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Hindi Section ( 30 Jan 2023, NewAgeIslam.Com)

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What Does Islam Think Of The Expanding Trend Of Khula by Muslim Women? Part -3 खुला का बढ़ता चलन मगर दीन इस्लाम क्या कहता है?

गुलाम गौस सिद्दीकी, न्यू एज इस्लाम

तीसरी क़िस्त

उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम

21 जनवरी 2023

खुला से फस्खे निकाह होगा या तलाक शुमार होगा?

माहियते खुला अर्थात खुला से निकाह फस्ख होता है या तलाक शुमार होगा इस इस सिलिसले में फुकहा के दरमियान इख्तिलाफ है। इस सिलिसले में दो मज़हब हैं:

1- इमाम अहमद बिन हंबल से दो रिवायतें मनकूल हैं जिनमें एक कौल मशहूर यह है कि खुला से निकाह फस्ख होगा तलाक शुमार नहीं होगा, इमाम शाफई से भी दो रिवायतें मनकूल हैं, एक रिवायत के मुताबिक़ फस्खे निकाह होगा।

2- अह्नाफ के नज़दीक खुला तलाक है। औजजुल मसालिक में है कि खुला हनफिया और माल्किया के नज़दीक तलाके बाइन है। इमाम शाफई से दो रिवायतें मनकूल हैं लेकिन उनके नज़दीक जियादा सहीह यह है कि खुला से तलाक होगी।

खुला के फस्ख होने या तलाक होने पर मतभेद का नतीजा यह है कि अगर किसी शख्स ने अपनी बीवी से खुला किया तो अब यह शख्स इमाम अहमद और इमाम शाफई के एक कौल के मुताबिक़ उस औरत के साथ तजदीदे निकाह (नए तरीके से निकाह) करने के बाद तीन तलाक का मालिक होगा और अह्नाफ के नज़दीक केवल दो तलाक का मालिक होगा।

खुला से तलाके रजइ होगी या तलाके बाइन?

खुला के वास्ते से पड़ने वाली तलाक रजइ नहीं होती है बल्कि खुला से तलाके बाइन वाकेअ होती है जिसकी दलील यह हदीस है: عن ابن عباس ان النبی صلی اللہ علیہ وسلم جعل الخلع تطليقة بائنة अर्थात हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुला को तलाक बाइन करार दिया।  (سنن للبيهقي، باب الخلث هل هو فسخ أو طلاق، ج 7 ص 316/ مصنف ابن ابي شيبة ج 4 ص 85) जब शौहर ने बीवी से माल ले लिया तो उसके बदले बीवी की जान छुटनी चाहिए और यह उसी शक्ल में हो सकता है जब खुला तलाके बाइन के दर्जे में हो और तलाक बाइन की सूरत ही में औरत की जान फ़ौरन छूट पाएगी वरना औरत के शौहर को माल देने का क्या फायदा हुआ? इसलिए मालुम हुआ कि खुला से तलाके बाइन वाकेअ होती है।

बदले खुला के तौर पर औरत से इवज़ बिल माल लेनें की जायज़, मकरूह और मुबाह सूरतें

बदले खुला के तौर पर औरत से कुछ माल लेने की दो सूरतें हैं: एक सूरत में औरत से माल लेना मकरूह है और दूसरी सूरत में बीवी से माल लेना जायज़ तो है मगर जितना महार तय हुआ था उसकी मिकदार से अधिक लेना जायज़ नहीं। अगर शौहर की तरफ से नुशूज़ (नाफ़रमानी) शरारत या नागवारी का इज़हार हो तो शौहर के लिए बदले खुला के तौर पर औरत से कुछ भी माल लेना मकरूह है। अगर नुशूज़ या शरारत औरत की तरफ से हो तो महर की मिकदार तक लेना शौहर के लिए बिला कराहियत जायज़ है मगर महर की मिकदार से अधिक लेना हनफी फिकह की किताब मबसूत की रिवायत के मुताबिक़ मकरूह है। महर की मिकदार पर ज़्यादती के मकरूह होने की दलील साबित बिन कैस की बीवी से नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद   ‘‘واما الزیاد فلا ’’ अर्थात नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़्यादती की नफी (इनकार) फरमाया है और जब अबाहत मुन्ताफा हो गई तो कराहत साबित हो जाएगी, यानी जब वो मुबाह न रही तो मकरूह हो जायेगी.

इस सिलिसले में फुकहा ने यह भी फरमाया है कि औरत के नाशीज़ा होने की सूरत में अगर शौहर ने औरत से मिक्दारे महर से अधिक ले लिया तो कज़ा जायज़ है और ऐसे ही अगर सरकशी शौहर की तरफ से है इसके बावजूद शौहर ने खुला में मिक्दारे महर से अधिक ले लिया तो भी कज़ाअन जायज़ है। वह इसकी दलील में यह आयत पेश करते हैं: ( فَلاَ جُنَاحَ عَلَیْهِمَا فِیْمَا افْتَدَتْ بِهٖ) अनुवाद: “.....(इस सूरत में) उन पर कोई गुनाह नहीं कि बीवी (खुद) कुछ बदला दे कर (इस रिश्ता ए जौजियत से) आज़ादी ले ले.....वह कहते हैं कि आयत का मुकतज़ा दो चीज हैं (1) शरअन जवाज़ (2) अबाहत।

इस बात को समझने के लिए यह हिल्लत, एबाहत और जवाज़ के बीच फर्क को जानना जरूरी है।

एबाहत की ज़िद कराहत है।

जवाज़ की ज़िद हुरमत है।

उसूले फिकह के मुताले से समझ में आता है कि जो चीज मुबाह होती है वह जायज़ ज़रूर होती है मगर जो चीज जायज़ हो उसके लिए यह जरूरी नहीं कि वह मुबाह भी हो। इसकी मिसाल यह है कि जुमा के दिन अज़ान के वक्त तिजारत करना, खरीद व फरोख्त करना जायज़ है मगर मुबाह नहीं बल्कि मकरूह है। इससे मालुम हुआ कि एक चीज जायज़ होने की सूरत में मकरूह भी हो अर्थात जवाज़ और कराहत एक चीज में जमा हो सकते हैं।

अब तरीके इस्तदलाल इस तरह है कि बदले खुला के तौर पर औरत से फिदया लेना मुबाह है और जिसका सुबूत मजकुरा आयत में मुलाहज़ा हुआ।

इस आयत का मदलूल मुतलक फिदया की एबाहत है इस आयत में मुतलक फिदया को मुबाह करार दिया गया है चाहे महर की मिकदार से कम हो या अधिक। इसलिए महर की मिकदार से अधिक लेना शौहर के लिए जायज़ है। मगर चूँकि यह जायज़ तो है मगर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद गिरामी ‘‘اما الزیادۃ فلا’’ अर्थात महर मस्मी (मुतअय्यन) की मिकदार से अधिक माल लेना खुला में मकरूह है। हमने उपर यह कायदा पढ़ लिया है कि जवाज़ और कराहत एक चीज में जमा हो सकते हैं। जब बात ऐसी है तो बदले खुला के तौर पर बीवी से तयशुदा महर की मिकदार से अधिक लेना जायज़ तो है मगर यह अमल मकरूह है।

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गुलाम गौस सिद्दीकी न्यू एज इस्लाम के नियमित कालम निगार, उलूमे दीनिया के तालिब और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू के अनुवादक हैं।

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