मशारी अल ज़ायदी
5 अप्रैल, 2017
जॉर्डन में हाल ही में आयोजित अरब शिखर सम्मेलन के दौरान एक दृश्य ने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा था और यह दृश्य संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गोटीरेस के अरब नेताओं के सामने भाषण का था।
गोटीरेस युद्ध के विनाश, शांति के लाभ और हमारे देशों में युद्ध के कारण शरणार्थियों के त्रासदी के बारे में बातचीत की। उनसे ऐसी ही बात की उम्मीद की जा रही थी लेकिन उनके भाषण की खास बात यह थी कि उन्होंने सुरह तौबा की छठवीं आयत का हवाला देकर अपने दर्शकों को हैरत में डाल दिया। उन्होंने पहले इस आयत की अरबी में तिलावत की और उसके बाद उसकी व्याख्या की मगर उन्होंने कोई आम नहीं बल्कि पहली सदी के दौर के प्रतिष्ठित मुफ़स्सिर इमाम इब्ने जरीर की तफसीर का हवाला दिया था।
इस आयत में अल्लाह तआला फ़रमाता हैं: ''अगर मुशरिकीन में से कोई व्यक्ति तुम से सुरक्षा का तलबगार हो तो फिर उसे शरण दे दो। शायद वह अल्लाह तआला का वचन सुन सकेl फिर उसको उसकी सुरक्षा वाली जगह पर पहुंचा दोl यह इसलिए कि वे ऐसे लोग हैं जो ज्ञान नहीं रखते हैं। ''
अरब दुनिया में विभाजिन
संयुक्त राष्ट्र के नए महासचिव ने इस आयत का संदर्भ शायद इसलिए भी दिया कि वे जानते थे कि अरब मुस्लिम दुनिया इस समय सांप्रदायिकता और सामाजिक विभाजन का सामना कर रही है
उन्होंने कहा: '' हम यहाँ आपके पास कुरआन के साथ आए हैं, क्योंकि आप का दावा है कि आप इसकी पासदारी करते हैं ''। उनका इशारा बेशक आतंकवादियों की ओर था। फिर उन्होंने सीरियाई और इराकी शरणार्थियों के बारे में बातचीत की और उन्हें संबोधित किया जो शरणार्थियों को अपने यहाँ स्वीकार नहीं करते।
पुर्तगाली गोटीरेस को जाहिर तौर पर इस आयत की व्याख्या का पूरा इदराक हैl उन्होंनें फरवरी में जामिया काहिरा में भाषण में भी इसका हवाला दिया था और मिस्र के क्षेत्र में जारी शरणार्थियों के संकट से निपटने के लिए प्रयासों को सराहा था।
उन्होंने कहा शरणार्थियों के बारे में अधिक से अधिक जो कुछ कहा जा सकता है, वह वही है जो कुछ हमनें सुरह तौबा की आयत में पढ़ा हैl अल्लाह कुरआन में यह कहता है कि ईमान वालों और ईमान ना लाने वाले प्रवासी लोगों को किसी प्रकार के भेदभाव के बिना आश्रय प्रदान की जानी चाहिए। शरणार्थियों को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में, मैंने सबसे स्पष्ट यही बात पढ़ी है।
संयुक्त राष्ट्र का मिशन
किसी अंतर्राष्ट्रीय अधिकारी की ओर से यह एक अच्छी अभिव्यक्ति थी। वह ईसाई हैं और इसके बावजूद उन्होंने इस्लामी आस्था की सराहना की है लेकिन संयुक्त राष्ट्र का मिशन ऐसे प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि संयुक्त राष्ट्र को शांति और न्याय की बहाली के लिए गंभीर कदम उठाना चाहिए क्योंकि जहाँ न्याय और दया का बोलबाला होगा, अल्लाह के दीन भी बुलंद होगा। इसके लिए स्पष्टीकरण के समुद्र में गोता लगानें की भी आवश्यकता नहीं होगी। यह एक कठिन बात है और इसके लिए बहुत कौशल की आवश्यकता पड़ती है।
ऐसे उच्च प्रतिष्ठा पर पहुँचने के बाद पुर्तगाली चिंतनशील का यह बयान और यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख फ्रेडरिको मगरीनी की अरबी भाषा में भाषण के प्रारम्भ से इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस समय दुनिया और खासकर पश्चिम कैसे अरब बौद्धिक संस्कृति से जुड़े हुए है।
जैसा कि कहा जाता है कि मुस्लिम समुदाय में सांस्कृतिक प्रतिरोध उग्रवाद और आतंकवाद का रुख अख्तियार करने का मुद्दा वैश्विक है जैसा कि ग्लोबल वार्मिंग (ग्लोबल वार्मिंग) का मुद्दा है और इसके बारे में दुनिया भर में चिंता पाई जाती है। हम कुरआन की समझ और व्याख्या के आधार पर हर दिन आतंकवादियों के खिलाफ लड़ते हैं जैसा कि हमारे पूर्वज ख्वारिज के खिलाफ लड़ते रहे थे।
5 अप्रैल, 2017 स्रोत: रोज़नामा हमारा समाज, नई दिल्ली
URL for Urdu article: http://www.newageislam.com/urdu-section/mashari-althayadi/united-nations-and-the-question-of-quran’s-interpretation--اقوام-متحدہ-اور-قرآن-مجید-کی-تشریح-کا-سوال/d/110685
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/united-nations-question-qurans-interpretation/d/110741