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Hindi Section ( 27 Oct 2025, NewAgeIslam.Com)

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The Concept of Monotheism in Zoroastrianism, Judaism, and Christianity: A Perspective of Maulana Abul Kalam Azad (Part Four) विभिन्न धर्मों में एकेश्वरवाद (Monotheism) का विचार: ज़रथुस्त्र धर्म, यहूदी धर्म और ईसाई धर्म के संदर्भ में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का दृष्टिकोण (भाग चार)

डॉ. ज़फ़र दारिक क़ासमी, न्यू एज इस्लाम

27 अक्टूबर 2025

सारांश:

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी प्रसिद्ध तफ़सीर तरजुमानुल क़ुरआनमें यह बताया कि दुनिया के विभिन्न धर्मों में एकेश्वरवादयानी एक ईश्वर में विश्वास का विचार कैसे पाया गया।

उनके अनुसार, प्राचीन चीनी लोग स्वर्गीय सत्ता (Heavenly Being) की पूजा करते थे, जो एक उच्च शक्ति में आंशिक विश्वास को दिखाता था।

ज़रथुस्त्र धर्म (Zoroastrianism) में एक ईश्वर अहुरा मज़्दाका विश्वास था, लेकिन उसके साथ अच्छाई और बुराईकी दो शक्तियों का भी विचार था।

यहूदी धर्म में एक ईश्वर में विश्वास था, परंतु वे उसे केवल इस्राएल की जातितक सीमित रखते थे।

ईसाई धर्म ने प्रेम और दया का संदेश दिया, लेकिन बाद में त्रिमूर्ति (Trinity) और अन्य विचारों को मिला दिया।

मौलाना आज़ाद के अनुसार, क़ुरआन ने एकेश्वरवाद (तौहीद) की शुद्ध और पूर्ण अवधारणा को पुनर्जीवित किया और द्वैतवाद, बहुदेववाद तथा मानव-रूप वाले ईश्वर के सभी विचारों को समाप्त कर दिया।

मुख्य बिंदु :

1. मौलाना आज़ाद ने अध्ययन किया कि प्राचीन धर्मों में ईश्वर की अवधारणा कैसी थी।

2. चीनी धर्म में स्वर्गीय सत्ताका विचार था जिसमें दया और क्रोध दोनों झलकते थे।

3. ज़रथुस्त्र धर्म में अहुरा मज़्दाएक ईश्वर थे, परंतु अच्छाई और बुराईकी दो शक्तियाँ भी थीं।

4. यहूदी धर्म ने एक ईश्वर में विश्वास किया लेकिन उसे केवल अपनी जाति तक सीमित रखा।

5. ईसाई धर्म ने प्रेम और क्षमा सिखाई, परंतु बाद में त्रिमूर्तिके विचार को जोड़ दिया।

मौलाना आज़ाद का विश्लेषण

 तरजुमानुल क़ुरआन के पहले भाग में मौलाना आज़ाद ने बताया कि जब क़ुरआन उतरा, तब दुनिया में पाँच बड़े धार्मिक विचार मौजूद थे

चीनी, भारतीय, मजूसी (ज़रथुस्त्र धर्म), यहूदी और ईसाई।

उन्होंने इन सभी धर्मों की शिक्षाओं का गहराई से विश्लेषण किया और देखा कि इनमें ईश्वर की एकता (Tawheed) का विचार कहाँ तक मौजूद था।

चीनी धार्मिक और दार्शनिक विचार (Chinese Concept):

मौलाना आज़ाद के अनुसार, प्राचीन चीन में लोग कई स्थानीय देवताओं की पूजा करते थे, लेकिन साथ ही वे स्वर्गीय सत्ता (Heavenly Being) में भी विश्वास रखते थे।

यह स्वर्ग उनके लिए एक महान, उच्च शक्ति थी।

वे आकाश की ओर देखकर ईश्वर की महानता का अनुभव करते थे।

सूरज उन्हें रोशनी देता था, तारे अंधेरी रातों में चमकते थे, वर्षा फसलों को उगाती थी परंतु बिजली और तूफ़ान विनाश भी लाते थे।

इसलिए, उनके ईश्वर के विचार में दया और क्रोध दोनों रूप नज़र आते थे।

मौलाना आज़ाद बताते हैं कि चीनी कविताओं में भी यह विरोधाभास दिखता है:

हे स्वर्ग, तेरे कर्मों में सामंजस्य क्यों नहीं? तू जीवन देता है, फिर विनाश भी तू ही लाता है।

इसके अलावा, वे अपने पूर्वजों की आत्माओं की पूजा करते थे और मानते थे कि वे भी शक्ति रखते हैं।

हर परिवार का अपना पूर्वज देवताहोता था और हर क्षेत्र के अपने स्थानीय देवता

धीरे-धीरे आकाशही उनके लिए ईश्वरबन गया।

इस कारण चीन को स्वर्गीय साम्राज्य (Heavenly Kingdom) कहा जाने लगा।

मजूसी या ज़रथुस्त्र धर्म (Magianism / Zoroastrianism):

मौलाना आज़ाद बताते हैं कि ज़रथुस्त्र से पहले ईरान में कई देवताओं की पूजा होती थी।

जैसे भारत के वेदों में यज्ञ और देवताओं की उपासना थी, वैसे ही ईरान में भी थी।

ईरानियों के अनुसार, दुनिया दो शक्तियों से बनी थी अच्छाई (प्रकाश) और बुराई (अंधकार)।

अच्छाई जीवन देती थी और बुराई विनाश लाती थी।

आग को पवित्र माना जाता था और आग की पूजा के लिए वेदी बनाई जाती थी।

जब ज़रथुस्त्र आए, उन्होंने लोगों को बहुदेववाद से मुक्त कराया और एक ईश्वर अहुरा मज़्दाकी उपासना शुरू की।

अहुरा मज़्दा को उन्होंने प्रकाश, पवित्रता, ज्ञान और अच्छाई का प्रतीक बताया।

उन्होंने कहा कि शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अमर है, और कर्मों के अनुसार स्वर्ग या दंड मिलता है।

परंतु, ज़रथुस्त्र धर्म में द्वैतवाद (Dualism) भी रहा यानी अच्छाई और बुराई की दो स्वतंत्र शक्तियाँ।

अहुरा मज़्दाप्रकाश का प्रतीक था और अहरिमन (Angra Mainyu) अंधकार का।

यही विचार इस्लामी तौहीद से अलग है, क्योंकि इस्लाम में सारी शक्ति केवल एक ईश्वर के पास है, न कि दो विरोधी शक्तियों में।

यहूदी धर्म (Judaism):

मौलाना आज़ाद लिखते हैं कि यहूदी धर्म का आरंभ क़बीलाई विचारसे हुआ।

उनका ईश्वर यहोवा (Yahweh) पहले सिर्फ इस्राएल की जाति का देवता माना जाता था।

धीरे-धीरे यह विचार बढ़ा और बाद में यहूदी धर्म में ईश्वर को सभी राष्ट्रों का ईश्वरकहा जाने लगा,

लेकिन फिर भी वे उसे केवल अपनी जाति से जोड़ते रहे।

उनका ईश्वर कभी-कभी क्रोधित, बदला लेने वाला और ईर्ष्यालु रूप में चित्रित किया गया।

तोरा (Torah) में ईश्वर को इंसानी भावनाओं के साथ दिखाया गया है जैसे पति-पत्नी के संबंध की तरह।

ईश्वर को ईर्ष्यालु पतिमाना गया जिसने इस्राएल को अपनी प्रिय पत्नीकहा।

इस्राएल की बेवफाई को पापबताया गया जिसके लिए दंड दिया जाता था।

दस आज्ञाओं में यह लिखा है:

  तू किसी मूर्ति को न बना, न उसके आगे झुक; क्योंकि मैं तेरा ईश्वर यहोवा ईर्ष्यालु ईश्वर हूँ।

इससे यह स्पष्ट होता है कि यहूदी धर्म में मूर्तिपूजा वर्जित है और एक ईश्वर की उपासना का आदेश है।

ईसाई धर्म (Christianity):

मौलाना आज़ाद बताते हैं कि ईसाई धर्म ने एक नया संदेश दिया प्रेम, दया और क्षमा का।

अब ईश्वर को क्रोधित राजा या ईर्ष्यालु पति की तरह नहीं, बल्कि दयालु पिता की तरह देखा जाने लगा।

यह मानवता के लिए एक बड़ा बदलाव था।

माता-पिता और बच्चे के रिश्ते में जो शुद्ध प्रेम होता है, उसी तरह ईश्वर और मनुष्य का संबंध बताया गया।

लेकिन जब ईसाई धर्म रोमी विचारों से मिला, तो उसमें त्रिमूर्ति (Trinity), प्रायश्चित्त (Atonement) और ईसा मसीह की ईश्वरता (Divinity of Christ) जैसे विचार शामिल हो गए।

इससे एकेश्वरवादऔर बहुदेववादका मिश्रण तैयार हो गया।

पुरानी मूर्तियों की जगह मदोनना (Madonna) यानी माता मरियम की मूर्तिरख दी गई।

इस प्रकार, जब क़ुरआन उतरा, उस समय ईसाई धर्म में ईश्वर का विचार प्रेम और दया के साथ त्रिमूर्ति और मूर्तिपूजा का मिश्रण बन चुका था।

निष्कर्ष (Conclusion):

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि

क़ुरआन के अवतरण से पहले दुनिया के विभिन्न देशों और धर्मों में ईश्वर के बारे में अलग-अलग विचार थे:

चीन में स्वर्ग को सर्वोच्च शक्ति माना जाता था।

ज़रथुस्त्र धर्म में अच्छाई और बुराई की दो विरोधी शक्तियों का विश्वास था।

यहूदी धर्म में एक ईश्वर की उपासना थी, लेकिन उसे केवल अपनी जाति तक सीमित रखा गया।

ईसाई धर्म में प्रेम और दया का संदेश तो था, परंतु बाद में उसमें त्रिमूर्ति और अन्य विचार मिल गए।

इसलिए, क़ुरआन ने एकेश्वरवाद की शुद्ध और पूर्ण रूप में पुनः स्थापना की

ईश्वर को किसी भी रूप, मूर्ति, द्वैत या समानता से परे बताया।

केवल एक ही ईश्वर सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता और सर्वशक्तिमान है।

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English Article: The Concept of Monotheism in Zoroastrianism, Judaism, and Christianity: A Perspective of Maulana Abul Kalam Azad (Part Four)

URL: https://newageislam.com/hindi-section/monotheism-zoroastrianism-judaism-christianity-azad-part-four/d/137401

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