मिसबाहुल हुदा क़ादरी, न्यू एज इस्लाम
२८ अगस्त २०१९
अल्लाह पाक का इरशाद:
وَقَاتِلُوافِيسَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَيُقَاتِلُونَكُمْوَلَاتَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّالْمُعْتَدِينَ (2:190(
अनुवाद: और अल्लाह की राह में उनसे जंग करो जो तुमसे जंग करते हैं (हाँ) मगर हद से आगे ना बढ़ो, बेशक अल्लाह हद से बढ़ने वालों को पसंद नहीं फरमाताl इरफानुल कुरआन
एतेहासिक सबूतों से इस बात की पुष्टि होती है कि जिहाद की अनुमति अत्यंत अनपेक्षित स्थितियों के तहत अपने अस्तित्व को बाकी रखने (Existential Survival) के लिए दी गई थीl इससे पहले लगभग पन्द्रह वर्षों तक मुट्ठी भर मुसलमानों को अत्याचार का निशाना बनाया गया थाl उनके लिए दुश्मनों ने जीना हराम कर दिया थाl अत्याचार की ऐसी कौन सी तस्वीर होगी जिससे उनके खस्ता हाली की अक्कासी ना होती होl लेकिन उस बीच जब भी अल्लाह का कलाम नाज़िल हुआ मुसलामानों को सब्र, जमे रहने और माफ़ करने की ही शिक्षा दी गई और जिस हद तक संभव था मुसलमानों को जंग व जिदाल से दूर ही रखा गयाl
एक प्रसिद्ध सुनी सूफी आलिमे दीन पीर करम शाह अज़हरी अपनी माया नाज़ तसनीफ़ ज़ियाउल कुरआन में लिखा है “हज़रत बिलाल को दहकते हुए अंगारों पर लिटाया गया थाl हज़रत यासिर और हज़रत सुमैया को बर्छियों से ज़ख़्मी कर दिया गया थाl गरीबों और कमजोरों के साथ साथ आला और पॉश खानदान के लोग भी उनके अत्याचार से सुरक्षित नहीं थेl हज़रात उस्मान के चाचा आपको जानवरों के चमड़े में लपेट कर आप पर अंगारे बरसाते हुए सूरज की तपिश में छोड़ दिया करते थेl जान पिघला देने वाली सूरज की तपिश और खाल के बदबू से उनका दम घुटने लगता और वह सख्त तकलीफ की कैफियत में मुब्तिला हो जातेl इसी तरह एक बार हज़रात अबू बकर पर भी इसी तरह अत्याचार की दास्ताँ दोहराई गई थी जिस की वजह से आप काफी देर तक बेहोश पड़े रहेl
जिस्मानी तकलीफों के अलावा बात बात पर मज़ाक, हर आयत पर एतेराज़, हर शरीअत के हुक्म पर आवाज़ कसे जातेl बहरहाल कुफ्र के जोर व जफा के तरकश में जीतने तीर थे सब चलाए गएl बातिल के असलहा खाने में जिस जिस किस्म का असलहा था सब ही आजमाया गयाl इन दिल आजारियों, सितम शारियों, और मजरुह दिलों पर नमक पाशियों का सिलसिला साल दो साल नहीं बल्कि पुरे तेरह साल शिद्दत के साथ जारी रहाl इसके बावजूद मजलूमों को हाथ उठाने की अनुमति नहीं थीl उन्हीं के रब का यह आदेश था कि सब्र और जब्त से काम लें और किसी तरह की जवाबी या इन्तेकामी कार्यवाही ना करेंl नबूवत के तेरहवें साल हिजरत की अनुमति मिलीl हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा मक्का से ढाई तीन सौ मील दूर ‘यसरब’ नामक एक बस्ती में जमा हो गए लेकिन मक्के के काफिरों की गुस्से की आग अब भी ठंढी नहीं हुईl यहाँ भी मुसलमानों को चैन का सांस ना लेने दियाl दस दस बीस बीस काफिरों के जत्थे आतेl मक्के की चरागाहों में अगर किसी मुसलमान के जानवर चार रहे होते तो उन्हें ले जातेl इक्का दुक्का मुसलमान मिल जाता तो उसे भी क़त्ल करने से बाज़ नहीं आतेl
चौदा पन्द्रह साल तक सब्र व जब्त से अत्याचार बर्दाश्त करने वालों को आज इजाज़त दी जा रही है कि तुम अपनी सुरक्षा के लिए हथियार उठा सकते होl कुफ्र के अत्याचार की अति हो गई हैl बातिल की जफा कशियाँ हद से बढ़ गई हैंl अब उठो उन सरकशों और मय पंदार से मदहोश काफिरों को बटा दो कि इस्लाम का चराग इसलिए रौशन नहीं हुआ कि तुम फूंक मार कर उसे बुझा दोl हक़ का परचम इसलिए बुलंद नहीं हुआ कि तुम बढ़ कर उसे गिरा दोl यह चराग उस समय तक जलता रहे गा जब तक नीले आसमान पर चाँद तारे चमक रहे हैंl (ज़ियाउल कुरआन, जिल्द ३; पृष्ठ- २१८)”
यह है वह एतेहासिक पृष्ठभूमि जिसके आधार पर मुसलमानों को अपने अस्तित्व और अपने बुनियादी इंसानी अधिकारों की पुनर्प्राप्ति के लिए जिहाद की अनुमति दी गई थीl लेकिन जिहाद की यह अनुमति भी शुतर बे महार की तरह बे लगाम नहीं थी बल्कि इसके लिए भी अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सीमाएं और शर्तें बयान कर दी थी, जैसे निम्नलिखित अहकाम व हिदायत मुलाहिज़ा हों;
“किसी भी बच्चे, किसी भी औरत, या किसी भी बड़े या बीमार व्यक्ति को मत मारोl” (सुनन अबू दाउद)
“ग़द्दारी या मुसला मत करो (मोअता इमाम मालिक)
“गाँव और शहर को तबाह मत करो, खेतियों और बागों को वीरान मत करो और मवेशियों को कत्ल मत करोl” (सहीह बुखारी; सुनन अबू दाउद)
“पादरियों और राहिबों को मत मारो, और उन्हें भी कत्ल मत करो जो इबादत गाहों में पनाह लेंl (मुसनद अहमद बिन हम्बल)
“पेड़ पौधों या फलदार दरख्तों को मत काटो और ना ही उन्हें आग के हवाले करोl (अल मोअता)
“दुश्मन के साथ नबर्द आज़माई की ख्वाहिश मत करो; अल्लाह से दुआ करो कि वह तुम्हे अपने हिफ्ज़ व अमान में रखे; लेकिन अगर तुम उनके साथ लड़ने पर मजबूर हो जाओ तो सब्र से काम लोl” (सहीह मुस्लिम)
“आग में जला कर केवल अल्लाह ही सज़ा दे सकता हैl” (सुनन अबू दाउद)
लेकिन समय की यह कैसी विडंबना है कि अब वह आतंकवादी संगठन जिनका काम ही जंग व क़िताल का व्यापार (war mongering) करना और लोगों को हक़ की राह से विचलित करना है, नए नए अंदाज़ में लोगों को दीन अमन व मोहब्बत (इस्लाम) से फेरने और इस भूमि को शर व फसाद और कत्ल व गारत गरी की अमाजगाह बनाने में सरगर्दां हैंl इसलिए कि वह जिहाद की ऐसी ऐसी शक्लें और बेगुनाह इंसानों का खून बहाने के ऐसे ऐसे बहाने तलाश कर रहे हैं जो पूरी इंसानियत के लिए खतरनाक और हमारी इस दुनिया की अमन व सलामती को तहो बाला कर देने के लिए काफी हैंl इन विध्वंसक तत्वों की यह आतंकवादी मानसिकता इसलिए इंसानी भाई चारे और आपसी प्यार व मोहब्बत के लिए सिम कातिल है कि वह इस आतंकवादी जंग की तिजारत दीन और मज़हब के नाम पर कर रहे हैंl वह दीन का चोला पहन कर आतंकवाद का ज़हर बेच रहे हैंl एक आतंकवादी सिद्धांत निर्माता और तालिबानी आलिम यूसुफ अल अबीरी अपने एक लेख में लिखते हैं:
“इसलिए, शरीअत के दलीलों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि जिस किसी ने भी यह कहा है कि न्यूयार्क और वाशिंगटन में अमेरिकियों को कत्ल करना गैर कानूनी है वह शरीअत की बारीकियों से अनभिज्ञ है और अँधेरे में तीर चला रहा हैl उसकी यह बात जिहालत और बेखबरी पर आधारित हैl दुश्मनों को जला कर या डुबो कर मारने और उन्हें कैद करने के लिए इमारतों को तबाह करने या हानि पहुंचाने या दुश्मनों को भयभीत करने से अक्सर उलेमा ए इस्लाम इत्तेफाक रखते हैंl नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा का भी यही अमल रहा हैl फिर किस तरह अमेरिकियों की मोहब्बत में कोई अंधा व्यक्ति किसी ऐसे समस्या को सवालों की ज़द में ला सकता है जो हदीस से मुसद्द्क व मुअययद हैl” (नवा ए अफगान जिहाद, जनवरी २०१३)
शैख़ यूसुफ अल अबीरी के इन कलिमात को आतंकवाद का ज़हर मैंने इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने अपने उपर्युक्त बयान में बे दरेग कत्ल की हिमायत की है और एक ऐसे नरसंहार का समर्थन इस्लाम और पैगंबर ए इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हवाले से पेश करने की कोशिश की है जिसे कुरआन ने फसाद फिल अर्ज़ और अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ जंग मोल लेना करार दिया हैl
अल्लाह पाक का इरशाद है;
مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِي الْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ (32) إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُوا أَوْ يُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَافٍ أَوْ يُنفَوْا مِنَ الْأَرْضِ ۚ ذَٰلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ (33) إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُوا عَلَيْهِمْ ۖ فَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (المائدہ :34)
अनुवाद: इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो शख्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज्यादतियॉ करते रहे (32) जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएं या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाएं या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुई और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है (33) मगर (हॉ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम इनपर क़ाबू पाओ तौबा कर लो तो उनका गुनाह बख्श दिया जाएगा क्योंकि समझ लो कि ख़ुदा बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (34)
URL for Urdu article: http://www.newageislam.com/urdu-section/misbahul-huda,-new-age-islam/war-mongering-is-not-jihad--part-1--جہاد-کے-نام-پر-دہشت-گردی-کا-شکار-نہ-بنیں-مسلم-نوجوان/d/119593