मौलाना वहीदुद्दीन खान
21 अगस्त, 2013
(उर्दू से अनुवाद: मोहम्मद अंजुम, न्यु एज इस्लाम)
दो महान परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले इस्लाम और हिंदू धर्म दोनों एक हज़ार से अधिक बरसों से मौजूद हैं। इन दोनों धर्मों के बीच के सम्बंधों को समझना बहुत अहम है। इन दोनों के सम्बंधों के विषय पर दो अलग अलग राय पाई जाती हैं। एक राय ये है कि ये दोनों परंपराएं एक दूसरे से बहुत समान हैं। एक बार मुझे एक हिंदू विद्वान से मिलने का मौक़ा मिला जिन्होंने बड़े उत्साह के साथ कहा, "मैं इन दोनों धर्मों के बीच कोई अंतर नहीं पाता, क्योंकि जब मैं कुरान पढ़ता हूँ तो ऐसा लगता है कि गीता पढ़ रहा हूँ और जब गीता पढ़ता हूँ तो ऐसा लगता है कि कुरान पढ़ रहा हूँ।" लेकिन ये समस्या का अत्यधिक सरलीकरण है। और मुझे नहीं लगता कि ये धारणा शैक्षिक जांच पर खरी उतरेगी।
और इस मुद्दे पर दूसरी राय ये है कि इस्लाम और हिंदू धर्म दोनों एक दूसरे से बहुत अलग हैं और दोनों एक दूरसे को लेकर ज़बरदस्त बहस करते हैं। ये धारणा खासकर ब्रिटिश कार्यकाल के दौरान भारत में आम थी और उस समय अपने चरम पर पहुंच गई।
बौद्धिक विकास के संदर्भ में दोनों धर्मों की खूबियों की समीक्षा बौद्धिक और अकादमिक रूप से अधिक उपयोगी होगी। इस तरह का विकास सामाजिक सम्पर्क और बौद्धिक आदान प्रदान के परिणाम स्वरूप ही हो सकता है। इस बिंदु को स्पष्ट करने के लिए मैं कुछ ऐतिहासिक उदाहरणों की चर्चा करना चाहूंगा। जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'The Discovery of India' में लिखा है कि जब अरब हिंदुस्तान आए तो वो अपने साथ एक शानदार संस्कृति लेकर आए। इतिहास उनके इस बयान की पुष्टि करता है।
अरब 7वीं और 8वीं सदी में हिंदुस्तान आये थे। उस समय भारत में अंधविश्वास का वर्चस्व था। ज़्यादातर हिंदुस्तानी प्रकृति की पूजा करते थे। उनका विश्वास था कि सितारों से लेकर ग्रहों तक, नदी और पेड़ तक प्रकृति में दिव्य हैं। इस्लामी आस्था के अनुसार सृष्टिकर्ता केवल खुदा है और पूरा ब्रह्मांड उसकी रचना है। ये विचारधारा उस समय के हालात के लिए क्रांतिकारी थी। इसने भारतीय समाज को वैज्ञानिक सोच से परिचित कराया और भारतीयों की मानसिकता में बदलाव पैदा किया। इस विचारधारा से परिचय के बाद भारतीयों ने प्रकृति की पूजा करने और इसे दिव्य समझने के बजाए प्रकृति का अध्ययन करने की कोशिश की।
भारत में इस्लाम के आगमन का दूसरा प्रभाव वैश्विक भाईचारे से परिचित होना था। उस समय भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का वर्चस्व था। समानता की इस्लामी अवधारणा ने काफी हद तक इस व्यवस्था में परिवर्तन पैदा किया। इस इस्लामी अवधारणा के योगदान की समझ को डॉ. तारा चंद की 1946 में लिखी किताब "The Influence of Islam on Indian Culture" से प्राप्त किया जा सकता है।
इन मिसालों से हम भारतीय समाज पर इस्लाम के सकारात्मक और स्वस्थ्य प्रभाव को समझ सकते हैं। आइए अब हम भारतीय मुसलमानों के लिए हिंदू धर्म के योगदान पर एक मिसाल पर नज़र डालते हैं। खुद को उकसाये जाने के बावजूद खुद को उकसाने की इजाज़त न देना इस्लाम की एक ऐसी शिक्षा है जो भुला दी गयी है। मैंने इस शिक्षा की एक खूबसूरत मिसाल भारत की महान आत्मा स्वामी विवेकानन्द के जीवन में पाई है।
उनके दोस्तों में से एक उन्हें आज़माना चाहते थे। इसलिए उसने स्वामी जी को अपने घर पर आमंत्रित किया। जब स्वामी जी उसके घर पहुंचे तो उन्हें एक कमरे में बैठने के लिए कहा गया, जहाँ एक मेज़ के पास विभिन्न धर्मों की पवित्र किताबें एक पर एक करके रखी गईं थीं। हिंदू धर्म की पवित्र पुस्तक भगवत गीता को सबसे नीचे रखा गया था। और अन्य धार्मिक किताबें इसके ऊपर रखी गई थीं। स्वामी जी के दोस्त ने उनसे पूछा कि वो इस पर क्या कहेंगे।
ये स्पष्ट रूप से स्वामी जी के लिए अपमानित करने वाला होना चाहिए था लेकिन चिढ़ने के बजाय वो सिर्फ मुस्कुराए और कहा "वास्तव में नींव बहुत अच्छी है" ये घटना इस बात की खूबसूरत मिसाल है कि अगर कोई व्यक्ति चिढ़ने से इंकार कर दे तो वो इतना ताक़तवर हो जाता है कि किसी भी नकारात्मक स्थिति को सकारात्मक स्थिति में बदल सकता है। इसके अलावा बुखारी में एक हदीस है, जो हमें नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की सामान्य नीति के बारे में बताती है। पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बीवी आएशा सिद्दीक़ा कहती हैं कि "जब कभी नबी सल्लल्लाहुब अलैहि वसल्लम को ऐसी किसी स्थिति का सामना करना पड़ा और उन्हें दो रास्तों में से किसी एक का चयन करना पड़ा तो उन्होंने हमेशा कठिन रास्ते के बजाय आसान रास्ते को चुना।"
इस सिद्धांत के सफलतापूर्वक पालन की एक मिसाल महात्मा गांधी के जीवन में भी देखी जा सकती है।1947 से पहले के समय में भारत ब्रिटिश सरकार से अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा था। उस समय भारतीय लीडरों के पास हिंसक गतिविधियों और शांतिपूर्ण विरोध के दो रास्ते मौजूद थे। गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के साथ हिंसक संघर्ष से परहेज़ किया और शांतिपूर्वक विरोध का रास्ता चुना। वो बिना खून खराबे के बड़ी सफलता प्राप्त करने में सक्षम थे।
महात्मा गांधी द्वारा पेश की गई ये मिसाल इस्लामी सिद्धांतों का एक बहुत अच्छा उदाहरण है। मेरे मुताबिक़ धर्मों में मतभेद बुराई नहीं बल्कि अच्छाई है। हमें सिर्फ सकारात्मक मन के साथ मतभेद को स्वीकार करने की ज़रूरत है ताकि हम एक दूसरे से सीख सकें और दुश्मन के बजाय दोस्त की तरह जीवन बिता सकें। जीवन सहयोग और सहअस्तित्व का नाम है, और विभिन्न धर्मों के बीच सम्बंध इस सिद्धांत की मान्यता पर आधारित होने चाहिए।
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