कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
5 अगस्त 2022
इस्लामिक इतिहास में अनगिनत शहादतें हुईं लेकिन कर्बला की धरती
पर होने वाला इमाम हुसैन का वाकिया दुसरे तमाम शहादतों से अलग है।
शहादते हुसैन के फिकरी पहलुओं को समझने और हुसैनी खुसुसियात
को इसके सहीह खद व खाल के साथ बयान करने की बजाए, इस बड़े घटना को कुछ अनावश्यक रस्म व रिवाज का मजमुआ
बना कर सीमित कर दिया गया है।
आज अहले फ़िक्र व नज़र जब शहादते हुसैन का विश्लेषण करते हैं तो
उन्हें भी इस बात की हकीकत तक रिसाई हो जाती है कि कर्बला की घटना में सब्र इस्तिकामत
और इसार व कुर्बानी की जितनी बेहतरीन मिसाल मिलती है वह इतिहास के पन्नों में कहीं
भी दर्ज नहीं।
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हर साल मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख को हज़रत इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु और आप के अहले बैत की शहादत के एतेहासिक घटना की याद ताज़ा हो जाती है। मगर विडंबना यह है कि शहादते हुसैन के फिकरी पहलुओं को समझने और हुसैनी विशेषताओं को उसके सहीह खद्दो खाल के साथ बयान करने और उन्हें जीवन के मैदान में अमली जामा पहनाने की बजाए, लोगों ने इस अज़ीम घटना को कुछ अनावश्यक रस्म व रिवाज का मजमुआ बना कर सीमित कर दिया है। यह हालत इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि हमारे समाज में फ़िक्र व तदब्बुर की कमी है जबकि कुरआन पाक ने बे शुमार मौकों पर घटनाओं पर गौर व फ़िक्र करने और उनसे नसीहत हासिल करने की तरगीब दिलाई है। इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु के घटना से इंसान को न केवल सब्र व इस्तक्लाल और इसार व कुर्बानी का दर्स मिलता है बल्कि फ़िक्र व अमल और हक़ व इंसाफ की पासदारी करने का जज़्बा मिलता है।
इस्लाम के इतिहास में अनेकों शहादतें हुईं लेकिन कर्बला की धरती पर होने वाला इमाम हुसैन का वाकया दुसरे तमाम शहादतों से अलग और मुनफ़रिद है। इस अनोखे पण की कई वजूहात हैं। एक नुमाया वजह यह है कि इमाम हुसैन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे थे और सीधे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में परवरिश पाने का शरफ हासिल किया और बचपन में नबी अकरम के मुबारक कंधों पर सवारी की। इस घटना में सबसे अहम सबक यह है कि ज़ुल्म और ज़ालिम के आगे कभी सर न झुकाया जाए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अनावश्यक रूप से इंसान अपनी जान को हलाकत में डाले और क़त्ल व गारत गरी और ज़ुल्म व सितम से महफूज़ रहने का बा इज्जत तरीका हो तो उसे न अपनाया जाए।
इस्लाम ज़ुल्म व हिंसा, फितना व फसाद, क़त्ल व दहशतगर्दी को सख्ती से नापसंद करता है। इस्लाम का अर्थ ही अमन व सलामती है और कायनात पर बसने वाली तमाम मख्लुकात, इंसान, चरिंद व परिंद, हैवान और चुटियों तक को इस्लाम ने अमान दे रखा है। इस्लाम ने हरे भरे पेड़ों की हिफाजत और वातावरण के रख रखाव की तरगीब दिलाई है। इस्लाम ने एक इंसान को दुसरे इंसानों पर आयद अधिकारों की अदायगी का हुक्म दिया है। लेकिन जब समाज में अत्याचार का रिवाज हो जाए, और ज़ालिम किसी तरह अपने ज़ुल्म और सरकशी से बाज़ न आए तो फिर इस्लाम ज़ुल्म के खिलाफ कुदरत के मुताबिक़ आवाज़ उठाने और लड़ने की शिक्षा देता है क्योंकि अगर ऐसा न किया जाए तो हक़ मग्लूब और बातिल ग़ालिब आ जाएगा। सीरते रसूल के अध्ययन से हमें यह बातें अच्छी तरह समझ आती हैं और उन पर सब से बेहतरीन अमल कर के नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे ईमान हुसैन ने कयामत तक आने वाली तमाम नस्लों को यह शिक्षा दे दी कि दामने सब्र को कभी न छोड़ना, और ज़ालिम के ज़ुल्म के आगे कभी न झुकना।
कर्बला में होने वाली ईमान हुसैन की शहादत दुनिया के लोगों को यह स्पष्ट संदेश भी देती है कि ऐ लोगों जंग में अपनी तरफ से पहल न करो। इमाम हुसैन के घटना के अध्ययन से मालुम होता है कि उन्होंने आखरी समय तक जंग टालने की तमाम कोशिशें की और यज़ीदियों को वाज़ व नसीहत करते रहे। लेकिन जब यज़ीदियों ने हक़ के अलमबरदार इमाम हुसैन की बात न सुनी और उन्हें और उनके साथ अहले बैत के अफराद और सम्मानित साथियों को क़त्ल करने पर अड़े रहे तब इमाम हुसैन ने जंग की जवाबी कार्रवाई की कोशिश फरमाई। असल में यह जंग न थी क्योंकि जंग दो फौजों के बीच हुआ करती है। इमाम हुसैन के पास फ़ौज नहीं थी बल्कि खानदान के कुछ अफराद, बच्चे, पाकबाज़ ख्वातीन और जांनिसार सम्मानित साथी थे। यह घटना केवल जारहियत के मुकाबे अपने बचाव का था। इतिहास के पन्ने इस बात के गवाह हैं इमाम हुसैन और उनके साथियों ने सख्त भूक व प्यास के आलम में बेहतरीन बचाव की कोशिशें कीं। इस हुसैनी कारनामे से दुनिया भर के दबे कुचले मजलूमों को सब्र व इस्तिकामत और हक़ पर कायम रहने की शिक्षा मिलती है।
आज अहले फ़िक्र व नज़र जब शहादते इमाम हुसैन का विश्लेषण करते हैं तो उन्हें भी इस बात की हकीकत तक रिसाई हो जाती है कि कर्बला के वाकया में सब्र इस्तिकामत और इसार व कुर्बानी की जितनी बेहतरीन मिसाल मिलती है वह इतिहास के पन्नों में कहीं भी दर्ज नहीं। सब्र व तहम्मुल और इस्तिकामत की इस दास्तान को किताबों के पन्नों पर लिखना बहुत आसान है लेकिन इसे अमल में ला कर रुए ज़मीन पर इतना उम्दा इंकलाब पैदा करना शायद किसी में संभव नहीं।
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कनीज़ फातमा न्यू एज इस्लाम की नियमित स्तंभकार और आलिमा व फाज़िला
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Urdu Article: Martyrdom of Imam Hussain, Patience and Perseverance شہادت امام حسین اور صبر و
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