मरिआना बाबर
7 मई 2015
गैरसरकारी संगठन द सेकेंड फ्लोर (टी2एफ) की निदेशक सबीन महमूद की कराची में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा हत्या पर दुनिया भर में गुस्सा है। इस हत्या से नाराज लोगों ने इस्लामाबाद से मांग की है कि हत्यारों को जल्द ही न्याय के दायरे में लाया जाए और नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी के उनके सांविधानिक अधिकार की गारंटी दी जाए। अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सबीन लगातार बहस और अन्य कार्यक्रम आयोजित करती थीं। जिन्हें कहीं बोलने की आजादी हासिल नहीं थी, वे अपने श्रोताओं को संबोधित करने के लिए टी2एफ का इस्तेमाल करते थे।
पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान ने बलूचिस्तान पर सार्वजनिक बहस को लगातार हतोत्साहित किया है। वहां के हजारों लोग गायब हैं, जिनके बारे में बलूचों का कहना है कि खुफिया एजेंसियों ने उन्हें अगवा कर मौत के घाट उतार दिया। जबकि फौज इससे इन्कार करती है कि इन अपहरणों के पीछे उसका हाथ है। इसके बजाय वह उन अलगाववादियों की तरफ उंगली उठाती है, जो वर्षों से आजाद बलूचिस्तान की मांग कर रहे हैं। अपनी मौत से कुछ ही घंटे पहले सबीन ने बलूचिस्तान पर एक सेमिनार आयोजित किया था, जिसमें गुमशुदा बलूच लोगों के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मामा कादिर भी शामिल थे। उस सेमिनार में उन्होंने उन मुश्किलों का जिक्र किया था, जिनका वे सामना करते हैं।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के प्रवक्ता ने इस हत्या में अपना हाथ होने से इन्कार किया है। जबकि जियो टीवी के एंकर हामिद मीर ने मीडिया को बताया, 'पिछले वर्ष जब से मुझ पर हमला हुआ, तबसे मीडिया को भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया खुद को असहाय महसूस करता है। वह खुलेआम अपने विचार प्रकट नहीं कर सकता और न्याय नहीं पा सकता। उसे लगता है कि जो भी सच बोलेगा या बेजुबानों की आवाज बनेगा, उसे खामोश कर दिया जाएगा। एक लोकतांत्रिक समाज के लिए यह अच्छी बात नहीं है।'
बलूचिस्तान पर सबीन द्वारा आयोजित सेमिनार पहले प्रतिष्ठित लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंस (एलयूएमएस) में होने वाला था, लेकिन खुफिया एजेंसियों ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया था कि वह यह सेमिनार आयोजित न करे। सबीन की हत्या के बाद यूनिवर्सिटी में बलूचिस्तान पर होने वाले दूसरे सेमिनार को भी रद्द कर दिया गया।
कार्यकारी राष्ट्रपति रजा रब्बानी ने हत्यारों को शीघ्र गिरफ्तार करने का आदेश देने के साथ सिंध सरकार से रिपोर्ट भी मांगी है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पहले ही सिंध पुलिस को हत्या के इस मामले की जांच का निर्देश दिया है। उधर पाकिस्तान पर कई देशों की ओर से यह दबाव डाला जा रहा है कि हत्यारों को जल्दी कानून के शिकंजे में कसा जाए।
कनाडाई दूतावास ने सबीन महमूद को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी और कला की जुनूनी पैरोकार बताते हुए कहा कि 'सुश्री महमूद द सेकेंड फ्लोर की शिल्पकार थीं, जो कराची में कला, संस्कृति और बहस का केंद्र है। उनकी कमी मौजूदा और आने वाली पीढ़ियां शिद्दत से महसूस करेंगी।'
यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने सबीन महमूद की हत्या की निंदा की और पाकिस्तानी अधिकारियों से मुलाकात कर कहा कि 'वह सुनिश्चित करे कि पाकिस्तान के सभी नागरिकों को इस सांविधानिक हक की गारंटी मिलनी चाहिए कि वे लोकतांत्रिक बहस में बिना किसी डर के शामिल हो सकें।'
इससे पहले अमेरिकी दूतावास ने भी 'कड़े शब्दों में हत्या की निंदा' करते हुए 'गहरी संवेदना' व्यक्त की। सबीन महमूद के प्रति श्रद्धांजलियों का सिलसिला जारी है और प्रमुख विदेशी अखबारों में भी उन्हें याद किया जा रहा है। द हिंदू अपने संपादकीय में कहता है कि सबीन की हत्या एक प्रतिगामी संदेश है और यह हत्या बिना चेतावनी के नहीं हुई। संपादकीय आगे कहता है, 'जब भी पाकिस्तान में किसी पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता की हत्या होती है, तो यह अन्य लोगों के लिए चेतावनी होती है कि सत्ता के बाहर और भीतर के कट्टरवादी और धार्मिक प्रतिष्ठानों को असहज करने वाले मुद्दों पर खामोश रहें।'
पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों के कुछ लोगों से जब इस लेखिका ने बात की, तो उन्होंने इससे इन्कार किया कि खुफिया एजेंसी ने सबीन की हत्या की है। एक अधिकारी ने कहा, 'सुरक्षा प्रतिष्ठान का कोई व्यक्ति क्यों सबीन को मारेगा? उत्तरी वजीरिस्तान में फौज का ऑपरेशन सफलतापूर्वक चल रहा है, जबकि अपराध एवं हिंसा पर काबू पाने के लिए कराची में चलाया जा रहा अभियान भी प्रगति पथ पर है। यही नहीं, कराची में कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधर रही है। शांतिपूर्ण एवं अच्छी तरह से चुनाव संपन्न हुए हैं। सबीन की हत्या ने एक बार फिर बलूचिस्तान को सुर्खियों में ला दिया है, इसलिए इस आरोप में कोई दम नजर नहीं आता।'
उनसे जब पूछा गया कि हाल में बलूचिस्तान का मुद्दा फिर से उठा है और वहां लोगों के गायब होने से यह समस्याग्रस्त हो गया है, जैसा कि एलयूएमएस में सेमिनार रद्द करने के मामले में देखा गया, तो उन्होंने इससे इन्कार कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया, 'मैं आईएसआई प्रमुख से मिला था और उन्होंने इससे इन्कार किया कि उनकी एजेंसी ने एलयूएमएस को सेमिनार आयोजित करने से मना किया था। यह सोशल मीडिया ही है, जो आईएसआई पर आरोप लगा रहा है।' उनके मुताबिक, सवाल तो यह उठना चाहिए कि चीनी राष्ट्रपति के कामयाब दौरे के बाद ही अचानक बलूचिस्तान का मुद्दा सुर्खियों में क्यों आया?
इसी बीच एशिया सोसाइटी ने भी सबीन को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि वह भारत-पाकिस्तान के बेहतर रिश्ते की प्रबल समर्थक थीं।
Source:http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/sabeen-was-voice-of-voiceless-hindi/