मिस्बाहुल हुदा, न्यु एज इस्लाम
1 जुलाई, 2014
अरबी शब्द ''ग़ैब'' का अर्थ है ''जो नज़रों के सामने मौजूद न हो।'' कुरान में ग़ैब शब्द विभिन्न स्थानों पर इसी अर्थ में इस्तेमाल किया गया है। इसका अर्थ 'वर्तमान' शब्द के विपरीत है।
चूंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह के अलावा अदृश्य के बारे में ज्ञान का विश्वास एक अति संवेदनशील मामला है और सदियों से ये मामला इस्लाम के अंदर विभिन्न विचारधाराओं के बीच कलह का विषय रहा है, इसलिए ज़रूरी है कि पहले कुरान की रौशनी में इस बात को स्पष्ट कर दिया जाय कि सर्वशक्तिमान अल्लाह के अलावा अदृश्य का ज्ञान संभव है या नहीं।
इस दृष्टि से जब हम कुरान की आयतों का गहराई से अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि कुरान न केवल नबियों के अदृश्य के ज्ञान की पुष्टि और समर्थन करता है लेकिन कुछ अवसर ऐसे हैं कि जब अल्लाह ने बच्चों और जानवरों सहित आम लोगों को भी अदृश्य के ज्ञान के बारे में बताया है।
कुरान की रौशनी में अल्लाह के सिवा दूसरों के अदृश्य के बारे में ज्ञान का औचित्य:
हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की मछली
''फिर उसे मछली ने निगल लिया और वह निन्दनीय दशा में ग्रस्त हो गया था। अब यदि वह तसबीह करनेवाला न होता तो उसी के भीतर उस दिन तक पड़ा रह जाता, जबकि लोग उठाए जाएँगे।'' (सूरे अलसाफ़ात (37) आयत 142 से 144)
ये आयत हमें ये बताती है कि अल्लाह ने मछली को हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को निगलने और उन्हें उस वक्त तक अपने पेट में रखने का हुक्म दिया था जब तक कि वो अल्लाह की प्रशंसा करने वालों में से न हों जायें।
ज़ुलेखा के कमरे में मौजूद एक दुधमुँहा बच्चा
'..... उसके घर वालों से एक गवाह ने (जो एक दुधमुँहा बच्चा था) गवाही दी .....' (सूरे यूसुफ (12): आयत 26)
व्याख्या करने वाले कहते हैं कि ज़ुलेखा के कमरे में जो एक दुधमुँहा बच्चा मौजूद था उसे अल्लाह ने अदृश्य के ज्ञान के लिए प्रेरित किया और उसने उसी के अनुसार इस मामले में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पक्ष में फैसला किया जिससे उनकी बेगुनाही साबित हुई और उनकी इज़्ज़त की रक्षा भी हुई।
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की माँ
''हमने मूसा की माँ को संकेत किया कि "उसे दूध पिला फिर जब तुझे उसके विषय में भय हो, तो उसे दरिया में डाल दे और न तुझे कोई भय हो और न तू शोकाकुल हो। हम उसे तेरे पास लौटा लाएँगे और उसे रसूल बनाएँगे।" (सूरे अलक़सस: (28) आयत 7)
कुछ चयनित नबियों के अदृश्य के बारे में ज्ञान को साबित करने वाली कुरानी आयतें:
हज़रत आदम अलैहिस्सलाम
''फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिए, तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़बूल कर ली; निस्संदेह वही तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है'' (सूरे बकरा (2) आयत: 37)
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम
'तुम हमारे समक्ष और हमारी प्रकाशना के अनुसार नाव बनाओ और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करो। निश्चय ही वे डूबकर रहेंगे।" (सूरे हूद (11), आयतः 37)
हजरत नूह अलैहिस्सलाम को सूचित कर दिया गया था कि कौन इस तूफान में डूबेगा और कौन सुरक्षित रहेगा यहाँ तक कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम अपने बेटे के अंजाम से भी परिचित थे।
हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम
सूरे अलकहफ़ की आयत 65 से 82 में ऐसी तीन घटनाओं का ज़िक्र विस्तार से मौजूद है जिनसे ये बात साबित होती है कि हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को अदृश्य के उनके ज्ञान के लिए प्रेरित किया गया था जिनसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम भी अनभिज्ञ थे।
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम
अल्लाह ने हज़रत मूसा को इस बात से अवगत कर दिया था कि वो नील नदी में डूबने से बचा लिए जाएंगे:
''फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, "हम तो पकड़े गए!" उसने कहा, "कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।" (सिरे अश्शूरा (26) आयतः 61- 62)
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम
ऐसी कई आयतें हैं जो ये साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को उसी समय अदृश्य के बारे में ज्ञान से नवाज़ दिया गया था जब वो अपनी माँ की गोद में सिर्फ एक दुधमुँहे बच्चे थे।
''उसने कहा, "मैं अल्लाह का बन्दा हूँ। उसने मुझे किताब दी और मुझे नबी बनाया। और मुझे बरकतवाला किया जहाँ भी मैं रहूँ, और मुझे नमाज़ और ज़कात की ताकीद की, जब तक कि मैं जीवित रहूँ। और अपनी माँ का हक़ अदा करने वाला बनाया। और उसने मुझे सरकश और बेनसीब नहीं बनाया। सलाम है मुझ पर जिस दिन कि मैं पैदा हुआ और जिस दिन कि मैं मरूँ और जिस दिन कि जीवित करके उठाया जाऊँ!" सच्ची और पक्की बात की स्पष्ट से यह है कि मरियम का बेटा ईसा, जिसके विषय में वे सन्देह में पड़े हुए हैं'' (सूरे मरियम (19), आयत: 30- 34)
उपरोक्त इन आयतों में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने उनकी क़ौम की तरफ से लगाए जाने वाले झूठे आरोपों के खिलाफ अपनी माँ की रक्षा की और अपनी क़ौम को अपने नबी होने से अवगत कराया।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के लिए अदृश्य के ज्ञान का समर्थन और पुष्टि में
कुरान में अल्लाह का फरमान है:
''यह परोक्ष की सूचनाओं में से है, जिसकी वह्य हम तुम्हारी ओर कर रहे है।'' (सूरे आल-इमरान (3), आयत: 44)
''और अल्लाह ऐसा नहीं है कि वह तुम्हें परोक्ष की सूचना दे दे। किन्तु अल्लाह इस काम के लिए जिसको चाहता है चुन लेता है, और वे उसके रसूल होते है। (सूरे आल-इमरान (3), आयत: 179)
''परोक्ष का जानने वाला वही है और वह अपने परोक्ष को किसी पर प्रकट नहीं करता।'' (सूरे अलजिन्न (72), आयत: 26)
'' ....... और उसने तुम्हें वह कुछ सिखाया है जो तुम जानते न थे। अल्लाह का तुमपर बहुत बड़ा अनुग्रह है'' (सूरे अल-निसा (4), आयत: 113)
इन सभी आयतों के अलावा कुरान में कुछ आयतें ऐसी भी हैं कि जो उपरोक्त आयतों की विरोधाभासी प्रतीत होती हैं।
'' कहो, "मैं अपने लिए न तो लाभ का अधिकार रखता हूँ और न हानि का, बल्कि अल्लाह ही की इच्छा क्रियान्वित है। यदि मुझे परोक्ष (ग़ैब) का ज्ञान होता तो बहुत-सी भलाई समेट लेता और मुझे कभी कोई हानि न पहुँचती।.......'' (7: 188)
''कह दो, "मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ।'' (18: 110, 41: 6)
''और उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे, जब तक कि तुम हमारे लिए धरती से एक स्रोत प्रवाहित न कर दो,
या फिर तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो और तुम उसके बीच बहती नहरें निकाल दो, या आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हम पर गिरा दो जैसा कि तुम्हारा दावा है, या अल्लाह और फ़रिश्तों ही को हमारे समझ ले आओ, या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए या तुम आकाश में चढ़ जाओ, और हम तुम्हारे चढ़ने को भी कदापि न मानेंगे, जब तक कि तुम हम पर एक किताब न उतार लाओ, जिसे हम पढ़ सकें।" कह दो, "महिमावान है मेरा रब! क्या मैं एक संदेश लाने वाला मनुष्य के सिवा कुछ और भी हूँ?" (सूरे इस्रा (17), आयत: 90- 93)
"सल्फ़ी" और "वहाबी" उलेमा अल्लाह के सिवा किसी के लिए अदृश्य के बारे में ज्ञान के किसी भी विचार को पूरी तरह खारिज करने के लिए ऊपरोक्त कुरानी आयतों का हवाला ज़ोरदार तरीके से पेश करते हैं।
विडंबना ये है कि आयत (18: 110) के पहले भाग {''कह दो, "मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ।'' } तो पेश करते हैं और इस आयत के दूसरे भाग {ज़रा गौर करो) मेरी तरफ वही (रहस्योद्घाटन) की जाती है} को छिपा देते हैं।
उपरोक्त आयतों के बारे में उलमा और व्याख्या करने वालों की राय ये है कि इन आयतों के नाज़िल होने का मक़सद अल्लाह के सिवा किसी दूसरे के लिए अदृश्य के ज्ञान के किसी भी विचार को पूरी तरह खारिज करना नहीं है बल्कि इन आयतों का मकसद किसी भी अमानवीय प्रकृति के दावे की संभावना को पूरी तरह खारिज करना है जो कि उनकी तरफ संभावित तौर पर ठहरायी जा सकती थी।
इसके अलावा इस बात की सम्भावना बहुत अधिक थी कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को कुछ अंधविश्वासी लोग खुदा समझ बैठें जैसा कि पहले कुछ नबियों के साथ हो चुका है। यही कारण है कि अल्लाह ने कुरान में ऐसी कुछ आयतें नाज़िल फ़रमाई। क्योंकि सभी नबियों का बाहरी रूप हालांकि एक आम आदमी की ही तरह था, लेकिन उनका आंतरिक और उनकी आध्यात्मिक स्थिति उच्च इंसानी मूल्यों वाले थे जिन्हें हर क्षण खुदा का साथ हासिल था और जो किसी भी प्रकार की त्रुटि या बुराई की किसी भी कल्पना से शुद्ध और इससे ऊपर थे। अगर ऐसा नहीं होता तो कोई भी नबी वही वाला नहीं बन पाता, जैसा कि कुरान में अल्लाह का फरमान है-
"यदि हमने इस क़ुरआन को किसी पर्वत पर भी उतार दिया होता तो तुम अवश्य देखते कि अल्लाह के भय से वह दबा हुआ और फटा जाता है। ये मिसलें लोगों के लिए हम इसलिए पेश करते है कि वे सोच-विचार करें" (सूरे अल-हश्र (59) आयत: 21)
संक्षेप में नबियों के अदृश्य के ज्ञान के बारे में बड़ी गलतफहमी पाई जाती हैं। इसलिए कि आज कुछ अहले इल्म हज़रात अदृश्य के बारे में ज्ञान पर विश्वास रखने को शिर्क के बराबर करार देकर मुसलमानों की एक बहुत बड़ी जमात को मुशरिक बनाने पर अड़े हैं। जबकि खुदा के असीमित, अनन्त और पवित्र ज्ञान का निर्धारण समय और स्थान की कैद से मुक्त है और जिसकी कोई शुरुआत है और न अंत है, नबियों के इल्म पर सवाल करना बहुत बड़ा अन्याय और ज्ञान की कमी का सुबूत है क्योंकि नबी अलैहिमुस्सलाम का ज्ञान आम इंसान से कहीं बढ़कर है जो एक आम इंसान हासिल कर सकता है लेकिन फिर भी इसके सीमित होने में कोई संदेह नहीं है। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि खुदा का ज्ञान एक सागर की तरह है जिसकी कोई सीमा और जिसका कोई दायरा और किनारा नहीं है और इंसानों के सभी ज्ञान विज्ञान खुदा के ज्ञान के मुक़ाबले पानी की एक बूंद से भी कम हैं।
आज पूरी उम्मत को एक बात ये समझने की ज़रूरत है कि ईमान की रूह और उसकी धुरी और केंद्र केवल खुदा के एक होने पर विश्वास रखना और पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से गहरी मोहब्बत और अपार प्रेम करना है और बाकी सभी चीजों का सम्बंध आस्था से है, ईमान और कुफ्र से नहीं।
न्यु एज इस्लाम के स्थायी स्तंभ लेखक, मिस्बाहुल हुदा सूफीवाद से जुड़े एक आलिम व फाज़िल (क्लासिकल इस्लामी स्कालर) हैं। उन्होंने मशहूर इस्लामी संस्था जामिया अमजदिया रज़विया, मऊ, (यूपी) से शास्त्रीय इस्लामी विज्ञान में आलिमीयत किया है और जामिया मंज़रुल इस्लाम, बरेली (यूपी) से इस्लामी न्यायशास्त्र और तफ्सीर व हदीस में फज़ीलत (एमए ) किया है। फिलहाल वो जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली से अरबी में ग्रेजुएशन कर रहे हैं।
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