मौलाना डाक्टर यासीन अली उस्मानी (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
आजकल टीवी चैनल की बढ़ती हुई तादाद में एक इज़ाफा पीस टीवी के नाम से हुआ है। जिसकी सरपरस्ती शायद डाक्टर ज़ाकिर नायक कर रहे हैं। ये चैनल देखने में तो इस्लामी है और इस्लाम के प्रचार व प्रसार को इसने अपना उद्देश्य बनाया है, और पैगामे तौहीद, दावते दीन, सुधार और ट्रेनिंग जैसे विषयों से अपनी महफिलें सजाता है, मगर गहराई से जांच करने पर और इसके प्रोग्रामों में शामिल होने वाले उलमा और बुद्धिजीवियों के भाषण और बहस सुनने के बाद अंदाज़ा होता है कि इस्लाम के प्रचार व प्रसार के उद्देश्य से कहीं ज़्यादा एक खास मसलक (पंथ) का प्रचार व प्रसार ही इसका उद्देश्य है।
मुझे बहुत ही अफसोस और तकलीफ के साथ ये लिखना पड़ रहा है कि ये पीस टीवी इस्लाम के प्रचार व प्रसार और पैगामे तौहीद को आम करने के महान मिशन का नाम लेकर अपने देश और नज़रिये का प्रचार कर रहा है। इस चैनल के प्रोग्राम्स में कुछ लोग तो रिसालत पर भी उंगली उठा रहे हैं, बल्कि अल्लाह माफ करे कुछ लोग तो अपनी तकरीर और बातचीत में सरकारे दो आलम (स.अ.व.) के बारे में ऐसे शब्द का प्रयोग कर देते हैं कि जिससे तौहीने रिसालत की बू आती है। मिसाल के तौर पर 4 अगस्त की शाम को पौने पांच बजे मैंने टीवी खोला तो पीस टीवी पर शेख सनाउल्लाह मदनी नाम के मौलाना जो शायद पैगामे तौहीद पर खिताब फरमा रहे थे। इसी विषय के तहत गुफ्तगू करते हुए उन्होंने क़ुरान करीम की आयत का हवाला देते हुए कहा कि तमाम खज़ानों का मालिक अल्लाह ताला है और फिर इसी के साथ आगे जोड़ा कि नबी ने भी फरमाया है कि तमाम खज़ानों का मालिक अल्लाह ही है और ‘मेरे पास कुछ है दे नहीं’ बस इसके सिवा कि मुझे जो वही की जाती है वो मैं तुम तक पहुँचा देता हूँ। ये अल्फाज़ नबी करीम (स.अ.व.) ज़ात से मंसूब करते हुए शेख सनाउल्लाह ने बयान किया। इसके साथ ही उन्होंने सूरे फातिहा की आयत ‘इय्याका ना बुदु वइय्याका नस्तईन’ का तर्जुमा बयान करते हुए कि इस आयत का दुरुस्त और सही तर्जुमा ये है कि ‘हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझसे ही मदद मांगते हैं ’ लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आयत का तर्जुमा इस तरह करते हैं, ‘हम तेरी भी इबादत करते हैं और तुझसे भी मदद मांगते हैं।’
मौलवी सनाउल्लाह का बयान खासतौर से ये अल्फाज़ अदा करते वक्त कि, ‘मेरे पास कुछ है दे नहीं’ किसी भी चिंतनशील और विश्वास रखने वाले मुसलमान के लिए बहुत ही नागवार था और ऐसा महसूस हो रहा था कि हम से मुखातिब ये शख्स अल्लाह के रसूल की अज़मत और बुलंदी से नावाकिफ और मोहब्बत और अकीदत से महरूम है और बदनसीब है।
मैं मौल्वी सनाउल्लाह से जनना चाहता हूँ कि ऊपर ज़िक्र किये गये जो अल्फाज़ उन्होंने अल्लाह के महबूब हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) की ज़ात से मंसूब किये हैं वो हदीसों की मान्य किताबों में से किस किताब, किस पाठ और किस हदीस का हिस्सा है? जिसमें सरकारे दो आलम (स.अ.व.) ने ये फरमाया है कि, ‘मेरे पास कुछ है दे नहीं’ और ऐसा फरमाने से क्या मतलब निकलता है। सना उल्लाह मदनी की राय में इसकी तशरीह (व्याख्या) क्या होगी। सनाउल्लाह ने कुछ न होने से क्या समझा और दूसरों को क्या समझाने की कोशिश की है।
दूसरी बात हम शेख सनाउल्लाह से ये जानना चाहते हैं कि सूरे फातिहा की आयत का आखिरी तर्जुमा ‘हम तेरी भी इबादत करते हैं और तुझसे भी मदद मांगते हैं’ किस मसलक और किस मक्तबे फिक्र के किस आलिम और किस अनुवाद करने वाले ने और किस ज़बान में किया है। आखिर में मौल्वी सनाउल्लाह को बयान करते वक्त ये बताना चाहिए था बहरहाल अब हम जानना चाहते हैं चूंकि ऊपर वर्णित आयत का ये तर्जुमा अभी तक हमारी नज़रों से नहीं गुज़रा है। आखिर में मौल्वी सनाउल्लाह इस तरह की बेबुनियाद बातें करके जिनको बोहतान (आरोप जो सिद्ध न हो सके) कहा जाता है, आम मुसलमानों को किस मसलक और क़ुरान के किस अनुवादक के सिलसिले में गुमराह करना चाहते हैं। आखिर में मौल्वी सनाउल्लाह से उनके बयान किये हुए इन अल्फाज़ के सिलसिले में जो उन्होंने सरवरे कायनात (स.अ.व.) की ज़ात से मंसूब किये हैं कि, ‘मेरे पास कुछ है दे नहीं’ कहना चाहूँगा कि मौल्वी सनाउल्लाह साहब अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) के पास क्या कुछ नहीं था और क्या कुछ नहीं है।
क्या अल्लाह के नबी (स.अ.व.) अज़ीमुश्शान और बेमिसाल किरदार के मालिक नहीं हैं? पैगम्बर आखिरुज़्ज़माँ नहीं हैं। क्या अल्लाह के सबसे महबूब रसूल नहीं हैं? रहमतुलिल्आलिमीन नहीं हैं? क्या उनकी रिसालत को स्वीकार किये बगैर उनका अनुसरण किये बगैर किसी मुसलमान का ईमान मुकम्मल हो सकता है? क्या अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) के जैसा चरित्र, सुंदरता और सद्व्यवहार वाला कोई अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की ज़ात से पहले या उनकी ज़ाते अक्दस के बाद कोई पैदा हुआ है? क्या अल्लाह ताला के बंदों में हर लिहाज़ से अज़ीम तरीन ज़ात अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की नहीं है? क्या सभी मान सम्मान अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की ज़ात में जमा नहीं हैं? यकीनन अल्लाह के रूसल (स.अ.व.) की मुकद्दस ज़ात में जमा हैं।
मैं समझता हूँ कि अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की ज़ात के सम्बंध में इस तरह का विश्वास रखने वाला उन लोगों में से है जो शब्द बशर और अब्द को बुनियाद बना कर और अपने गुमराह करने वाले विचार के लिहाज़ से इसको तूल देकर अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की ज़ात को आम इंसानों के बराबर ला कर खड़ा करने की कोशिश करता है, जो स्वीकार करने के लायक नहीं हैं, जिसकी निंदा और भर्त्सना होनी चाहिए। अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की अज़मत व बुलंदी से इंकार करना और अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की ज़ात को आम इंसानों की तरह समझना ईमान वालों के विश्वास का हिस्सा नहीं हो सकता है। तौहीद जैसे पवित्र पैगाम के साथ बल्कि इसकी आड़ में अज़मते रिसालत पर सवाल खड़े करना मुसलमानों को धोखा देने के बराबर है।
मुसलमान जनता इस तरह के वक्ताओं और उलमा की तकरीरों और बातचीत वगैरह सुनने से पूरी तरह एहतियात बरतें। मेरा ऐहसास है कि अगर खुदा न करे कि इस तरह के ख्यालों और नज़रियों की जिससे अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की मोहब्बत प्रभावित होती हो या अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) की अज़मतों पर उंगली उठाई जाती हो अगर टीवी चैनलों पर आयेंगें, तो वो दिन दूर नहीं जब मुसलमान इनके खिलाफ आवाज़ उठाने लगेंगे। चूंकि एक मुसलमान के लिए अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) से सच्ची मोहब्बत और अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) का सच्चा अनुकरण ही जीवन का सरमाया है और आखिरत की पूँजी है और यही अल्लाह का हुक्म और मर्ज़ी है।
(स्तम्भकार उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के पूर्व उपाध्यक्ष रहे हैं और आल इण्डिया मिल्ली कौंसिल के उपाध्यक्ष और आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य हैं।)
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