एम आमिर सरफ़राज़
४ दिसम्बर, २०१८
कुरआन अक्सर अपनी आयतों में (सलात, ज़कात, मलाइका, जन्नत और दीन) जैसे कीवर्ड का प्रयोग एक महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए करता हैl अगर इन शब्दों के प्रमाणिक अर्थ स्वतंत्र रूप से तलाश कर लिए जाएं तो हमें कुरआन ए मजीद के असल अर्थ को समझने के लिए हदीसों या शाने नुज़ूल पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं होगीl लेकिन अगर यह शब्द अरबी में हों (जो कि हैं) तो कोई यह कह सकता है कि अगर कोई अरबी भाषा समझता है और /या इसे समझने के लिए किसी प्रमाणिक अरबी शब्दकोष का प्रयोग करता है तो इसमें खराबी ही क्या हैl अल्लामा इकबाल यह उजागर कर चुके हैं कि यह मामला इतना आसान नहीं है!
शायद कुरआन अरबी गद्य की पहली पुस्तक थी, हालांकि इसका अंदाज़ शायराना हैl यह पुस्तक पन्द्रह शताब्दी पहले पैदाइशी अरबियों की भाषा में शुद्ध अरबी में नाजिल हुईl अरबी दुनिया की सबसे विस्तृत भाषा मानी जाती हैl जैसे कि इस भाषा में तलवार के लिए १००० शब्द हैं, ५०० शब्द शेर के लिए हैं और ५७४४ ऊंट के लिएl इसलिए, इस बात का पता लगाना इतना आसान नहीं है कि कुरआन ने किस प्रकार अपने वैश्विक संदेश और दर्शन के अनुसार किसी विशिष्ट कीवर्ड का प्रयोग किया हैl हमारे पारम्परिक दृष्टिकोण किसी काम के नहींl जैसे कि तीन प्रसिद्ध अनुवादकों (शाह अब्दुल कादिर, मौलाना महमूदुल हसन और शब्बीर अहमद उस्मानी) ने आयत २:१०२ का अनुवाद इस प्रकार किया है जैसे यह दो फरिश्तों पर नाज़िल हुई हों लेकिन अबुल कलाम आज़ाद ने अपने अनुवाद में इस बात का रद्द किया है कि यह आयत दो फरिश्तों की ओर नाज़िल हुई हैl
मैं ऐसी कई मिसालें पेश कर सकता हूँ जिनमें शब्दों की कमी या सैद्धांतिक अभाव के कारण कुरआनी संदेशों के अर्थ ‘अनुवादों में गुम हो गए’ हैंl जैसे कि, कुरआन ब्रह्माण्ड की रचनात्मक चरणों के बारे में तीन शब्दों (खल्क, फितर, बिदअ) का प्रयोग करता है, जबकि अंग्रेज़ी भाषा में इसके लिए केवल एक ही शब्द (creation) हैl जो बादल अपनी जगह जमा हुआ हो अरब उसे अल सबर कहते हैं, और जानवरों का जो रेवड़ प्रातः चरागाह चरने के लिए जाता है और फिर शाम को सहीह सलामत अपनी जगह वापस आ जाता है उसे अल साबेरीन कहा जाता हैl इसका अर्थ यह हुआ कि जब प्राचीन अरब शब्द सब्र बोलते थे तो इससे ‘साबित कदम’, ‘पुर अज्म’, ‘पुख्ता’ और ‘अडिग’ मुराद लेते थे; और यह उससे बिलकुल भिन्न है जो हम और हमारे अनुवादक उर्दू में या आधुनिक अरब समझते हैं उससे मुराद सब्र करना हैl बहुत दुःख की बात है कि इस अनुवाद और समझ ने किस प्रकार कुरआन में पेश किये हुए एक महान सिद्धांत को विकृत कर दियाl
स्वयं अरबी भाषा का हाल यह है कि यह शताब्दियों में एक भाषा की हैसियत से विकासशील तो हुई ही साथ ही साथ इसमें अजमी भाषा के प्रभाव भी स्पष्ट रूप से जगह पा गएl जैसा कि उपर बयान किया गया इसमें मजूसी अवधारणाएं दर आए और कुरआन के कीवर्ड की व्याख्या में इनका गलत प्रयोग भी किया गया जिसकी वजह से इसके अर्थ में परिवर्तन उत्पन्न हो गयाl इस चाल का सहारा इसलिए लिया गया क्योंकि अल्लाह ने स्वयं (हुफ्फाज़ और कुरआन के सुरक्षित नुस्खों के जरिये) कुराआनी शब्दों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली हैl इसलिए शब्द तो उसी प्रकार बरकरार रहे लेकिन इनके अर्थ व समझ में फ़साद पैदा कर दिया गयाl
शायद कुरआन अरबी गद्य की पहली किताब थी, हालांकि इसका अंदाज़ शायराना हैl यह किताब पन्द्रह शताब्दी पहले पैदाइशी अरबियों की भाषा में शुद्ध अरबी में नाज़िल हुई हैl अरबी दुनिया की सबसे से विस्तृत भाषा मानी जाती हैl जैसे कि इस भाषा में तलवार के लिए १००० शब्द हैं, ५०० शब्द शेर के लिए हैं और ५७४४ ऊंट के लिएl इसलिए, इस बात का पता लगाना इतना सरल नहीं है कि कुरआन ने किस प्रकार अपने वैश्विक संदेश और दर्शन के अनुसार किसी विशिष्ट कीवर्ड का प्रयोग किया हैl
इस्लाम से पहले अरब शायरी के दिलदादा थेl चूँकि इनमें लिखित दक्षता बहुत कम थीं और किताबों का तो कोई वजूद ही नहीं था, इसलिए उनकी शायरी एक नस्ल से दूसरी नस्ल तक असामान्य याद रखने की शक्ति के आधार पर स्थानांतरित हुईl हदीसों के मजमुए जमा करने के साथ साथ अब्बासियों ने प्राचीन अरबी शायरी को जमा करने की भी ‘गलती’ कीl यह उनके लिए एक नेमत थी क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने से ही शायरी सुरक्षित थीl जिसके आधार पर यह जानना संभव हो गया कि उस जमाने के अरब किस प्रकार विशिष्ट शब्दों का प्रयोग करते थेl चूँकि कुरआन उनकी भाषा में नाज़िल हुआ थाl इसी लिए कुरआन में वह (कलीदी) शब्द भी उसी प्रकार प्रयोग किये गए थे जिस प्रकार थे इनका प्रयोग उस दौर की शायरी में किया गया थाl इस वजह से मजूसी धारणाओं के दर आने या दोसरे साज़िशों के लिए इन कीवर्ड को परिवर्तित करने या इनकी गलत व्याख्या करने का कोई मौक़ा नहीं मिला जो कुरआन में बार बार वारिद हुए हैंl सौभाग्य से कुरआन के लिए अरबी भाषा का चुनाव इसलिए भी किया गया क्योंकि इस भाषा में हर शब्द का (आम तौर पर तीन हुरूफ़ (अक्षर)) पर आधारित होता है और एक बार जब किसी कीवर्ड का चुनाव हो जाए तो फिर उसके अर्थ से विचलन करना असंभव हैl
स्वयं इकबाल के पास इतना समय या इतनी ऊर्जा तो नहीं थी लेकिन उनकी एक पुरानी इच्छा थी कि कुरआन ए करीम के कीवर्ड की एक लुगत (शब्दकोष) तैयार की जाए जिसमें प्रमाणिक लुगात के हवाले से नुज़ूल ए कुरआन के ज़माने की अरबी शायरी के शब्द, मुफरदात और इस्तेलाहात का पूरा वर्णन पेश किया गया होl एक बार जब यह काम हो जाए तो कुरआनी आयतों के वह असल अर्थ जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में समझे गए थे, हदीसों या शान ए नुज़ूल पर निर्भर किए बिना ही समझे जा सकते हैंl इकबाल के दृष्टिकोण में वह शक्ति थी जो कुरआन और इस्लाम के संदेश, रिवायतें और रूह को परिवर्तित कर दे और मुसलामानों को उन सफलताओं से हमकिनार कर दे जिनका वादा कुरआन में किया गया हैl इससे मुसलामानों की प्रारम्भिक इतिहास पर आधारित मुसलामानों के बीच एतेहासिक फ़िकही विवादों का भी खात्मा हो सकता हैl
इकबाल ने इस महान काम को आगे बढ़ाने के लिए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में अरबी भाषा और इस्लामी इतिहास के प्रोफ़ेसर अल्लामा असलम जयराजपुरी से सम्पर्क कियाl लेकिन वह रीटायर होने वाले थे और अपना मदरसा शुरू करने के लिए दिल्ली स्थानांतरित होने जा रहे थेl कुछ सोच विचार के बाद अल्लामा जयराजपुरी इस महान योजना का बोझ उठाने के लिए मान गएl
इकबाल कुरआनी भाषा की लुगत तैयार करने के लिए जयराजपुरी को तैनात करके खुश थे, लेकिन उनका विचार था कि जब वह तैयार हो जाए तो पारम्परिक इस्लामी शिक्षा से लैस (लेकिन फ़िक्र रखने वाले) युवाओं की आवश्यकता होगीl
स्रोत:
dailytimes.com.pk/329449/early-history-of-islam-needs-fresh-appraisal-viii/
URL for English article: http://www.newageislam.com/islamic-history/m-aamer-sarfraz/essence-of-the-quranic-message-is-‘lost-in-translation’--early-history-of-islam-needs-fresh-appraisal-—-viii/d/117102
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/early-history-islam-needs-fresh-viii/d/117356
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/early-history-islam-needs-fresh-viii/d/117391