नीलोफर अहमद (अंग्रेज़ी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
इस्लाम में वसीला एक ऐसा विवादास्पद विषय बन गया है जिस पर इसकी हिमायत और मुखालिफत करने वाले दोनों अपनी दलीले पेश करते हैं। कुरान फरमाता हैः ‘ऐ ईमान वालों खुदा से डरते रहो और उसका कर्ब (सानिध्य) प्राप्त करने का वसीला तलाश करते रहो।’
अरबी में वसीला का अर्थ कड़ी या मिलाप कराने वाले के हैं। तवस्सुल या शिफा के लिए अंग्रेज़ी शब्द इंटरसेशन है, अर्थात खुदा तक पहुँचने का ज़रिया तलाश करना। इसका मतलब ये हुआ कि इस दुनिया में और कयामत के दिन किसी और की ओर से किसी की सिफारिश करना। जब खुदा के लिए शाफी शब्द इस्तेमाल होता है इसका मतलब ये हुआ कि वो जो सिफारिश की इजाज़त दे।
कुरान की कई आयतों को बिना उनके संदर्भ के गलत समझा गया है और कई लोगों का खयाल है कि कुरान खुद इसका खंडन करता है और कहते हैं कि एक जगह कुरान वसीले को सही मानता है जबकि दूसरी जगह उसको सही नहीं मानता है। कुरान के अनुसार, जो लोग सिफारिश से इंकार करते हैं, वो यकीन न रखने वाले हैं, या खिलाफवर्ज़ी करने वाले हैं। ‘(तो इस हाल में) सिफारिश करने वालों की सिफारिश उनके हक में कुछ फायदा न देगी (74:48)’। यहाँ हवाला जहन्नमियों से है। बनी इसराईल से कहा जाता है, ‘उस दिन से डरो जब कोई शख्स किसी शख्स के कुछ काम न आये, और न उससे बदला कुबूल किया जायेगा और न उसको किसी की सिफारिश कुछ फायदा दे और न लोगों को (किसी और तरह की) मदद मिल सके।’ (21:23)
कुछ आयतें जो ये स्पष्ट करती हैं कि बगैर खुदा की इजाज़त और वादे के कोई भी सिफारिश नहीं कर सकता है और साथ ही ये भी यकीन दिलाता है कि सिफारिश का अमल होगा। (तो लोग) किसी की सिफारिश का अख्तियार न रखेंगें मगर जिसने खुदा से इक़रार लिया हो। (19:87, 34:23) ‘उस रोज़ (किसी की) सिफारिश कुछ फायदा न देगी मगर उस शख्स की जिसे खुदा इजाज़त दे और उसकी बात को पसंद फरमाये। (20:109)’ मक्का वालों का यकीन था कि उनके बनाये बुत उनकी सिफारिश करेंगें, उसकी तरदीद की गयी (30:13)
खुदा नबी करीम स.अ.व. से फरमाता हैः ‘और बाज़ हिस्से शब (रात) में बेदार हुआ करो (और तहज्जुद की नमाज़ पढ़ा करो)। (ये शबखेज़ी) तुम्हारे लिए (सबबे) ज़ियारत है (सवाब औऱ नमाज़े तहज्जुद तुमको नफिल) करीब है कि खुदा तुमको मक़ामे महमूद में दाखिल करे।’ (7:79) आधी रात में पढ़ी जाने वाली ये नमाज़ पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व पर फर्ज़ थी लेकिन उनके मानने वालों पर ऐच्छिक थी। पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व का मकामे महमूद कयामत के दिन सबसे आला इंसानी मकाम होगा।
एक हदीस में बयान है कि कयामत के दिन लोग इधर से उधर सिफारिश करने वालों की तलाश में भाग रहे होंगे, यहाँ तक कि वो पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व के पास पहुँचेगें, जो जवाब देंगे, ‘मैं तुम्हारी शिफाअत के लिए हूँ’। इसके बाद खुदा आप स.अ.व से फरमायेगा, सिफारिश करो, तुम्हारी सिफारिश सुनी जायेगी। (बुखारी)
पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व के उपनामों में से एक शाफी है, यानि जो शिफाअत करे। दूसरे अध्य़ात्मिक लोग जो शाफई के रूप में काम करेंगे उनमें पैगम्बर, शहीद, कुरान का हाफिज़, फरिश्ते और नेक लोग, जिन्हें अल्लाह सही समझे, शामिल होंगे। पैगम्बर ईसा अलै. कयामत के दिन अपने मानने वालों की सिफारिश करेंगे, इसका ज़िक्र कुरान में है। (5:16-18)
तिरमज़ी, इब्ने माजा और दूसरी हदीसों के अनुसारः ‘एक नाबीना आदमी पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व के हुज़ूर में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि मेरी आंखों में रौशनी नहीं है आप अल्लाह से दुआ करें, पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व ने फरमाया, जाओं वज़ू करो और दो रिकअत नमाज़ पढ़ो और दुआ करो, ऐ अल्लाह मैं अपने पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व के वसीले से आपकी ओर ध्यान करता हूँ और आपसे मांगता हूँ। ऐ पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व अपनी आंखों की रौशनी वापस पाने के लिए आपसे सिफारिश की प्रार्थना करता हूँ। ऐ अल्लाह पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व के वसीले से मेरी शिफाअत कुबूल कर लीजिए।’ इसके बाद पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व ने फरमाया, अगर कोई और हाजत हो तो इसके दुहरा लेना।
किसी ज़िंदा या मुर्दा शख्स के ज़रिए वसीले को पहुँचाया जा सकता है, क्योंकि इससे मुराद उस ज़िंदा या मुर्दा शख्स के साथ जुड़ी स्थायी सकारात्मक हैसियत से है। पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व के वेसाल के बाद उस्मान बिन हुनैफ ने ये दुआ काफी लम्बे अर्से के बाद किसी को सिखाई थी। किसी खास ज़रूरत के तहत आदर के लायक शख्सियत जैसे पैगम्बर मोहम्मद स.अ.व या कोई और सच्चे मोमिन को वसीला बनाना और उस शख्स के बारे में ये सोचे बगैर कि वो देने की शक्ति रखता है, ऐसा करने की इजाज़त चारों सुन्नी इमामों ने दी है। यहाँ तक कि इब्ने तैमिया का खयाल था कि अल्लाह मोमिनों के लिए पैगम्बर और अध्यात्मिक रहनुमाओं को सिफारिश की इजाज़त देगा, क्योंकि वो कयामत के दिन ज़िंदा होंगे और उनका शिफाअत असरदार होगी।
अगर कोई शख्स इस दुनिया से जा चुके लोगों से सीधे तौर पर मांगता है और उसका खयाल है पैगम्बर और परहेज़ करने वाले बंदे देने की शक्ति के मामले में स्वतंत्र है। तब ये खयाल शिर्क होगा और ये अमल अल्लाह की देने वाली विशेषता के साथ किसी को साझीदार बनाने के बराबर होगा।
सिफारिश की कई किस्में हैः पहला खुदा के बहतरीन नामों के साथ, ‘और खुदा के सब नाम अच्छे ही अच्छे हैं. तो उसको उसके नामों से पुकारा करो।’(7:180) दूसरे इंसान के अच्छे आमाल से। तीन लोग एक ग़ार (मांद) में फंस गये।
सभी ने अल्लाह से दुआ की, कि उनके अच्छे काम के बदले में उनकी दुआ कुबूल करें। (बुखारी) तीसरे ज़िंदा और परहेज़गार बंदों से दुआ की प्रार्थना करना और चौथे अल्लाह के नज़दीक अच्छे आमाल वाले ज़िंदा या मुर्दा लोगों को वसीला लगाना।
इस मामले में ज़िंदा या मुर्दा का भेद उसी तरह है जैसे मौत के वक्त रूह के फना हो जाने का यक़ीन।
ये कयामत के दिन से इंकार करने के बराबर है। कयामत के दिन सिफारिश, खुदा की ओर से किसी मोमिन को दिये गये ग्रेस मार्क्स हैं, जिसने एक अपेक्षित सतह तक पहुँचने की कोशिश की लेकिन इस सतह तक नहीं पहुँच सका। ये एक शख्स की ओर से सिफारिश होगी, जिसे अल्लाह इजाज़त दे, सिर्फ एक के लिए जिसे अल्लाह इजाज़त देता हैः ‘कह दो कि सिफारिश तो सब खुदा के ही अख्तियार में है। (39:44)’
और तमाम ताकत खुदा से ही है।
लेखिका क़ुरान की विद्वान हैं, और वर्तमान समय के विषयों पर लिखती रहती हैं।
स्रोतः डॉन, कराची
URL for English article: http://www.newageislam.com/islamic-ideology/intercession-in-islam--quranic-arguments-from-both-sides-of-the-divide/d/5995
URL fir Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/resources-islam-quranic-arguments-/d/6033
URL: https://newageislam.com/hindi-section/intercession-islam-quranic-arguments-sides/d/6053