन्हें शुमाल के आमों से बेहतर पाया। आखरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को भी आम बहुत पसंद थे। अफ़सोस जब अंग्रेजों ने उसे रंगून (बर्तानिया के अधीन बर्मा) में जिलावतन कर दिया तो बे चारे को इससे महरूम कर दिया गया। माना जाता है कि ज़फर ने आमों की तारीफ़ में एक नज़्म भी लिखी थी लेकिन उनके उस्ताद और शायर इब्राहीम जौकने इसे मुश्तहीर करने से रोक दिया क्यों कि उस्ताद शायर का ख्याल था कि एक शहंशाह की तरफ से यह एक गैर मुनासिब अमल है, बल्कि बादशाह की शान के खिलाफ है कि वह आम पर लिखें और फल की तारीफ़ करें! ज़फर और जौक के समकालीन मिर्ज़ा असदुल्लाह खान ग़ालिब का फलों के बादशाह से लगाव उर्दू अवामी हिकायात का हिस्सा है।

अब जब कि आम बाज़ार में आ चुके हैं तो वक्त आ गया है कि इस फल के जायके से लुत्फ़ अन्दोज़ हुआ जाए। मुख्तसर अफ़साना निगार इंतज़ार हुसैन के अलफ़ाज़ में कहा जाए तो, अफ़सोस है कि, आम आज कल आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चुका है। आम, वाकई अब आम लोगों की पहुँच से बाहर है।

English Article: Mughals and Mangoes

Urdu Article: Mughals and Mangoes مغل شہنشاہ اور آم

URL: https://newageislam.com/hindi-section/mughals-mangoes-ghalib-jahangir/d/126827

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