मोहम्मद आसिफ रियाज़
26 अक्तूबर, 2013
कुरान की सूरे बक़रा में है "अगर तुम औरतों को इससे पहले तलाक दे दो कि तुमने उन्हें हाथ लगाया हो और तुमने उसका महेर भी तय दिया हो तो तय किये गये महेर का आधा दे दो। ये और बात है कि वो खुद माफ कर दे या वो शख्स माफ कर दे जिसके हाथ में निकाह की गिरह हो। तुम्हारा माफ कर देना तक़वा (परहेज़गारी) के बहुत क़रीब है। और आपस की फज़ीलत और बुज़ुर्गी को भुलाओ मत। यक़ीनन अल्लाह तुम्हारे आमाल को देख रहा है।" (अलबक़रा- 237)
कुरान की इस आयत में अच्छे व्यवहार को बताया गया है। इसमें बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति शादी करे और उसका महेर भी तय हो गया हो लेकिन किसी वजह से उसके अंदर दूसरा विचार पैदा हो जाए और वो मिलाप से पहले ही अपनी बीवी को तलाक़ देना चाहे तो उस पर अनिवार्य है कि वो निश्चित किये गये महेर का आधा हिस्सा अपनी बीवी को अदा करे।
लेकिन यहाँ एक गुंजाइश भी रखी गई है। वो ये कि दोनों पक्षों में से जो चाहे अपने हिस्से को माफ कर दे। लड़की का माफ करना ये है कि वो अपना हिस्सा छोड़ दे और लड़के का माफ करना ये है कि वो महेर का आधा हिस्सा अपने पास बचाकर न रखे बल्कि वो महेर की पूरी रक़म अपनी बीवी को दे दे। यानि कि कानूनन उसे आधा हिस्सा रखने का अधिकार हासिल है।
खुदा के पास ये तक़वा (परहेज़गारी) और फज़ीलत (पुण्य) की बात है कि आदमी अपना हिस्सा माफ कर दे। खुदा ने फज़ीलत का ये मौक़ा दोनों पक्षों को दिया। अगर सिर्फ औरत को माफ करने का अधिकार होता तो नैतिक रूप से औरत को आदमी पर फज़ीलत हासिल हो जाती और अगर सिर्फ मर्दों को माफ करने का अधिकार होता तो मर्दों को औरतों पर नैतिक रूप से फज़ीलत हासिल हो जाती। खुदा ने अपने करम से चाहा कि दोनों को बराबर का मौक़ा मिले, ताकि दोनों पक्षों में से जो चाहे अपना हिस्सा माफ करके अपने आप को फज़ीलत और तक़वा के मक़ाम पर स्थापित करे।
आदमी एक घर में रहता है वो एक परिवार में पालन पोषण पाता है। वो भाई बहनों वाला, परिवार और क़बीले वाला होता है, फिर उस पर जुदाई का वक्त आता है।
जुदाई के इस वक्त में एक स्थिति तो ये होती है कि हर पक्ष कानून के अनुसार अपना अपना हिस्सा मांगे और कोई भी कुछ छोड़ने के लिए तैयार न हो। यहां तक कि प्रत्येक संपत्ति में अलग अलग हिस्सा लेने पर अडिग हों। इस तरह वो अपनी संपत्ति भी बर्बाद करेंगे और दूसरों की भी। उनका हाल ये है कि इनमें हर कोई कानून की भाषा जानता कोई तक़वा और फज़ीलत से वाक़िफ़ न हो।
ऐसा हर घर चड्ढा (Chadha) का घर साबित होगा। चड्ढा बंधुओं का भारत में बहुत बड़ा कारोबार था। इन लोगों ने देश भर में छह हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा का कारोबार फैला रखा था। लेकिन जब जुदाई का वक्त आया तो इनमें से हर एक क़ानून की भाषा जानता था, कोई तक़वा की ज़बान नहीं जानता था, इसलिए कोई भी कुछ छोड़ने के लिए तैयार न हुआ और आखिरकार दिल्ली के छतरपुर फार्म हाउस में दोनों भाइयों ने एक दूसरे को गोली मार खत्म कर दिया। देखिए द हिंदू बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट :
Liquor and real - estate baron Gurpreet Singh Chadha , known as ' Ponty Chadha ' , and his younger brother , Hardeep , dies on Saturday after allegedly opening fire at each other during a meeting to resolve their property dispute . The Hindu Business Line . NEW DELHI , NOV 17
जुदाई की एक दूसरी स्थिति भी है। वो है तक़वा और फज़ीलत के साथ जुदा होना। इस्लाम में मामले सिर्फ कानून तक पहुंच कर खत्म नहीं हो जाते बल्कि इसके आगे भी पक्षों के लिए खोने और पाने का अवसर बाकी रहता है। इसी मौक़े को कुरान में तक़वा और फज़ीलत कहा गया है।
लेकिन अजीब बात है कि इंसान कानून की ज़बान जानता है, वो तक़वा और अच्छे व्यवहार की भाषा नहीं जानता। इंसान अपना अधिकार लेना जानता है वो अपना हक़ छोड़ना नहीं जानता। वो अपने अधिकारों के मामले में कानून के हर दांव पेंच से वाक़िफ़ है लेकिन तक़वा के क़ानून को नहीं जानता ।
इंसान मर कर जब अपने खुदा के सामने हाज़िर किया जाएगा तो वो मामलों के बारे में अपने खुदा से ये नहीं कह सकेगा कि ऐ खुदा मैं तेरे फरमान को नहीं जान सका। खुदा उससे पूछेगा कि तू कानून के दांव पेंच को तो खूब जानता था लेकिन कुरान के स्पष्ट फरमान के मामले में अपनी होशियारी का सुबूत क्यों न दे सका?
अपने अधिकार को जानने में हर आदमी होशियार है। इसमें हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई किसी का कोई अपवाद नहीं। अपने माल को जिस कदर मज़बूती से सेकुलर और नास्तिक लोग पकड़ते हैं, उतनी ही बल्कि उससे भी अधिक मज़बूती से धार्मिक होने का दावा करने वाले लोग भी पकड़ते हैं। शायद वो ये समझते हैं कि वो धार्मिक हैं इसलिए वो जो चाहें करें।
हदीस में इस बात की भविष्यवाणी इस तरह की गई है:
"इब्ने मर्दविया की एक रवायत में है कि, पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कहा कि "लोगों पर एक काट खाने वाला दौर आएगा। यहां तक कि मोमिन भी अपने हाथों की चीज़ को दांत से पकड़ लेगा और फज़ीलत व बुज़ुर्गी को भूल जाएगा। हालांकि अल्लाह का हुक्म है कि अपने आपस के फज़ल को भूला मत करो।"
(देखिए तफ्सीर इब्ने कसीर- सूरे बक़रा, पेज- 114)
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