जावेद अब्बास रिज़वी
12 अक्तूबर, 2013
यहाँ हर चीज़ बिकती है, सस्ते दाम में बिकती है, बहुत सस्ती बिकती है और सुबह व शाम बिकती है, मैं दुनिया की बात करता हूँ, मैं इस्लाम दुनिया की बात करता हूँ, जहाँ इज़्ज़तें बिकती है, जहाँ अस्मतें बिकती है, जहाँ बेटियाँ अपनों के हाथ बिकती है, माँ बाप के हाथ बिकती हैं, जिहाद के नाम पर बिकती है, इस्लाम के नाम पर बिकती है, फतवों के नाम पर बिकती है, सरे आम बिकती हैं, सरे आम बिकती हैं, चुप साध कर बिकती हैं, जिहादियों के हाथों बिकती हैं, मज़हब के मुफ्तियों के हाथों बिकती हैं, अस्मतें फतवों में बिकती हैं, फतवे अस्मतों में बिकते हैं, आए दिन दिल दहलाने वाली हक़ीक़तें सामने आती है, कभी महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, तो कभी बन्दूक के ज़ोर पर बलात्कार को अंजाम दिया जाता है, कभी टीवी एंकर परसन गादी अवैस को जिहाद अल-निकाह को गर्भवती हो कर माँ बाप के पास लौटाया जा रहा है तो कभी मासूम 15 बरस की रवान मिलाद अलदा को तथाकथित जिहादी अपनी हवस का शिकार बनाते हैं।
कितने अफसोस की बात है कि इस्लामी कानून व आदेशों का लिहाज़ किए बिना कुरानी आदेश व शिक्षाओं की परवाह किए बगैर, मुसलमानों की भावनाओं की कद्र किए बगैर कुछ मुफ्तियों को यहूदियों की तरफ से जो हुक्म मिलता है उस पर पूरी तरह अमल करते हैं, मुफ्ती हज़रात जब तक डालरों के लिए काम करते रहेंगें ये दुखद समस्याएं सामने आती रहेंगी। मुफ्ती हज़रात जब तक अमेरिका व इसराइल की मदद से चलने वाली फतवों की फैक्ट्रियाँ बन्द नहीं करते मुसलमानों की इज़्ज़त सरे आम नीलाम होती रहेगी। तथाकथित मुफ्तियों के द्वारा अमेरिकी इस्लाम का प्रचार प्रसार होता रहेगा, जब तक वास्तविक मुसलमान अपनी राहें उनसे अलग नहीं करते। यहूदियों की बाहों में पलने वाले इस्लाम के मुफ्ती, इंसानियत के लिए हत्यारे साबित होते रहेंगे। जब तक उनकी लाशें सद्दाम, ओसामा, कद्दाफ़ी की क़ब्र में दफनाई नहीं जातीं, इस्लाम जो मानवता के लिए शांति, भाईचारे का संदेश, समानता, इंसानी मूल्यों का प्रतिनिधित्व, समानता व सुकून का अग्रदूत बन कर आया था। आज इसी इस्लाम की छवि इस क़दर विकृत कर दी गई है कि गैर मुस्लिम लोग इस्लाम या मुसलमान का नाम सुनते ही काँप जाते है।
मैं जिस ज़मीन पर रहता हूँ, वहाँ मुसलमान बहुमत में रहते हैं लेकिन आस पास गैर मुसलीम भी रहते हैं। आम लोगों की राय है कि ऐसे मुसलमानों से काफिर ही बेहतर हैं, अगर यहाँ खुदा न ख्वास्ता अस्मतें लुटती हैं तो जिहाद के नाम पर नहीं, अगर इज़्ज़तें लुटती हैं तो इस्लाम के नाम पर नहीं, अगर महिलाओं के आधिकारों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं तो शरीयत लागू करने के नाम पर नहीं, अगर यहाँ महिलाओं को वहशी दरिन्दे अपनी वासना का शिकार बनाते हैं तो जन्नत का लालच दे कर नहीं। आम लोगों का भी कहना है कि ऐसे इस्लाम, ऐसे जिहाद, ऐसी जन्नत से अल्लाह हमें बचाए।
आम लोग जब तकफीरी (दूसरों को काफिर कहना) आतंकवादियों के ट्रेनिंग सेन्टर (आत्मघाती प्रशिक्षण केन्द्रों, इस्लाम दुश्मन केन्द्रों) का निरीक्षण करते है और देखते है कि आतंकवादियों ने इन प्रशिक्षण केंद्रों की दीवारों पर खूबसूरत जन्नत की तस्वीर, खूबसूरत दूध कि नहरें और उनमें नहाती खूबसूरत हूरों की तस्वीर सजी होती है। ये तकफीरी जो कुछ भी करते है उसी जन्नत की खातिर और उन्हीं हूरों की खातिर। दरिन्दगी के प्रशिक्षण के दौरान उन्हें बताया जाता है कि जितनी जल्दी हो सके जन्नत में दाखिल हो जाओ। हूरें तुम्हारी तलाश कर रहीं है। ये वाक्य की हूरें तुम्हारी तलाश में हैं, उनसे बर्दाश्त नहीं होता जिसके नतीजे में आए दिन आत्मघाती हमले सामने आते हैं।
ये तकफीरी आतंकवादी अपनी हूरों के साथ ही मस्त व मगन रहते हैं और ''जन्नत'' में जाने तक इंतज़ार करते तो बात बर्दाश्त के लायक थी, लेकिन उनसे कही गई हूरों के लिए वो दो दिन का इंतज़ार भी नहीं कर सकते। हमें जल्दी हूरें चाहिए। वहाँ हूरें मिले न मिलें क्या भरोसा, हो सकता है कि इसलिए तकफीरी आतंकवादियों के प्रमुख मुल्ला, मुफ्ती और उनके सरगना भी उनसे कहते हों कि जब तक हूरें नहीं मिलती, तब तक अपनी बहनों से यौन सम्बंध स्थापित कर सकते हो (सऊदी अरब के दरबारी मुफ्ती शेख नासिर अल उमर ने सीरिया के आतंकवादियों के लिए अपनी बहनों के साथ 'जिहाद अलनिकाह' का फतवा दिया था। इस वहाबी शेख ने अपने फतवे में स्पष्ट किया था कि नामहेरम (खून के रिश्ते के बाहर वाली महिलाएं) महिलाओं तक पहुँच न होने कि सूरत में सीरिया के मुजाहिदीन अपनी महरम महिलाओं और बहनों से 'निकाह' कर सकते हैं)।
इसलिए मुफ्ती हज़रात दरिया दिली का प्रदर्शन करते हुए अपनी बहनों, अपनी पत्नियों को उन्हें पेश करते हैं। कभी फतवे दिए जाते हैं कि तकफीरी आतंकवादी जहाँ कहीं भी अल्लाह के नाम पर जिहाद में लगें हों, वहाँ की हर महिला उनके लिए जायज़ व हलाल है। अफसोस जहाँ बाप अपनी बेटी को बलात्कार के लिए तैयार करे, बेटी चीखे, चिल्लाए, फरियाद करे और बाप उसे खामोश रहने को कहे, जन्नत की हासिल होने की बात कहे, बेगुनाही का सर्टीफिकेट दे। जहाँ पति अपनी पत्नी को 'सेक्स जिहाद' के लिए उकसाए। जहाँ ज़बरदस्ती बलात्कार को जिहाद अलनिकाह का नाम दिया जाता हो। जहाँ माँ, बहन, बेटी और पत्नी की इज़्ज़त और मान सम्मान खत्म कर दिया गया हो, ऐसे इस्लाम, ऐसे मुसलमान, ऐसे जिहाद, ऐसी शरीयत, ऐसी जन्नत और दीवारों पर सजी हुई नहाती हुई हूरों को दूर से ही खुदा हाफिज़।
यहूदी मुफ्तियों के चक्कर में इस्लामी दुनिया के विभिन्न देशों से कितने अच्छे खासे लोग अपने होश व हवास खो बैठे और उन्होंने खुद को पार्टी के कार्यकर्ताओं के पूरे परिवार को सीरिया बढ़ रहे सेक्स जिहाद में शामिल किया। कुछ देश अभी भी अपनी ''माननीय महिलाओं'' को सेक्स जिहाद का हिस्सा बनाने के लिए राज़ी कर रहे हैं। कुछ देश अपनी महिलाओं को गर्भवती होने पर अपने देश में वापिस आने पर उनका स्वगत कर चुके हैं। कुछ देश नई तकफीरी नस्ल के इंतज़ार में हैं। कुछ सोच विचार कर रहे हैं। कुछ असमंजस में हैं और कुछ इस सोच में कि यहाँ क्या क्या बिकता है। बस वो समझ लें की यहाँ हर चीज़ बिकती है, सस्ते दाम में बिकती है और सुबह व शाम बिकती है।
12 अक्तूबर, 2013
स्रोतः रोज़नामा सहाफत, लखनऊ
URL for Urdu article:
URL for this article: