मौलाना वहीदुद्दीन खान
१२ मार्च २००८
(उर्दू से अनुवाद: न्यू एज इस्लाम)
दुनिया में इस आम खयाल के विपरीत कि इस्लाम आत्मघाती बम धमाकों की इजाज़त देता है, असल में, इस्लाम आत्मघाती बम धमाकों को पूर्ण रूप से गैर इस्लामी करार देता है।
शत्रु को तबाह करने के लिए इस्लाम मुसलमानों को आत्मघाती बम हमलों के प्रतिबद्धता की अनुमति नहीं देता है। खुद को विस्फोटक सामग्री से उड़ाना और शत्रु को तबाह करने के उद्देश्य से, स्वयं को ऐसे आम लोगों की बस्तियों पर डालना जिनके साथ जंग हो रही हो और इस कार्य में जान बुझ कर खुद को हालाक करना पूर्ण रूप से गैर इस्लामी है। इसे किसी भी तरह (शहादत) नहीं करार दिया जा सकता। इस्लाम के अनुसार हम शहीद बन सकते हैं, लेकिन हम जान बुझ कर शहीद की मौत का फैसला नहीं कर साकते।
शायद मज़हब पर आधारित आतंकवाद मुसलमानों की तारीख का सबसे खतरनाक रूझान है। इस्लामी इतिहास में, निकटतम अतीत तक, इस कार्य को हमेशा एक उपयोगी हथियार समझा जाता रहा है। लेकिन आधुनिक दौर में पहली बार, मुस्लिम मानसिकता इतनी मस्ख हो गई कि इस मौके पर, अप्राप्य कार्य को भी आवश्यक समझा जाने लगा। आत्मघाती हमले जो जिंदगी पर मौत की तरजीह ज़ाहिर करते हैं, इसी श्रेणी में आते हैं। जबकि इस्लाम की प्रारम्भिक इतिहास में यह एक अजनबी कल्पना थी, आधुनिक दौर में, इसने मुसलमानों के लिए अमल के एक अज़ीम तर्ज़ अमल का दर्जा हासिल कर लिया है।
किस तरह आत्महत्या का अमल राजनीतिक समस्याओं के एक हल के तौर पर इतना महत्वपूर्ण हो गया? इसकी वजह का इस्लाम के ख़ास इखलास से संबंध नहीं है, बल्कि इंसान के लिए एक विरोधी रवय्या की वजह से है। चूँकि आत्मघाती हमलावर अपने जिस्म पर बम बांधे हुए होते हैं, यह इस्लाम का हामी नहीं है, बल्कि यह मानवता विरोधी भावना है, जिसने इस तरह के एक घातक कार्य को अपनाने की हौसला अफजाई की है। यह एक ऐसी हकीकत है कि कोई भी अपने होश व हवास में इससे इनकार नहीं कर सकता।
कुरआन के अनुसार, एक मुसलमान वह व्यक्ति है जो इंसानों का खैर ख्वाह है। लेकिन आज के मुसलमानों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उनके दिलों में दूसरों के लिए अच्छी चाहत का कोई एहसास नहीं है। वह तमाम अकवाम को अपना दुश्मन समझते हैं। और उनकी दुश्मनी इतनी बढ़ गई है कि जब वह अपने दुश्मनों पर हमला करते हैं तो सारे नैतिक हदों को पार करने के लिए तैयार रहते हैं। अगर उन्हें लगता है कि वह खुद को मार कर उन्हें हानि पहुंचा सकते हैं, तो वह आत्मघाती हमलों जैसे बड़े कदम उठाने के लिए तैयार हैं।
सच यह है कि आत्महत्या पुर्णतः इस्लाम में हराम है। यह इस हद तक निषेध है कि, अगर कोई मर रहा है, और इस बात का यकीन है कि वह ज़िंदा नहीं बचेगा, उन आखरी क्षणों में भी इस्लाम उसे अपनी जान लेने की अनुमति नहीं देता।
एक घटना जो इसकी वजाहत करता है, सहीह मुस्लिम में मरवी है। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी में जंगे खैबर के दौरान घटित हुआ, जो कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा और उनके दुश्मनों के बीच रक्षात्मक जंगों में से एक थी। मुसलमानों की तरफ से एक सिपाही, जिसका नाम कजमान अल ज़फरा था, उन्होंने बहुत बहादुरी से जंग की और मर गए। मुसलमानों ने कहा कि वह एक शहीद थे और जन्नत में जाएंगे। लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वह जहन्नम में जाएंगे। सहाबा हैरान रह गए।
इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें उनकी मौत का कारण पता लगाने का आदेश दिया। तलाश व जुस्तजू के बाद यह पता चला कि वाकई उन्होंने मुसलमानों के लिए बहुत बहादुरी से जंग लड़ी थी और बुरी तरह ज़ख्मी हो कर नीचे गिर पड़े थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने ज़ख्मों को बर्दाश्त से बाहर पाया, और उन्होंने अपनी ही तलवार से अपनी जान लेली (फ़तहुल बारी, शरह सहीह बुखारी, किताबुल मगाजी, ७/५४०)
इस अमल की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जरिये मनाही ने यह स्पष्ट कर दिया कि आत्मघाती बम हमले किसी भी सूरत में इस्लाम में जायज नहीं हैं। इस्लाम के अनुसार ज़िन्दगी इतनी कीमती है कि किसी भी बहाने से कोई भी अपनी मर्ज़ी से उसे खत्म नहीं कर सकता। इस्लाम ज़िन्दगी का नकीब है। यह समय से पहले मौत की इजाज़त नहीं देता है। यही कारण है कि इस्लाम में सब्र की फ़ज़ीलत को बहुत अहमियत दी जाती है। सब्र का मतलब ऐसा कोई भी कदम उठाने के बजाए जिससे किसी की ज़िन्दगी का खात्मा हो सख्त मुसीबत बर्दाश्त करना है।
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Article Islam does not Permit Suicide Bombings
Urdu Article: Islam does not Permit Suicide Bombings اسلام خودکش بم دھماکوں کی
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