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Hindi Section ( 20 March 2017, NewAgeIslam.Com)

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Teachings of the Prophet Lifeline for Humanity नबी ए रहमत की शिक्षा मानवता के लिए अमृत


मुफ्ती अब्दुल मुनईम फ़ारूक़ी

6 जनवरी, 2017

नबी ए रहमत के दुनिया में आने से पहले केवल अरब देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया घोर अंधकार में तब्दील हो चुकी थीl हर तरफ कुफ्र, शिर्क, हत्या, लूटपाट, उत्पीड़न, अभद्रता व बेशर्मी, शराब और कबाब, धोखा और फरेब और अनैतिकता व अशांति का दौर दौरा था, लड़कियों का जन्म दोष माना जाता था, उन्हें पैदा होते ही दफन कर दिया जाता था, आपसी दुश्मनीं चरम पर थीं, मामूली मतभेद पर वर्षों युद्ध करते थे, शक्तिशाली कमजोर पर अत्याचार करता था, अमीर गरीब पर शासन करता था, मनुष्य बेचे खरीदे जाते थे और उन्हें गुलाम बांदी बनाकर रखा जाता, हर तरफ शैतान और तागुती लश्कर दनदनाते फिर रहे थे, मनुष्य मानवता के स्तर से नीचे गिर चुका था, इन हालात और दशाओं को देखकर ज़माना उंगुश्त बदन्दां था मानवता विलाप कर रही थी और शोक ग्रस्त थी इतिहासकारों ने उस समय को दौरे जाहिलियत का नाम दिया है इन परिस्थितियों में अल्लाह ने इंसानों पर कृपा किया और इंसानों की मार्गदर्शन और रहबरी और उनकी हिदायत और गौरव के लिये मोहसिने इंसानियत रहमते आलम और क़यामत तक के लिये आख़री रसूल बनाकर भेजा, आपका आगमन क्या था मानो पूरी मानवता के लिए रहमत की वर्षा थी, अंधकार छट गया, हर तरफ उजाला हो गया, झूठे खुदा मुंह के बल गिर पड़े, तौहीद का झंडा उंचा हुआ, कुफ्र व शिर्क का तिलिस्म टूट गया, तौहीद व रिसालत जलवा गर हुआ, उत्पीड़न के बादल छट गए, न्याय की रिम झिम बारिश बरसने लगी, बेहयाई और बेशर्मी भाग खड़ी हुई, शर्मो हया ने अपनी चादर तान ली, दम तोड़ते हुए मानवता को ऑक्सीजन मिला, उसे नया जीवन हासिल हुआ और मानवता ने चैन की सांस ली, नबी ए रहमत ने दुनिया को ख़ुदाई अहकाम व फरमान से अवगत कराया और अपनी बेमिसाल और बेनजीर शिक्षाओं से लोगों को जीने की राह दिखाई, दुनिया को शांति सुरक्षा और सुकून का संदेश दिया, जिन्नात और  इंसान से उनके निर्माता और मालिक का परिचय करायाl

दुनिया बनाने और उसमें इंसानों के बसाए जाने के उद्देश्य को स्पष्ट किया, बताया कि सब का निर्माता और मालिक एक है, उसका कोई साझी नही, वही पूजा के योग्य है, दुनिया की व्यवस्था उसी के दम से है, हर चीज़ पर उसकी सरकार व संप्रभुता है, मृत्यु और जीवन का वही निर्माता है, लाभ व हानि का वही आविष्कारक है, उसकी इच्छा के बिना न कोई पत्ता हिल सकता है, ना कोई बूंद गिर सकता है, और न ही कोई चीज़ अस्तित्व में आ सकती है, उसनें एक उद्देश्य के तहत और एक निर्धारित समय देकर मनुष्य को संसार में भेजा है, मानव का वास्तविक जीवन आख़िरत है जो असीमित है इसके बाद खुदा की नज़दीकी और पुरस्कार प्राप्ती का आधार संसार में खुदा और पैगंबरे खुदा की आज्ञा के पालन पर निर्भर है, नबी ए रहमत की बेसत का उद्देश्य ही मनुष्य को अल्लाह की इच्छा बताना और इसके अनुसार जीवन जीने की व्यावहारिक स्थिति प्रदर्शित करना है, नबी ए रहमत ने अपनी दया भरी शिक्षाओं से इंसानों का पूरा मार्गदर्शन किया, इबादात (पूजा)  हो या मुआमलात (व्यवहार), सामूहिक या व्यक्तिगत पारिवारिक या सामाजिक भीड़ हो, एकांत शहरी हो या मुल्की वैश्विक हो या सार्वभौमिक, मतलब यह कि मानव जीवन के किसी कोनें को प्यासा नहीं छोड़ा, नबी ए रहमत ने बताया कि आदम अलैहिस्सलाम पहले इंसान हैं और सारे मनुष्य उन्हीं की संतान हैं, किसी गोरे को किसी काले पर, अमीर को गरीब पर, अरबी को अजमी (गैर अरब) पर, स्वामी को दास पर, राजा को प्रजा पर, कभी प्राथमिकता नहीं, मगर प्रभु की दृष्टी में वही व्यक्ति प्रिय और सुंदर है जो उससे डरता है और उसी की इच्छा पर चलता है, मानवता का सम्मान बहुत बड़ी चीज़ है, अत्याचार व र्व्यवहार करने वाले ज़मीन में फसाद पैदा करने वाले अल्लाह की दृष्टि में मबगुज़ (ना पसंद) हैं, माता-पिता की सेवा बड़ी पूजा है, रिश्तेदारों के साथ सिलह रहमी (रिश्ते को जोड़ना) इनाम का कारण है, संबंधीयों और पड़ोसियों से अच्छा बर्ताव ईमान का हिस्सा है, गरीब व जरूरतमंद, विधवा और अनाथ की मदद व नुसरत बहुत बड़ी सेवा है, नबी ए रहमत नें ना केवल मनुष्य के साथ सहानुभूति और मदद व नुसरत की शिक्षा दी बल्कि पशुओं को चोट देनें और वनस्पति को अनावश्यक काटने और बर्बाद करने से भी मना किया, नबी ए रहमत ने मानव  सम्मान की तरफ इतना ध्यान दिलाया कि मानव इतिहास में उसकी मिसाल मिलना असंभव हैl

इसलिए हज़रत जाफ़र बिन अबी तालिब की निहायत बलीग और व्यापक भाषण इसका प्रमाण है जो उन्होंने हब्शा के बादशाह अस्हमह नज्जाशी के दरबार में की थीl इस्लाम के प्रारंभिक काल में मक्का के मुशरिकीन के ज़ुल्म व सितम से तंग आकर कुछ मुसलमान पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वासलाम से अनुमति लेकर हब्शा प्रवास कर गएl मक्का के मुशरिकीन को जब इसकी खबर हुई तो उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल हब्शा भेजा ताकि उन्हें वापस लाया जा सके मुशरिकीने मक्का के प्रतिनिधिमंडल ने वहाँ पहुंचकर सर्व प्रथम उपहार प्रदान किए फिर मुसलमानों के खिलाफ राजा को खूब भड़काया, मामले की जानकारी के लिये जब राजा ने मुसलमानों को बुलाया तो इस अवसर पर हज़रत जाफ़र ने हब्शा के बादशाह के सामने जिन शब्दों में भाषण दिया उसका कुछ हिस्सा यह था "ए राजा हम सब अज्ञानी और मूर्ख थे मूर्तियों को पूजते और मृत खाते थे तरह तरह की बेहयाईयों से पीड़ित थे, रिश्ते नातों को तोड़ा करते, और पड़ोसियों के साथ दुर्व्यवहार करते थे, हम में शक्तिशाली दुर्बल पर अत्याचार करता था, इसी स्थिति से हम दो चार थे कि अल्लाह ने हम पर दया फरमाया और हम ही में से एक पैग़म्बर भेजा जिसकी हसब व नसब (परिवार) और सच्चाई व अमानतदारी और शुद्धता व पवित्रता से हम खूब परिचित हैं, उसनें हमें एक अल्लाह की तरफ बुलाया उसी की उपासना का आदेश दिया और सच्चाई अमानत दारी और सिलह रहमी सिखाया, पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करने, लड़ाई-झगड़े से बचने, हराम खाने से, अनाथों का माल खाने, पाक दामन पर तोहमत लगाने, और सभी अभद्रता के कामों से बचने का आदेश दिया, और आदेश दिया कि हम अल्लाह की पूजा करें किसी को उसका साझी ना करें, नमाज़ पढ़ें, ज़कात दें, रोज़ा रखें, और अपना जान व माल राहे ख़ुदा में लगाने से परहेज न करें (सीरतुल मुस्तफा, 1-250)l

नबी ए रहमत ने आम इंसानों के अलावा देशी नागरिक और पड़ोसी से लेकर रिश्तेदारों तक के अधिकार बताए हैं, नबी ए रहमत ने हुज्जतुल विदाअ (अंतिम हज) के अवसर पर अपने भाषण में मानव अधिकार और मानव सम्मान की ओर जिस अंदाज में ध्यान दिलाया वह सभी मनुष्यों के लिए अमृत की हैसियत रखता है, इरशाद फरमाया: मफहुम- "ऐ  लोगों! तुम्हारा परवरदिगार एक है, सावधान! किसी अरबी को अजमी पर बढ़त नहीं और न किसी अजमी को अरबी में उत्कृष्टता प्राप्त है और न काले रंग वालों को गोरे रंग वाले पर और न लाल रंग वाले को किसी काले रंग वाले पर प्राथमिकता प्राप्त है सिवाए तक़वा (अल्लाह का डर) और संयम के "(मुसन्द अहमद: 24204), माता पिता के साथ अच्छे व्यवहार के बारे में आपने फरमाया: नेकियों में सबसे जल्दी पुरस्कार सिलह रहमी और माता पिता के सम्मान पर मिलता है (इब्ने माजा), रिश्तेदारों के साथ सिलह रहमी की शिक्षा देते हुए इरशाद फरमाया: “जो व्यक्ति यह चाहता है उसकी जीविका का विस्तार किया और उसकी उम्र बढ़ जाए तो उसे चाहिए कि रिश्तेदारों को जोड़े रखे” (बुखारी), अनाथों के बारे में आपने फरमाया: “मैं और अनाथ का प्रायोजन करने वाला स्वर्ग में इस तरह साथ होंगे जैसे शहादत और बीच की उंगली” (बुखारी), विधवा और मिस्कीन की मदद व नुसरत की फज़ीलत बताते हुए फरमाया: “विधवा और मिस्कीन की मदद करने वाला अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले और रात में लगातार नमाज़ पढ़ने वाले और दिन में लगातार रोज़ा रखने वाले की तरह है” (बुखारी), पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार सिखाते हुए फरमाया : “जो व्यक्ति अल्लाह पर और आखिरत के दिन में विश्वास रखता है उसे चाहिए कि अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा बर्ताव करे” (मुस्लिम), एक दूसरी हदीस में पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने वालों को स्वर्ग की बशारत और उनके साथ बुरा करने वालों को नरक की चेतावनी सुनाई गई है (मिशक़ात), छोटों के साथ दया और वयस्कों के साथ सम्मान और इकराम सिखाते हुए फरमाया: “वह व्यक्ति हम में से नहीं जो हमारे छोटों पर दया न करे और हमारे बड़ों का आदर न करे” (तिर्मिज़ी), नबी ए रहमत ने अपनी शिक्षाओं द्वारा औरतों को उंचा स्थान दिया, उन्हें वह स्थान दिया जिसकी वे हकदार हैं|

आपनें महिलाओं को जिस सम्मान से सम्मानित किया मानव इतिहास में उसकी मिसाल नहीं, आपके आगमन से पहले सिन्फे नाजुक का सबसे खराब शोषण किया जाता था, उनके अधिकार हनन किए जा चुके थे, बांदी बनाकर उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जता था, अपनी संतुष्टि की खातिर उन्हें शम्मा ए महफ़िल बनाया जाता था, कुछ बदबख़्त उनके जन्म को मनहूस कल्पना कर के पैदा होते ही जीवित दफ्न कर देते थे, गरज यह कि महिलाओं के साथ बेहद दुर्व्यवहार किया जाता था, ऐसे नाज़ुक परिस्थितियों में पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद हुई, आपने आते ही महिलाओं को वह स्थान दिया जिसका सदियों से इंतजार था, आपने अपनी शिक्षाओं के ज़रिए कहा कि औरत हर रूप में सक्षम सम्मान और सम्मान योग्य है उसकी सेवा और उत्कृष्ट व्यवहार इनाम का कारण है, अगर औरत पत्नी है तो उस पर खर्च सर्वश्रेष्ठ दान है और औरत अगर माँ है तो उसके कदमों में स्वर्ग है, अगर वह बहन या बेटी है तो उनकी देखभाल उत्कृष्ट प्रशिक्षण और शादी करके उनके घर बसाना स्वर्ग में प्रवेश का स्रोत है, आपनें युद्ध और दुश्मन से मुदभेड़ के अवसर पर भी मानवता की शिक्षा दी, इसी शिक्षा और प्रशिक्षण का नतीजा था कि खलीफा ए प्रथम सैययदूना अबु बकर सिद्दीक रदीअल्लाहु अन्हु ने लश्कर को रवाना करते समय उसके कमांडर को निर्देश देते हुए यह भी फरमाया: “किसी बच्चे की हत्या मत करना, किसी महिला पर हाथ न उठाना, किसी बूढ़े को न मारना, कोई फलदार पेड़ न काटना, किसी बकरी आदि को ख्वामख्वाह वध न करना, किसी बगीचे को न जलाना, किसी बगीचे में पानी छोड़ कर नष्ट न करना कायरता न दिखाना, और माले गनीमत में खयानत न करना” (इब्ने अबी शैबह), नबी ए रहमत और आपकी दया भरी शिक्षा आइने की तरह साफ है,

लेकिन इसके बावजूद आज पूरी दुनिया में इस्लाम दुश्मन ताकतें बहुत व्यवस्थित तरीके से इन हसीन, लाजवाब और बे मिसाल शिक्षाओं को बदनाम करने और इस सुन्दर चेहरे को विकृत करने की नापाक कोशिश में लगे हुए हैं, इस साजिश में पश्चिमी मीडिया अधिक लगी हुई है, कुछ फर्जी इस्लामी नामों का सहारा लेकर नबी ए रहमत के नाम लेनें वालों को बदनाम करने की अत्यधिक मज़मुम प्रयासों में लगे हुए हैं, लेकिन बतौर मुसलमान होने के इन नाजुक हालात और फितने के इस दौर में हमारी जिम्मेदारी है कि नबी ए रहमत की दया वाली शिक्षाओं से दुनिया को रूबरू कराएँ, अपनी क्षमता और योग्यता का उपयोग करते हुए अपनी बिसात के अनुसार दुनिया के सामने सहीह तालीम को स्पष्ट करें, अपने बातों से, अमल से, बेहतरीन अखलाक़ से, और अपने चरित्र के माध्यम से साबित करें कि नबी ए रहमत की शिक्षा वाकई लाजवाब, मानवीय शांति की गारंटी और हृदय संतोष का विषय हैं, समकालीन में तड़पती सिसकती और शांति की खोजकर्ता मानवता को पयामे रहमत की सख्त जरूरत है, इसके बिना मानवता के आराम की कल्पना बेकार है, आज दुनिया भौतिक विकास के बावजूद बर्बादी के कगार पर खड़ी है, अगर नबी ए रहमत का रहमत वाला पयाम न पहुंचा तो विनाश से बचना उनके लिये असम्भव हो जाएगा, हम गुलामानें नबी ए रहमत खुद भी पैगम्बर की शिक्षाओं के अनुसार जीवन गुजारें और दया वाला संदेश दूसरों तक भी पहुचाने की चिंता करें।

इंसानियत को तूनें वो आईन दे दिया

गोया पयामे नाज़िशो तमकीन दे दिया

आलम को जौके जलवा ए तज़ईन दे दिया

टूटे दिलों को मुज़्दा ए तस्कीन दे दिया

6 जनवरी, 2017 स्रोत: रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली

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