न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
24 नवंबर 2022
सऊदी अरब की सरकार द्वारा प्रकाशित पवित्र कुरआन के अनुवादित संस्करण का अनुवाद मौलाना महमूदुल हसन और मुफस्सिर मौलाना शब्बीर उस्मानी ने किया है। इस अनुवाद की शुरुआत में, मुफस्सिर ने सूरह अल-फातिहा में मग़ज़ूब और ज़लीन की व्याख्या करते हुए इस नोट को जोड़ा है।
"जिन लोगों को पुरस्कृत किया गया, वे चार संप्रदाय हैं। पैगंबर, सिद्दीकीन, शहीद और सालेहीन। यह अल्लाह के कलाम में दूसरे अवसर पर निर्दिष्ट है। और अल-मगज़ूब (अलैहिम) का अर्थ यहूदी और ज़ालीन का अर्थ ईसाई है। अन्य आयतें और रिवायात इसकी साक्षी हैं।"
मुफस्सिर ने इस तफसीर के माध्यम से दोनों कौमों को सामूहिक रूप से मग्जूब और ज़ाल्लीन घोषित किया, जबकि कुरआन किसी भी कौम को सामूहिक रूप से गुमराह या पथभ्रष्ट नहीं कहता है। कुरआन में यहूदियों और ईसाइयों को अहले किताब कहा गया है, अर्थात उन कौमों को जिन्हें आसमानी सहीफे अता किये गए हैं और जिन्हें आसमानी किताब दी गई है, वे सामूहिक रूप से भटक नहीं सकते हैं, लेकिन उनमें से एक वर्ग इस किताब का पालन न करने के कारण या दीन में बिदआत व खुराफात के दाखिल होने के कारण, किताब की मूल शिक्षाओं से विचलित हो सकता है।
मुफस्सिर ने लिखा है कि अन्य आयात और रिवायात इसके साक्षी हैं, उन्हें इन आयतों और रिवायतों का हवाला देना चाहिए था। ताकि उनकी व्याख्या स्थिर रहे। हालाँकि, उनका इशारा शायद इस आयत की तरफ था।
"और उस समय को याद करो जब तुम्हारे रब ने यह खबर दी थी कि वह निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति को यहूदियों के पास क़ियामत के दिन तक भेजेगा ताकि उन्हें दिया करे बुरा अज़ाब।" (अल-आराफ़: 167)
लेकिन अपने तर्क को सिर्फ एक आयत पर आधारित करना शोध का तरीका नहीं है। कुरआन के अन्य आयतें सामान्य रूप से अहले किताब और विशेष रूप से यहूदियों और ईसाइयों के बारे में मुफस्सिर के इस दृष्टिकोण को नकारते हैं।
"और हमने उन्हें ज़मीन में गिरोहों में बाँट दिया, उनमें से कुछ नेक थे और उनमें से कुछ अलग तरह के थे।" (अल-आराफ: 168)।
यह आयत उस आयत के ठीक बाद की है जिसमें कहा गया है कि अल्लाह उन पर ऐसे क्रूर शासक भेजता रहेगा जो उन पर अत्याचार करते रहेंगे।
कुरआन में अन्य स्थानों पर कहा गया है कि कुछ अज़ाब ऐसे हैं जो केवल बुरे लोगों पर ही नहीं, बल्कि सभी पर पड़ते हैं। तो यह यहूदियों के लिए विशेष नहीं है। लेकिन कुरआन ने यह स्पष्ट कर दिया कि यहूदियों में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग हैं।
यह भी अहले किताब से संबंधित एक आयत है।
"और किताब वालों में से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और जो कुछ तुम पर उतारा गया है और जो उन पर उतारा गया आजज़ी करते हैं अल्लाह के आगे नहीं खरीदते अल्लाह की आयतों पर मोल थोड़ा। यही हैं जिनके लिए मजदूरी है उनके रब के यहाँ।" (आले-इमरान: 199)।
इस प्रकार, कुरआन में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अहले किताब न तो सामूहिक रूप से अच्छे हैं और न ही सामूहिक रूप से बुरे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत कार्यों के आधार पर आंका जाएगा। इसलिए किताब वालों को सामूहिक रूप से मग्जूब और ज़ाल्लीन की श्रेणी में रखना प्रकृति के सिद्धांत के विरुद्ध है।
कुरआन में उल्लिखित कौमें अल्लाह के अज़ाब के परिणामस्वरूप हालाक हो चुकी हैं। उन पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ क्योंकि उन्होंने विद्रोह किया और अवज्ञा की। कौमे हूद, कौमे समूद, कौमे फिरौन, कौमे लूत, कौमे आद, आदि। इसलिए, कुरआन में, मग्जूब कौमें वे कौमें हैं जिन पर अल्लाह का अज़ाब उतरा है। ताज्जुब की बात यह है कि क़ुरआन में इन क़ौमों पर अल्लाह की सज़ा और उनकी मौत का इतना स्पष्ट वर्णन मौजूद होने के बावजूद मुफस्सिर की नज़र उन पर नहीं पड़ी और उन्होंने इन क़ौमों को मग्जूब की श्रेणी में नहीं रखा। बल्कि केवाल एक आयत के आधार पर, केवल यहूदियों को मग्जूब की श्रेणी में रखा गया।
ज़ालीन से भी मुफस्सिर का अर्थ केवल ईसाईयों और ईसाइयों की पूरी कौम है। जबकि ईसाई अहले किताब हैं और अहले किताब के बारे में कुरआन की स्थिति यह है कि उनमें अच्छे और बुरे दोनों हैं। ऐसे लोग हैं जो ईमान में दृढ़ हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो भटके हुए अर्थात ज़ाल्लीन हैं।
"किताब वाले सीधे रास्ते पर चलने वाले गिरोह हैं, वे रातों में अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और सजदा करते हैं, वे अल्लाह और कयामत के दिन पर ईमान रखते हैं, भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं।" वे अच्छे कर्मों के लिए दौड़ते हैं और वे नेक बख्त हैं।" (आले-इमरान। 113-114)।
एक और आयत देखें:
" अगर अहले किताब ईमान लाते तो उनके लिए अच्छा होता उनमें से कुछ मोमिन हैं और उनमें से अधिकतर नाफ़रमान हैं।" (आले-इमरान: 110)।
अहले किताब के प्रति क़ुरआन का व्यवहार मैत्रीपूर्ण है, शत्रुतापूर्ण नहीं। क़ुरआन में अहले किताब वालों को बुरे अकाईद से आगाह किया गया है और उन्हें नसीहत दी गई है कि वह गुमराह करने वाले अकीदों और बिदअत से दूर रहें। साथ ही मुसलमानों को उनके साथ शांतिपूर्ण बातचीत करने का आदेश दिया गया है।
" और (ऐ ईमानदारों) अहले किताब से मनाज़िरा न किया करो मगर उमदा और शाएस्ता अलफाज़ व उनवान से लेकिन उनमें से जिन लोगों ने तुम पर ज़ुल्म किया (उनके साथ रिआयत न करो) और साफ साफ कह दो कि जो किताब हम पर नाज़िल हुई और जो किताब तुम पर नाज़िल हुई है हम तो सब पर ईमान ला चुके और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एक ही है और हम उसी के फरमाबरदार है (46) और (ऐ रसूल जिस तरह अगले पैग़म्बरों पर किताबें उतारी) उसी तरह हमने तुम्हारे पास किताब नाज़िल की तो जिन लोगों को हमने (पहले) किताब अता की है वह उस पर भी ईमान रखते हैं और (अरबो) में से बाज़ वह हैं जो उस पर ईमान रखते हैं और हमारी आयतों के तो बस पक्के कट्टर काफिर ही मुनकिर है” (अल-अनकबूत: 46)।
इसलिए, सभी अहले किताब को सामूहिक रूप से मग्जूब और जाल्लीन कहना स्वयं कुरआन के सिद्धांतों के विपरीत है और अंतर-धार्मिक संवाद और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए भी एक बाधा है।
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Urdu Article: The Meaning of Maghzoob and Zalleen قرآن میں مغضوب اور ضالین کا
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